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Submitted by PatientsEngage on 27 March 2021

दिलीप कुमार मेवाड़ा मल्टीपल मायलोमा नामक एक दुर्लभ कैंसर के कारण पूर्णतय पैरालिसिस से पीड़ित थे, पर उन्होंने डॉक्टरों और समर्थक परिवार वालों की अद्भुत टीम और अपनी दृढ़ संकल्प शक्ति के साथ अपनी बीमारी पर विजय प्राप्त की। हम आपके लिए उनके शब्दों में उनकी प्रेरक कहानी लेकर आए हैं।

48 साल की उम्र में, पूरी दुनिया मेरे पैरों के तले थी। मेरा एक सुंदर परिवार था, एक बहुत ही सफल आर्किटेक्चर और इंटीरियर डिजाइन का कारोबार था, और मेरे सामने एक ऐसा भविष्य था जो सब पहलुओं में और भी भव्य, और भी सुन्दर, और भी संपन्न होगा, ऐसा लग रहा था। मुझे लगा रहा था कि मैं अजेय हूं!

To Read In English Click Here: I Thought I Was Invincible

फिर, अपने लिए कुछ “डाउनटाइम” लेने का मैंने एक विरल निश्चय किया और मैं और मेरे परिवार वाले एक बहुत प्रतीक्षित छुट्टी के लिए न्यूजीलैंड गए। छुट्टी मस्ती से भरपूर थी, हमने अनेक दर्शनीय स्थल देखे, अनेक साहसिक खेलों (एडवेंचर स्पोर्ट्स) में भाग लिया। जिस दिन हम वापस आने वाले थे, उस से पहले दिन मैं जागा तो मैं अपने होटल के कमरे में अकेला था, हिलने में असमर्थ था और मेरी पीठ के निचले हिस्से में असहनीय दर्द हो रहा था। यहां तक कि बाथरूम जाने के लिए बिस्तर से उतरना भी अत्यंत मुश्किल था। किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जिस में हमेशा असीम ऊर्जा होती थी और जिस का स्वास्थ्य बिलकुल ठीक था, उसके लिए ऐसी स्थिति जिसमें शरीर के निचले भाग हिल ही नहीं रहा था - यह अकल्पनीय और बेहद डरावना था। मुझे यह भी एहसास ही नहीं हुआ कि अचानक मुझे पूर्ण पैराप्लेजिया हो गया है। वह दिनांक 3 जून, 2010 था और मेरी स्मृति में इस भयानक घटना के कारण वह तारीख जम गयी है।

मैं व्हील चेयर में भारत वापस आया और सीधे लीलावती अस्पताल पहुंचा, जहां अनेक परीक्षणों और एमआरआई के बाद मुझे निदान मिला - ट्यूमर के कारण डोर्सल स्पाइन (पश्च रीढ़ की हड्डी) में कॉर्ड संपीड़न के कारण पूर्ण पैराप्लेजिया। मेरे पास रीढ़ की सर्जरी के अलावा कोई विकल्प नहीं था क्योंकि डॉक्टरों की राय थी कि अगर मैं यह सर्जरी नहीं करवाऊंगा तो मैं चलने में सक्षम नहीं हो पाऊंगा और ज़िंदगी भर व्हीलचेयर तक सीमित रहूँगा। एक आपातकालीन आधार पर मेरी सर्जरी का गयी - इस में ट्यूमर को हटाने के लिए मेरी पीठ को खोला गया। मुझे सलाह दी गई थी कि बिस्तर पर सीधे लेटते हुए कम से कम 6 महीने तक पूरा आराम करूं और कुछ व्यायाम भी जारी रखूँ ताकि बाद में मैं फिर से चल सकूं।

