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Submitted by PatientsEngage on 9 September 2022

हर पांच में से एक आत्महत्या किसी बुजुर्ग की होती है। समीक्षा सिवन लिखती हैं कि यह बहुत ही बड़ा चिंता का विषय है और इस के प्रति स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, नीति निर्माताओं, समुदायों और समाज के हिस्से के रूप में हम सभी का ध्यान आकर्षित करना आवश्यक है।

आत्महत्या और उस की रोकथाम के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इस से जुड़े कलंक को मिटाने के प्रयास में  हम 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस के रूप में मनाते हैं। इसके आयोजन का आधार इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ सुसाइड प्रिवेंशन (आईएएसपी) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की अवधारणा है। भले ही इस अवधारणा की दुनिया भर में अच्छी पहुंच है, पर आत्महत्या का एक पहलू है जिससे हम में से बहुत से लोग अनजान रहते हैं - वृद्धावस्था में आत्महत्या।

To Read in English: Help Prevent Suicide in Older Adults

मीडिया का अधिकांश कवरेज किशोर/वयस्क आत्महत्याओं के विषय पर है, इसलिए हममें से अधिकांश लोग सोचते हैं कि आत्महत्या की समस्या 18-50 आयु समूहों के साथ जुड़ी है। लेकिन इंडियन जर्नल ऑफ साइकियाट्री में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार भारत में आत्महत्या से मरने वाले 5 में से 1 व्यक्ति की उम्र 65 वर्ष या अधिक है। देश में बुजुर्गों की आत्महत्या की इतनी ऊंची दर के बावजूद  हममें से कितने लोग वास्तव में इस दुर्भाग्यपूर्ण लेकिन आम त्रासदी के बारे में सुनते या जानते हैं?  ऐसा इसलिए है क्योंकि इनमें से अधिकांश आत्महत्याएं रिपोर्ट नहीं की जाती हैं और इसलिए चुप्पी में दबी रह जाती हैं।

इस चुप्पी को तोड़ने की आवश्यकता है, और इस के लिए हमें सबसे पहले यह समझने की जरूरत है कि वृद्धों में आत्महत्याएं क्यों होती हैं। वृद्धों के मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों का जल्द पता लगाने की अत्यंत आवश्यकता है। और सबसे आवश्यक है यह विचार करना कि हम आधुनिक समाज के व्यक्ति इस सार्वजनिक स्वास्थ्य की चिंताजनक समस्या को कम करने में कैसे मदद कर सकते हैं। 

हमें वृद्धावस्था की आत्महत्याओं को क्यों संबोधित करना चाहिए?

  • संयुक्त राष्ट्र ने भारत को एक ‘ऐजिंग कन्ट्री’ (वृद्ध हो रहा देश) के रूप में वर्गीकृत किया है - यहाँ वृद्धों का जनसंख्या में अनुपात बढ़ रहा है। 2011 में भारत की कुल जनसंख्या में से 8.6% लोग 60 वर्ष या उस से अधिक आयु के थे और अनुमान है कि यह अनुपात 2050 तक तिगुना हो जाएगा, और वृद्ध लोग जनसंख्या का 20% हिस्सा होंगे।
  • कमजोर आबादी की इस वृद्धि को देखते हुए आत्महत्या की घटनाओं को रोकने के लिए जरूरी है कि परिवार और मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की मदद से आत्महत्या के लिए उच्च जोखिम वाले वृद्धों की पहचान जल्दी हो पाए, और हम वृद्धों के प्रति अपनी सहानुभूति बढ़ाएं ताकि एक समुदाय के रूप में हम वृद्धावस्था में होने वाली आत्महत्याओं को रोकने में मदद कर सकें ।
  • आत्महत्या सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक प्रमुख चिंता का विषय है जिस से  समाज के सभी वर्ग प्रभावित होते हैं। इसलिए, बड़ी उम्र की आत्महत्या एक गंभीर चिंता का कारण है और इस के लिए स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, नीति निर्माताओं, समुदायों और पूरे समाज के हिस्से के रूप में सब का ध्यान आकर्षित करना जरूरी है।

बुजुर्गों में आत्महत्या का जोखिम अधिक क्यों है?

