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Submitted by PatientsEngage on 31 January 2021

डॉ। प्रज्ञा गाडगिल कंसल्टेंट पीडियाट्रिक न्यूरोलॉजी एंड कॉम्पलेक्स एपिलेप्सी, इस लेख में बचपन की एपिलेप्सी के कारणों और जटिलताओं के बारे में बताती हैं। लेख में शामिल हैं वयस्क एपिलेप्सी (मिर्गी रोग) और बच्चों में पायीं गयी एपिलेप्सी में क्या फर्क है,, नींद और सीज़र में सम्बन्ध क्या है, और अन्य कई प्रश्न के उत्तर।

बचपन की एपिलेप्सी क्या है? यह वयस्कों में पाई जाने वाली एपिलेप्सी से कैसे अलग है?

एपिलेप्सी बिना किसी विशिष्ट ट्रिगर के बार-बार सीज़र होने की प्रवृत्ति है। ध्यान दें कि सीज़र अनेक कारणों से हो सकते हैं - सब सीज़र एपिलेप्सी की वजह से नहीं होते हैं - जैसे कि सिर पर चोट लगने से या रक्त में कम शुगर / कम कैल्शियम (शिशुओं में) से होने वाले सीज़र एपिलेप्सी नहीं हैं। एपिलेप्सी में अचानक सीज़र पड़ते हैं, जब बाकी सब कुछ ठीक लग रहा है या सब सामान्य चल रहा है।

Read in English: Seizures and Epilepsy in Children- What Parents Should Know

एपिलेप्सी वाले सीज़र किसी भी उम्र में शुरू हो सकते है। वास्तव में, बचपन और किशोरावस्था आयु वर्ग में  एपिलेप्सी निदान अधिक देखा जाता है । सीज़र कितनी बार होते हैं और किस प्रकार के होते हैं यह अलग-अलग प्रकार की एपिलेप्सी में भिन्न है।

वयस्क एपिलेप्सी और बचपन की एपिलेप्सी के बीच 3 मुख्य अंतर हैं:

  1. बचपन में होने वाले सीज़र कई अलग-अलग प्रकार के होते हैं- परन्तु वयस्क एपिलेप्सी में इतने रूप नहीं देखी जाती है। कुछ प्रकार की एपिलेप्सी और सीज़र सिर्फ बाल आयु वर्गों में देखी आती हैं।
  2. एपिलेप्सी का कारण: विकासशील देशों में बचपन की एपिलेप्सी के कारणों में एक प्रमुख योगदान है जन्म के समय लगी मस्तिष्क में चोट। अन्य प्रमुख कारण जेनेटिक/ आनुवंशिक है। “जेनेटिक एपिलेप्सी” वयस्कों में भी देखी जाती है लेकिन बहुत कम बार। बचपन की जेनेटिक एपिलेप्सी से सम्बंधित जीन वयस्क अवस्था में शुरू होने वाली जेनेटिक एपिलेप्सी के कारक जीन से फर्क हैं।
  3. बचपन और वयस्क एपिलेप्सी में इन से भी अधिक महत्वपूर्ण अंतर है कि बच्चों का मस्तिष्क निरंतर बदलता रहता है और विकसित होता रहता है। बच्चों का मस्तिष्क परिपक्व होता है और उसमें परिवर्तित होता रहता है।

ये अंतर बहुत महत्वपूर्ण हैं। ये एपिलेप्सी  के प्रबंधन को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं। किस प्रकार की दवा का उपयोग हो सकता है, दवा कितनी अच्छी तरह सहन होगी और सीज़र का कैसे नियंत्रण हो पायेगा, निगरानी कैसे रखनी होगी, और दवा का बाल मस्तिष्क के विकास पर क्या असर हो सकता है - इन सभी पहलुओं पर ध्यान देना होता है । उपचार पर निर्णय करते समय  बच्चे के विकासात्मक परिणाम उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितना कि सीज़र से बचे रहने का पहलू।

सीज़र को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है - फोकल और जनरलाइज़्ड । क्या आप दोनों के बीच अंतर बता सकती हैं?

