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Submitted by PatientsEngage on 6 March 2021

 चंद्रलेखा दास सिलचर, असम से एक शिक्षिका और मास कम्युनिकेशन विशेषज्ञा हैं। वे किडनी ट्रांसप्लांट (गुर्दे के प्रत्यारोपण ) की मरीज हैं, और अपने अनुभव साझा करते हुए यह जोर देकर कहती हैं कि एक सफल किडनी ट्रांसप्लांट के बाद भी आप शायद उसी तरह का जीवन जी सकते हैं जैसे कि आप किडनी की बीमारी होने से पहले जी रहे थे । आइये पढ़िए उन्होंने मौत पर जीत कैसे पायी।

आठ साल पहले, 28 साल की उम्र में, मुझे क्रोनिक किडनी डिज़ीज़ (दीर्घकालिक गुर्दे की बीमारी) का निदान मिला था।

मैं बंगलौर में थी, और एक सामान्य दिन, सुबह दफ्तर जाने की जल्दी में थी जब अचानक मुझे सांस लेने में बहुत दिक्कत होने लगी। मैं सुन्न और कमजोर महसूस करने लगी और मुझे चक्कर आने लगे। मैंने अपने आप को बड़ी दिक्कत से वापस घर घसीटा। मुझे सांस के लिए बुरी तरह हांफते हुए देखने पर मेरे पति मुझे तुरंत पास के एक अस्पताल में ले गए। वहां मुझे तुरंत नेबुलाइज़र पर लगाया गया। मेरा रक्तचाप बहुत अधिक था - 220/120 - और मेरे पैर और टखने सूज गए थे। मेरी हालत को देखते हुए, डॉक्टर ने क्रिएटिनिन, हीमोग्लोबिन और किडनी फंक्शन जैसे कई टेस्ट करवाने को कहा।

जब टेस्ट के रिजल्ट आये, तो डॉक्टर ने मुझे और मेरे पति को क्लिनिक बुलाया। डॉक्टर बहुत चिंतित लग रहे थे, उन्होंने कहा, टेस्ट रिजल्ट अच्छे नहीं हैं। “आप किडनी फेलियर (गुर्दे की विफलता) के अंतिम चरण में हैं। आपको तुरंत डायलिसिस शुरू करना होगा और किडनी ट्रांसप्लांट के बारे में सोचना होगा।”

मैंने कभी किडनी ट्रांसप्लांट के बारे में नहीं सुना था

मैं डर से एकदम सहम गई। यह बहुत भयानक खबर थी। मैं ऐसे किसी को भी नहीं जानती थी जिसका किडनी ट्रांसप्लांट हुआ था। मुझे लगा कि मेरा जीवन बर्बाद हो गया है और मैं मरने वाली हूं।

मुझे आईसीयू में भर्ती कराया गया। मेरे सर में धुकधुकी होने लगी। विडंबना यह थी कि मेरे परिवार में उन दोनों खुशी की लहर चल रही थी क्योंकि मेरे भाई-भाभी का पहले बच्चा होने वाला था। 16 फरवरी, 2012 को, जिस दिन मेरी भतीजी का जन्म हुआ, उसी दिन मेरे परिवार को मेरी किडनी फेल होने के बारे में भी पता चला।

मैं सिलचर, असम से हूं। जैसे-जैसे मेरे पड़ोसियों और दोस्तों को मेरी हालत के बारे में पता चला, सब भौचक्के रह गए। मेरे दोस्तों के लिए इस बात पर विश्वास करना मुश्किल था कि मुझे गुर्दे की समस्या थी, खासकर क्योंकि मैं हमेशा अपने स्वास्थ्य के बारे में बहुत ध्यान रखती थी। मैं हमेशा पौष्टिक खाना खाती थी और जंक फ़ूड से दूर रहती थी। मैं जानबूझकर खाना पकाते समय कम तेल का उपयोग करती थी और पानी ठीक मात्रा में पीती थी। अपने दोस्तों के बीच, नियमित रूप से योग करने वाली मैं एकमात्र ही थी। "तो फिर यह मेरे साथ ही क्यों? " - हर किसी के दिमाग में यह सवाल था।

