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Submitted by Rashmi Sachade on 20 July 2022

मुंबई की 56 वर्षीय रश्मि सचदे को 15 साल पहले गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल स्ट्रोमल ट्यूमर (जीआईएसटी) का निदान मिला था। वे कैंसर को एक पेइंग गेस्ट की तरह मानती हैं और अपनी कैंसर यात्रा को अपनी आस्था और हँसते रहने की प्रवृत्ति के सहारे संभालती हैं।

2004 की बात है।, मैंने देखा कि मेरा पेट फूलने लगा था और जब मैं सोने के लिए लेटती तो विशेष रूप से एक तरफ बहुत सख्त लगता। मुझे उस समय फूले हुए पेट के अलावा कोई अन्य स्वास्थ्य संबंधी शिकायत नहीं थी – पर पेट इतना फूला रहता कि लोग पूछने लगे कि क्या मैं गर्भवती हूं। इसलिए मैं अपने फैमिली डॉक्टर से मिली, जिन्होंने मेरी जांच की और मुझे सीटी स्कैन के लिए भेजा। कुछ दिनों बाद जब मैं अपनी सीटी रिपोर्ट लेने गई, तो केंद्र में काम करने वाला एक आदमी बाहर आया और उसने मुझे बताया कि मेरे स्कैन से पता चला कि यह कैंसर था। मेरी 9 साल की बेटी उस समय मेरे साथ थी और उस व्यक्ति ने यह बेटी के सामने ऐसे ही बोल दिया। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसने यह क्या कर दिया था!

Read in English: I Will Not Die from Cancer

मैं अपनी रिपोर्ट लेने के बाद अपने माता-पिता से मिलने गई लेकिन उनसे इस सब के बारे में कुछ नहीं कहा। अगले दिन मैं अपने पति के साथ नानावटी नामक एक नजदीकी अस्पताल में उपस्थित ऑन्कोलॉजिस्ट को अपनी रिपोर्ट दिखाने के लिए ओपीडी गई। मैं पहले अकेले ही अन्दर गई और मैंने डॉक्टर को बताया कि कैसे लैब वाले ने मुझे पहले ही कैंसर के बारे में बता दिया था और फिर डॉक्टर से अनुरोध किया कि वे मेरे पति को फिलहाल कैंसर के बारे में न बताएं क्योंकि मेरे पति संवेदनशील प्रकार के हैं।. परामर्श के बाद, मुझे इलाज के लिए केईएम अस्पताल में एक ऑन्कोलॉजिस्ट, डॉ चिराग देसाई के पास भेजा गया। जब हम डॉक्टर चिराग से मिलने गए तब भी मेरे पति को मेरे कैंसर का पता नहीं चला, अगले कुछ दिनों में उन्हें धीरे-धीरे पता चला। उस दिन मेरा जन्मदिन था! डॉ. चिराग ने मुझे निदान के बारे में विस्तार से बताया (उन्होंने चित्र भी बनाए) साथ ही उस सर्जरी के बारे में भी बताया जो वे करना चाहते थे। उन्होंने मुझसे कहा कि अब आपके "अच्छे दिन" शुरू हो जायेंगे! मैं उन्हें अपने डॉक्टर के रूप में पाकर बहुत खुश और संतुष्ट थी।

सर्जरी के बाद की चुनौतियां

उन्होंने मेरा ऑपरेशन 21 जून 2004 को किया। मैं भाग्यशाली थी कि ट्यूमर फैला नहीं था और इसलिए इसे सफलतापूर्वक हटा दिया गया। मैं सर्जरी के बाद 17 दिनों तक अस्पताल में थी। मुझे याद है कि उन 17 दिनों में मैं केवल सेलाइन और ग्लूकोज पर रखी गयी थी और फिर धीरे-धीरे नियमित भोजन शुरू करा गया था। मैं कभी भी किसी विशेष आहार या व्यायाम व्यवस्था पर नहीं रही थी। ठीक होने के बाद, मुझे कुछ मौखिक गोलियों के लिए हिंदुजा जाने के लिए कहा गया, लेकिन वे गोलियों मेरे लिए ठीक नहीं थीं – उनकी वजह से मेरे हाथ और पैर पूरी तरह सुन्न हो जाते, मुझे चक्कर आते, और इतनी कमजोरी होती थी कि 3 दिन बाद गोलियां बंद कर दी गईं। उनका दुष्प्रभाव पूरे एक महीने तक रहा।

एक रात लगभग 3 बजे, मुझे बहुत उल्टी हुई और मैं बहुत मुश्किल से अपने पति को जगाने के लिए आवाज़ दे पाई। डॉ. चिराग (जिन पर हम इस समय सबसे अधिक भरोसा करते थे) को कॉल करा गया और उन्होंने हमें बताया कि यह शायद मेरे गर्भकालीन मधुमेह के इतिहास और सर्जरी के बाद शर्करा के स्तर में उतार-चढ़ाव के कारण हाइपोग्लाइकेमिया था। मुझे तुरंत अस्पताल ले जाया गया जहां देखा गया कि मेरी रक्त शर्करा सिर्फ 37 थी। मुझे चीनी के क्यूब्स दिए गए ताकि मेरा शर्करा का स्तर सामान्य हो पाए। फिर जीवन वापस सामान्य हुआ - मेरा काम और मेरे घर और बेटी की देखभाल करना।

