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Submitted by PatientsEngage on 5 March 2020
Children going through cancer treatment, wearing face mask and bald head sitting in red bean bags, playing together

इस लेख में सेंट ज्यूड इंडिया चाइल्ड केयर की काउंसलर मृणाल मराठे बताती हैं कि कैंसर का सामना कर रहे बच्चों और किशोरों को किस तरह की चुनौतियों, डर और असुरक्षा की भावना का सामना करना पड़ता है और इस का उनके परिवारों पर क्या असर होता है ।

कैंसर पीड़ित बच्चों के माता-पिता को क्या चिंता होती है?

सबसे बड़ी समस्या यह है कि अधिकाँश लोग यह जानते ही नहीं कि कैंसर जैसी बीमारी बच्चों को हो भी सकती है। कैंसर के बारे में आम धारणा यही है कि यह बड़ी उम्र के लोगों को ही होता है। जब बच्चे को कैंसर का निदान मिलता है तो माता-पिता अकसर इसके लिए खुद को ही जिम्मेदार समझने लगते हैं। उन्हें लगता है कि यह बीमारी बच्चे के स्वास्थ्य का ध्यान न रखने और गलत खानपान के कारण हुई है।

हाल के वर्षों में क्या आपने किसी विशेष ट्रेंड पर गौर किया है?

कैंसर के मामले बढ़ते जा रहे हैं और हमने यह भी देखा है कि बहुत सारे शिशुओं को भी कैंसर हो रहा है।

एक सकारात्मक बात यह देखने में आ रही है कि ज्यादातर परिवार कैंसर से पीड़ित अपनी बच्ची के इलाज के लिए भी उतना ही पैसा खर्च करते हैं और प्रयास करते हैं जितना वे अपने बेटों के लिए करते हैं। दस साल पहले जब हमने अपना काम शुरू किया था तब हम यह देखते थे कि परिवार कैंसर पीड़ित बच्चियों का इलाज (लड़कों के मुकाबले) कई बार नहीं करते थे या बीच में छोड़ देते थे - इस लिंगभेद को देखकर दिल बहुत दुखता था ।

शिशु कैंसर के मामलों में मेडिकल रिसर्च और इलाज की लगातार बेहतरी हो रही है और इस वजह से यह कहते हुए संतोष होता है कि बच्चों का कैंसर से मुक्त होने के दर काफी बढ़े हैं, विशेष रूप से कुछ किस्म के ल्यूकेमिया के केस में।

कैंसर के सफ़र में किशोरों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

किशोरों के लिए दुनिया ऊर्जा एवं महत्वाकांक्षाओं से भरी है और वे अपनी शर्तों पर इसे जानने, समझने और खोजने को उत्सुक रहते हैं। इसलिए कैंसरग्रस्त किशोर इंटरनेट एवं अन्य स्रोतों से जानकारी जुटाकर इसके बारे में रिसर्च करने लगते हैं। वे अपनी स्थिति के बारे में जानना चाहते हैं।

किशोरावस्था में शारीरिक विकास एवं आत्म जागरूकता अपने चरम पर होता है। इसलिए अपने शरीर में कैंसर-संबंधी और उसके इलाज संबंधी बदलाव का सामना करना किशोरों की सबसे बड़ी चुनौती है। बालों का गिरना, कमजोरी, और वजन गिरने के कारण उनके आत्म-सम्मान पर असर होता है।

इन चुनौतियों से निपटने में उनकी सहायता के लिए आप कौन से तरीकों का उपयोग करते हैं? कृपया कुछ उदाहरण बताएं।

सेंट ज्यूड में हम बच्चों की भावनात्मक जरूरतों और शारीरिक आवश्यकताओं पर एक समान ध्यान देते हैं। जब तक वे हमारे साथ रहते हैं तब तक हम यही प्रयास करते हैं कि उन्हें महसूस हो कि वे पहले बच्चे हैं, कैंसर के मरीज़ बाद में हैं। इसलिए हम शुरू से ही बच्चों और उनके परिवारों के लिए उम्मीद भरा और सकारात्मक माहौल बनाते हैं।

हम एकल काउंसेलिंग के साथ ही ग्रुप काउंसेलिंग पर भी गहराई से काम करते हैं। हमारी कोशिश रहती है कि बच्चों के सवालों के जवाब हम ईमानदारी से दें। हम उन्हें यह समझाने का प्रयास करते हैं कि ऐसी स्थिति में दुखी होना और गुस्सा करना स्वाभाविक है। हम उन्हें कीमोथेरेपी के प्रभावों के बारे में सच्चाई से बताते हैं। इस से बच्चों को मानसिक रूप से तैयार रहने में मदद मिलती है।

इस बीमारी से निपटने में उनकी सहायता करने का एक अन्य महत्वपूर्ण तरीका है अन्य कैंसरग्रस्त किशोरों से उनकी मुलाकात करवाना ताकि वे समान अनुभवों को बाँट सकें। ऐसा करने से वे समझ पाते है कि वे अकेले नहीं हैं। कैंसर होने की स्थिति, जो कभी-कभी उन्हें सज़ा की तरह लगती है, इसका सामना केवल वे ही नहीं कर रहे हैं, अन्य किशोरों को भी यह बीमारी होती है।

रचनात्मक गतिविधियों से नकारात्मक भावनाओं से उबरने में बहुत सहायता मिलती है। इसलिए हम अपने केंद्रों में कला एवं संगीत थेरेपी का भी उपयोग करते हैं।

मरीज के भाई-बहनों को सामान्यतः किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? क्या भाई-बहन को बोन-मैरो (अस्थि-मज्जा) देने के लिए अक्सर बुला लिया जाता है?

