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Submitted by PatientsEngage on 12 January 2020
Image of Kamini with her husband

ओवेरियन (अंडाशयी) कैंसर की उत्तरजीवी कामिनी प्रधान (56) अपने स्टेज 3-B ओवेरियन कैंसर के निदान के छह साल के बाद हौसला बनाए रखने की सलाह देती हैं। इस लेख में वे बताती हैं कि उन्होंने किन परिस्थितियों का सामना किया और वे कैसे अपनी लड़ाई लड़ती रहीं।

यह 17 अप्रैल, 2008 की सुबह की बात है। मैं थोड़ा असहज महसूस कर रही थी और मुझे बहुत पसीना आ रहा था। मुझे डायबिटीज़  (मधुमेह) है। इसलिए मुझे लगा कि मेरे ब्लड शुगर (रक्त शर्करा) का स्तर गिर गया होगा। मैंने हमारे पारिवारिक चिकित्सक को जाँच के लिए घर बुलाया। उन्होंने बताया कि मेरा रक्तचाप, शुगर का स्तर और हृदय की स्थिति सामान्य थी। उनके घर से निकलते समय मैंने उन्हें बताया कि मेरे पेट के निचले हिस्से में कुछ सख्त सी चीज़ थी। उन्होंने इसकी जांच की और मुझे अल्ट्रासाउंड करवाने के लिए कहा। चूँकि मुझे कोई दर्द महसूस नहीं हो रहा था, मुझे यह जरूरी नहीं लग रहा था। पर उन्होंने ज़ोर दिया। अल्ट्रासाउंड में एक असामान्य गाँठ पाई गयी। मेरे पति जो दिल्ली गए हुए थे, उसी दोपहर लखनऊ लौट कर आ गए। हम दोनों सीटी स्कैन (CT-Scan) और कैंसर मार्कर रक्त परीक्षण (CA -125) करवाने के लिए निकल गए। दोनों रिपोर्टों ने मलिग्नन्सी की पुष्टि की।

अगले दिन हम मुंबई के टाटा मेमोरियल अस्पताल पहुँचें। सीटी स्कैन रिपोर्ट के अनुसार मेरे ओवरी (अंडाशय) के क्षेत्र में 22 सेंटीमीटर का ट्यूमर था। मेरा यूटेरस (गर्भाशय) छह साल पहले ही हटा दिया गया था। ट्यूमर असामान्य रूप से बड़े आकार का था। इसलिए सर्जन ने सर्जरी को आसान बनाने के लिए कीमोथेरेपी के द्वारा ट्यूमर के आकार को कम करने का फैसला किया। बाल झड़ने के अलावा मैंने बिना किसी परेशानी के कीमोथेरेपी के तीन चक्रसाइकिल (cycles) पूरे किए। मैं इसके लिए तैयार थी।

मैं 28 दिनों तक टाटा मेमोरियल में रही। लखनऊ लौटने के बाद मैंने कीमोथेरेपी के तीन और साइकिल पूरे किए। कुछ मूत्र सम्बन्धी परेशानी और मुंह में बेस्वादीपन के अलावा मुझे कोई विशेष परेशानी नहीं हुई। मैं पहले से जल्दी थक जाया करती थी। इसके अलावा पैरों में दो फ्रैक्चर के साथ लिगामेंट (स्नायुबंधन) के फटने की समस्या से भी गुज़रना पड़ा था। लेकिन मैं इन सबसे सही सलामत उबर पाई। मेरे बाल भी वापस आ गए और मैं अपने पसंदीदा हेयर स्टाइल चुन पा रही थी क्योंकि मेरे बाल कई चरणों में बढ़ रहे थे। 

दूसरा दौर

मैं जांच के लिए नियमित रूप से टाटा मेमोरियल जाया करती थी। 2012 में एक नियमित जांच के दौरान एक बार फिर से कैंसर का पता चला। चूंकि ट्यूमर बहुत  छोटा  था और ट्यूमर की जगह ऑपरेशन करने के लिए काफी पेचीदा थी इसलिए सर्जन ने सर्जरी के बजाय सेकेंड-लाइन कीमोथेरेपी के दो चक्रों का फैसला किया। इसके दुष्प्रभाव भयानक थे। मेरे चेहरे, गर्दन और हाथों की त्वचा छिलने लगी थी। मेरे हाथों की त्वचा और यहाँ तक कि तर्जनी और अंगूठे के बीच के जोड़ों की त्वचा भी परतों में छिलने लगी थी। इसके कारण मेरे लिए कुछ भी पकड़ना असंभव हो गया था।

