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Submitted by Jaya Jairam on 14 August 2020

अंग विफलता के कारण भारत में प्रतिवर्ष 100,000 से अधिक मौतें होती हैं। यदि पर्याप्त अंग दाता (ऑर्गन डोनर ) होते तो इनमें से अधिकांश मौतों को रोका जा सकता था। जया जयराम, प्रोजेक्ट मैनेजर मोहन फाउंडेशन अंग दान संबंधी सवालों और गलत धारणाओं को संबोधित करती हैं और वास्तविकता क्या है, यह बताती हैं। वे हम सबसे आग्रह करती हैं कि हम सब को अंग दाता बनना चाहिए।

यह अनुमान है कि दस लाख से अधिक भारतीय हर साल अंतिम चरण अंग विफलता (एन्ड स्टेज ओर्गन फ़ेल्यर) से पीड़ित होते हैं, जबकि एक वर्ष में सिर्फ लगभग 10,000 लोग जीवन रक्षक ट्रांसप्लांट (प्रतिरोपण, प्रत्यारोपण) प्राप्त कर पाते हैं। अनौपचारिक आंकड़ों से संकेत मिलता है कि भारत में  अंग विफलता के कारण हर दिन लगभग 300 मौतें होती हैं, जिसका अर्थ है प्रतिवर्ष एक लाख से अधिक मौतें। यह बहुत अफसोस की बात है, क्योंकि अगर पर्याप्त अंग दाता होते, तो इन लोगों को बचाया जा सकता था।

भारत में हर साल 1.5 लाख से अधिक सड़क यातायात दुर्घटनाएं होती हैं। अनुमान है कि इनमें से लगभग एक लाख ऐसे केस हैं जो संभावित दाता हो सकते हैं। यदि प्रत्येक संभावित दाता से मानो पांच अंगों का दान मिले तो 5 लाख अंग विफलता रोगियों को नया जीवन मिल सकता है। परन्तु  वर्तमान वास्तविकता यह है कि मात्र 875 “ब्रेन डेड “डोनर से ही अंग दान मिल पाता है - जिससे लगभग 2300 ट्रांसप्लांट होते हैं। बाकी होने वाले ट्रांसप्लांट जीवित अंग दाताओं के माध्यम से होते हैं। इसका मतलब है कि तकरीबन 99,125 संभव  मृतक दाताओं से अंग दान नहीं प्राप्त हुआ -- या यूं कहिये कि लगभग 5 लाख अंगों को या तो जला दिया गया या दफन कर दिया गया, जबकि उन अंगों से किसी को बचाया जा सकता था। निस्संदेह, भारत में ट्रांसप्लांट के लिए उपलब्ध अंगों की भारी कमी है।

ट्रांसप्लांट के लिए उपलब्ध अंगों की कमी का एक कारण है अंग दान से सम्बंधित कई शंकाएं  और गलत धारणाएं, खास तौर से उन लोगों में जो व्यक्तिगत रूप से किसी ट्रांसप्लांट प्राप्त करने वाले को या अंग दाता (और उनके परिवार वालों को) नहीं जानते। भारत में अंग दान और ट्रांसप्लांट के इर्द-गिर्द कई अफवाहें और गलतफहमी व्यापक हैं।

चिकित्सा और सर्जरी में हाल में हुई प्रगति ने निस्संदेह लोगों में यह जागरूकता पैदा की है कि ऑर्गन ट्रांसप्लांट से कई लोगों का जीवन बचाए जा सकते हैं। परन्तु फिर भी दाताओं की भारी कमी है। इसलिए यह अत्यंत जरूरी है कि अंग दान के दोनों प्रकार  (लाइव या जीवित दाता से और कैडेवर दान या मृत दाता से ) से जुड़ी गलत धारणाओं को संबोधित करा जाए। चूँकि अंग ट्रांसप्लांट बढ़ाने का अभियान तभी सफल होगा अगर समाज में अधिकाँश लोग इस का समर्थन करें, इसलिए हमें ऐसे सभी रास्ते देखने होंगे जिन से ऐसा दान करने में मौजूद बाधाओं को हटाया जाए। अंग दान करने का निर्णय संभावित दाताओं के लिए सहज और आसान होना चाहिए।