सेंट ज्यूड में ठहरने वाले परिवार अपने कैंसरग्रस्त बच्चे के इलाज के लिए छोटे गांवों और ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं। इसलिए हम ज्यादातर बच्चे के भाई-बहन से मिल नहीं पाते हैं क्योंकि वे अपने गांव में ही होते हैं। हम समझते हैं कि लंबे समय तक माता-पिता से दूर रहने के कारण भाई-बहनों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कैंसर-युक्त बच्चे के इलाज के लिए किसी अन्य जगह जाने वाले माता-पिता अक्सर अपने दूसरे बच्चों को किसी रिश्तेदार के पास छोड़कर आते हैं और उस नए माहौल में उन बच्चों को तालमेल बैठाने में बड़ी परेशानी होती है। ऊपर से परिवार पर इलाज के अतिरिक्त खर्च का बोझ होता है जिस का भी बच्चे के भाई-बहनों पर असर पड़ता है।

यदि इलाज के दौरान यह तय होता है कि इस स्थिति में बोन मैरो ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ सकती है तो एचएलए टाईपिंग के लिए भाई-बहनों को बुलाना पड़ता है। इस टेस्ट से भविष्य की जरूरत के लिए दानदाता की तलाश की जाती है। इसके लिए अक्सर भाई-बहन को अपने सुदूर गांव से लंबी यात्रा कर बड़े शहर तक आना पड़ता है।

इलाज के बाद सामान्य जीवन में दोबारा लौटने की प्रक्रिया इन यंग एडल्ट्स (युवाओं) के लिए कैसी होती है?

इन युवाओं की सबसे बड़ी परेशानी उनकी पढ़ाई रुकने को लेकर होती है। उन्हें यह चिंता रहती है कि स्कूल लौटने पर वे अपने सहपाठियों से काफी पिछड़ चुके होंगे। यही वजह है कि जब तक वे हमारे साथ यहां रहते हैं हम हर संभव प्रयास करते हैं कि वे अपनी पढ़ाई को यहां भी जारी रख पाएं।

Bringing School and Normalcy to Children with Childhood Cancer

इलाज के बाद अस्पताल छोड़कर घर लौटने को लेकर एक आम असुरक्षा की भावना का कारण है बीमारी का दोबारा लौट आने की आशंका। सेंट ज्यूड के सुरक्षित माहौल से बाहर निकलने पर संक्रमण का डर भी होता है।

कैंसर के अनुभव से आगे निकलने में क्या बच्चों को परेशानी झेलनी पड़ती है? सामान्य तौर पर वो कौन से डर हैं जो उन के लिए बाधा बनते हैं?

सबसे सामान्य डर हैं:

  • समाज की प्रतिक्रिया या अस्वीकृति का डर
  • संक्रमण का डर
  • कैंसर के वापस लौटने का डर
  • कुछ बच्चे मौत के डर का जिक्र करते हैं
  • सेंट ज्यूड में बने किसी कैंसरग्रस्त दोस्त को खोने का डर

Help Children With Cancer Develop Skills to Manage Sress and Anxiety

स्कूल या कॉलेज जाना दोबारा शुरू करने को लेकर आने वाली चुनौतियों का सामना करने में आप उनकी किस तरह से मदद करते हैं?

सेंट ज्यूड में हमारे मरीजों में ज्यादातर ग्रेड स्कूल के विद्यार्थी हैं। कुछ कॉलेज स्तर के मरीज भी हैं। हमारे काउंसेलर किशोरों को (जहां तक संभव हो) अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए और सामाजिक गतिविधियों और अपने दोस्तों से मिलने जुलने के लिए प्रोत्साहित करते हैं क्योंकि अकेलेपन से भावनात्मक परेशानियां बढ़ती हैं। हम अस्पताल से एक सर्टिफिकेट जारी करते हैं जो फिर से स्कूल में दाखिला लेने में उनकी मदद करता है।

मृणाल मराठे 5 वर्षों से भी अधिक समय से सेंट ज्यूड इंडिया चाइल्ड केयर में काउंसेलर हैं और 20 साल से ऑन्कोलॉजी काउंसेलिंग से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने साइकोलॉजी में मास्टर्स की डिग्री हासिल करी है और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस से पीएचडी की है।

सेंट ज्यूड इंडिया चाइल्ड केयर सेन्टर्स भारत का एक ऐसा गैरलाभकारी संगठन है जो कैंसरग्रस्त बच्चों एवं उनके परिवार को निशुल्क आश्रय और संपूर्ण देखभाल प्रदान करता है।

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