सरल तरह से समझें तो सीज़र तब होता है तो मस्तिष्क में बिजली के सर्किट गलत तरीके से फायरिंग करते हैं। सीज़र इस बात का एक नैदानिक/ बाह्य संकेत हैं कि मस्तिष्क में मौजूद विद्युत सर्किट असामान्य रूप से सक्रिय हैं।

फोकल सीज़र: इन में असामान्य विद्युत  गतिविधि मस्तिष्क का केवल कुछ हिस्से में होती है  - आमतौर पर एक ही स्थान पर (”लोकल”)। इसलिए फोकल सीज़र में बच्चे/  व्यक्ति  की चेतना पूरी तरह या कुछ हद तक बनी रहती है। वे जानते हैं कि उन्हें सीज़र हो रहा है और बाद में सीज़र को पूरी तरह या उस के कुछ हिस्सों को याद कर सकते हैं।

जनरलाइज़्ड सीज़र: इन में असामान्य गतिविधि वाले विद्युत सर्किट मस्तिष्क के बड़े क्षेत्रों में और मस्तिष्क के दोनों तरफ होते हैं। आमतौर पर, इन सीज़र में बच्चे/  व्यक्ति   चेतना खो देते हैं। वे यह नहीं जानते हैं कि उन्हें क्या हो रहा है और बाद में उन्हें सीज़र के बारे में कुछ याद नहीं होता है।

भारत में बचपन की एपिलेप्सी के संभावित और सबसे आम कारण क्या हैं? इसका कारण खोजना कितना महत्वपूर्ण है?

भारत में बचपन की एपिलेप्सी का सबसे आम कारण मस्तिष्क में हुई क्षति है। यह क्षति मस्तिष्क में आमतौर पर जन्म के समय होती है। उदाहरण हैं ऑक्सीजन की कमी होना या मस्तिष्क में संक्रमण या कम रक्त शर्करा। इस तरह की मस्तिष्क में हुई हानि बच्चे के विकास में विलम्ब (डेवलपमेंटल डिले) का कारण भी बन सकती  हैं।

भारत में बचपन की एपिलेप्सी का दूसरा सबसे आम कारण आनुवंशिक है। बचपन की एपिलेप्सी की आनुवांशिकी संबंधी जानकारी पिछले कुछ वर्षों में काफी उन्नत हुई है। ऐसे कई जीन पहचाने गए हैं जो बचपन की एपिलेप्सी का कारण हैं।

बचपन की एपिलेप्सी  के अन्य कारणों में मौजूद हैं: मस्तिष्क में कोई विकृति (कुरचना, अपरचना, मॉलफार्मेशन), बचपन के संक्रमण (जैसे तपेदिक और न्यूरोसिस्टाईसीरोसिस) से बचे हुए निशान (स्कार), रेयर विटामिन रेस्पोंसिव एपिलेप्सी,  दुर्लभ बचपन वाले डीजेनरेटिव/ मेटाबोलिक न्यूरोलॉजिकल समस्याएँ, वगैरह।

उपचार का चुनाव और अपेक्षित परिणाम मुख्य रूप से इस पर निर्भर हैं कि एपिलेप्सी का मूल कारण क्या है।

उदाहरण -  एक प्रकार की एपिलेप्सी है वेस्ट सिंड्रोम जो अकसर पेरिनटल ब्रेन इंजरी (प्रसव के समय हुई मस्तिष्क में क्षति) के बाद देखी जाती है और इस का गंभीर परिणाम होता है। इस में देखे गए सीज़र को नियंत्रित करना बेहद मुश्किल हो सकता है और बच्चे के विकास पर भी काफी असर पड़ सकता है।

पर दूसरी ओर, एक अन्य प्रकार की एपिलेप्सी है “चाइल्डहुड एब्सेंस एपिलेप्सी” जो एक आनुवंशिक प्रवृत्ति के कारण होती है। इस से प्रभावित अधिकाँश बच्चों में आसानी से सीज़र नियंत्रण हो जाता है और बच्चे के विकास पर भी असर बहुत ही कम होता है - ऐसे केस में अंततः दवा को रोका जा सकता है।