खैर, मेरे पति घर पर मेरी देखभाल करने लगे। उन्होंने बिना नमक के भोजन तैयार करना शुरू कर दिया, वे मुझे अस्पताल ले जाते थे, मेरे सभी टेस्ट करवाते थे। वह बहुत सपोर्टिव थे। मेरे माता-पिता सिलचर में थे; मेरे पिता 75 वर्ष के थे, और मेरी माँ गंभीर, कष्टप्रद गठिया से जूझ रही थीं।

बैंगलोर में डॉक्टर ने हमें बताया कि किडनी ट्रांसप्लांट के लिए प्रतीक्षा करनी होगी - इस के लिए एक वेटिंग लिस्ट थी। डोनर को खोजने में कई महीने या उस से भी अधिक समय लगेगा। मेरा स्वास्थ्य तेजी से बिगड़ रहा था। मैं इतने लंबे समय तक इंतजार कर पाऊँगी या नहीं, मुझे पता नहीं था। इस बीच, मेरे भाई ने गुवाहाटी में किडनी डोनर की तलाश शुरू की। मैंने सिलचर शिफ्ट होने का फैसला किया, क्योंकि मेरे पति के अवकाश के दिन खत्म हो रहे थे और वे अधिक दिन के लिए मेरी देखभाल नहीं कर सकते थे।

मैं सिल्चर में लगभग तीन महीने से रह रही थी जब एक ऐसी अमानवीय घटना घटी जिसने मुझे भावनात्मक रूप से तोड़ दिया - इसे बर्दाश्त करना मेरे किडनी फेल होने की खबर से भी अधिक मुश्किल था। मेरे पति एक दिन घर आए, और उन्होंने अत्यंत रूखेपन से घोषणा की: “मैं एक बीमार व्यक्ति के साथ जीवन भर नहीं रह सकता। मुझे तलाक चाहिए।" यह सुन कर मुझे बहुत बड़ा झटका लगा। मैंने उनसे बात करने की कोशिश की, खुशामद की, कहा कि सब ठीक हो जाएगा, लेकिन उनका मन इस बात पर पक्का था - वे हमारी शादी तोड़ने के इरादे में अडिग थे।

मैं पूरी तरह से बिखर गई और गहरी उदासी में डूब गई। मैं खुद को कमरे में बंद कर लेती और किसी से बात नहीं करती, किसी से नहीं मिलती। मैं रात को सो नहीं पाती, और लंबे समय तक सिकुड़ी हुई लेटी रहती और कांपती रहती। मेरे परिवार वाले मुझे कई मनोचिकित्सकों के पास ले गए और मैं यंत्रवत रूप से उनकी लिखी दवाइयाँ लेती।

गंभीर रूप से बीमार

मेरी हालत बहुत गंभीर हो चुकी थी। मेरे क्रिएटिनिन का स्तर 7 से ऊपर हो गया था, जबकि मेरा वजन 30 किलो तक गिर गया था। मैं बिल्कुल भी नहीं बैठ पाती और आँखों को खुला रखना भी मुश्किल होने लगा था। एक बार फिर मुझे आईसीयू में ले जाया गया और ऑक्सीजन मास्क लगाया गया। डॉक्टरों ने मेरे परिवार को चेतावनी दी कि मैं ज्यादा दिन जीवित नहीं रह पाऊँगी।

मुझे अभी तक किडनी डोनर नहीं मिला था।

मुझ मौत के दरवाजे पर देखने पर मेरी मदद के लिए मेरी माँ अपनी सभी स्वास्थ्य जटिलताओं के बावजूद आगे आईं और उन्होंने कहा कि वे मुझे अपनी एक किडनी दान करेंगी। अगले दिन, मुझे और मेरी माँ को हवाई जहाज़ से लम्बी उड़ान लेनी थी। हालाँकि मेरी हालत ऐसी नहीं थी कि मैं सिल्चर से कोलकाता और फिर हैदराबाद तक की लंबी यात्रा कर पाऊँ, लेकिन परिवार के सहारे से, भगवान की कृपा से, और एसजीआई पर मेरी दृढ़ विश्वास से मैं यह यात्रा कर पाई। एसजीआई (सोका गक्कई इंटरनेशनल) एक बौद्धिक अभ्यास है जिसमें खुद के और दूसरों के संकट दूर करने के लिए जप करा जाता है और बौद्ध धर्म पर शिक्षण भी शामिल है।

