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Submitted by PatientsEngage on 19 November 2022
Profile pic of Usha Jesudasan

70 वर्षीया लेखिका उषा जेसुदासन कहती हैं कि बढ़ती उम्र और अकेला होना डरावना हो सकता है, लेकिन ऐसे में भी आप खुश रह सकते हैं - आप उम्मीद न छोड़ें। इस लेख में वे हमें बताती हैं कि उन्होंने अकेलेपन और उदासी को दूर करने के लिए किस तरह से जान-बूझ कर एक सोचा-समझा प्रयास किया है, जिसमें नए दोस्त बनाना, दूसरों के बच्चों की देखभाल करना, किताबें दान करना, और  खुद को सक्रिय और व्यस्त रहना शामिल है।

जब मेरे पिता की मृत्यु हुई, तब मेरी माँ की उम्र 70 वर्ष से थोड़ी अधिक थी। मुझे याद है कि मैं उनके लिए बहुत चिंतित थी क्योंकि अब उन्हें एक बड़े घर में अकेले रहना होगा। मैं चिंतित थी कि वे अकेले रहने की इस स्थिति का सामना कैसे करेंगी। हम सभी को आश्चर्य हुआ जब कुछ दिनों बाद माँ ने कहा, 'मैं उन वृद्ध लोगों के लिए एक छोटी सी जगह बनाना चाहती हूँ जो अपने परिवारों द्वारा त्याग दिए गए हैं और फुटपाथ पर रहते हैं। हाल ही में, मुझे ऐसे बहुत से गरीब लोगों के बारे में पता चला है और मैं उनकी भलाई के बारे में बहुत सोचती हूँ। मैं अपना समय ऐसे लोगों पर ध्यान केंद्रित करने में बिताना चाहती हूँ”।

Read in English: The Importance of Staying Connected as You Age

माँ ने उन वृद्धों के लिए दिन बिताने के लिए एक घर जैसा स्थान (डे केयर होम) बनाया।

इसलिए मां ने जमीन का एक छोटा सा प्लॉट लिया और उस पर एक बड़ा कमरा, रसोई और शौचालय बनवाए। नाश्ता और दोपहर का भोजन और देर से शाम की चाय बनाने के लिए उन्होंने एक रसोइया लगाया। कुछ ही महीनों में लगभग 20 पुरुष और महिलाएं नियमित रूप से वहाँ आने लगे। वहाँ उन्हें दिन में व्यस्त रखने के लिए एक बड़े टेलीविजन था। कैरम बोर्ड भी था! कुछ महीनों में ही माँ ने पाया कि शाम को दी जाने वाली चाय के साथ के टिफ़िन को वे बुजुर्ग फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों के लिए पैक कर के ले जा रहे थे! वे बुजुर्ग अकेले रहने वाले गली के बच्चों को अपना हिस्सा दे रहे थे। यह देख कर, माँ ने बच्चों के लिए भी इंतजाम करा। उन्होंने पहले बनाए हुए बुजुर्गों के कमरे के ऊपर एक और बड़ा कमरा बनाया और सुबह के समय बच्चों को पढ़ाने के लिए एक शिक्षक नियुक्त किया। दोपहर के भोजन के बाद बच्चे वहाँ चित्र बनाते या उनमें रंग भरते, या खेलते। शाम की चाय के बाद,  बुजुर्ग और बच्चे सभी वापस फुटपाथ का स्थानों पर लौट जाते।

माँ ने इस जगह पर बहुत समय बिताती थीं। उन्होंने इस स्थान का नाम मेरे पिता के नाम पर रखा था - 'इमैनुएल होम'। मैं मां से अकसर बात करती थी, और वे बताती थीं कि इस तरह का स्थान बनाना उनकी अपनी माँ का सपना रहा था, और वे इसे फलीभूत करने में सिर्फ इसलिए सक्षम थीं क्योंकि पिताजी अब नहीं रहे थे, उनपर अपने बच्चों के प्रति कोई ज़िम्मेदारी नहीं बची थी और उनके पास अब इस काम के लायक समय भी था और पर्याप्त धन भी। इस काम से मां के दोस्तों का दायरा बढ़ा था। चूंकि इस “दिन वाले घर” में आने वाले अधिकांश लोग बुजुर्ग थे, उन्हें कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं भी थीं। इसलिए अपने परिवार और दोस्त-मण्डली में मां जिस किसी चिकित्सा कर्मियों को जानती थीं, उन्होंने उनसे अनुरोध किया कि वे अपने समय का दान देकर इन लोगों के लिए कुछ करें - जैसे कि आंखों की जांच, रक्तचाप की निगरानी, और सामान्य मासिक चेक-अप। उन्होंने दवा कंपनियों को टॉनिक और विटामिन के सैम्पल  दान करने के लिए राजी किया। मां ने अपने सभी संपर्कों का उपयोग इस “घर” पर आने वाले लोगों का जीवन को बेहतर बनाने के लिए किया, और इस देखभाल के काम में वे व्यस्त रहतीं। उनके अधिकांश दोस्त और परिवार अपने जन्मदिन या अपने बच्चों के जन्मदिन पर एक अच्छा 'बिरयानी लंच' दान करते। अन्य लोग कपड़े या रंगीन पेंसिल और खिलौनों के उपहार लाते थे। इमैनुएल होम चहल-पहल का एक अड्डा बन गया।