कॉर्टिकल विकृतियों के कारण होने वाली एपिलेप्सी में सर्जरी के विकल्प के बारे में शुरू में ही सोचा जाता है - आदर्श स्थिति में सर्जरी द्वारा इस तरह की एपिलेप्सी का पूरा इलाज हो सकता है।

इनउदाहरणों से स्पष्ट है कि एपिलेप्सी का मूल कारण उपचार के विकल्पों को प्रभावित करता है और उपचार से क्या संभव होगा, यह निर्धारित करता है। कारण समझने से सम्बंधित मुद्दे - जैसे कि बच्चे के विकास में देरी / लर्निंग डिसेबिलिटी - के लिए उपयोगी अन्य सहायक उपचार के बारे में भी सोचा जा सकता है। पर कारण खोज पाना मुश्किल हो सकता है - खासकर जेनेटिक एपिलेप्सी के केस में - क्योंकि वर्तमान उपलब्ध परीक्षण अभी इस के लायक पर्याप्त नहीं हैं और काफी महंगे भी हैं। एपिलेप्सी के मूल कारण का एक निश्चित निदान मिलना - या कम से कम कारण का कुछ अंदाजा होना - बचपन की एपिलेप्सी के प्रबंधन करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

माता-पिता को किन लक्षणों के प्रति सतर्क रहना चाहिए?

सीज़र विविध प्रकार से पेश हो सकते हैं। वे नींद में हो सकते हैं या जागते समय हो सकते हैं। शायद बच्चा ऐसा लगे ऐसे कि कुछ खाली सा है, ध्यान नहीं दे रहा है, या शिशु किसी सामान्य घटना से चौंक गया है और उस का शरीर झटकने लगे, मुंह से झाग निकलें और आँखें ऊपर की ओर लुढ़क जाएँ।

यद्यपि विभिन्न एपिलेप्सी के सीज़र का रूप अलग-अलग हो सकता है-  पर आमतौर पर एक रोगी में सीज़र एक ही तरह से पेश होता है। तत्काल चिकित्सा की जरूरत का संकेत है बच्चे में दो बार, तीन या अधिक बार सीज़र होना।

यदि आप बच्चे में कुछ ऐसे होता देखें जो सीज़र हो सकता है, तो डॉक्टर से निदान और इलाज के लिए जल्द संपर्क करें, खासकर यदि ऐसा 2 या 3 बार हुआ है। कुछ स्थिति में सीज़र लम्बा चल सकता है, जल्दी-जल्दी बार बार हो सकता है (एक के बाद एक) और बच्चा अचेत हो सकता है, और ऐसा हो तो बच्चे को इमरजेंसी में ले जाएँ।

एपिलेप्सी का निदान कैसे होता है? शुरू में ही निदान होना क्यों अच्छा है?

एपिलेप्सी के निदान का एक अत्यंत महत्वपूर्ण भाग है क्लिनिकल हिस्ट्री - नैदानिक इतिहास - यानि कि सीज़र से सम्बंधित घटनाएं और बच्चे की न्यूरोलॉजिकल हिस्ट्री / डॉक्टर द्वारा परीक्षण। यदि किसी से सीज़र का आँखों-देखा विवरण मिल पाए तो यह एक बहुत उपयोगी और महत्वपूर्ण जानकारी होगी। आजकल स्मार्टफ़ोन का व्यापक उपयोग होता है और घर वाले सीज़र का विडियो लेकर डॉक्टर को दिखा सकते हैं।

यदि नैदानिक इतिहास से लगे कि शायद यह सीज़र है, तो डॉक्टर अकसर ईईजी, कुछ रक्त परीक्षण और कभी-कभी मस्तिष्क के  स्कैन (सीटी या एमआरआई) और जेनेटिक टेस्ट करवाते हैं।