मुझे हैदराबाद के केयर हॉस्पिटल्स में भर्ती कराया गया। अगले दिन से मेरा डायलिसिस शुरू हुआ। पहले (जब निदान हुआ था) मेरा डायलिसिस सप्ताह में 3 बार होता था, लेकिन अब यह हर रोज होता था। मैंने अपनी मां से कहा, मैं ट्रांसप्लांट ऑपरेशन सहन नहीं कर पाऊँगी, मैं मर जाऊंगी। मेरी माँ ने मेरा हाथ कसकर पकड़ लिया और मुझे शांत, दृढ़ निगाह से देखा और मुझे आश्वासन दिया

ट्रांसप्लांट सफल हुआ

23 अगस्त को मेरे जन्मदिन से 3 दिन पहले मेरा ऑपरेशन किया गया था। जब मैं होश में आई और डॉक्टरों ने मुझे बताया कि ट्रांसप्लांट सफल रहा है, तो मैंने अपनी मां की ओर देखा और मन ही मन उन्हें मुझे दूसरी जिंदगी देने के लिए धन्यवाद दिया।

मेरे ऑपरेशन के बाद, मुझे इम्यूनोसप्रेसेन्ट दवाओं की भारी खुराक दी गई ताकि मेरा शरीर इस ट्रांसप्लांट की गयी किडनी को सुचारू रूप से स्वीकार कर पाए और मुझे इन्फेक्शन (संक्रमण) न हों । मुझे एक अलग कमरे में रखा गया था जहाँ आगंतुकों की अनुमति नहीं थी। मुझे केवल ताजा पकाया हुआ भोजन दिया गया और संक्रमण से बचाव के लिए मुझे मास्क पहनना पड़ा। मुझे स्टेरॉयड भी दिए गए, जिनके बहुत सारे साइड इफेक्ट थे।

लेकिन मुझे दर्द और इन सब प्रबंधों की वजह से कोई तकलीफ नहीं हुई। सबसे महत्वपूर्ण सच तो यह था कि मैं जीवित थी।

सात साल बाद

मेरी किडनी ट्रांसप्लांट को 7 साल हो चुके हैं, और मैं अब बिल्कुल सामान्य जीवन जीती हूं। मेरी दवाएं धीरे-धीरे कम हो रही हैं। मुझे लगता है कि किडनी की बीमारी की वजह से हुए मेरे अन्दर के बदलाव बहुत अच्छे हैं। अब मैं बहिर्मुखी हूँ और मेरा आत्मविश्वास भी अधिक है। मैं अपने जीवन के हर पल को संजोती हूँ, और गायन और लेखन की अपनी रुचि पर समय बिताती हूँ।

बस एक चीज है जिस पर मैं बहुत ध्यान दती हूँ - वह है दवा ठीक से, सही समय पर लेना। मैं जहां भी हूं, चाहे ऑटोरिक्शा में या बाजार में या क्लासों (मैं सिलचर में अब एक शिक्षक हूँ ) के बीच में, मैं निर्धारित दवाओं को बिलकुल ठीक समय पर लेती हूं।

गुर्दे के रोगियों के लिए सलाह

अन्य किडनी रोगियों के लिए मेरी सलाह और सुझाव निम्न हैं:

  1. मानसिक रूप से खुद को मजबूत रखें। किडनी फेल होने की बात सुनकर लोग कमजोर हो जाते हैं। लेकिन इस निदान का यह मतलब नहीं कि ज़िन्दगी ख़त्म हो गयी है। आप ट्रांसप्लांट के बाद भी एक सामान्य जीवन जी सकते हैं।
  2. मानसिक और शारीरिक रूप से सक्रिय रहें। यह आपको फिट रखेगा और रिचार्ज भी करेगा।
  3. पौष्टिक भोजन खाएं, और नमक और चीनी का उपयोग नियंत्रित रखें।
  4. सकारात्मक रहें। इस से आपकी ऊर्जा बढ़ेगी।
  5. अंत में, कड़ी मेहनत भी करें, पर पर्याप्त आराम भी जरूर करें।