मुझे चम्मच से खिलाना पड़ता था और पानी पीने के लिए मैं गिलास भी पकड़ नहीं पाती थी। मैं झुक कर स्ट्रॉ के माध्यम से पानी पीती थी। मेरी उंगलियां सूज गई थीं और पस से भरे छालों के कारण भयंकर दर्द होता था। पस निकालने के लिए मेरी उंगलियों को चीरा जाता था। मुझे बेहद मिचली महसूस होती थी, मेरी भूख मर गई थी और मेरी पीठ में तेज दर्द महसूस होता था। मेरे लिए बिस्तर से उठना भी बहुत दर्दनाक बन गया था। 'वृद्धि कारक' (रक्त स्तर बढ़ाने के लिए इंजेक्शन) दिए जाने के बावजूद भी मेरा रक्त स्तर गिर रहा था। हीमोग्लोबिन के स्तर को बढ़ाने के लिए मुझे खून चढ़ाना पड़ा था।

काफी सोच-विचार के बाद डॉक्टरों ने दो चक्रों के बाद कीमोथेरेपी को रोकने का फैसला किया। अब हम प्रतीक्षा कर रहे थे कि आगे क्या होने वाला है।

उसी समय एक पेटस्केन (PET-Scan) से रीढ़ की हड्डी (डी-12/ D -12) के आंशिक रूप से टूटने का पता चला। पहले डॉक्टर को लगा कि यह मेटास्टेसिस (या हड्डी में कैंसर का प्रसार) है। लेकिन एक बायोप्सी से पता चला कि यह कैंसर नहीं था, बल्कि एक अपक्षयी हड्डी थी। इसके बाद मेरी वर्टिब्रे-प्लास्टर सर्जरी हुई जिसमें रीढ़ की टूटी हुई हड्डी को ठीक करने के लिए उसमें हड्डी का सीमेंट भरा जाता है।

चूंकि मैं कीमोथेरेपी को सहन नहीं कर पा रही थी और मूल कैंसर प्रकृति में मेटास्टेटिक था और धीरे-धीरे बढ़ रहा था, डॉक्टरों ने सर्जरी के बाद रेडिएशन (विकिरण) का सुझाव दिया। यह जुलाई 2013 की बात है।

सर्जरी के दौरान सर्जन ने पाया कि ट्यूमर चपटा हो गया था और निचले अंगों में रक्त की आपूर्ति करने वाली रक्त वाहिका के साथ कसकर चिपक गया था। सर्जन ने वास्क्युलर सर्जरी न करने का फैसला किया क्योंकि इसमें रक्त वाहिका को नुकसान पहुँच सकता था। इससे निचले अंगों में रक्त संचार के क्षतिग्रस्त होने का खतरा था। सर्जन ने अधिकांश ट्यूमर को हटा दिया था लेकिन कुछ घातक अवशेष अभी भी बाकी रह गए थे। सर्जन ने धातु से बनी क्लिप (मैटेलिक क्लिप )की मदद से उस जगह को  मार्क कर दिया ताकि रेडिएशन को सही जगह पर केंद्रित किया जा सके।

टांकों के देरी से सूखने और जी मिचलाने के साथ गंभीर अपच के कारण मैं 21 दिनों तक अस्पताल में भर्ती रही।

ऑपरेशन थियेटर से भेजे गए नमूने की हिस्टोपैथोलॉजी रिपोर्ट में सर्जन द्वारा मार्क करे हुए एक के बजाय दो जगहों (एक-दूसरे के करीब) पर मलिग्नन्सी पाई गई। तब सर्जन और ऑन्कोलॉजिस्ट ने रेडिएशन के बजाय कीमोथेरेपी की सिफारिश की। यह सितंबर 2013 की बात है।

एक बार फिर रक्त स्तर में गिरावट को रोकने के लिए मुझे वृद्धि कारकों के इंजेक्शन दिए गए। लेकिन प्लेटलेट्स का स्तर भारी मात्रा में गिर कर 19,000 पर पहुँच गया था  (सामान्य सीमा 150,000-400,000 थी)। मुझे अस्पताल में भर्ती कराया गया। मेरी पीठ के निचले हिस्से में तेज दर्द हो रहा था। उस रात मुझे प्लेटलेट्स के दो यूनिट और खून का एक यूनिट चढ़ाया गया। नींद की कमी के कारण मैं सुबह तक पूरी तरह से थक चुकी थी। लेकिन दर्द कम होने के कारण मुझे बेहतर महसूस हो रहा था।

कीमोथेरेपी के अगले साइकिल को 10 दिनों तक विलम्बित किया गया और मेरी दवा को  आधा कर दिया गया। रक्त का स्तर और प्लेटलेट्स 24,000 तक गिर गए और मुझे फिर से अस्पताल में भर्ती कराया गया।

इस बार खून चढ़ाने की आवश्यकता नहीं पड़ी क्योंकि रक्त स्तर तेजी से बढ़ने लगा था। इसके बाद अक्टूबर 2013 में ऑन्कोलॉजिस्ट ने कीमोथेरेपी को बंद करने का फैसला किया क्योंकि उन्हें लगा कि मेरा इलाज मेरी बीमारी से अधिक जानलेवा बन गया था। मुझे डिप्रेशन नहीं था और न ही मुझे कोई अन्य लक्षण थे , इसलिए शिशु विद्यालय के प्रधानाध्यापिका के रूप में मैंने अपना काम फिर से शुरू कर दिया।

