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Submitted by Anal Shah on 27 June 2022

अनल शाह का बेटा 15 साल का था  जब उसे अचानक बुखार हो गया और निदान और उपचार पाने के लिए 20 दिनों के संघर्ष के बावजूद, 27 जून 2017 को, मल्टी-ऑर्गन फेल्योर से उसकी मृत्यु हो गई। अनल शाह अभी भी इस शोक से जूझ रही है और उन्होंने यह दिल दहला देने वाला नोट बेटे की मृत्यु के बाद लिखा है।

उन सभी लोगों के लिए जो लगातार जिद्द करते हैं कि मुझे अपने बच्चे की मृत्यु के शोक से निकल कर पुनः सामान्य जीवन जीना शुरू कर देना चाहिए!

ऐसा लगता है कि मेरे चेहरे को देखने से आपको अपनी संभावित मृत्यु का ख़याल आ जाता है। क्या होगा अगर आपके बच्चे या आपके परिवार के सदस्य के साथ भी कुछ ऐसा ही हो? क्या होगा अगर आपको मेरे जैसे शोक का सामना करना पड़े? ऐसे विचार से शायद आप कांप रहे हों। मेरी आंसू भरी आँखों को देखकर आप अन्दर ही अन्दर डर जाते हैं और इसलिए आप चाहते हैं कि मैं वापस वैसी हो जाऊं जैसे बेटे को खोने से पहले थी ताकी आप ऐसे ख्यालों को नजरंदाज कर, राहत की सांस ले पायें। आप मुझे अपने पहले वाले जीवंत रूप में देखना चाहते हैं ताकि आपको मेरे बेटे की मौत की याद न आये - लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अपने बच्चे की मौत के बाद जीवन कितना दर्दनाक होता होगा? विस्तार में बताती हूँ…

बात-बात पर उसकी याद आती है

जब मैं किराने की दुकान में जाती हूं (शायद सप्ताह में 3 से 4 बार, किसी न किसी  चीज़ के लिए), तो बेटे की पसंदीदा चीजें मानो हर शेल्फ से चीख-चीख कर मुझे बुला रही हैं। वे मुझे चिढ़ा रही हैं, "पहले तो तुम मुझे खरीदती थी, अब नहीं खरीदोगी?"। या वे उदास चेहरों से मुझे ताक रही हैं, जैसे कि वे मेरे घर आने की प्रतीक्षा कर रही हैं। मुझे आंसू आ जाते हैं। और ऑनलाइन शॉपिंग इस से कोई बेहतर नहीं है। आपके पुराने ऑर्डर से संबंधित आइटम बार-बार पॉप-अप होते रहते हैं… वे हुडी, टीशर्ट, जूते, फ़ुटबॉल… वे वस्तुएं जो मैंने बेटे के लिए ली थीं।

जब आप किसी ऐसी चीज़ का विज्ञापन देखते हैं जिसे बेटा टेलीविज़न पर पसंद करता है, तो आप फिर उसी दलदल में गिरने लगते हैं। विज्ञापन ख़त्म होने के तुरंत बाद उसके बारे में सोचना बंद करना बहुत मुश्किल हो जाता है – आपका मन उस विज्ञापन को बार-बार दोहराता है – इस प्रवृत्ति को बंद करने के लिए बहुत ही अधिक मानसिक प्रयत्न की आवश्यकता होती है!

अब आप अपने जीवित बच्चे को कुछ ज्यादा ही देते रहना चाहते हैं। पहले तो आप इतने उदार नहीं थे। अब जब आप एक बच्चे को खो चुके हैं, तो आप अपने दूसरे बच्चे को इतनी ढील देने लगते हैं कि आपको इस अत्यधिक ढील देने की वजह से अपराध-बोध होने लगता है। आप कुछ भी करें, आपको लगता है आप ठीक नहीं कर रहे। यदि आप अपने जीवित बच्चे को अनुशासित करने की कोशिश करें, तो आप सोचते हैं कि आप माता-पिता होने के फ़र्ज़ को ठीक से नहीं निभा रहे हैं – आप उस बच्चे का अपने भाई या बहन को खोने के शोक को नहीं समझ रहे हैं, उसके दर्द का आदर नहीं कर रहे हैं। पर ज्यादा ढील देने से या अधिक लाड़-प्यार से और उदारता दिखाने से यह लगता है कि जो बच्चा आपने खोया था, आपने उसके साथ तो यह सब नहीं किया था – और आप दोषी महसूस करते हैं। और ऐसा रोज कम से कम एक बार होता है!

आपके खुशी के दिनों - जैसे सालगिरह, जन्मदिन आदि – में भी दर्द का अंश होता है। एक तरफ आप कृतज्ञ महसूस करना चाहते हैं कि ऐसा बहुत कुछ है जो आपने नहीं खोया है, लेकिन दूसरी तरफ आप उस सब के लिए दुखी भी होते हैं जो खो चुके हैं। ऐसे “खुशी” के दिन का इंतज़ार बहुत दर्दनाक होता है – उस दिन के दर्द से ज्यादा दर्दनाक...