नीचे देखें कुछ आम सवाल और गलत धारणाएं और उनसे सम्बंधित वास्तविकता - इस जानकारी से दान करने का निर्णय लेना आसान हो सकता है: 

गलत धारणा: ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए आवश्यक शल्य चिकित्सा अभी भी आरंभिक और  प्रायोगिक चरण में है और केवल विकसित पश्चिमी देशों में ही संभव है।

वास्तविकता: ऑर्गन ट्रांसप्लांट में सर्जरी से रोगी से रोग-ग्रस्त अंग को हटाकर उस के स्थान पर स्वस्थ अंग लगाया जाता है। जो व्यक्ति अंग दान करता है, उसे "दाता (डोनर)" कहा जाता है और इसे प्राप्त करने वाले रोगी को "प्राप्तकर्ता (डोनी/ रेसिपिएंट)" कहा जाता है। चिकित्सा विज्ञान के इतिहास में ट्रांसप्लांट सबसे उल्लेखनीय सफलता की कहानियों में से एक है। मस्तिष्क को छोड़कर लगभग हर अंग को अब बहुत अच्छी सफलता दर के साथ ट्रांसप्लांट किया जा सकता है। यह प्रयोगात्मक चरण से उभर चुका है - बल्कि अब पूरे विश्व में अंग विफलता के उपचार के लिए ऑर्गन ट्रांसप्लांट एक स्वीकृत, अच्छी तरह से समझी जाने वाली, स्थापित पद्धति है।

गलत धारणा: एक परोपकारी कृत्य होने के अलावा, मुझे या मेरे परिवार को अंग दान से कोई लाभ नहीं है।

वास्तविकता: असल में, यह सच नहीं है। मौजूदा आंकड़ों से यह सच्चाई स्पष्ट है कि हमारे जीवन काल के दौरान, हम में से हरेक के लिए हम अंग दाता बनेंगे, इस की तुलना में यह ज्यादा संभावित है कि हमें ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होगी! यदि आपको कभी किसी भी अंग विफलता होने का दुर्भाग्य हो, तो आपका जीवन एक अंग दाता पर निर्भर होगा। इसलिए यह समझें कि समाज में जितने अधिक अंग दाता होंगे, ट्रांसप्लांट के लिए स्वस्थ अंग मिलने की संभावना उतनी ज्यादा है!

गलत धारणा: मृत्यु के बाद केवल नेत्र दान संभव हैं।

वास्तविकता: मृत्यु के बाद  उन सभी ऊतक (टिशू) को दान करा जा सकता है जिन्हें रक्त की आपूर्ति की आवश्यकता नहीं है  - जैसे कि आंखें, त्वचा, हड्डियां इत्यादि। अन्य अंग - जैसे कि लीवर (यकृत, जिगर), हृदय, फेफड़े और गुर्दे - को भी दान किया जा सकता है,  लेकिन यह सिर्फ उन स्थितियों में संभव है जिन में दाता “ब्रेन डेड” हो (दाता के मस्तिष्क की मृत्यु हो चुकी हो)। जब कोई व्यक्ति ब्रेन डेड होता है, तो इसका मतलब है कि उनके मस्तिष्क में कोई रक्त की आपूर्ति या ऑक्सीजन नहीं है और उनका मस्तिष्क अब काम नहीं कर रहा है और आगे भी काम नहीं कर पायेगा। ब्रेन डेड केस में अन्य अंग - जैसे कि यकृत, हृदय और गुर्दे - व्यक्ति के “ब्रेन डेड” होने के कुछ घंटों या कुछ दिनों तक काम कर सकते हैं। इस के लिए  ब्रेन डेड व्यक्ति को वेंटिलेटर पर रखा जाता है (जो कृत्रिम श्वसन करता है) और आईसीयू डॉक्टरों द्वारा निगरानी की जाती है। जब तक ये अंग काम कर रहे हैं, इन का उपयोग ट्रांसप्लांट के माध्यम से किसी अन्य व्यक्ति को बचाने के लिए किया जा सकता है। लेकिन इस के लिए समय पर ट्रांसप्लांट कर पाना बहुत जरूरी है - क्योंकि ये सभी अंग थोड़े समय के बाद काम करना बंद कर देंगे और ट्रांसप्लांट के लिए उपयोगी नहीं रहेंगे। 