जितनी जल्दी हो पाए, निदान करवाना जरूरी  है - यह तो काफी स्पष्ट है। शुरू में  निदान हो तो एपिलेप्सी को जल्द से जल्द नियंत्रित किया जा सकता है। इस से उपचार के बेहतर परिणाम हो सकते हैं, विशेष रूप से गंभीर प्रकार के एपिलेप्सी के प्रकारों में - जैसे कि वेस्ट सिंड्रोम। बच्चे की सुरक्षा के लिए भी जल्दी निदान होना महत्वपूर्ण हैं। जाहिर है जितनी जल्दी हो सके सीज़र को नियंत्रित करने से बच्चे के  दीर्घकालिक विकास के लिए बेहतर है।  जिन केस में ईईजी बहुत असामान्य है उनमें ईईजी में सुधार करने की कोशिश करी जाती है जो  बच्चे के सीज़र का नियंत्रण और बच्चे के  विकास के लिए बेहतर है ।

उपचार के आम विकल्प क्या हैं?  सर्जरी की सिफारिश कब की जाती है?

डॉक्टर सबसे पहले पहला एंटी-एपिलेप्सी (एपिलेप्सी-रोधी) दवा से उपचार करने के बारे में सोचते है। ऐसी कई दवाएं उपलब्ध हैं जो सीज़र को नियंत्रित करने में कारगर हैं। कई नई दवाएं भी हैं जो बहुत अच्छी तरह से सहन की जाती हैं और इनके गंभीर साइड-इफेक्ट्स बहुत कम केस में होते हैं। वास्तव में, 70 से 80% रोगियों में एपिलेप्सी को एंटी-एपिलेप्सी दवाओं से पूरी तरह से नियंत्रित किया जा सकता है। कभी-कभी कुछ बच्चों के एपिलेप्सी को नियंत्रित करने के लिए संयोजन में दो या तीन दवाओं की आवश्यकता होती है। कुछ बच्चों को सिर्फ कुछ वर्षों के लिए दवाओं की आवश्यकता होती है, जबकि अन्य को दवाएं अधिक लंबी अवधि तक लेने  की आवश्यकता होती है।

कुछ बच्चों की एपिलेप्सी को एंटी-एपिलेप्सी दवाओं से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। इन में शामिल हैं ऐसे बच्चों का समूह जिनकी एपिलेप्सी को "सर्जिकली रेमीडिएबिल एपिलेप्सी" कहा जाता है। ये ऐसे बच्चे हैं जिनकी एपिलेप्सी बिनाइन ट्यूमर या मस्तिष्क की विकृतियों के कारण होती है - इन में सर्जरी से समस्या हटाने की कोशिश करी जा सकती है और एपिलेप्सी ठीक होने की संभावना होती है। इसलिए यह आवश्यक है कि एपिलेप्सी की शुरुआत के जितनी जल्दी बाद हो सके, उन बच्चों की पहचान की जाए ताकि इन्हें सर्जरी का विकल्प दिया जा सके - यह जितनी जल्दी हो, उतना बेहतर है।

जिन बच्चों की एपिलेप्सी को “सर्जिकली रेमीडिएबिल एपिलेप्सी” है, वे पूर्व-शल्य चिकित्सा मूल्यांकन के लिए (प्री-सर्जिकल इवैल्यूएशन)  परीक्षणों से गुजरते हैं। इन परीक्षणों में शामिल हैं - वीडियो ईईजी (इस रिकॉर्डिंग से सीज़र को विस्तार में समझने में सहायता मिलती है), विशेष मस्तिष्क स्कैन (एम्आरआई, पीईटी,एसपीईसीटी, आदि। एपिलेप्सी सर्जरी केवल उन्हीं बच्चों में की जाती है जिनके प्री-सर्जिकल इवैल्यूएशन करने के यह तय होता है कि सर्जरी से उन्हें लाभ होगा। आधुनिक एपिलेप्सी सर्जरी अत्यधिक विकसित है और किसी भी उम्र में की जा सकती है, यह चरणों में की जा सकता है और यदि आवश्यक हो तो सर्जरी के दौरान रोगी होश में रह सकते हैं! इन उन्नत सर्जरी के तकनीकों के कारण बच्चों में भी अब एपिलेप्सी सर्जरी अधिक सुरक्षित और कारगर है। यह माना जाता है कि शुरू की अवस्था में ही यदि सर्जिकली रेमीडिएबिल एपिलेप्सी वाले बच्चों  की सर्जरी की जाए तो बच्चे के दीर्घकालिक विकास पर एपिलेप्सी के कारण संभव समस्या को बहुत हद तक हटाया जा सकता है।

