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Submitted by PatientsEngage on 7 March 2022

एपिलेप्सी के 23 साल बाद यशोदा वाकणकर को न्यूरोसर्जरी द्वारा सीज़र से मुक्ति मिली। वे एक दशक से अधिक समय से एपिलेप्सी वाले व्यक्तियों के लिए सफलतापूर्वक एक सहायता समूह (सपोर्ट ग्रुप) और विवाह ब्यूरो चला रही हैं।

मुझे बचपन से एपिलेप्सी है। मैं 7 साल की थी जब मुझे पहला एपिलेप्सी का सीज़र हुआ। मैं दिन भर बेहोश रही। बाद में मुझे लेफ्ट टेम्पोरल लोब एपिलेप्सी का निदान मिला। पहले तो मुझे महीने में 2-3 सीज़र होते थे, लेकिन मेरे सीज़र दिन-ब-दिन बढ़ते गए और मुझे महीने में 5-10 तक सीज़र होने लगे।

Read in English: I am absolutely seizure free now

माता-पिता से पूरा समर्थन मिला

मेरे लिए हर लम्हा चिंता का लम्हा होता था। मुझे नहीं पता होता था कि कब मुझे सीज़र होगा और मैं चेतना खो दूंगी। इसके अलावा, मेरा जीवन प्रतिबंधों से भरा था। न तैरना, न ड्राइविंग, न दौड़ना। लेकिन मेरे माता-पिता दोनों ने शुरू से ही बहुत समर्थन किया और वे बहुत सकारात्मक थे। उन्होंने कभी भी मुझे बीमारी से पीड़ित बच्चे के रूप में नहीं देखा और मेरे साथ अलग व्यवहार नहीं किया या । उन्होंने मेरी बहन और मुझे एक ही तरह से पाला, लेकिन इस बीमारी के कारण मैं किसी भी खेल-कूद और बाहरी गतिविधियों में भाग नहीं ले सकी। इसलिए मेरे माता-पिता ने मुझे ऐसी हॉबी के लिए प्रोत्साहित किया जो मैं घर पर कर सकती थी। उन्होंने मुझे भारतीय शास्त्रीय संगीत की क्लास में डाला, और ड्राइंग और कई अन्य हॉबी शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया। मेरे लिए शास्त्रीय संगीत मैडिटेशन जैसा बन गया, और यह अब भी जारी है। शुरू में ड्राइंग मेरा शौक था, लेकिन बाद में यह मेरा पेशा बन गया। मैं कमर्शियल आर्टिस्ट बन गयी।

मेरी माँ, डॉ. अनीता अवचत, बचपन से ही मेरी गुरु और परामर्शदाता थीं। वे हर काम उत्तम रीति से करती थीं,    वे एक पूर्णतावादी थीं। उसने मुझे सिखाया कि समय पर दवा कैसे लेनी है, सीज़र के बारे में नोट्स कैसे रखने हैं, इत्यादि। उनकी राय थी कि 'गोलियाँ हमारी मित्र हैं' और हमें उन्हें खुशी-खुशी स्वीकार करना होगा, और हमें दवाएँ लेते समय कहना होगा कि 'मैं इन दवाओं से ठीक हो जाऊंगी!' उन्होंने मुझे सिखाया कि कैसे अपनी बीमारी को स्वीकार करूं और एपिलेप्सी के साथ सकारात्मक रूप से कैसे जियूं। एपिलेप्सी एक शारीरिक बीमारी ही नहीं है, यह आपकी मानसिक शक्ति पर भी निर्भर करती है। इसे साइकोसोमेटिक (मनोदैहिक) भी कहा जाता है। मैडिटेशन (ध्यान) ने मुझे समय-समय पर इस बीमारी का मुकाबला करने में मदद दी।

मेरी माँ को 1989 में कैंसर हुआ। लेकिन वे बिल्कुल भी नर्वस या उदास नहीं थीं। कैंसर होने पर भी अस्पताल में भर्ती होने से पहले वाले दिन तक वे कड़ी मेहनत कर रही थीं। वे मेरी प्रेरणा थीं, खासकर जिस तरह से उन्होंने अपनी बीमारी को संभाला।