मल्टीपल मायलोमा का निदान

जब बायोप्सी रिपोर्ट ने मल्टीपल मायलोमा के स्टेज III की पुष्टी की तो मुझे “कैंसर” है, यह सुनकर मुझे बहुत धक्का लगा - यह अस्थि मज्जा (बोन मैरो) में प्लाज्मा कोशिकाओं का एक कैंसर है, और रक्त विकार के दुर्लभतम रूपों में से एक है। मल्टीपल मायलोमा को लाइलाज समझा जाता है (यह पूरी तरह से ठीक नहीं हो सकता) लेकिन इसे उपचार योग्य माना जाता है। सर्जरी के बाद, उपचार की सूची में अगला कदम कीमोथेरेपी था जिसे तुरंत शुरू किया जाना था। हम सभी कीमो के दुष्प्रभावों की डरावनी कहानियां सुन चुके हैं - बाल झड़ना, उल्टी, भूख न लग्न और सामान्य जीवन से निपटने में दिक्कत।

न्यूजीलैंड में उस घातक दिन के बाद मैंने ऐसा महसूस किया कि मैं एक ऐसे धुंध से घिरा हूँ जिस में सब आवाजें डॉक्टरों, चिकित्सा संबंधी बातें, अस्पतालों की चहल पहल और मेरे इर्दगिर्द दबी आवाज़ में हो रही बातचीत थी। मैं एक ऐसे व्यक्ति था जो हमेशा कंट्रोल में रहता था- यह पहचान कर कि अब मैं अपने स्वास्थ्य और जिन्दगी संबंधी बातों पर नियंत्रण खो रहा हूँ, मैंने तय किया कि मैंने फिर से अपने जीवन की गाड़ी के ड्राइवर की सीट पर बैठूंगा। मैंने डॉक्टर से कीमो शुरू करने में 4 दिन की देरी करने को कहा। मैंने उनसे कहा कि मैं ठीक 4 दिन बाद वापस आऊंगा और उसके बाद वह सब कुछ करूंगा जो डॉक्टर कहेंगे - पर मुझे ये 4 दिन अपने लिए चाहिए थे। जब उन्होंने पुछा कि इन 4 दिनों में मेरा क्या करने का इरादा है, मैंने उन्हें बताया - “मैं अपने कंधों से बोझ उतारने जा रहा हूं और अपने घर और व्यक्तिगत मामलों को ठीक से नियोजित करूंगा, और फिर उसके बाद वापस उनके कमरे में हाज़िर होऊंगा। ” डॉक्टर के चेहरे के हाव-भाव से यह स्पष्ट था कि उन्हें कुछ अंदाजा नहीं था कि मैं क्या बात कर रहा था। जिस सर्जरी से मैं अभी-अभी गुज़रा था, उस तरह की सर्जरी होने के बाद मरीज़ लगभग 6 महीने तक बिस्तर पर रहते थे!

कीमोथेरेपी से पहले एक चार महत्वपूर्ण दिन

मैं सूचियों के इस्तेमाल पर बहुत विश्वास करता हूँ। जब मैं सूची बनाता हूं तो मेरे विचार स्पष्ट हो जाते हैं और फिर मैं सूची के अनुसार काम कर पाता हूँ और एक-एक करके जब सूची में आइटम पूरे होने के लिए निशान लगाता हूँ तो मुझे लगता है कि मैं कारगर रूप से काम कर रहा हूँ। इसलिए, अपने जीवन पर फिर से नियंत्रण कायम करने के लिए मैंने एक सूची बनाई। सूची बनाते समय मेरी मुख्य दिशा थी - सकारात्मक सोच, अगले कुछ वर्षों के लिए लक्ष्य, इन लक्ष्यों को प्राप्त करने का रोडमैप और अंत में, मेरे परिवार की वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जरूरी सभी कागजी कार्रवाई। अगले 4 दिन बहुत व्यस्त थे - मेरा उठ कर चल-फिर पाना, वकीलों से आवश्यक पॉवर ऑफ़ अटॉर्नी (पीओए) तैयार करवाकर उनपर विधिवत हस्ताक्षर करना, और अपने युवा बेटे को समझाना कि मेरी हालात बिगड़ने की स्थिति में उसे क्या-क्या करने की आवश्यकता होगी। मैंने अपने परिवार वालों के साथ भी बातचीत की, और वे भविष्य का सामना कर पायें, इस के लिए उनकी हिम्मत बांधी। उनका मुझ पर विश्वास देख कर मेरी हिम्मत और मेरा आत्मविश्वास भी बढ़ा। उनके लिए, मैं पहले भी सुपरमैन था, और इस स्थिति के बावजूद भी सुपरमैन था!