2009 में फिर से मेरा वजन कम होने लगा। जब डॉक्टर ने देखा, तो उन्होंने मेरे वजन घटने और मेरी कमजोरी पर ख़ास ध्यान दिया। मैं उस समय केवल 32 किलो की थी। उन्होंने मुझे हिंदुजा के ऑन्कोलॉजी विभाग में लौटने और डॉ सुदीप शाह से मिलने के लिए कहा। डॉ सुदीप ने मेरी जांच की और मुझे चेतावनी दी कि शायद कैंसर दोबारा हो गया है (कैंसर रिलैप्स)। उन्होंने मुझे टेस्ट के लिए और डॉक्टर आशा कपाड़िया के पास परामर्श के लिए भेजा। वाकई कैंसर दोबारा हो चुका था और अब मेरे लीवर में था। इस स्थिति में सर्जरी मेरे लिए विकल्प नहीं था, और इसके बजाय डॉक्टर ने मुझे ग्लीवेक (जेनेरिक नाम = इमैटिनिब) नामक दवा के बारे में बताया। फिर यह खुलासा किया कि इस दवा (जिसे जीवन भर लेना था) की कीमत हर महीने 1.25 लाख रुपये (30 गोलियों के लिए) थी। मैं उन्हें बताया कि मुझे इतना महंगा इलाज नहीं चाहिए और मैं जाने  लगी। उन्होंने मुझे रोका और मैक्स फाउंडेशन में रोगी सहायता कार्यक्रम के बारे में बताया। आज तक मैं इसी दवा पर हूँ।

एक बार 2012 में  मेरा ट्यूमर थोड़ा बढ़ गया था और डॉ आशा ने सुझाव दिया कि मैं सुनीतिनिब नामक एक अन्य दवा लूं, लेकिन यह दवा मेरे सिस्टम को बिल्कुल भी ठीक नहीं रही और 15 दिनों के बाद मुझे वापस इमैटिनिब पर रखा गया।

जीआईएसटी  सहायता समूह की बैठकें

हर 3 महीने हमारे जीआईएसटी सहायता समूह की बैठक होती है जहां एक डॉक्टर हमारे प्रश्नों का जवाब देते हैं, जिसके बाद नए और पुराने रोगी अपने अनुभव साझा करते हैं। इन सब मीटिंग्स में  मैं इस समूह में काफी सक्रिय हो गई हूं और मैं रोगियों से बात करना और इस बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाना पसंद करती हूं। कैंसर से लोग बहुत डरते हैं। मैं लोगों को बताना चाहती हूं कि कैंसर का मतलब यह नहीं कि सब कुछ ख़त्म हो गया है। जल्दी निदान मिलने से और अच्छे डॉक्टर की मदद से कैंसर का आसानी से इलाज हो सकता है। मेरा उद्देश्य है समाज से कैंसर के डर को दूर करना है। जब मैं अपनी कहानी सुनाती हूं तो मैं लोगों को बताती  हूं कि मेरा ट्यूमर मेरे लीवर में पेइंग गेस्ट की तरह है। मैं ट्यूमर को बताती हूँ कि ठीक से व्यवहार करो, कहीं  इधर-उधर मत जाओ और इस ठीक व्यवहार के बदले मैं उसे हर दिन एक गोली खिलाती हूं। हँसी-मजाक एक बढ़िया दवा है! इस से आप मजबूत रहते हैं और किसी भी स्थिति को हलके से ले पाते हैं। मैं उन सभी लोगों को सांत्वना देती थी जो मेरी बीमारी के  दिनों में मुझसे मिलने आते थे। आस्था एक अन्य सहारा है जिस से मेरी हिम्मत बनी रही है। मैं अपने ग्लीवेक की गोली को हर दिन अपने घर के आशापुरम माता मंदिर के सामने लेती हूं।

मेरा परिवार और कैंसर

2012 के बाद से मेरी रिपोर्ट नहीं बदली है, ऐसा लगता है कि ट्यूमर अब स्थिर हो गया है। मेरा वजन भी बढ़कर ठीक हो गया है, वह अब 44 किलो हो गया है। मैं अपने काम पर वापस लौट गई हूं और फिलहाल अगले महीने होने वाली अपनी बेटी की सगाई की तैयारी कर रही हूं। वह अब बड़ी हो गई है, अच्छी तरह रह रही है, एक प्रोफेसर है और अपने जीवन साथी के साथ जिन्दगी शुरू करने के लिए तैयार है। अपनी बेटी को एक अच्छा और स्वतंत्र इंसान बनाना मेरे लिए कैंसर की बीमार के दिनों के दौरान मेरी एकमात्र चुनौती थी। जब मुझे निदान मिला था तो वह चौथी कक्षा में थी। वह मेरी जिम्मेदारी थी लेकिन मेरे परिवार के सभी सदस्यों ने बहुत मदद की। मेरे पति मेरे सबसे बड़े सहयोगी रहे हैं। शुरू में हमने मेरे और पति के माता-पिता को कैंसर के बारे में नहीं बताया, क्योंकि हम नहीं चाहते थे कि वे डरें या चिंता करें। 2009 में जब रिलैप्स हुआ, तो हमने उन्हें सूचित किया।

मुझे भविष्य की बिल्कुल भी चिंता नहीं है! मैंने घोषणा की है कि मैं कैंसर से नहीं मरूंगी! लोग कैंसर से डरते हैं और “कैंसर” शब्द बदनाम है, पर मेरी वजह से लोग कैंसर के बारे में बुरा नहीं सोचेंगे! कैंसर अब मेरा दोस्त बन गया है!

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