मेरे पति पराग

मेरे पति पराग भी मेरे माता-पिता की तरह ही बहुत सकारात्मक सोच रखते हैं। मेरी शादी मेरी एपिलेप्सी के बावजूद हुई। हमारा विवाह एक “लव मैरिज (प्रेम विवाह)” था; बहुत से लोग इस बात से आश्चर्यचकित होते हैं कि एपिलेप्सी होने के बावजूद मेरी शादी कैसे हुई! मेरा मानना है कि आपका व्यक्तित्व और एपिलेप्सी के प्रति आपका नजरिया आपको समाज में खुद को पेश करने में मदद करता है। और इससे मुझे बहुत मदद मिली! पराग मेरे साथ मजबूती से खड़े रहे और उन्होंने मुझे एपिलेप्सी का सामना करने, और इस विकार को पीछे छोड़ कर जीने के लिए प्रोत्साहित किया। हमारी शादी के बाद एपिलेप्सी के बारे में उन्होंने अधिक सीखना शुरू कर दिया। उसने इस पर पढ़ना शुरू किया, इन्टरनेट पर सर्फ किया और मुझे एपिलेप्सी के बारे में जानकारी दी। वे विपश्यना में भी मेरा साथ देते। पर मेरे सीज़र दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे थे। फिर एक दिन मेरे न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. प्रदीप दीवाते ने हमें एपिलेप्सी की संभावित सर्जरी के बारे में बताया।

उस समय, हम डॉक्टर की सलाह पर अमल करने में असमर्थ थे क्योंकि मुझे अपने पति की नौकरी के कारण अचानक बेल्जियम जाना पड़ा। उस डेढ़ साल के प्रवास के दौरान, मेरे सीज़र बहुत अनिश्चित तरह से उठने लगे और अंत में वही भयानक घटना हुई जिस का डर था। खाना बनाते समय मुझे अटैक आया और मेरे हाथ में थर्ड डिग्री बर्न हो गए। तब आखिरकार हमने एपिलेप्सी की सर्जरी का चांस लेने का फैसला किया। हम भारत आए, हमने श्री चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट, त्रिवेंद्रम में अपॉइंटमेंट लिया। श्री चित्रा में एक सप्ताह  रहने, एक वीडियो ईईजी, प्रारंभिक जांच और निदान के बाद के बाद, डॉ राधाकृष्णन ने हमें बताया कि मैं सर्जरी के लिए एक अच्छी योग्य उम्मीदवार थी जिसे सर्जरी से लाभ होने की संभावना थी। यह हमारे लिए आशा की किरण थी। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण निर्णय था पर हम ऐसे मोड़ पर पहुँच चुके थे जिसमें सर्जरी के सिर्फ फायदे नज़र आ रहे थे, नुकसान नहीं।

सर्जरी के बाद सीज़र से मुक्त

2 जुलाई, 2003 को मेरा ऑपरेशन किया गया (श्री चित्रा में मेरी सर्जरी एपिलेप्सी की 495वीं सर्जरी थी!) ऑपरेशन करीब 8 घंटे तक चला। लंबे इंतजार के बाद, डॉक्टरों ने पराग को बताया कि ऑपरेशन सफल रहा है, लेकिन चिंता तुरंत दूर नहीं हुई, क्योंकि हम 23 साल से एपिलेप्सी के साथ जी चुके थे। श्री चित्रा के सभी डॉक्टर और नर्स की टीम बहुत ही समर्पित है और बहुत अच्छी तरह देखभाल करती है। ऑपरेशन के बाद मैंने खुद को ओरिगेमी में व्यस्त रखा, और दर्द को नजरअंदाज करने के लिए पढ़ती थी।. मेरी रिकवरी बहुत तेज थी, और मुझे 7 दिनों के बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। 3 महीने के बाद श्री चित्रा में पहली समीक्षा में मेरे मस्तिष्क में एपिलेप्सी गतिविधि के कोई लक्षण नहीं दिखे। यह हमारे लिए बहुत खुशी की बात थी, और विश्वास कर पाना बहुत मुश्किल था।

पर मैं अभी भी खुद को "एपिलेप्सी वाली" मानती हूं, भले ही मेरे एपिलेप्सी के सीज़र पिछले 16 वर्षों से नियंत्रित रहे हैं। यह सच है कि हमारा अतीत हमें कभी नहीं छोड़ता है, और हमें अपने विकार या बीमारी को बहुत सकारात्मक रूप से देखना होगा। एपिलेप्सी ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है। एपिलेप्सी ने मुझे सकारात्मक रूप से जीना सिखाया है। जब भी मुझे सीज़र होते थे तो मैं यही कहती थी कि महीने के बाकी दिन मेरे हैं। और मैं अपने परिवार वालों से कहती थी  कि मैं उन बचे हुए दिनों को बेहतरीन तरीके से जीने की कोशिश करूंगी। और मैंने ऐसा ही किया!

