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Submitted by PatientsEngage on 16 March 2020

49 वर्षीय राहुल अपने जीवन की घटनाओं का बयान एक ऐसे घटना क्रम के रूप में करते हैं जिससे बचा जा सकता था। वे बताते हैं कि किशोरावस्था हमेशा खेलकूद में भाग लेने वाले व्यक्तित्व से वे आज ऐसी अवस्था में पहुंच चुके हैं जहां उन्हें उच्च रक्तचाप और हाइपरलिपिडेमिया के साथ ही हृदय-रोग भी हो गया है। यह सब इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने अपने स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दिया।

“इस बीमारी ने मेरा पारिवारिक जीवन बदल दिया और मुझे एक ऐसी जगह लाकर खड़ा कर दिया जहां मैं कभी नहीं चाहता कि कोई भी पहुंचे।” 2 साल पहले मुझे हार्ट अटैक (हृदयाघात) हुआ था। मेरी स्थिति ऐसी क्यूं हुई? अपनी किशोरावस्था में मैं एथलीट था। जब मैं 20 वर्ष का था तब मैंने तीन दिन में 200 किलोमीटर ट्रेकिंग की थी। मैं नियमित रूप से हाफ मैराथन में भाग लेता रहता था। मगर आज मैं एक हृदय रोगी हूं और मुझे उच्च रक्तचाप और हाइपरलिपिडेमिया है। संभव है कि मेरी कहानी कई और लोगों से मिलती-जुलती हो। जब मैंने नौकरी करना शुरू किया मेरी जिंदगी बिल्कुल बदल गई। देर रात की कॉल, ज़रूरत से ज्यादा खाना, पब्स में सहयोगियों से मिलना, तनाव - इन सब चीजों का मेरी जिंदगी पर असर पड़ने लगा था। हालांकि मैंने दौड़ना और स्क्वैश खेलना जारी रखा था फिर भी मेरा वजन बढ़ता जा रहा था।

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स्वास्थ्य की सालाना जांच के दौरान मेरे डॉक्टर मुझे उच्च रक्तचाप और कोलेस्ट्रोल की मात्रा के बढ़ने को लेकर चेतावनी देते थे लेकिन मैं उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लेता था। सोचता था, ऐसा तो दूसरे लोगों के साथ होता है। पर फिर, एक दिन एक लंबी फ्लाइट के बाद मुझे छाती में बेचैनी महसूस होने लगी। मुझे लगा कि ज्यादा तेल वाला खाना खाने और एसिडिटी के कारण ऐसा हो रहा है लेकिन कुछ घंटों में मेरी हालत और भी बिगड़ने लगी और मुझे सांस लेने में तकलीफ होने लगी। मेरी पत्नी मुझे जल्दी से पास ही के हॉस्पिटल में ले गई (शुक्र है कि मैं सिंगापुर में था)। डॉक्टरों ने बताया कि मुझे डीप वेन थ्रोम्बोसिस (डीविटी) से होने वाला पलमोनरी एंबोलस हुआ है। डीविटी में नसों के अंदर खून के थक्के जमने लगते हैं, खासकर अक्सर टांगों में। ये थक्के रक्त वाहिकाओं में घूमते हुए फेफड़ों में पहुँचते हैं और वहां जाकर जम जाते हैं। मैं तब 36 साल का था।

विस्तृत जांच के बाद पता चला कि मेरा कोलेस्ट्रॉल बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ था और मुझे उच्च रक्तचाप था। मुझे थक्कों को दूर करने वाली दवा वारफैरिन और कॉलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने के लिए स्टैटिन दी गयीं। अगर आप वारफैरिन ले रहे हैं तो आपको इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि गलती से भी कहीं आपको कट ना लगे क्योंकि ऐसे में खून का थक्का पर्याप्त मात्रा में नहीं बनने से खून लगातार बेहता रहेगा। इस दवा की वजह से मुझे डायरिया भी हुआ और मेरे पेट में लगातार दर्द रहता था। स्टैटिन की वजह से मेरी मांसपेशियों में दर्द, सूजन और कब्ज़ जैसी परेशानियां हुईं।

इस इलाज के दौरान पीटी-आईएनआर ब्लड टेस्ट के लिए मुझे हर दो हफ्ते बाद डॉक्टर के पास जाना पड़ता था। इस परीक्षण से यह पता लगाया जा सकता है कि वारफैरिन मेरे लिए कितनी कारगर है और तय करा जाता था कि मुझे कितनी मात्रा में वारफैरिन लेनी चाहिए। क्योंकि मैं मुख्यतर रूप से शाकाहारी था तो मेरे आईएनआर में काफी ज्यादा उतार-चढ़ाव नजर आता था। हरी सब्जियों में विटामिन-के होता है और यह ब्लड थिनर्स (रक्त पतला करने वाली दवाएं, जैसे की वारफैरिन ) के असर में बाधा पैदा करता है। डॉक्टर की सलाह थी कि मुझे डीवीटी से बचने के लिए बहुत लंबे समय तक वारफैरिन लेते रहना होगा, शायद हमेशा के लिए। शुरुआत में मैंने सारे नियमों का पालन किया लेकिन कुछ एक-दो साल बाद में मुझे थकान और अकड़न होने लगी। मेरा दवा लेना नियमित नहीं रहा। साइड इफेक्ट्स के कारण कुछ समय बाद मैंने पहले दवा लेना अनियमित करा और फिर पूरी तरह से बंद कर दिया।