आप यदि अंग दान करने का निर्णय लें तो शायद आप अंग दान के माध्यम से 8 अन्य लोगों की जान बचा सकते हैं - हृदय, फेफड़े, यकृत, गुर्दे, अग्न्याशय और छोटी आंत की ट्रांसप्लांट की जरूरत वाले रोगियों की जान। इस के अतिरिक्त कई और लोगों को भी आपके ऊतक दान - आंख, त्वचा, हृदय वाल्व, हड्डी और उपास्थि/ कार्टिलेज, आदि -  के माध्यम से फिर से स्वस्थ होने का मौका मिल सकता है)

गलत धारणा: कहते हैं कि मेरा रिश्तेदार अब नहीं रहा - वह ब्रेन डेड है - लेकिन उसका दिल अभी भी धड़क रहा है और वह अभी भी सांस ले रहा है। उसे मरा हुआ कैसे मान सकते हैं? 

वास्तविकता: यह सच है कि जो व्यक्ति “ब्रेन डेड”’ होते हैं वे मृत नहीं दिखाई देते हैं। उनके दिल धड़क रहे हैं, वे सामान्य दिखते हैं, और उन्हें पसीना भी आता है। यह एक कारण है जिस की वजह से रिश्तेदारों के लिए यह स्वीकार करना कठिन है कि उनका प्रिय व्यक्ति मर चुका है, क्योंकि वे अपने रिश्तेदार के दिल को अभी भी धड़कते हुए देख रहे हैं (ईसीजी मॉनिटर पर) और छाती ऊपर नीचे हो रही है जिससे पता लग रहा है कि सांस चल रही है। सच यह है कि व्यक्ति का हृदय इसलिए धड़क रहा है क्योंकि व्यक्ति लाइफ सपोर्ट पर है और हृदय  को  व्यापक जीवन समर्थन मशीनों और दवाओं की सहायता से चलाया जा रहा है। दुनिया भर में ब्रेन डेड (मस्तिष्क की मृत्यु की स्थिति) के मानदंड 1968 से स्वीकार किए गए थे और 1994 से इन्हें  भारत में वैध कर दिया गया है।

व्यक्ति के मस्तिष्क की मृत्यु हो चुकी है, यह घोषित करने के लिए आठ मानदंड देखे जाते हैं, इनमें  प्रमुख हैं :

  • वे वेंटिलेटर की सहायता के बिना सांस नहीं ले सकते। वेंटिलेटर बंद करने के कुछ ही मिनटों के भीतर, दिल धड़कना बंद कर देगा
  • यदि उन्हें किसी प्रकार की ऐसी उत्तेजना दी जाए जिस से दर्द होना चाहिए (जैसे की पिन से चुभोना या चुटकी मारना) तो उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं होती
  • आँखों में रोशनी डालने पर (जैसे कि टॉर्च से) उनकी आँखों की पुतली की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती।
  • उनके मस्तिष्क के मूल रिफ्लेक्स (अनैच्छिक क्रिया) काम नहीं करते हैं।

भारत में किसी को  “ब्रेन डेड” घोषित करने संबंधी नियम दुनिया में ऐसे नियमों में से सबसे कड़े हैं। चार अलग-अलग चिकित्सक स्वतंत्र रूप से मस्तिष्क की मृत्यु हुई है, इस की पुष्टि के लिए परीक्षण के आठ सेट करेंगे। ब्रेन डेथ (मस्तिष्क की मृत्यु) के बाद किए गए अंग दान को कैडेवरिक डोनेशन या मृतक डोनर डोनेशन कहा जाता है।

गलत धारणा: ब्रेन डेथ का मतलब कोमा है

वास्तविकता: मस्तिष्क की मृत्यु और कोमा पूरी तरह से अलग हैं। कोमा के मरीज ब्रेन डेड बिल्कुल नहीं होते हैं। यदि हम उन पर मस्तिष्क मृत्यु के उपर्युक्त आठ परीक्षण करें, तो वे सभी परीक्षण नकारात्मक होंगे। कोमा में रोगी जीवित हैं, वैसे ही जैसे आप और मैं - उन्हें अंग दान के लिए दाता के रूप में नहीं बिल्कुल नहीं देखा जाएगा। इसके विपरीत, मस्तिष्क की मृत्यु का अर्थ है मृत्यु। मस्तिष्क की मृत्यु के बारे में व्यक्ति की मृत्यु हुई है, इस पर कोई शक नहीं है। ब्रेन डेड व्यक्ति की मस्तिष्क तना (ब्रेन स्टेम) पूरी तरह से मृत है - यह बात पक्की है और स्थिति बाद में बिलकुल नहीं बदल सकती।