मैं पूरी तरह से सीज़र से मुक्त हूं। मैं पूरी तरह से फिट हूं। मैं हर दिन कम से कम 10 किलोमीटर साइकिल चलाती हूं, या कभी-कभी मैं 10 किलोमीटर दौडती हूं। मैं हिमालय में ट्रेक के लिए जाती हूं। मैं एक सामान्य महिला की तरह सारे घर का काम करती हूं। मैं विपश्यना मैडिटेशन करती हूं, जिससे मुझे खुद को शांत रखने में मदद मिलती है।

अब मैं अपनी खुशी बांटना चाहती हूं। मैं हमेशा लोगों तक पहुंचना चाहती  था (यह संभवतः मुझे अपने माता-पिता से विरासत में मिला है), और इसलिए मैंने फैसला किया कि जो कुछ भी बीमारी और सफल सर्जरी ने मुझे सिखाया है और जिस तरह से मैंने इस पर जीत प्राप्त करी है, उसे जितना हो सके व्यापक रूप से अन्य एपिलेप्सी  वाले लोगों तक पहुंचाना चाहिए।

इस संकल्प ने एपिलेप्सी वाले लोगों और उनके परिवारों के लिए एक सपोर्ट ग्रुप (सहायता समूह) बनाने के विचार को जन्म दिया। मैंने पुणे में एपिलेप्सी वाले लोगों और उनके परिवारों और कई न्यूरोलॉजिस्ट से मिलना शुरू किया। मैंने उन्हें अपने ऑपरेशन के बारे में बताया और उनके साथ सहायता समूह आदि का विचार साझा किया। मुझे मुंबई में एक बहुत सक्रिय एपिलेप्सी सहायता समूह, "सम्मान" के बारे में पता चला। मैंने मुंबई में सहायता समूह में भाग लेना शुरू कर दिया। जब मैंने एपिलेप्सी वाले लोगों में आत्मविश्वास देखा, तो मुझे बहुत खुशी हुई! फिर भी समाज में अधिक जागरूकता लाने की जरूरत है। एपिलेप्सी वाले व्यक्ति सामान्य जीवन जी सकते हैं, बीमारी से जूझने के साथ-साथ वे खुशी से जी भी सकते हैं।

आजकल हम सभी विकारों के बारे में बहुत जागरूकता देखते हैं। पर मैं उस युग की बात कर रही हूँ, जो 40 साल पहले था! (दुर्भाग्य से, आज भी हमें एपिलेप्सी के बारे में बहुत सारी  गलतफहमियाँ हैं) उन दिनों इंटरनेट नहीं था। कार्यक्रम और सहायता समूह नहीं थे। और लोग "एपिलेप्सी" शब्द से वाकिफ नहीं थे! भारतीय स्थानीय भाषा में इसे "फिट, अकड़ी, मिर्गी, चक्कर या अपस्मार" कहा जाता था। लेकिन कई लोगों को इसकी जानकारी भी नहीं थी। एपिलेप्सी के बारे में कोई खुलकर बात नहीं करता था। उस माहौल में, मेरे माता-पिता ने मुझे एक सामान्य बच्चे की तरह पाला। उन्होंने मेरी एपिलेप्सी के बारे में खुलकर बात की। उन्होंने मुझे वह सब करने के लिए प्रोत्साहित किया जो एक सामान्य बच्चे को करना चाहिए। उन्होंने मेरा आत्मविश्वास नहीं खोने में मेरी मदद की। जब भी मुझे एपिलेप्सी का दौरा पड़ता था, इससे मुझे परिस्थितियों से निपटने में मदद मिली। मेरे माता-पिता की वजह से एपिलेप्सी के प्रति मेरा नजरिया बहुत सकारात्मक रहा।

मैंने सपोर्ट ग्रुप शुरू किया

2004 में, मेरी सर्जरी के तुरंत बाद, मैंने एक एनजीओ संवेदना फाउंडेशन एपिलेप्सी सपोर्ट ग्रुप  शुरू किया, ताकि मैं उन लोगों तक पहुंच पाऊँ जिन्हें मदद की ज़रूरत थी। मैं भाग्यशाली थी कि मुझे समर्थन देने वाले माता-पिता मिले, लेकिन भारत में अभी भी बहुत लोग एपिलेप्सी की वास्तविकता से अनजान हैं। अपने अनुभव के आधार पर मुझे लगता है कि जब आप किसी बीमारी या विकार से निपट रहे हैं तो मानव मनोविज्ञान और घर का माहौल बहुत महत्वपूर्ण होता है। मैंने समाज में एपिलेप्सी के बारे में बहुत सी गलतफहमियों और भ्रांतियों को देखा और इसलिए संवेदना फाउंडेशन का जन्म हुआ।