मैं हार मानकर, बिना अपनी और से कोशिश किये ऐसे ही मर नहीं सकता, मैं कायर नहीं हूं

मल्टीपल मायलोमा का निदान होने के बाद, मुखे लगा कि मैं पूरी तरह से तबाह हो गया हूँ, और मेरा जीवन एक आश्चर्यजनक मोड़ लेकर मुझे मौत के पास ले आया था। मेरे अन्दर यह ख़याल आया - "मैं मरना चाहता हूँ" पर फिर उसके बाद यह विचार उठा - "मैं ऐसे हार मानकर मर नहीं सकता, मैं कायर नहीं हूँ"। फिर मैंने सोचा - "मैं पैराप्लेजिक नहीं बनना चाहता और हमेशा के लिए व्हीलचेयर पर नहीं रहना चाहता” और इस श्रृंखला में अंत में यह संकल्प से पूर्ण विचार आया - “उठो और बीमारी का अंत करो” । ठीक होने का सिलसिला शुरू करने के लिए मैंने पहले कुछ वजन कंधों पर उठाना शुरू किया, फिर धीरे-धीरे चलना-फिरना शुरू किया। मेरे निरंतर अभ्यास से, और इस विश्वास से कि मैं पूरी तरह ठीक हो पाऊंगा, मैंने पुनः चलना शुरू किया। हालांकि कुछ-कुछ चलना तो मैं पहले कुछ दिनों में ही कर पाया, पर मुझे सामान्य रूप से चल पाने में लगभग 28 लंबे महीने लगे।.

डॉक्टर से चार दिन की बात करने के बाद, 5 वें दिन, मैं धीरे-धीरे डॉक्टर के कार्यालय में चल कर पहुंचा - इस से मुझे बहुत संतोष हुआ और डॉक्टर को बहुत आश्चर्य हुआ। डॉक्टर ने यह पहचाना कि मैं इस बीमारी का सामना करने के लिए और इस के बावजूद न सिर्फ जीवित रहने के लिए बल्कि एक भरपूर खुशहाल जीवन जीने के लिए मैं दृढ़संकल्प था। मेरी इच्छा को मान्यता देते हुए डॉक्टर ने इंजेक्शन द्वारा कीमोथेरेपी उपचार की बजाए मौखिक दवा देने का फैंसला किया। मौखिक कीमो घर पर हो सकता है और इसमें व्यक्ति अपने जीवन को सामान्य रूप से जी सकता है। इस मौखिक कीमो के प्रति मेरे शरीर की प्रतिक्रिया सकारात्मक थी, और इस के 3 राउंड के बाद जब सब रक्त परीक्षणों की पूरी श्रृंखला की गयी तो हमने देखा कि एक अद्भुत चमत्कार सा हुआ था - मेरे कैंसर में बहुत ही अच्छी “पार्शियल रेमिशन” (घटाव) नजर आ रही थी।

