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Submitted by PatientsEngage on 22 May 2023
ग्लुकोमा(काला मोतिया) के बारे में जानें डॉ. रमंजीत सिहोता, ग्लूकोमा सर्जन और डॉ. सिद्धार्थ दीक्षित

ग्लूकोमा (काला मोतिया) अंधेपन का एक प्रमुख कारण है। ग्लूकोमा से दृष्टि की हानि होती है और अगर उपचार से इसे नियंत्रित न करें तो दृष्टि जा सकती है। ग्लूकोमा पर जानकारी के लिए हमने आईएचओपीई के साथ की गयी आंखों की बीमारियों का श्रृंखला के अंतर्गत दो विशेषज्ञों के साथ एक वेबईनार किया था : डॉ. रमंजीत सिहोता, ग्लूकोमा सर्जन, श्रॉफ आई सेंटर, और डॉ. सिद्धार्थ दीक्षित, कन्सल्टन्ट ऑपथलमोलोजिस्ट, वीएसटी सेंटर फॉर ग्लूकोमा केयर, एल वी प्रसाद आई इंस्टिट्यूट।

नीचे पढ़ें  वेबिनार पर आधारित कुछ मुख्य तथ्य। पूरी रिकॉर्डिंग के लिए देखें: Learn About Glaucoma in Hindi | ग्लुकोमा(काला मोतिया) के बारे में जानें

 

 

ग्लूकोमा (काला मोतिया) क्या है?

आँख एक गुब्बारे की तरह है जिसके अंदर पानी भरा होता है और उस पानी का दबाव अगर ठीक न हो तो आंख अच्छी तरह काम नहीं करती है। दबाव अगर ज्यादा बढ़ने लगे तो पीछे की हमारी नजर वाली नस पर ज्यादा दबाव डलता और उस में हानि होती है, जिससे आपकी नजर आहिस्ते-आहिस्ते जा सकती है।

सफेद और काला मोतिया में क्या फर्क है?

सफेद मोतिया और काला मोतिया दोनों उम्र बढ़ने से संबंधित बीमारियाँ हैं, पर यह जानना बहुत जरूरी है कि ये अलग-अलग हैं। पचास-साठ के ऊपर के लोग सोचते हैं कि नजर जा रही है तो शायद कैटरक्ट या सफेद मोतिया है। पर नजर का जाना कई बीमारियों से हो सकता है - इन में से एक है ग्लूकोमा या काला मोतिया। सफेद मोतिया को सफेद इसलिए कहते हैं क्योंकि आँख के बीच में सफेदी सब को नजर आती है। काला मोतिया को काला इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें सफेदी नहीं नजर आती है पर मरीज की आँख की रोशनी धीरे-धीरे कम होती है, दृष्टि का कालापन बढ़ता है।

ग्लूकोमा (काला मोतिया) के शुरुआती संकेत और लक्षण क्या हैं?

मरीज को इसका ज्यादा कुछ पता नहीं चलता है। यह धीरे-धीरे से आपके दृष्टिकोण - आपको चारों तरफ क्या-क्या नजर आता है - को चारों ओर से सिकोड़ने लगता है और जब तक दृष्टिकोण पूरा तरह बीच तक सीमित न हो जाए या आँखों की रोशनी पुरी तरह न चली जाए या बहुत तकलीफ न हो, तो मरीज को पता ही नहीं चलता है कि उसे कोई ऐसी समस्या । क्योंकि इसके लक्षण बहुत हल्के होते हैं, इसलिए चालीस के बाद नियमित चेकअप करवाना होता है, ताकि इसका पता चले और इसे रोका जा सके। ध्यान रहे कि जो रोशनी चली गयी है उसे वापस नहीं लाया जा सकते।

ग्लूकोमा के लिए टेस्ट कैसे और कब करवाना चाहिए।

यह एक उम्र की बीमारी है और जैसे कि उम्र की बीमारियाँ होती हैं, यह चालीस के बाद आती है। खासकर अगर आपके परिवार में किसी और को ग्लूकोमा हो अगर आपको कोई और क्रॉनिक बीमारियां हो जिसके लिए आप स्टेरॉयड ले रहे हों, तो आपको पक्का साल में एक बार आँख टेस्ट करवानी चाहिए। सिर्फ चश्मे के नंबर का टेस्ट काफी नहीं है - बल्कि काम्प्रीहेन्सिव टेस्ट करवाईए, पुरी आँख का टेस्ट करवाएं क्योंकि कई बीमारियां इस उम्र में आ सकती हैं।

ग्लूकोमा के जोखिम कारक क्या हैं?