शुरू से ही बहुत सारे माता-पिता संवेदना फाउंडेशन के साथ स्वयंसेवक के रूप में जुड़े हैं। और यही हमारे एनजीओ की ताकत है। हम हर महीने एपिलेप्सी सपोर्ट ग्रुप की मीटिंग रखते हैं, और हर बुधवार को काउन्सलिंग सत्र होते हैं। हमने कुछ विशेष गतिविधियों का विस्तार करा है और कुछ नई गतिविधियाँ शुरू की हैं जैसे कि एपिलेप्सी विवाह ब्यूरो, और जरूरतमंद एपिलेप्सी वालों को दवाएं उपलब्ध कराना।

मुझसे अकसर पूछा जाता है कि मैंने संवेदना फाउंडेशन मैरिज ब्यूरो क्यूं शुरू किया। एपिलेप्सी काउन्सलिंग सेंटर चलाते समय हमारे पास कई ऐसे लोग आये जिनकी एपिलेप्सी नियंत्रित थी और वे शादी और रिश्तों के बारे में सवाल करते थे। माता-पिता अकसर इस दुविधा में रहते थे कि वे विवाह की व्यवस्था करते समय अपने बेटे या बेटी की एपिलेप्सी का खुलासा करें या नहीं! हमने 50 से अधिक ऐसे मामले भी देखे, जिनकी शादियाँ इसलिए टूट गईं क्योंकि उन्होंने शादी से पहले अपनी एपिलेप्सी को छिपाने की कोशिश की थी! हमने देखा कि ऐसे नार्मल लोग जिनकी एपिलेप्सी नियंत्रित है, वे अपने एपिलेप्सी के इतिहास के कारण अविवाहित रहते हैं! और इसलिए, 2008 में संवेदना फाउंडेशन का एपिलेप्सी विवाह मंडल शुरू हुआ।

विवाह और एपिलेप्सी की बेहतर समझ पाने के लिए, मैंने शोधों में भाग लिया है - दो राष्ट्रीय स्तर के शोध और एक दक्षिण एशियाई देशों में किया गया शोध। चौथा शोध मैंने अकेले किया है, राज्य स्तर पर। हमने इस विषय पर व्यापक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने का प्रयास किया है कि एपिलेप्सी वाले लोगों को शादी करने का अधिकार क्यूं है।

मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि अब तक हमने पुणे में 6 एपिलेप्सी वैवाहिक सम्मेलनों का आयोजन किया है, और 29 शादियों की व्यवस्था की है। हमें पूरे भारत से रिस्पांस मिलते हैं।

संचार फाउंडेशन की एक महत्वपूर्ण गतिविधि है, "एपिलेप्सी वाले जरूरतमंद लोगों के लिए दवा सहायता।" एपिलेप्सी की दवाएं लंबे समय तक लेनी पड़ती हैं, कभी-कभी जीवन भर। हमने पाया कि बहुत से कम आय वाले लोग एपिलेप्सी की दवा नहीं खरीद पाते हैं। या तो वे दवाएं शुरू नहीं करते हैं या वे दवाएं लेना बंद कर देते हैं। उपचार की जरूरत और वास्तव में उपचार मिल पाने के इस अंतर को पाटने के लिए, हमने जरूरतमंद लोगों को उनकी एपिलेप्सी की दवाओं के लिए मदद करना शुरू किया। हम डोनेशन के लिए अपील करते हैं, और सौभाग्य से हमें कंपनी के सीएसआर फंड से कुछ डोनेशन मिला है। वर्तमान में हम हर महीने 125 लोगों की मदद कर रहे हैं! हम न केवल उनकी एपिलेप्सी की दवाओं के लिए, बल्कि एमआरआई, ईईजी आदि जैसे परीक्षणों के लिए भी उनकी मदद करते हैं। जब उनका बच्चा दवाओं की मदद से बेहतर महसूस करने लगता है तो माता-पिता के चेहरे पर खुशी देखकर हमें वास्तव में अच्छा लगता है।

यह है पिछले 15 वर्षों की संवेदना फाउंडेशन की यात्रा। और यही मेरा बचपन से चल रहा सफर भी है। संवेदना का काम मुझे बहुत कुछ सिखा रहा है! जैसा कि मैंने पहले कहा है,  मैं भाग्यशाली थी कि मुझे बहुत अच्छे माता-पिता मिले, शुरू से ही मेरा बहुत अच्छा इलाज हुआ; हालाँकि, समाज में काम करते हुए  मैंने भारत में एपिलेप्सी की वास्तविकता भी सीखी। मैंने महसूस किया कि कैसे कुछ लोग "एपिलेप्सी के साथ जीने" के बजाय अभी भी "एपिलेप्सी से पीड़ित" हैं। मैंने सीखा कि हमें अभी भी भारत में बहुत व्यापक जागरूकता अभियान की जरूरत है!

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