मेरा मानना है कि हमारे मन का हमारे शरीर पर हुकूमत है

मैं वास्तव में मानता हूं कि शरीर मन का एक पात्र है। शरीर को मन के द्वारा निर्देशित किया जा सकता है और शरीर में क्या होता है, क्या नहीं, यह मन निर्धारित कर सकता है । यदि मन मजबूत है और सही दिशा इंगित करता है, तो शरीर उसी हिसाब से बदलेगा। मेरे परिवार में कैंसर का इतिहास है - मेरे परिवार के अधिकांश लोगों (जिसमें मेरे पिताजी और अन्य अत्यंत करीबी सदस्य शामिल हैं) की मौत कैंसर के किसी न किसी रूप से हुई है। इसलिए शुरू में अनायास ही, स्वाभाविक रूप से मेरा मन कैंसर के निदान मिलने पर मानो एक अंधेरी गुफा में दुबक गया, और इस विचार से घिर गया कि यह निदान मेरे अंत के पास आने का संकेत है। लेकिन, मैं जानता था कि मुझे यह याद रखना चाहिए कि मैं एक ऐसा व्यक्ति हूँ जिसने कभी हार नहीं मानी है - मेरी शुरुआत बहुत विनम्र थी पर मैंने अपनी इच्छा शक्ति से अपने जीवन को सफल बनाया है!! मैंने इस बीमारी को मिटाने के लिए भी उसी संकल्प और हिम्मत का इस्तेमाल किया। मैंने तय किया कि इस बीमारी के कारण मेरे जीवन के प्रति मेरा रवैया नहीं बदलेगा; बल्कि, इस रोग को पराजित करने के इस सफ़र से मेरा जीवन अधिक समृद्ध होगा और मैं ज़िन्दगी में ऐसे नए पहलुओं को शामिल कर पाऊंगा जिनके बारे में शायद मैं पहले सोचता भी नहीं था ।

स्टेम सेल ट्रांसप्लांट

डॉक्टरों ने शुरू में मेरे उपचार में रेडिएशन थेरेपी (विकिरण चिकित्सा) निर्धारित की थी। इस प्लान को उन्होंने मेरी इच्छा शक्ति के कारण बदल दिया था। जब मेरे कैंसर में बहुत अच्छी पार्शियल रेमिशन नजर आई, तो उन्होंने ऑटोलॉगस बोन मैरो / स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की सलाह दी। इस चरण पर मुझे लगा कि मुझे यह ट्रांसप्लांट (प्रत्यारोपण) अमेरिका या ब्रिटेन में करवाना चाहिए, जो महंगा होगा। मेरे व्यवसाय में गिरावट हुई थी, दोनों बेटे कॉलेज में पढ़ रहे थे, इलाज का खर्च और बाकी नियमित खर्च को बनाए रखना मुश्किल हो रहा था। मैंने अपना ऑफिस और घर को बेचने का फैसला किया।

कई राय और परामर्श को प्राप्त करने के बाद मैंने अपना प्रत्यारोपण अपेक्षाकृत कम ज्ञात प्रिंस ऐली खान अस्पताल, मुंबई में करने का फैसला किया। यह एक कठिन उपचार है जिसमें कई हफ्तों के लिए स्टेराइल (जीवाणुरहित) वातावरण में बंद रहना शामिल है क्योंकि इस अवस्था में रोगी की प्रतिरक्षक क्षमता लगभग नहीं के बराबर होती है। मैंने इस समय का उपयोग अपने मन को मजबूत बनाने के लिए किया ताकि मैं यह तय कर पाऊँ कि मैं मौत के हाथों से छीने गए इस नए जीवन के दौर में क्या करूंगा। मैं चाहता था कि मैं इस बीमारी से पीड़ित दूसरों की मदद करूं और मैंने फैसला किया कि मैं उनके जीवन में कुछ सुधार लाऊंगा। फिर एक दिन, इसके लिए अवसर खुद-ब-खुद प्रस्तुत हुआ जब मेरे डॉक्टर ने मुझे फोन किया और कहा कि उनका एक और मरीज था जो मेरी जैसी स्थिति में था, और जो मानसिक रूप से बहुत परेशान था - डॉक्टर जानना चाहते थे कि क्या मैं उसके साथ अपना अनुभव साझा करने को तैयार था। मैंने तुरंत हामी दे दी।

