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Submitted by PatientsEngage on 26 July 2020
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सूरत के चिकित्सक, 35 वर्षीय डॉ विपुलकुमार गोयानी का हेपेटाइटिस बी का निदान तेजी से एक लिवर (यकृत, जिगर) ट्रांसप्लांट की जरूरत में बदल गया। साथ ही उन्होंने ट्रांसप्लांट के बाद अपने लिवर को स्वस्थ रखने के लिए जीवनशैली में बदलाव किये। इस लेख में वे इन सब के बारे में अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा कर रहे हैं।

कृपया हमें अपनी स्थिति के बारे में थोड़ा बताएं

मुझे 13 जुलाई 2015 में हेपेटाइटिस बी का निदान मिला। हेपेटाइटिस के कारण सितंबर 2015 में एक्यूट लिवर फेलियर हुआ। मुझे लिवर (यकृत, जिगर ) के ट्रांसप्लांट (प्रत्यारोपण) की जरूरत थी। मेरा जीवित (लाइव) डोनर लिवर ट्रांसप्लांट 30 सितंबर 2015 को किया गया था।

शुरुआती लक्षण क्या थे?

भूख में कमी, पेट फूलना, पेट में भारीपन, गहरे रंग का मूत्र - ये मेरे शुरुआती लक्षण थे।

एक डॉक्टर होने के नाते, इन लक्षणों के प्रकट होने पर मैं सीधे पीलिया (जौंडिस) है या नहीं, इस के लिए रक्त जांच कराने के लिए गया। मेरा मानना है कि संभवतः यह वायरस संक्रमण मुझे किसी मरीज को देखते समय पिन-चुभन की चोट के टाइम हुआ होगा। बहुत से लोग इस वायरस के पुराने दीर्घकालिक वाहक हैं परन्तु इस बात से अनजान हैं।

कृपया यह बताएं कि आपने अपनी इस स्थिति को कैसे मैनेज किया।

हेपेटाइटिस बी का निदान होने पर पहले तो मुझे झटका लगा। उसी दिन सीधे जाकर मैंने अपने शहर में एक हेपेटोलॉजिस्ट (लिवर विशेषज्ञ) से परामर्श किया। उन्होंने कुछ और जांच करने की सलाह दी, ताकि पता चल पाए कि मुझे तीव्र (यानी एक्यूट) हेपेटाइटिस बी संक्रमण है या यह पुराने हेपेटाइटिस बी से संबंधित बीमारी का पुनर्सक्रियन है। परिणामों से पता चला कि मुझे तीव्र हेपेटाइटिस बी था। मुझे विशेषज्ञ ने आश्वस्त करा कि मैं इस बीमारी से पूरी तरह से ठीक हो जाऊंगा, लेकिन दुर्भाग्य से एंटीवायरल दवाइयाँ मेरे हेपेटाइटिस बी संक्रमण को समाप्त करने में बेअसर रहीं। मेरे लिवर की स्थिति बिगडती गयी और सितंबर 2015 में मुझे एक्यूट लिवर फेलियर हो गया (मेरे लिवर ने काम करना बंद कर दिया)।

मुझे मुंबई के ग्लोबल अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां मुझे भर्ती कराया गया। एडमिशन के दूसरे दिन ही मुझे हेपेटिक कोमा हो गया। जब मैं कोमा में था, मेरे परिवार को सलाह दी गई थी कि मुझे तुरंत ही लिवर ट्रांसप्लांट की आवश्यकता है। मैं बेहोश था और इसलिए मेरे परिवार को मेरी तरफ से यह फैसला लेना पड़ा। मेरे बड़े भाई आगे आये और उन्होंने अपने लिवर का अंश मुझे को दान करने का फैसला किया। 4 दिन बाद, मुझ में उनके स्वस्थ जिगर का एक हिस्सा ट्रांसप्लांट करा गया।

आपकी वर्तमान स्थिति क्या है?

मैं आज एक स्वस्थ जीवन जी रहा हूँ। मैं उन सभी नियमित गतिविधियों को कर सकता हूं जो एक सामान्य व्यक्ति कर सकता है। मैं फिर से जनरल फिजिशियन के रूप में काम कर रहा हूँ।

क्या आपके परिवार में इस बीमारी का कोई इतिहास (फॅमिली हिस्ट्री) है?

मेरे परिवार में हेपेटाइटिस का कोई पारिवारिक इतिहास नहीं। मेरे सभी परिवार के सदस्यों की हेपेटाइटिस बी के लिए जांच की गई है और यह किसी में भी नहीं मौजूद है।

क्या आपको हेपेटाइटिस बी की इस प्राथमिक (प्राइमरी) बीमारी से संबंधित जटिलताएं का सामना करना पड़ा है?