गलत धारणा: मैंने हमेशा यही समझा है कि जब कोई व्यक्ति मर जाता है, तो उसका दिल धड़कना बंद कर देता है। चूंकि मेरे प्रियजन का दिल अब भी धड़क रहा है, निश्चित ही वह अभी भी जीवित है।

वास्तविकता: हृदय का अपना ही एक “पेसमेकर “ होता है, और इस मामले में वह मस्तिष्क से स्वतंत्र है। जब तक हृदय को ऑक्सीजन मिलता है, तब तक यह धड़कना जारी रखता है। हृदय  को वास्तव में शरीर से निकाला कर, सेलाइन (नमक वाले पानी) में रखें और साथ-साथ ऑक्सीजन देते रहें तो हृदय कुछ समय तक धड़कता रहेगा! यह एक छिपकली की पूंछ की तरह है, जो काटे जाने के बाद भी कुछ देर रेंगती रहती है। लेकिन याद रखें, इस तरह का धड़कना केवल थोड़े समय के लिए है। आखिरकार, पूरी लाइफ सपोर्ट मशीन (जीवन समर्थन मशीन) के इस्तेमाल के बावजूद, हृदय रुक जाएगा।

गलत धारणा: मेरा धर्म अंग दान का विरोध) करता है

वास्तविकता: दुनिया में 22 प्रमुख धर्म हैं, जिनमें से कोई भी अंग दान के खिलाफ नहीं है। अंग दान, जैसा कि आप देख सकते हैं, किसी अजनबी के लिए पूरी तरह से एक  ‘दान ’और, प्रेम’ का कार्य है - इस से दान प्राप्त करने वाला व्यक्ति अपने प्रियजनों के साथ इस दुनिया में जिंदा रह पाएगा। दान और प्रेम के गुणों पर सभी धर्म निःसंदेह बहुत जोर देते हैं। इसलिए अंग दान एक सर्वोच्च नेक और परोपकारी कार्य है जिसके द्वारा एक इंसान कई लोगों को जीवन प्रदान कर सकता है और इस तरह के दान का कई धार्मिक और आध्यात्मिक नेताओं ने समर्थन किया है।

गलत धारणा: यदि मैं अपने अंगों को दान करने के लिए सहमत हूं और डॉक्टर मेरे बटुए में “डोनर कार्ड” देखेंगे, तो वे मेरे जीवन को बचाने की कोशिश नहीं करेंगे 

वास्तविकता: जब आप उपचार के लिए अस्पताल जाते हैं, तो डॉक्टर आपके जीवन को बचाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं - किसी और के जीवन पर नहीं। आपको वह डॉक्टर देखेगा जो आपकी इमरजेंसी के लिए सबसे उपयुक्त है। आपकी देखभाल करने वाले डॉक्टर को ट्रांसप्लांटेशन  से कोई लेना-देना नहीं है।

गलत धारणा: मेरी आयु 18 वर्ष से कम है। यह निर्णय लेने के लिए मैं बहुत छोटा हूं।

वास्तविकता: कानूनी तौर से यह सही है। लेकिन आपके माता-पिता आपके अंग दान के निर्णय को अधिकृत कर सकते हैं। आप अपने माता-पिता से अंग दाता बनने की इच्छा व्यक्त कर सकते हैं, और आपके माता-पिता, आपकी इच्छा जानने पर, अपनी सहमति दे सकते हैं। बच्चों को भी ऑर्गन ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होती है, और उन्हें आमतौर पर वयस्कों के मुकाबले छोटे अंगों की आवश्यकता होती है, जो एक वयस्क दाता से नहीं मिल सकते। वास्तव में, कई अन्य विकसित देशों में, स्कूली बच्चों के लिए अंग दान का ज्ञान अनिवार्य है।

गलत धारणा: मेरी उम्र बहुत ज्यादा है, मैं दाता नहीं हो सकता। मेरे अंग किसी और के लिए उपयोगी नहीं होंगे।