मायलोमा फ्रेंड्स चैरिटेबल ट्रस्ट

तब मुझे यह थोड़े ही पता था कि, एक मरीज के साथ यह पहली कॉल से मेरे जीवन के एक ऐसे पहलू की शुरुआत होगी जो मुझे असीम संतुष्टि देती है और मुझे रोज जीने का मकसद देती है। इस से प्रेरित होकर मैंने अपने कुछ डॉक्टर, दोस्तों और कैंसर उत्तरजीवियों (सरवाईवर) के साथ एक गैर-लाभकारी संस्था पंजीकृत की, मायलोमा फ्रेंड्स चैरिटेबल ट्रस्ट। इस संगठन का नारा है “कैंसर, सो व्हाट, ओवरकम इट” (कैंसर है, तो क्या हुआ, से पराजित करो)? इसका उद्देश्य है कैंसर से E.A.S.E (ईएएसई) के साथ सामना करें।

E (Educate)=लोगों को मल्टीप्ल मायलोमा के बारे में शिक्षित करना
A (Awareness) = जागरूकता। मायलोमा के बारे में जागरूकता फैलाना
S (Support)= समर्थन। परामर्श द्वारा सहायता, जानकारी प्रदान करना
E (evaluation)= विशेषज्ञ डॉक्टरों द्वारा मूल्यांकन।

हम इसे एक चैरिटी के रूप में पंजीकृत करने में सक्षम रहे हैं ताकि हमारे द्वारा एकत्र की गयी सभी राशि का उपयोग रोगियों की मदद करने के लिए किया जा सके और यह भी सुनिश्चित किया जा सके कि लाभार्थियों को टैक्स ब्रेक मिल पायेगा। हम सोशल मीडिया की शक्ति का उपयोग करके अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं और उन्हें हमारे इस प्रयत्न में किसी भी तरह से शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करने की भी कोशिश कर रहे हैं ताकि हम अपने प्रभाव को बढ़ा सकें।

आज, मैं पूरे देश और बाहर भी दर्जनों रोगियों से बात करता हूं और उन्हें सलाह देता हूं। इसके लिए मैं कुछ लोगों से फोन पर बात करता हूं और कुछ लोगों से मिलता भी हूँ। वे अपने डर और चिंताओं के बारे में बात करते हैं और मैं उनकी बातें सुनता हूं और अपने अनुभव साझा करता हूं। मैं उन्हें साहस और आत्मविश्वास प्रदान करता हूं और यथासंभव उनकी मदद करने की कोशिश करता हूं। अगर उनमें से कोई भी अपने इलाज का सामना करते समय बेहतर मनोस्थिति में हो पायें और यदि वे आगे के अपने जीवन के प्रति कुछ उत्साह महसूस कर पायें तो मैं समझता हूँ कि मैं सफल रहा हूं।

दूसरों को प्रेरित करना

मेरा सफ़र जारी है। मुझे कैंसर के निदान मिले अब लगभग 6 साल हो गए हैं। तब से मैंने अपने जीने के तरीके में कुछ बहुत बड़े बदलाव किए हैं। अपने दिमाग को मजबूत रखने के लिए मैं निरंतर और सचेत रूप से काम करता हूं और जीवन में उन चीजों पर ध्यान केंद्रित करता हूं जो मुझे महत्वपूर्ण लगती हैं। मैं गाता हूं, ड्राइव करता हूं, योग करता हूं और खुश रहता हूं। मैं लोगों के साथ समय बिताता हूँ और जितना हो सके तनाव को दूर रखता हूं।

भविष्य के लिए मेरा सपना है कैंसर रोगियों के इलाज के लिए एक चैरिटेबल अस्पताल शुरू करना। यह अभी भी एक दूर की बात है, लेकिन मैं इस मंच का उपयोग उन लोगों तक पहुंचने के लिए कर रहा हूं जिनके लक्ष्य इसके समान हो सकते हैं और जिनके साथ मैं शायद मिलकर काम कर सकूं ताकि हम इस सपने को साकार कर सकें।

दिलीप मेवाड़ा और उनकी पत्नी नीलू का साक्षात्कार यहाँ सुनें

 

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