वैसे तो रिस्क फैक्टर काफी हैं, पर जिन को आँख में माइनस नंबर होता है, उनको रिस्क ज्यादा है। थाइरॉइड का प्रॉबलम है, तब भी रिस्क थोड़ा ज्यादा है।
पर मैं स्टेरॉइड के बारे में कहना चाहती हूँ, क्योंकि लोग इसे समझते नहीं हैं। स्टेरॉइड क्रीम आपने पैर पर लगाई, उसका भी असर आँख पर हो सकता है। या अस्थमा के लिए स्प्रे या इनहेलर लिया, उस का भी असर आँख पर हो सकता है। अस्थमा और त्वचा की तकलीफें बहुत क्रानिक होती हैं, और इन के लिए स्टेरॉइड का इस्तेमाल सालों हो सकता है, और इस से आँख में तकलीफ हो सकती है। क्रीम लगाने से हर किसी का प्रेशर नहीं बढ़ेगा, पर जिनको ग्लूकोमा की अधिक संभावना है या जिनके परिवार में ग्लूकोमा है, उनको क्रीम के उपयोग से अधिक जोखिम है।

बच्चों में ग्लूकोमा

ग्लूकोमा पैदाइशी भी हो सकता है और ऐसे में बच्चे का इलाज जल्दी करना बहुत जरूरी होता है, और अगर यह कराएं तो रोशनी काफी अच्छी होती है। दूसरे प्रकार का ग्लूकोमा जो बच्चों में आता है वह सेकन्डेरी ग्लूकोमा है - जो ग्लूकोमा किसी दूसरी बीमारी से या शरीर की किसी अन्य बीमारी से आ जाता है, और बच्चों में यह या तो चोट से या स्टेरॉयड के इस्तेमाल से हो सकता है । बच्चों में स्टेरॉयड बिल्कुल छोटी-छोटी चीजों के लिए इस्तेमाल होता है - जैसे कि अगर बच्चा कहे की मेरी आंख में लाली है, मुझे थोड़ी सी रड़क है, तो डॉक्टर कहते हैं कि यह दवाई डालो और दो हफ्ते से ज्यादा मत डालो, पर मरीज या उनके रिश्तेदार देखते हैं कि दवा से अच्छा फायदा हो रहा है तो अगली बार किसी को लाली होती तो वही दवाई डालने लगते हैं। हमने देखा है कि पांच से ग्यारह-बारह साल के लड़कों में ऐसी एलर्जी काफी होती है और कई साल चलती है। अगर स्टेरॉयड आप सालों साल डालते जाएँगे तो उससे काला मोतिया होने की बहुत ज्यादा गुंजाइश होती है ।

तो अगर बच्चों में चोट हो तो फटाफट जाकर उसका पूरा इलाज कराएं, और अगर आँख में लाली हो तो जरूर डॉक्टर को सही तरह सुन लीजिएगा, जितना वे बोलें उतना ही स्टेरॉइड डालें, ज्यादा न डालें। ऐसी चीजों का जो इलाज है वह थोड़े दिनों के लिए जरूर होती है और स्टेरॉयड के अधिक इस्तेमाल से बच्चों में ग्लूकोमा आता है और उनकी आँख की रोशनी चली जाती है।

इसके उपचार के विकल्प क्या हैं?

  • आजकल काला मोतिया के बहुत अच्छे-अच्छे उपचार हैं - दवाइयां, लेजर और ऑपरेशन - और अगर आप अपना काला मोतिया जल्द से जल्द पकड़वाएं तो हम उसे बिल्कुल स्थिर रख सकते हैं - ताकि वह बढ़े नहीं। दवाइयां में आम तौर पर हमें सिर्फ आंख में दवा डालनी होती है। लेजर आपको अस्पताल में करवाना होता है। अगर ये कुछ काम न करें तो हम ऑपरेशन का सोचते हैं।
  • इलाज में इसका पूरा निवारण नहीं होता बल्कि इसे नियंत्रण में रखा जाता है, सीमा के अंदर रखा जाता है। नस के डैमेज को बढ़ने नहीं दिया पर अफसोस, जो नजर जा चुकी है वह वापस नहीं हो पाती, लेकिन आप सही समय पर उपचार के लिए आयें तो कई सालों तक आपकी नजर अच्छी बनी रहती है।
  • संपादक का नोट: पेशेंटस एन्गैज वेबसाइट पर भी ग्लूकोमा के सफल प्रबंधन पर व्यक्तिगत अनुभव साझा करे गए हैं।

मरीज अपने ग्लूकोमा को कैसे प्रबंधित करें?