त्यौहार (जो भारत में आये महीने होते रहते हैं) आपकी पीड़ा को बढ़ाते हैं। त्योहारों का उद्देश्य होता है आपको अपनी सांसारिक दिनचर्या से कुछ राहत देना, लेकिन किसी शोक संतप्त माता-पिता के लिए तो सलाह यही है कि एक ऐसी नियमित दिनचर्या अपनाएं जिस से दिन में क्या होगा क्या नहीं, यह तय रहे और एक सुरक्षा की भावना बनी रहे। पर बार-बार हो रहे त्योहारों, जन्मदिनों, वर्षगाँठों आदि के कारण आप पहले की सुख भरी यादों की और खिंच जाते हैं और बच्चे को खोने का गम फिर उभर आता है!

बच्चे को खोने की पहली वर्षगांठ

आप इस दलदल से बाहर निकलने की कोशिश कर ही रहे हैं जब बच्चे की मृत्यु की सालगिरह आती है। वह दिन आपको याद दिलाता है कि आपका एक हिस्सा स्वर्ग में है, कि आपका बच्चा इतना सुंदर और दुलारा था कि भगवान उससे अधिक प्यार करते थे और उन्होंने उसे उठा लिया, कि आप अपने पिछले जन्मों के पुराने कर्मों का भुगतान कर रहे हैं, कि आपको उस दिन से अपने जीवन को परिभाषित नहीं करना चाहिए। आपको एक सम्पूर्ण जीवन जीना होगा, खासकर अपने जीवित बच्चे और जीवनसाथी की खातिर। आखिर ऐसे भी कई लोग हैं जो अपने बच्चे खो देते हैं और उसके बावजूद आपसे बेहतर जीवन जीना सीख पाते हैं।

आप भी अपने माता-पिता, दादा-दादी को खो चुके हैं और उसका दर्द महसूस कर चुके हैं।

आपका मायूस लटका हुआ चेहरा देखकर आपके आसपास के लोग भी अधिक उदास हो सकते हैं। यदि आप शोक में डूबे रहे तो आपके बच्चे की आत्मा पीड़ित होगी। और सबसे बड़ी बात - "हम आपके बच्चे के गुज़र जाने पर भी उतना ही दर्द महसूस करते हैं जितना आप"!!!

मुझे पता है कि ये सभी बातें आपके दिल में खरी उतर सकती हैं  लेकिन मुझे अपने जीवन में आजकल सब अजीब और बेमतलब लगता है। यदि आपके बच्चे ने कहा है कि वह शाम 4 बजे घर पहुंच जाएगा और रात 9 बजे तक आपका उससे कोई संपर्क नहीं है, तो कल्पना कीजिए कि आप उन 5 घंटों के लिए कितनी बेचैनी झेलेंगे! हम उस व्यथा को रोजाना 24/7 झेलते  हैं।

क्या होगा यदि आपका बच्चा स्कूल पिकनिक पर गया है और आप सुनते हैं कि एक स्कूल बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई है। आप नहीं जानते कि वह आपके बच्चे की बस है या नहीं, लेकिन आपका दिल तब तक दहलता है जब तक आप अपने बच्चे को सुरक्षित और स्वस्थ नहीं पाते। हम जानते हैं कि हमारा बच्चा हमेशा के लिए चला गया है, हम जानते हैं कि वह हमसे फिर से बात नहीं करेगा, हम उसे कभी बड़ा होते, मुसकुराते या फलते-फूलते नहीं देख पाएंगे, हम कुछ नहीं जानते कि वह कहाँ है, और फिर भी लोग हमसे उम्मीद रखते हैं कि हम पूर्ण सामान्य जीवन जी पायेंगे।