वास्तविकता: अंगों को दान करने के लिए उम्र की कोई निर्धारित ऊपरी सीमा (कट-ऑफ उम्र) नहीं है। 70 और 80 के दशक के लोगों से भी सफलतापूर्वक ट्रांसप्लांट के लिए अंगों को लिया गया है। आपके अंगों का उपयोग करने का निर्णय सख्त चिकित्सा मानदंडों और अंगों के वास्तविक स्वास्थ्य पर आधारित है, न कि आपकी आयु पर।

गलत धारणा: अंग दान प्राप्ति के लिए प्रतीक्षा सूची है, पर सेलिब्रिटी और प्रभावशाली व्यक्ति अपनी वित्तीय स्थिति के कारण इस सूची में पीछे होने के बावजूद प्राथमिकता पाते हैं।

वास्तविकता: जब आप किसी डोनर ऑर्गन की ट्रांसप्लांट वेटिंग लिस्ट में होते हैं, तो वास्तव में महत्व इन बातें को दिया जाता है - आपकी बीमारी कितनी गंभीर है, आप कब से अंग दान की प्रतीक्षा कर रहे हैं, आपका ब्लड टाइप क्या है, और अन्य महत्वपूर्ण मेडिकल जानकारी। उपलब्ध अंगों का आवंटन कैसे किया जायगा, यह निर्धारित करते समय इस से कोई लेना देना नहीं कि आपकी आय और सामाजिक स्थिति क्या है। 

गलत धारणा: यदि कोई अपने अंगों को दान करने के लिए सहमत होता है, तो इस से संबंधी खर्च परिवार को देने पड़ेंगे।

वास्तविकता: अंग और ऊतक दान के लिए दाता के परिवार को कुछ खर्च नहीं करना होता है। जैसे ही परिवार के सदस्य अपने प्रियजन के अंगों और ऊतकों को दान करने के लिए अपनी सहमति देते हैं, अस्पताल की बिलिंग को रोक दिया जाता है और अंगों के दान से संबंधित कोई भी लागत परिवार द्वारा वहन नहीं की जाती है- यह “ट्रांसप्लांटेशन ऑफ़ ह्यूमन ओर्गंस एक्ट 1994”  के तहत अनिवार्य है।  पर अंतिम संस्कार की लागत परिवार की जिम्मेदारी है।

गलत धारणा: यदि मुझे बीमारियाँ रही हैं (मेरी मेडिकल हिस्ट्री है) तो मेरे अंग या ऊतक दान के योग्य नहीं हैं।

वास्तविकता: यदि आपको मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मायोपिया आदि जैसी बीमारियाँ रहीं है (आपका बीमारी का इतिहास है) तो भी मृत्यु के समय ही डॉक्टर तय करेंगे कि आपके अंग और ऊतक दान के लायक हैं या नहीं। इसलिए, यदि अंग दान कर पाना आपके लिए महत्वपूर्ण है, तो अपनी इच्छाओं को अपने प्रियजनों को बताएं। निश्चिंत रहें, डॉक्टर आपकी मेडिकल हिस्ट्री और अन्य तथ्य की समीक्षा के बाद ही आपके अंगों की दान के लिए उपयुक्तता निर्धारित करेंगे। कुछ स्थितियों में - जैसे कि जब व्यक्ति को सक्रिय कैंसर, एचआईवी, सेप्टिसीमिया आदि हैं -  डॉक्टर व्यक्ति के अंग और ऊतक दान के लिए नहीं लेंगे, क्योंकि इनका ट्रांसप्लांट करने पर प्राप्तकर्ता को बीमारी के संचरण का जोखिम मौजूद है।

गलत धारणा: मैं एक अंग प्राप्तकर्ता हूं। मैं मरने के बाद दाता नहीं हों सकता

वास्तविकता : अंग प्राप्त करने वाले को इम्युनोसप्रेसिव ड्रग्स (दवा )  दिए जाते हैं और इसलिए उन्हें ऊतक दाता बनने के लिए अनुकूल नहीं माना जाता; फिर भी यह मेडिकल टीम ही तय करेगी कि क्या व्यक्ति में कोई ऐसा स्वस्थ अंग है जो दान के योग्य है।

गलत धारणा: यदि मैं केवल नेत्र दान करने के लिए पंजीकरण करता हूं, तो क्या वे मेरे अन्य स्वस्थ अंग भी ले लेंगे?