डॉक्टर डाइअग्नोसिस करके आपको दवाइयां लिख कर देंगे या जो भी उपचार है वह लिख कर देंगे, बाकी 90% का काम आपका है। आपने दवाइयां बिल्कुल टाइम से डालनी है, ठीक तरह डालनी है - दवाई डाल के आप अपना काम करने लगते हैं तो कोई फायदा नहीं है, आपको अच्छी तरह नीचे वाला पलक खींच के एक छोटा सा पॉकेट बनाना है उसके अंदर दवाई डालनी है, फिर कम से कम एक दो मिनट आंख बंद रखनी है और आँख के बीच के हिस्से को थोड़ा दबा कर रखना है, एक दो मिनट के लिए, ताकि दवाईयों को थोड़ा बहुत टाइम मिल जाए कि वह आपके अंदर रच जाएँ। दवाई डालने का तरीका अच्छी तरह से पता होना चाहिए।

दूसरी बात यह है कि आपको समझना चाहिए कि हमारा मकसद है प्रेशर को चौबीसों घंटे बारह महीने कंट्रोल करना - सिर्फ 1 या दो घंटे के लिए नहीं। तो अगर आपको बोला गया है कि दवाई दो बार डालें तो इसे बारह-बारह घंटे के अंतर पर जरूर डालें - अगर आपने सुबह 7:00 दवा डाली है तो शाम को 7:00 बजे डालें। इसी तरह अगर दवाई तीन बार डालनी है तो आठ-आठ घंटे पर डालें। और अगर एक बारी डालने को बोला है तो आप एक टाइम तय करें, और रोज उसी समय नियमित रूप से बिना भूले डालें तो 24 घंटे प्रेशर कंट्रोल में रहेगा।

अब बात रही है भूलने की। अगर आपने दवाई नहीं डाली तो प्रेशर आपका खूब ऊपर जाएगा। अगली बारी डाली तो प्रेशर नीचे आएगा और ऐसे करते-करते पीछे वाली नस में हानि ज्यादा बढ़ जाती है। तो अलार्म लगाइए और बिल्कुल टाइम से दवाई डालिए। यह आपकी ड्यूटी है।

दूसरी बात है की आपकी उम्र तो बढ़ती जाएगी, दवाइयां कितनी देर काम करेंगी हम कह नहीं सकते। यह हो सकता है कि थोड़े महीने बाद, एक साल बाद, पाँच साल बाद, दवाई का असर थोड़ा कम हो, तो दवाईयां बदलनी पड़ती हैं। और आपकी उम्र बढ़ेगी तो ग्लूकोमा भी बढ़ सकता है, वापस आकर दिखाना डॉक्टर को बहुत जरूरी है, वे चाहे आपको 6 महीने बाद बुलाएं चाहे चार महीने बाद बुलाएं क्योंकि प्रेशर चेक करके देखना पड़ेगा कि कि क्या आपकी वर्तमान दवाईयों से प्रेशर ठीक रह रहा है या नहीं, और यदि नहीं तो दवाइयां बदलनी पड़ती हैं।

दो टेस्ट बहुत जरूरी है, एक तो प्रेशर का टेस्ट, दूसरा फील्ड टेस्ट। फील्ड टेस्ट दृष्टिकोण का टेस्ट है, यानि कि दृष्टि कैसी बनी रही है। दवाई बिल्कुल टाइम पर लें, और जब चेक-अप के लिए बुलाया गया है तो जरूर जाएँ और प्रेशर चेक और फील्ड टेस्ट करवाएं।

ग्लूकोमा के लिए आँख में दवा (आई ड्रॉप्स) डालने का सबसे अच्छा समय क्या होता है?