हां, मेरे हेपेटाइटिस बी संक्रमण से मेरा लिवर फेल हुआ, और हेपेटिक एन्सेफैलोपैथी (कोमा) पैदा हुआ। हेपेटिक कोमा तब होता है जब मस्तिष्क ठीक से काम नहीं कर पाता क्योंकि लिवर शरीर से टोक्सिन (विषाक्त पदार्थ) नहीं हटाता और शरीर में बहुत टोक्सिन जमा हो जाते हैं। मेरी इस गिरती स्थिति को संभालने के लिए और मुझे जिंदा रखने के लिए मुझे 7 दिनों के लिए वेंटिलेटर पर रखा गया था ताकि मेरे महत्वपूर्ण मापदंड (वाइटल पैरामीटर) स्थिर करे जा सकें और मेरे लिवर ट्रांसप्लांट का प्रबंध कर पाने के लिए भी कुछ समय मिल सके । आखिरकार 30 सितंबर 2015 के दिन मेरा लिवर ट्रांसप्लांट हुआ। सर्जरी के 15 दिन बाद मुझे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई और घर भेजा गया।

आपका किस तरह से उपचार हुआ? आजकल आप कौन सी दवाएं ले रहे हैं?

ट्रांसप्लांट के ठीक बाद स्टेरॉयड और इम्यूनोसप्रेसेन्ट (प्रतिरक्षा का दमन करने वाली) दवाएं शुरू कर दी गयीं । स्टेरॉयड 2015 के बाद बंद कर दिए गए लेकिन इम्यूनोसप्रेसेन्ट्स तो मुझे जीवन भर लेने होंगे। ये इम्यूनोसप्रेसेन्ट दवाएं इसलिए जरूरी हैं क्योंकि इन को लेने से मेरी अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा ट्रांसप्लांट करे गए लिवर की अस्वीकृति की संभावना कम होती है।

दूसरी बात यह है कि मुझे अपने शरीर में हेपेटाइटिस बी वायरस के पुन: सक्रिय होने की संभावना को रोकने के लिए हेपेटाइटिस बी के लिए एंटीवायरल दवा लेने की जरूरत है, भले ही मैं वर्तमान में एचबीएसएजी (HbsAg) नेगेटिव हूं।

क्या दवाओं के कोई दुष्प्रभाव हैं? यदि हाँ, तो आप उन्हें कैसे प्रबंधित करते हैं?

इन दवाओं में नेफ्रोटॉक्सिसिटी (गुर्दों में विषाक्तता) होती है और ऑस्टियोपोरोसिस (हड्डियों में छिद्र होना जिस से उनके टूटने का खतरा बढ़ता है) भी हो सकता है। नेफ्रोटॉक्सिक असर से बचने के लिए मैं खूब पानी पीता हूं और मुझे नियमित रक्त जांच भी करवानी होती है ताकी गुर्दों (किडनी) पर असर हो रहा हो तो उसका तुरंत निदान किया जा सके। हड्डियाँ कमजोर न हों, इस दुष्प्रभाव से बचने के लिए, मैं कैल्शियम सप्लीमेंट लेता हूं और हड्डियों को मजबूत बनाने वाले जोरदार और कठिन व्यायाम भी करने पड़ते हैं।

क्या आपको चिकित्सा के लिए या परामर्श के लिए अपने शहर के बाहर यात्रा करनी पड़ी थी?

मुझे हर तीन महीने अपने हेपेटोलॉजिस्ट से परामर्श करने की आवश्यकता है। सौभाग्य से ग्लोबल अस्पताल मुंबई द्वारा हर महीने सूरत में लिवर ट्रांसप्लांट क्लीनिक आयोजित किया जाता है, इसलिए मुझे शहर से बाहर यात्रा करने की आवश्यकता नहीं होती है।

आपकी स्थिति के कारण आपने अपनी जीवनशैली में क्या बदलाव किए हैं?

मैं इस बीमारी से पहले नियमित रूप से व्यायाम नहीं कर रहा था, पर अब मैं रोज 15 मिनट दौड़ता हूं और 15-20 मिनट साइकिल चलाता हूं। मैंने केवल स्वस्थ खाद्य पदार्थ खाने की आदत बना ली है - यानी ऐसे खाद्य पदार्थ जो प्रोटीन और अन्य पोषक तत्वों से भरपूर हैं पर जिन में वसा कम है।

आपने मानसिक और भावनात्मक तौर से अपनी स्थिति का सामना कैसे किया? क्या आपने इस के लिए किसी काउंसलर का सहारा लिया?