वास्तविकता: आप निर्दिष्ट कर सकते हैं कि आप किन अंगों को दान करना चाहते हैं। अपने प्रियजनों के साथ इस इच्छा को साझा करें। जब आपका अंत समय आएगा, आपके परिवार वालों को आपकी यह इच्छा मेडिकल टीम को व्यक्त करने की आवश्यकता है। इस का कड़ाई से अनुपालन किया जाएगा।

गलत धारणा: अंग / ऊतक को दान के लिए निकालने की क्रिया शरीर को कुरूप कर देगी, और श्मशान / दफन के प्रबंधन में भी दिक्कत होगी 

वास्तविकता: अंगों या ऊतकों को हटाने से प्रथागत अंतिम संस्कार या दफन व्यवस्था में हस्तक्षेप नहीं होगा। शरीर की दिखावट में परिवर्तन नहीं होता है। एक अत्यधिक कुशल सर्जिकल ट्रांसप्लांट टीम उन अंगों और ऊतकों को निकाल देती है जिन्हें फिर अन्य रोगियों में ट्रांसप्लांट किया जाता है। सर्जन ध्यान से डोनर के शरीर की सिलाई करते हैं; इसलिए दिखावट में कोई कुरूपता नहीं नजर आती है। श्रद्धांजलि के लिए शरीर का दर्शन उसी प्रकार हो पायेगा जैसे कि अन्य मृत्यु के मामलों में होता है।

गलत धारणा: अगर मैं अपने अंगों का दान करता हूं तो इससे मेरे अंतिम संस्कार की व्यवस्था में देरी होगी

वास्तविकता: हां, यह एक संभावना है। फिर भी, दान एक परोपकारी क्रिया है और इस लिए परिवार आमतौर पर इस विलंब को दान की प्रक्रिया के हिस्से के रूप में लेते हैं और इसे स्वीकार करते हैं। अस्पताल की टीम परिवारों को सूचित रखती है और बार-बार आश्वासन भी देती रहती है कि उन्हें दान संबंधी सर्जरी में कितना समय लगेगा, और वे अंग दाता का शरीर परिवार को  वापस कब सौंप पायेंगे।

गलत धारणा: अगर मैं कुछ अंगों का दान करता हूं, तो मैं अगले जन्म में उन अंगों के बिना पैदा होऊंगा

वास्तविकता: यूं सोचिये, जब आपका दाह संस्कार होता है, अंग नष्ट हो जाते हैं। एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक नेता के शब्दों में,” या तो आपके अंग जलाने पर राख बन जाते हैं या दफनाने पर कीड़ों का भोजन बन जाते हैं"। भौतिक शरीर मृत्यु के बाद बच नहीं सकता। इसलिए यदि आप पुनर्जन्म को मानते हैं तो भी पुनर्जन्म के लिए आपके इस जनम के अंगों का कोई महत्व नहीं है। हिंदू पवित्र ग्रंथ, भगवद गीता में लिखा गया है कि, "जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो पुनर्जन्म उसकी  आत्मा लेती है। शरीर को पुराने कपड़ों की तरह त्याग दिया जाता है”। यह श्लोक खूबसूरती से अंग दान का समर्थन करता है - क्योंकि हम सभी अपने ऐसे पुराने कपड़ों का दान करने में आनंद लेते हैं जो अब भी इस्तेमाल करने लायक हैं और दूसरे, कम भाग्यशाली लोगों के काम आ सकते हैं।

गलत धारणा: यदि मेरे पास डोनर कार्ड है तो यह सफलतापूर्ण अंग दान करने के लिए पर्याप्त है

वास्तविकता: नहीं। इस के लिए सिर्फ डोनर कार्ड होना काफी नहीं है। आपको यह कार्ड अपने बटुए या पर्स में हर समय रखने की जरूरत है, जैसे आप अपने क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, आईडी कार्ड आदि रखते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात, आपको अपने रिश्तेदारों को अपनी इच्छा के बारे में सूचित करना होगा ताकि समय आने पर वे आपकी इच्छा का सम्मान कर सकें और अंग दान की व्यवस्था कर सकें।

गलत धारणा: अगर एक बार मैं एक अंग दाता बन जाऊंगा, तो मैं अपना निर्णय कभी नहीं बदल सकता हूँ।