नींद और सीज़र का क्या संबंध है?

कुछ बच्चों में एपिलेप्सी के सीज़र सिर्फ नींद में होते हैं। आमतौर पर अधिकांश एपिलेप्सी में, नींद की कमी से सीज़र ट्रिगर हो सकता है - यह उन लोगों में भी सच है जिनके सीज़र दवाओं से पर्याप्त रूप से नियंत्रित हैं। इसे ध्यान में रखते हुए, अच्छी नींद संबंधी आदतें बनाए रखना बहुत जरूरी है।

एपिलेप्सी वाले बच्चों और उनके माता-पिता के लिए मनोसामाजिक समर्थन की क्या भूमिका है? क्या ऐसी सेवाएं उपलब्ध हैं?

एपिलेप्सी एक ऐसी बीमारी है जिसके साथ बहुत सारे कलंक जुड़े होते हैं। इस से जुड़ी  कई गंभीर गलतफहमियां और गलत सूचनाएँ हैं। समाज में एपिलेप्सी  को एक सामान्य रोग के रूप में स्वीकृति नहीं मिली है और इस वजह से एपिलेप्सी  के रोगियों और उनके परिवारों को बहुत मुश्किल होती है। अज्ञान और झिझक की वजह से वे शुरू में निदान और इलाज के लिए कदम नहीं उठाते; वे अपने परिवार के अन्य सदस्यों और दोस्तों के साथ खुले तौर पर इस बीमारी पर चर्चा नहीं कर पाते। यह कई तरह की समस्याएं पैदा कर सकता है- उदाहरण के तौर पर, सीज़र होने पर उचित प्राथमिक चिकित्सा (फर्स्ट ऐड) नहीं दी जाए या गलत तरीके से की जाए जिस से बच्चे को ख़तरा हो। यह भी हो सकता है बच्चे के साथ इतनी सावधानी बरतें कि बच्चे को सुरक्षित रखने के इरादे से उसे सामान्य मेल-जोल और दोस्तों के साथ गतिविधियों जैसे अनुभवों में शामिल न होने दें - जैसे कि पिकनिक पर जाना, दोस्तों के घर आना-जाना और स्लीप-ओवर करना (रात को दोस्तों के घर में रहना) । बच्चा इन सामान्य अनुभवों से वंचित रहे तो यह सोचते हुए बड़ा होता है कि वह अन्य बच्चों से फर्क है और उसमें कुछ दोष है । यह अंततः आत्मसम्मान और आत्मविश्वास की कमी में योगदान देता है।

भारत में मनोसामाजिक समर्थन के लिए कुछ विकल्प और साधन हैं। अधिकांश एपिलेप्सी के डॉक्टरों के साथ एक क्लिनिकल साईकोलोजिस्ट (नैदानिक मनोवैज्ञानिक) जुड़ा होता है जो जरूरत पड़ने पर बच्चे और परिवार को तत्काल सहायता दे सकता है।  ऐसे एनजीओ भी हैं जो एपिलेप्सी सहायता समूह गतिविधियों के रूप में मनोसामाजिक समर्थन प्रदान करते हैं। मैं सम्मान का हिस्सा हूं, जो इंडियन एपिलेप्सी एसोसिएशन की मुंबई शाखा है और जो नियमित रूप से एपिलेप्सी से पीड़ित रोगियों के लिए नि:शुल्क चिकित्सा शिविर / जरूरतमंद केसों में मुफ्त दवाइयाँ आयोजित करने के अलावा एपिलेप्सी सहायता समूह की बैठकें और  व्यक्तिगत काउंसलिंग सत्र आयोजित करता है। एपिलेप्सी सहायता समूह की बैठकें बहुत जरूरी हैं क्योंकि इनके द्वारा मरीज और परिवार एक दूसरे से संपर्क में रह पाते हैं और एपिलेप्सी संबंधी अपने अनुभाव बाँट पाते हैं। इस तरह के समूह से एपिलेप्सी के इर्द-गिर्द सामाजिक परिवर्तन के लिए एक अनूठा अवसर भी मिलता है।