"यह 60 फीसदी रवय्ये पर निर्भर करता है"

तब से मैं नियमित रूप से अपना काम कर रही हूँ। आश्चर्य की बात है कि कीमोथेरेपी को बीच में ही बंद कर देने के बावजूद दिसंबर 2013 के पेटस्केन में कोई मलिग्नन्सी नहीं पाई गई।

लोग मुझसे पूछते हैं कि मैंने इस सब से कैसे मुकाबला किया। कैंसर, सर्जरी, कीमोथेरेपी… ये सभी भयावह शब्द हैं। हाँ, कैंसर भयावह है और अस्पताल कैंसर रोगियों से भरा हुआ था, जिनमें से कई उस समर्थन से वंचित थे जो मेरे पास था। ऐसे कई बुजुर्ग, जवान और बच्चे मरीज़ थे जो मुझसे कम भाग्यशाली थे। अगर वे सामना कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं?

सर्जरी के लिए मैं लोगों से कहती हूँ कि सारी चिंताओं को अपने सर्जन पर छोड़ दें। आप एक हवाई जहाज के यात्री हैं। विमान को सुरक्षित रूप से उतारना पायलट का काम है। इसलिए आराम करें, सो जाएं। जब आप जागेंगे तो आपकी सर्जरी खत्म हो चुकी होगी।
कीमोथेरेपी के दौरान खाना अच्छी तरह से खाएं, टीवी पर अच्छे कार्यक्रम देखें, फिल्में देखें, आराम करें, चहलकदमी करें और खुश रहें।

मैं अपने परिवार और दोस्तों के समर्थन के कारण कैंसर और उसके इलाज की कठिनाइयों का मुकाबला कर पाई हूँ। मैंने खुद पर कभी तरस नहीं खाया। मुझे अपने परिवार के हर सदस्य से सतत समर्थन मिला। मेरे पति हर समय मेरे साथ थे। मेरा बेटा और बहू दिल्ली में रहते हैं। वे मुंबई आ गए थे और पूरे वक़्त अस्पताल में मेरे साथ रहे। मुंबई में मेरे रिश्तेदार हमेशा हर तरह से मदद और देखभाल के लिए उपलब्ध थे। यहाँ तक कि वे मेरे लिए मेरे स्वाद के अनुरूप खाना भी लाया करते थे। लखनऊ में होती थी तो मेरी बहन या मेरी भाभी दिल्ली से लखनऊ आया करती थीं और कीमोथेरेपी के साइकिल  के दौरान हमेशा मेरे साथ रहती थीं। वे मेरे खाने-पीने का ध्यान रखती थीं और मुझे हंसाती रहती थी। मेरे सच्चे दोस्त हर वक़्त मेरे साथ थे।

मैं अब काफी सामान्य जीवन जीती हूँ। स्वयं को तनाव और अधिक काम से दूर रखती हूँ, हल्का खाना खाती हूँ और उबला हुआ पानी पीती हूँ। मैं मन लगा कर काम करती हूँ और पार्टी में कम से कम शामिल होती हूँ। चूँकि अब मैं कोई दवा नहीं लेती इसलिए कुछ जड़ी-बूंटियाँ और होम्योपैथी दवाइयाँ लेने लगी हूँ।

कैंसर ने मुझे सिखाया है कि जीवन अनमोल है। इसने मुझे दिखाया है कि मुझे कितना प्यार किया जाता है। इसने मुझे मेरे सबसे बड़े आशीर्वाद - मेरी सहायता प्रणाली - का मोल बताया है। इसने यह साबित किया है कि डॉक्टर/सर्जन क्या चमत्कार कर सकते हैं। इन सबसे ऊपर, इसने एक बार फिर मेरा विश्वास मजबूत किया है कि जीवन और मृत्यु भगवान के हाथों में है। अगर वह चाहता है कि आप जीएं, तो कोई भी आपको मार नहीं सकता है - कैंसर भी नहीं।

मेरी जैसी स्थिति से गुज़रने वाले हर व्यक्ति से मैं कहना चाहूंगी कि:

  • बहुत ही सतर्क रहें - बार बार नजर आने वाले लक्षणों को तुच्छ समझ कर अनदेखा न करें ।• इलाज या सर्जरी में देरी न करें। याद रखें कि मलिग्नन्सी का पता चलने के बाद हर दिन कीमती होता है।
  • भारत में अच्छे उपचार और देखभाल की कमी नहीं है। आपको घबराने की जरूरत नहीं है।
  • अच्छी तरह से खाना खाएं, भले ही आपको यह मुश्किल लगे।
  • जैसा कि डॉक्टर ने मुझे बताया, “यह 60 प्रतिशत आपके रवय्ये पर निर्भर करता है, 40 प्रतिशत उपचार पर।"
  • अपने आस-पास केवल सकारात्मक लोगों को रहने दें। नकारात्मकता की कोई गुंजाइश नहीं है।
  • योद्धा बनें, खुद को उत्पीडित या लाचार न समझें।
  • हिम्मत न हारें।
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