वृद्धावस्था में लोगों को अनेक चुनौतियों का समान करना पड़ता है, जैसे कि शारीरिक स्वास्थ्य में गिरावट, शरीर में होने वाले परिवर्तनों को स्वीकार करना और उनके साथ तालमेल बिठाना, शारीरिक शक्ति और लचक में कमी, दृष्टि और सुनने की समस्याएं, जीवन शैली से संबंधित बीमारियाँ, तंत्रिका संबंधी समस्याएं, और जीवनसाथी, दोस्तों, सहकर्मियों आदि को खोने के शोक से जूझना। सामाजिक और भावनात्मक समर्थन कम हो तो इन चुनौतियों का सामना करना और भी कठिन रहता है। इस सब से शुरू होती है अकेला और असहाय महसूस करने और निर्भर होने की प्रक्रिया, और यदि इन को संबोधित न करा जाए तो अवसाद और/या चिंता होनी शुरू हो जाती है।

वृद्ध व्यक्तियों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की संभावना अधिक क्यों होती है?

सामाजिक बहिष्करण: समाज से बाहर हो जाना बुजुर्गों द्वारा सामना की जाने वाली सबसे आम समस्याओं में से एक है। ऐसे कई कारण हैं जिन की वजह से बुजुर्गों को अकसर सामाजिक कार्यक्रमों के लिए आमंत्रित नहीं करा जाता - जैसे कि शायद उन्हें सुनाई ठीक से नहीं देता, वे दूसरों पर शारीरिक रूप से निर्भर हों, उन्हें एक स्थान से दूसरे तक की यात्रा में कठिनाई हो, या परिवार से सहानुभूति और समर्थन की कमी हो।

अकेलापन: सामाजिक बहिष्कार हो तो यह अकेलापन एक स्वाभाविक परिणाम है। ऐसा भी हो सकता है कि वृद्ध व्यक्ति के कई मित्र अपनी स्वयं की स्वास्थ्य समस्याओं के कारण अब उनके साथ समय नहीं बिता सकें। कई लोगों के लिए वृद्ध होना जीवन का एक कठिन चरण है जिसमें उन्हें परिवार और दोस्तों से सामाजिक और भावनात्मक समर्थन की आवश्यकता होती है।

खुद को दूसरों पर बोझ समझना: अपने आप को परिवार पर बोझ समझने की धारणा भी एक समस्या है। आमतौर पर क्लिनिक में देखा जाता है कि जिन्हें आत्महत्या के लिए उच्च जोखिम वाला माना जाता है वे खुद को बोझ समझते हैं। इसे लोग ‘मैं सब के लिए तकलीफ हूँ’, ‘मेरी वजह से बहुत अधिक परेशानी हो रही है’, 'मुझे बुरा लगता है कि आपको मेरे लिए इतना कुछ करना पड़ता है’ जैसे वाक्यों से व्यक्त करा जाता है।

शोक: जीवन के इस चरण में,  किसी न किसी रूप में आसपास लोगों को खोने के शोक का सामना करते रहना पड़ता है - जीवनसाथी, दोस्त, सहकर्मी, पालतू जानवर। विशेष रूप से  जीवनसाथी को खोने का शोक एक जीवन-परिवर्तन करने वाली विनाशकारी घटना है जिस से समन्वय करने में बहुत लंबा समय लग सकता है। एक समय ऐसा भी आता है जब वे सभी लोग जिन्हें वे अपने अतीत या 'पुराने दिनों' से जानते थे, गुजर चुके होते हैं।

डिप्रेशन (अवसाद): यह बुजुर्गों में पायी जाने वाली एक आम समस्या है। भारत में एक अध्ययन में पाया गया है कि लगभग 34.4% वृद्ध आबादी (जिसमें अधिकांश महिलाएं हैं) को अवसाद है। उपर्युक्त जोखिम कारकों का भी इस स्थिति में योगदान हो सकता है, और साथ-साथ अन्य गंभीर मुद्दे भी योगदान कर सकते हैं जैसे कि दुर्व्यवहार, शोषण और उपेक्षा का सामना करना।

वृद्ध व्यक्ति शोषण और उपेक्षा: आप शायद जितना सोचते हैं, समाज में बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार उस से अधिक आम है। यह पाया गया है कि 6 में से 1 वृद्ध व्यक्ति को अपने समुदाय से उपेक्षा या शोषण का सामना करना पड़ता है (विश्व स्वास्थ्य संगठन)। इसमें शामिल हैं शारीरिक, यौन, मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक शोषण, वित्तीय / भौतिक शोषण, परित्याग और उपेक्षा। यह कहने की जरूरत नहीं कि इस से व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर कितना बुरा प्रभाव हो सकता है।

कोविड -19 महामारी: दुनिया जैसे-जैसे इस “न्यू नॉर्मल” (सामान्य जीवन का नया मापदंड) के साथ जूझ रही है, भविष्य अभी भी अनिश्चित है। स्वाभाविक है, ऐसी स्थिति से चिंता होती है। कोविड -19  महामारी के कारण बुजुर्ग अनेक श्रेणियों के मुकाबले अधिक कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं और पहले से अधिक कमजोर स्थिति में हैं। इस से भी उनके अकेलेपन, चिंता, दैनिक गतिविधियों में व्यवधान और किसी अज्ञात बीमारी के होने के डर बढ़ सकता है।

मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का जल्दी पता लगाना जरूरी है

आत्महत्या को रोकने के लिए इसका बढ़ा हुआ जोखिम जल्द-से-जल्द पहचान पाना जरूरी है। जितनी जल्दी आप किसी मानसिक स्वास्थ्य समस्या का पता लगाते हैं, उतनी जल्दी हस्तक्षेप संभव है और व्यक्ति को इसके कम परिणाम होंगे। नियमित बातचीत बनाए रखना, सहानुभूति रखना, सब्र दिखाना, और व्यवहार/दैनिक गतिविधियों में बदलाव के प्रति सतर्क रहना समस्या का प्रारम्भिक अवस्था में ही पता लगा पाने की कुंजी है।

निम्नलिखित कुछ चेतावनी के संकेत हैं जो आपको यह समझने में मदद करेंगे कि आपके डॉक्टर को सूचित करने और मदद लेने का समय आ गया है:

  1. वृद्ध को नकारात्मक भावनाएं अधिक देर तक रहती हैं और वे अधिक गंभीर लग रही हैं।
  2. वृद्ध का मूड गिरा हुआ रहता है और वे जिन चीजों का शौक रखते थे, अब उन्हें उसमें कोई रुचि नहीं रही है।
  3. दैनिक दिनचर्या में बदलाव जैसे पहले के मुकाबले कम/ज्यादा खाना या सोना ।
  4. उनका परिवार/दोस्तों से खुद को अलग रखना
  5. बार-बार ऐसे वाक्य कहना जिस से लगे वे खुद को बोझ समझते हैं - जैसे कि 'मैं तुम्हारे लिए बोझ बन रहा हूं', या 'मैं मर जाऊँ तो बेहतर होगा'
  6. ऐसा लगना कि वृद्ध को लाचारी या निराशा की भावनाओं का अनुभव हो रहा है।

जल्द से जल्द हस्तक्षेप करने का महत्व

मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का इलाज करने, आत्महत्याओं को रोकने और वृद्धों के स्वास्थ्य और भलाई के लिए जल्द-से-जल्द हस्तक्षेप करना प्रमुख रणनीतियों में से एक है। याद रखें, जितनी जल्दी आप कार्रवाई करेंगे,  आत्महत्या को रोकने की संभावना उतनी ही बेहतर होगी। यदि आपके प्रियजन को उपरोक्त में से कोई भी लक्षण दिखाई दें, तो सुनिश्चित करें कि आप या तो खुद ही मानसिक स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर से बात करें, या अपने डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें और रेफ्रन्स मांगें।

हालांकि यह सब करना भारी लग सकता है, विशेष रूप से वर्चुअल डिजिटल माध्यम से, आप देखेंगे कि जब आप अपने बुज़ुर्ग प्रियजन की बातें सब्र और शांति से सुनेंगे, तो वे स्वेच्छा से आपको अपनी चिंताओं के बारे में बता पाएंगे। उनके साथ समय बिताएं, जब उन्हें आपकी जरूरत हो तो उनके साथ रहें और उन्हें बताएं कि आप उनकी परवाह करते हैं - इस सब से उन्हें इस अभूतपूर्व समय में चुनौतियों का सामना करने में मदद मिल सकती है।

समीक्षा सिवन एक मनोवैज्ञानिक हैं जो जराचिकित्सा मानसिक स्वास्थ्य (जेरीऐट्रिक मेंटल हेल्थ) में विशेषज्ञता रखती हैं। उन्हें पार्किंसंस रोग, अल्जाइमर रोग और स्ट्रोक के पुनर्वास में कार्य अनुभव है।

References:

https://www.aamft.org/AAMFT/Consumer_Updates/Suicide_in_the_Elderly.asp…;- American Association of Marriage and Family Therapy
https://www.psychologytoday.com/us/blog/understanding-grief/202001/why-…;- Article in Psychology Today
https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC3107573/ - NCBI study on geriatric suicides
https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC5916258/ - Current perspectives on elder suicides study
https://www.todaysgeriatricmedicine.com/news/exclusive_03.shtml - article in Today’s Geriatric Medicine
https://pubmed.ncbi.nlm.nih.gov/1935195/ - study done on elderly suicides in India
https://www.emerald.com/insight/content/doi/10.1108/WWOP-11-2017-0031/f…;- recent study on elder suicide in India
https://www.jgmh.org/article.asp?issn=2348-9995;year=2019;volume=6;issu…;- study from Journal of Geriatric Mental Health