मैं मानसिक रूप से बहुत मजबूत था और अपनी बीमारी से लड़ पाऊंगा, इस बात पर मुझे पूरा भरोसा था। मेरे डॉक्टरों ने मेरे परिवार को काउंसलिंग लेने की सलाह दी।

मेरे परिवार और मेरे ससुराल वाले इस पूरे कठिन समय के दौरान मेरे साथ दृढ़ता से खड़े रहे। और अगर मैं आज जीवित हूँ तो अपने भाई की वजह से! मेरे दोस्त मुझसे नियमित रूप से मिलने आते रहते थे ताकि मैं अस्पताल में बोर न होऊं। निदान होते ही मैंने तुरंत अपना निदान उनके साथ साझा किया था ताकि जरूरत पड़ने पर मैं उन से मदद और मार्गदर्शन मांग सकूं।

आपको किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा और इस परिस्थिति से जूझ रहे अन्य रोगियों के लिए आपकी क्या सलाह है?

  • मेरी बीमारी के दौरान पहली चुनौती यह थी कि शुभचिंतक और मिलने वाले अलग-अलग तरह की सलाह देते थे, विशेषकर ऐसे घरेलू उपचार जिनके फायदों का कोई प्रमाण नहीं है। जब कुछ रिश्तेदारों ने मजबूर किया, तो उन्हें बुरा न लगे इसलिए मुझे उन के कुछ नुस्खे आजमाने भी पड़े।
  • दूसरी बात यह कि कुछ लोगों ने कोशिश करी कि मैं भी उनके अंधविश्वासों के हिसाब से चलूँ । ऐसी स्थितियों में सीधा मना करने के लिए हिम्मत की जरूरत है।
  • तीसरी चुनौती थी लिवर की देखभाल के लिए सबसे अच्छा अस्पताल ढूंढना। मेरे शहर के एक प्रसिद्ध गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट ने मुंबई वाले अस्पताल का सुझाव दिया।

मरीजों को मेरी सलाह होगी कि आप पीलिया (जौंडिस) को हल्के से न लें। हमेशा पूरी जांच करवाएं और हेपेटाइटिस संक्रमण के लिए चेक जरूर करवाएं। अफ़सोस, कई डॉक्टर जौंडिस का इलाज करते समय अन्य समस्याएं हैं या नहीं, इस के लिए जांच नहीं करते।

अगर आपका लिवर ट्रांसप्लांट हो चुका है तो यह जरूर ध्यान रखें कि आप स्वच्छ भोजन और पानी ही लेते हैं क्योंकि यदि भोजन के स्रोत में कोई संदूषण ओ तो उस भोजन से आपको संक्रमण (इन्फेक्शन) हो सकता है। ट्रांसप्लांट वाले लोगों के लिए यह विशेष रूप से खतरनाक है क्योंकि इस संक्रमण से लड़ने के लिए उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली सक्रिय हो जाती है और फिर यह ट्रांसप्लांट करे गए लिवर को भी अस्वीकार कर सकता है।

ऐसे कई रोगी हैं जो नियमित रूप से अपनी स्थिति चेक करते रहने के लिए डॉक्टर के साथ फॉलोअप के लिए नहीं जाते हैं और इम्यूनोसप्रेसेन्ट दवाओं की खुराक बिना ट्रांसप्लांट विशेषज्ञों से परामर्श करे बदल देते हैं या अचानक रोक देते हैं - इस से ट्रांसप्लांट करे गए अंग की अस्वीकृति हो सकती है। अतः सभी ऑर्गन ट्रांसप्लांट रोगियों से मेरी विनम्र विनती है कि वे अपनी दवाएँ नियमित रूप से और विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार लेते रहें।

अपने चिकित्सक के सलाह के बिना किसी भी दवा को बंद न करें। मैंने दो ऐसे व्यक्तियों को देखा है जिनकी मौत इसलिए हुई क्योंकि उन्होंने अपने डॉक्टर से सलाह करे बिना अपनी इम्यूनोसप्रेसेन्ट दवाओं को रोक दिया था।

आपके निदान ने आपके जीवन के दृष्टिकोण और महत्वाकांक्षाओं को कैसे बदला है?

मेरे निदान ने मेरे जीवन को पूरी तरह से बदल दिया है। मैं इस से पहले अपने आहार और स्वास्थ्य देखभाल के संबंध में एक खुशहाल और अल्हड़ किस्म का व्यक्ति था। अब मैं अपने आहार, स्वास्थ्य और व्यायाम को ठीक बनाए रखने के मामले में बहुत सख्त हूं।

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