प्रेशर किसी का सुबह ज्यादा होता है, किसी में रात को ज्यादा होता है, और डॉक्टर उस हिसाब से तय करते हैं कि दवा सुबह डालनी है या रात को। आपको बस प्रिसक्रिप्शन को फॉलो करना है और समझना है कि हमने चौबीसों घंटे प्रेशर को कंट्रोल करना है और जिंदगी भर उसको कंट्रोल करना है।

ग्लूकोमा के लिए आहार और व्यायाम संबंधी सलाह

जीवनशैली में थोड़े से बदलाव से काफी फर्क आता है। एरोबिक एक्सरसाइज - जैसे कि चलने की और दौड़ने की एक्सरसाइज - से बहुत फर्क होता है - प्रेशर भी कम होता है और स्ट्रेस और आँखों पर स्ट्रेस भी कम होता है।
ग्लॉकोम वाले लोगों को 20-30 या अधिक किलो के किस्म की वेट-लिफ्टिंग नहीं करनी चाहिए।
खाने पीने में हरी सब्जियां खाईए, गाजर खाईए, पपीता खाईए, ऐसी चीज आंखों के लिए बहुत ही अच्छी होती हैं। एक और चीज, कई लोग आजकल कहते हैं कि सुबह उठकर 1 लीटर पानी पीजिए, बहुत अच्छा है - यह शायद आपके लिए शरीर के लिए अच्छा हो पर ग्लूकोमा वालों के लिए ये प्रतिक्रिया अच्छी नहीं है। जितना पानी पीना है जरूर पीजिए, पर एक टाइम पर एक ग्लास ही पियें। और मल्टीविटामिन काफी अच्छी हेल्प करते हैं, तो कोई ना कोई मल्टीविटामिन ले लीजिए, खास तौर पर बी विटामिन अच्छे होते हैं।
योग बहुत अच्छा है पर शीर्षासन न करें। और एक स्पष्टीकरण - कुछ डॉक्टर कहते हैं कि कपालभाति मत कीजिए, हाँ उस से कुछ प्रेशर जरूर होता है पर आँख पर इतना असर दिखाया नहीं गया है। योग में कोई प्रॉब्लेम नहीं है, बस ज्यादा लंबे समय तक न करें।

डॉ. रमनजीत के ग्लूकोमा पर कुछ अंतिम टिप्पणी

आजकल के माहौल में अगर आपको ग्लूकोमा है तो हताश होने की कोई जरूरत नहीं है। बहुत दवाइयां हैं - कई आपको सूट करेंगे, कई से एलर्जी होगी और अगर आप बिल्कुल टाइम से डालेंगे, पूरे जिंदगी बीच-बीच में चेक-अप के लिए आएंगे तो 99% लोगों में ग्लूकोमा आगे नहीं बढ़ता है। बढ़ता तब है जब लोग दवाइयां खरीद नहीं सकते या डाल नहीं सकते या चेकअप के लिए नहीं आ सकते। इसलिए ग्लूकोमा की स्थिति में आज के दिन आपको कोई चिंता नहीं होनी चाहिए। अपनी तरफ से अपना काम करें, डॉक्टर से मिलते रहिए, आपको कोई तकलीफ नहीं आएगी।

जिनके ग्लूकोमा का बहुत देर से पता चलता है, उन्हें भी हताश होने की जरूर नहीं है क्योंकि सरकार की तरफ से बहुत योजनाएं हैं - अगर आपको किसी स्पेशल चश्मे की जरूरत पड़े, टेलिस्कोप की जरूरत पड़े, लैपटॉप की जरूरत पड़े तो उसके लिए आपको पैसे दिए जाते हैं। हर सरकारी नौकरी में दो या चार % का आरक्षण है, स्कूल कॉलेज में स्कॉलरशिप है। और ऐसे संस्थान भी हैं जो आपकी मदद के लिए आगे खड़े हुए हैं और आप उनसे सहायता लीजिए और ये जान लीजिए कि जीवन आपका अच्छा चलेगा। जल्दी पकड़ें तो बहुत बढ़िया है, आगे देर से पकड़ें तब भी हताश होने की कोई बात नहीं।

 

Check out another discussion on Glaucoma in English here: Living Smarter With Glaucoma
 

 
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