समय के बीतते में फिर से वही पुराना सुस्त और शारीरिक तौर पर निष्क्रिय जीवन जीने लगा। वही खानपान में अनियमितता, देर से लम्बे लम्बे लंच करना, रात का खाना जमकर खाना। शारीरिक गतिविधियां सिर्फ वीकेंड तक सीमित थीं, हालांकि कभी कभार मैं बहुत जोश से कुछ जोरदार व्यायाम करता था। स्वास्थ्य पर बुरा असर हो रहा है, इस के कुछ संकेत तो थे। दूसरे माले पर चढ़ने में ही मेरी सांस फूलने लगती थी, और स्क्वाश खेले समय अगर लम्बी रैली थी, तब भी सांस फूलता था। पर मैं खुद से यही कहता रहता था कि अगले हफ्ते से मैं नियमित और स्वस्थ जीवन शैली अपनाऊंगा।

जब मैं 44 साल का हुआ तो मेरे सालाना स्वास्थ्य परीक्षण में डॉक्टर ने ईसीजी में गड़बड़ी के बारे में बताया। तुरंत मेरे ह्रदय का एमआरआई कराया गया। जो बात सामने आई वह यह थी कि मेरे हृदय की धमनियां सिकुड़ने लगी थीं। डॉक्टर ने सलाह दी कि मुझे एंजियोग्राफी करवानी चाहिए, और यदि उसके दौरान लगे, तो एंजोप्लास्टी भी करवानी चाहिए। मुझे यह सुनकर बहुत धक्का लगा।

मेरे साथ ऐसा कैसे हो गया! मैं अपनी पत्नी को यह सब कैसे बताऊंगा? मेरा बच्चा हाई स्कूल में था! वे यह जानकर क्या सोचेंगे, क्या कहेंगे...कितना असुरक्षित महसूस करेंगे? यह सब बातें जब मैंने अपने एक करीबी दोस्त से बात करीं तब उसने मुझे सलाह दी कि मुझे अपने परिवार को यह बातें बतानी ही पड़ेगी।

मुझे आगे बढ़ने से पहले दूसरी राय चाहिए थी इसीलिए मैं नेशनल यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल गया। मेरी रिपोर्ट देखने के बाद डॉक्टर ने मुझे तुरंत ही एन्जियोग्राफी की सलाह दी। एंजियोग्राफी के दौरान डॉक्टर ने मेरी बायीं एल ए डी आर्टरी में दो जगह सिकुड़न बताते हुए वहां दो स्टेन्ट लगाए। उसके बाद से मुझे कड़े तौर पर लगातार प्लेविक्स, एस्प्रिन और क्लॉपिडॉग्रेल जैसी दवाइयों का नियमित सेवन करने की सलाह दी गई।

मैंने फैसला किया कि अब मैं शारीरिक फिटनेस और संयत खाने के नियम दृढ़ता से अपनाऊंगा। जल्द ही मैं 5 किलो वजन घटा पाया (मेरा वजन 65 किलो तक कम हो गया) जिसकी वजह मैं खुद को बहुत अच्छा और फिट महसूस करने लगा। मैं दोबारा स्क्वैश खेलने लगा और वीकेंड पर 40 किलोमीटर तक साइकिल चलाने लगा। डॉक्टर की सलाह यही थी - नियमित रूप से दवाइयां लेने, नियमित रूप से व्यायाम करने और संयत खाना।

तीन साल बीत गए। मेरी जिंदगी सामान्य लगने लगी। ऐसा लगने लगा कि मुझे कभी कोई तकलीफ हुई ही नहीं थी। मैं फिर से दवाइयां लेने और अपने खानपान को लेकर ढील देने लगा। एक बार वार्षिक छुट्टियों के दौरान मैंने देखा कि मैं अपनी कुछ दवाइयां लेकर नहीं आया हूं। मुझे लगा कि कुछ दिन बिना दवाइयों के निकल जाना कोई समस्या नहीं होगी । सिंगापुर लौटने के एक दिन बाद जब मैं स्क्वैश खेलने गया तो मुझे बहुत बेचैनी महसूस होने लगी। मेरी पत्नी तुरंत ही मुझे अस्पताल लेकर गई। हार्ट अटैक का तुरंत निदान करा गया - यह मानना था की दवा नियमित तरह से न लेने के कारण शायद प्लाक जम गया था

अब मैं एस्प्रिन, क्रेस्टर(स्टैटिन), कार्विडिओल और पेरिन्डोप्रिल ले रहा हूं। मैं खुद को बहुत भाग्यशाली मानता हूं कि आज अपनी कहानी बताने के लिए जीवित हूं। शायद अन्य लोग इतने भाग्यशाली न रहे हों। इसीलिए मेरा सबसे यह निवेदन है कि कृपया स्वस्थ जीवन बिताएं, डॉक्टर की सलाह लगातार लेते रहें और अपनी दवाइयां समय पर लें।