होल्डिंग स्पेस

हम जितना हो सके ठीक से जी पाने की कोशिश कर रहे हैं। हम ईश्वर से और अपनी थकी हुई आत्माओं से हर संभव शक्ति प्राप्त करने की कोशिश रहे हैं। अपने बच्चे को खोना पूर्ण रूप से प्रकृति के नियमों के विरुद्ध है। हमारे बच्चों को हमारा अंतिम संस्कार करना होता है न कि हमें उनका। कृपया यह मत कहिये कि आप हमारी परिस्थिति और भावनाएं समझते हैं। आप केवल कल्पना कर सकते हैं, इसे समझ नहीं सकते। लेकिन हां आप हमारे ठीक हो पाने के लिए एक ऐसा सुरक्षित माहौल बना सकते हैं, एक होल्डिंग स्पेस, जिसमें हमें आपके स्नेह का आभास हो, और हम सहजता से, बिना किसी कमेंट या आलोचना सुने कुछ समय रह सकें। कई बार लोग सोचते हैं कि उन्हें दूसरों के लिए सही समाधान है पर इस से वे लोग और भी परेशान हो जाते हैं, उन्हें उनकी समस्या और भी बड़ी लगने लगती है। इसलिए उच्च सलाह देने से पहले रुकें! यदि आप मृत बच्चे को स्वर्ग से वापस ला सकते हैं, तभी आप कह सकते हैं कि आपके पास वास्तव में सही समाधान है। यदि नहीं, तो बस चुपचाप साथ दें, सब्र दिखाएं - और यदि आप समझ नहीं पा रहे हैं कि हमसे बात कैसे करें, तो दूर रहें ... लेकिन कृपया समाधान न दें यदि आपने भी इस तरह के शोक का सामना न किया हो!

स्मृतियों का सैलाब

सामाजिक समारोहों, पार्टियों, विवाहों आदि में भाग लेना भी हमारे लिए बहुत मुश्किल है। निश्चित रूप से पुरानी यादों को वापस आने से कोई नहीं रोकता है। हम पहले ऐसे कार्यक्रमों में अपने बच्चे के साथ भाग लेते थे, उसके जन्मदिन की और अन्य पार्टियों की योजना बनाते थे, और वह इस तरह के अवसर का कैसे आनंद आता था, कौन से व्यंजन उसके पसंदीदा थे, वह ऐसे अवसर पर कौन से कपड़े पहनता, कैसे नखरे करता!

जब मैं व्हाट्सएप प्रोफाइल या फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया पर लोगों की पारिवारिक तस्वीरें देखती हूं, तो मेरे अन्दर यह चीख उठती है कि मेरा परिवार तो अधूरा है। जब मैं इन साइट पर उसके दोस्तों को देखती हूं – वे सब अब बड़े हो गए हैं, लम्बे-चौड़े हैं- तो फिर यह पीड़ा उठती है कि मेरा बेटा तो खो चुका है! उसका कद कभी नहीं बढ़ेगा, उसकी मूंछ-दाढ़ी कभी नहीं उगेगी। जब उनका जन्मदिन आता है, तो मुझे उसके उस आखिरी जन्मदिन की याद आती है जब वह हमारे साथ था।

बेटे को गुजरे अब 20 महीने हो गए हैं, लगभग 600 दिन, 8,64,000 मिनट! हाँ सामान्य लोगों को लगेगा कि उसे बहुत समय हो चुका है। लेकिन हमारे लिए उसका गुज़रना मानो अभी भी कल की ही बात है! समय बीता चुका है, यह कोई अर्थ नहीं रखता। बल्कि यह सिर्फ यह क्रूर याद दिलाता है कि पहले क्या था !!

मैं अब ठीक हूँ, पर बहुत बदल चुकी हूँ

मैं बिल्कुल ठीक हूं, पर मैं अब बहुत बदल चुकी हूं – इतना बदल चुकी हूं कि मैं खुद को पहचान नहीं सकती। मैं वास्तव में अब शांत महसूस करती हूँ, जो मेरे पास है उस के लिए धन्य महसूस करती हूँ, । मैं मानो अपना एक बेहतर संस्करण बन गई हूँ! कृपया यह मत सोचें कि मैं हमेशा दुखी रहती हूं। मैंने भगवान के साथ फिर से समन्वय कर लिया है, अपनी आत्मा की योजना, भाग्य, सब कुछ स्वीकार लिया है। मैं पहले से कहीं अधिक शांति में हूं। लेकिन यह दर्द अब भी मेरा पीछा नहीं छोड़ता। यह एक विरोधाभासी अस्तित्व है, जिस का वर्णन करना बहुत मुश्किल है!

लेकिन इस सब और इस से भी अधिक बहुत कुछ के बावजूद, हम हर दिन आगे बढ़ रहे हैं। हालाँकि जीने की हमारी गति आपकी गति से मेल नहीं खाती हो, लेकिन हम एक ही स्थान पर नहीं अटके हुए हैं। अगर आप ध्यान से देखें तो आप हमारी प्रगति को देख पायेंगे। रोज एक सेंटीमीटर ही सही, ऐसे चलते-चलते हम किसी दिन कई मील आगे बढ़ पायेंगे।

अनल बताती हैं कि उनका बेटा शहर के सबसे अच्छे अस्पताल में था, शहर के सबसे अच्छे डॉक्टर की देखरेख में। कई टेस्ट और प्रोसीजर के बावजूद उसे उचित निदान नहीं मिल सका और मल्टी-ऑर्गन फेल्योर के कारण उसकी मृत्यु हो गयी।

पढ़ें: बच्चे को खोने के 5 साल बाद लिखा गया अनल शाह का दूसरा लेख