वास्तविकता: आप कभी भी, किसी भी समय अपना अंग दान का निर्णय बदल सकते हैं। आपने जिस संस्था के साथ अंग दान का पंजीकरण करा है, आप उन्हें पत्र लिखकर अपना पंजीकरण रद्द कर सकते हैं। आप अपना डोनर कार्ड फाड़ सकते हैं, और अपने परिवार को बता सकते हैं कि आपने अपना इरादा बदल दिया है।

अंग दाता बनने से आप समाज में एक बड़ा अंतर पैदा कर सकते हैं - और यह अंतर सिर्फ एक व्यक्ति तक सीमित नहीं है। मरने के बाद अपने अंगों को दान करके, आप 50 लोगों तक की जान बचा सकते हैं या उनके स्वस्थ होने में सहायता कर सकते हैं। कई परिवारों ने यह भी कहा  है कि यह जानकार कि उनके प्रियजन के अंग दान से इतने लोगों की जानें बचीं, उन को प्रियजन की मौत को स्वीकार पाने में मदद मिली।

MOHAN (मल्टी ऑर्गन हार्वेस्टिंग एड नेटवर्क) फाउंडेशन अंग दान के क्षेत्र में एक अग्रणी गैर सरकारी संगठन है।  इस संगठन की शुरुआत 1997 में हुई - उस समय, जब इस संगठन ने  अंग दान के बारे में जागरूकता और वकालत शुरू की, उन दिनों अंग दान का विषय एक वर्जित विषय था और इस पर देश में कोई भी चर्चा नहीं कर रहा था । भारत सरकार ने अंग दान की अवधारणा को व्यापक बनाने और अंगों (विशेष रूप से गुर्दों) में बेचने-खरीदने को रोकने के लिए “ट्रांसप्लांटेशन ऑफ़ ह्यूमन ओर्गंस एक्ट 1994“ पारित किया।

फाउंडेशन की मुख्य गतिविधियों में शामिल हैं -

  • मृत अंग दान पर सार्वजनिक शिक्षा ताकि ब्रेन डेड लोगों के परिवार अंग दान के लिए सहमती दे सकें, जिससे अधिक जीवन बच सके
  • ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर, क्रिटिकल केयर डॉक्टरों और नर्सों और युवा ट्रांसप्लांट सर्जन जैसे स्वास्थ्य कर्मचारियों को प्रशिक्षित करना, ताकि उन में वे सभी कौशल हों जो अंग दान, मस्तिष्क मृत्यु परीक्षण और प्रमाणीकरण, अंग ट्रांसप्लांट और शोक परामर्श उचित तरह से कर पाने के लिए आवश्यक हैं।
  • अस्पतालों में शोक संतप्त परिवारों की काउंसलिंग, ताकि परिवारों को अपने प्रियजनों के अंगों को दान करने का निर्णय लेने के लिए समर्थन और प्रोत्साहन मिले।
  • राज्य और केंद्र सरकारों के साथ कारगर सम्बन्ध बनाए रखें ताकि अंग दान को बढ़ावा देने वाले कानूनों को पारित किया जा सके।

यदि आप अंग दाता बनना चाहते हैं, तो हमारे राष्ट्रीय अंग दान टोल फ्री (24x7) हेल्पलाइन नंबर 1800 103 7100 (8 भाषाओं में उपलब्ध) पर कॉल करें। आप इस के लिए ऑनलाइन प्रतिज्ञा https://www.mohanfoundation.org/donorcard.asp पर ले सकते हैं। यह बहुत सरल है और इस में आपको एक-दो मिनट से ज्यादा नहीं लगेगा। डोनर कार्ड फिर आपको ईमेल किया जाता है, जिसे आपको अपने प्रियजनों को दिखाना होगा और उनके साथ चर्चा करनी होगी।

जया जयराम ने MOHAN फाउंडेशन की मुंबई शाखा  की स्थापना की और तब से जोश से इस आंदोलन को आगे बढ़ा रही है। वह एक ऐसे भारत का सपना देखती हैं, जहाँ अंगों को प्राप्त करने की उम्मीद करने वाले लोगों की प्रतीक्षा सूची नहीं के बराबर है और जहाँ प्रियजनों में अंग विफलता होने के बाद भी लोगों को उनके साथ जीवन बिताने के लिए दूसरा अवसर प्राप्त करना कठिन नहीं है।