क्या आप  कीटोजेनिक आहार की सलाह देती हैं? क्या यह कारगर साबित हुआ है? यदि हाँ, तो कैसे?

एपिलेप्सी के कुछ केस में कीटोजेनिक आहार कारगर साबित होता है। यह लाभ  किन शारीरिक प्रक्रियाओं की वजह से होता है, यह अभी पूरी तरह मालूम नहीं है। कीटोजेनिक आहार  ख़ास तौर पर ऐसी एपिलेप्सी  में कारगर होता है जहां जेनेटिक समस्या के कारण मस्तिष्क को ग्लूकोज की आपूर्ति खराब हो जाती है। यह कुछ ऐसे गंभीर एपिलेप्सी के रोगियों के लिए भी बहुत अच्छा रहता है जिन में दवा से लाभ नहीं हो रहा है और जिन में सर्जरी से सुधार संभव नहीं है।

एपिलेप्सी के लिए केटोजेनिक आहार एक बहुत ही सटीक आहार प्रणाली है - पर ध्यान रहे, यह बदलाव केवल एक अनुभवी चिकित्सीय और आहार विशेषज्ञ टीम की देखरेख और मार्गदर्शन में किया जाना चाहिए।

घर पर सीज़र के प्रबंधन के बारे में माता-पिता को आपकी क्या सलाह है?

घबराए नहीं। अधिकांश सीज़र स्वयं रुक जाते हैं। सीज़र के लिए जरूरी प्राथमिक चिकित्सा के बारे में सीखें। कभी-कभी आपका डॉक्टर एक फर्स्ट ऐड नेज़ल स्प्रे (नाक के लिए स्प्रे) की सलाह दे सकते हैं- इस का केवल सलाह के अनुसार ही उपयोग करें। सीज़र में तत्काल चिकित्सा की कब ज़रुरत होती है, इस पर जानकारी प्राप्त करें - डॉक्टर से सीज़र के लिए तत्काल सहायता की हमेशा जरूरत नहीं होती है। पर कुछ स्थितिओं में बच्चे को एमरजेंसी में ले जाना चाहिए - इन स्थितिओं को कैसे पहचान सकते हैं, इस पर  डॉक्टर से चर्चा करें

बच्चे के लिए जिम्मेदार प्रत्येक वयस्क को बच्चे के सीज़र के लिए उपयुक्त प्राथमिक चिकित्सा के बारे में प्रशिक्षण दें - जैसे कि बच्चे की स्कूल टीचर, आया, नाना-नानी / दादा-दादी, वगैरह। सुनिश्चित करें कि प्राथमिक चिकित्सा कब और कैसे देनी होगी, यह जानकारी ऐसे उपलब्ध करें जिस से यह नज़र में रहे और आसानी से मिल सके।

कृपया एपिलेप्सी को अपने परिवार के जीवन के हर हिस्से में बाधा न बनने  दें । याद रखें एपिलेप्सी वाले बच्चे सामान्य जीवन जी सकते हैं।

डॉ। प्रज्ञा गाडगिल,

कंसलटेंट पेडियेट्रिक न्यूरोलॉजी एंड कोम्प्लेल्क्स एपिलेप्सी,

डायरेक्टर ऑफ़ स्क्लेरोसिस क्लिनिक,

कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल, मुंबई

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