मैंने अपनी माँ से क्या सीखा

एक बात जो मैंने सीखी वह थी कि उम्र बढ़ना और अपने साथी को खोना जीवन का एक दुखद हिस्सा है। हम इस से बच नहीं सकते। दोस्त और परिवार वाले गुजर जाते हैं। रहने वाले अकसर अपने परिवार के करीब रहने के लिए चले जाते हैं। यह स्वाभाविक है कि हमारा सामाजिक दायरा सिकुड़ता जाता है और हम जीवन का सामना करने के लिए अकेले रह जाते हैं। हम पुरानी बातें याद करते हैं, पुरानी तस्वीरों को देखते हैं और सोचने लगते हैं, 'आगे क्या होगा?” ' कभी-कभी हमारी सुनने की और देखने की क्षमता, गतिशीलता और याददाश्त भी खराब होने लगते हैं। हम देखने में भी अलग होने लगते हैं - बाल गिरने लगते हैं और सफेद हो जाते हैं, दांत गिर जाते हैं, हम पतले और कमजोर होने लगते हैं। मित्रों और परिवार के साथ जुड़े रहने का प्रयास करने के मुकाबले सिकुड़ कर घर पर ही रहना आसान लगता है। कभी-कभी दूसरे लोग भी धीरे-धीरे हमसे हटने लगते हैं क्योंकि हमारे साथ समय बिताना कठिन लगने लगता है, इतना सहज नहीं रहता।

हमारे साथ समय बिताने वालों को जोर से बोलना पड़ता है, सुनिश्चित करना होता है कि हम गिरें नहीं, हमारे बार-बार पूछे जाने वाले प्रश्नों की वजह से उन्हें एक ही बात को दो-दो, तीन-तीन बार दोहराने की जरूरत हो सकती है, और उन्हें हमें मिलने के स्थान तक लाना और फिर बाद में सुरक्षित घर छोड़ना होता है। समय के साथ, हम पाते हैं कि हम पहले वाले व्यक्ति नहीं रहे हैं। क्या ऐसा संभव है कि हम आज जैसे ही बने रहें, और  बिना कुछ भी बदले अपने अंत की ओर या तो पूरी ऊर्जा के साथ जीवन जीते हुए, या शांति से, बिना विचलित हुए चले जाएँ? मुझे नहीं लगता! कुछ सोच-समझ कर बदलाव तो करने होंगे! 

मेरे घर बदलने का अनुभव

इस साल की शुरुआत में, मेरे खराब स्वास्थ्य और मेरे इलाके के गंभीर पर्यावरण प्रदूषण ने मुझे अपने घर से दूर अलग जगह बसने के लिए मजबूर कर दिया। पहले तो यह रोमांचक लगा। मेरा एक सपना था कि मैं बड़े घर को छोड़ कर एक छोटे से अपार्टमेंट में रहूँ, सिर्फ उतने समान के साथ जो जरूरी था, बाकी सब सामान्य त्याग दूँ - और यह सपना साकार हो रहा था। मेरे किचन शेल्फ पर पहले से कम बर्तन और बोतलें थीं, अलमारियों में कपड़े भी कम थे। नई जगह कोई शोर नहीं था। मैं पक्षियों की चहक और पत्तों की सरसराहट की आवाज से जागती थी, ट्रैफिक और हॉर्न की आवाज से नहीं। मेरा दिन पढ़ने, लिखने, संगीत सुनने और बगीचों में पक्षियों को निहारने में बीतता था।

यह सब शुरू में तो बहुत अच्छा लगा, पर कुछ ही हफ़्तों के बाद मुझे लोगों की कमी महसूस होने लगी। मैंने अपने दोस्तों, अपने चर्च, अपने विभिन्न क्लब और उन सभी गतिविधियों को छोड़ दिया था- वे सब कुछ जिन में मैं 40 से अधिक वर्षों से शामिल थी। मैं  अब एक प्रकार से “जंगल” में थी, सभी जाने-पहचाने लोगों से दूर, एक प्रकार के अकेलेपन में। मेरे नए अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स में बच्चे मुझे पाटी (दादी) बुलाते थे और बहुत प्यार देते थे, लेकिन उनकी मांएं हमेशा जल्दी में रहतीं, अगर मिलतीं तो सिर्फ मुस्कुरातीं और लिफ्ट में भाग जातीं। मैंने अपना पहला दोस्त अपनी बालकनी के पार रहने वालों से बनाया और हम लंच के लिए क्या है, इस बारे में कभी-कभी चैट करते। जब हवा से मेरी बालकनी में ऊपर रहने वालों के कपड़े उड़कर आ जाते तो उन्हें लेने के लिए ऊपर रहने वाली महिला मेरी घंटी बजाती। मैं उस से अनुरोध करती, कृपया अंदर तो आईए, पर वह कहती, 'सॉरी आंटी, मेरी गैस ऑन है!'

मैंने अपने मित्रों का दायरा बढ़ाया

इसलिए एक शाम मैंने फैसला किया कि मैं हर रोज अपने कुछ दोस्तों को फोन करूंगी। उन्हें व्हाट्सएप करूंगी, उन्हें फोटो और छोटे-छोटे मैसेज भेजूँगी। उनके साथ वीडियो पर जुड़ूँगी, न सिर्फ बात करने के लिए, बल्कि उन्हें चलते-चलते अपना अपार्टमेंट, अपनी पुस्तकों की शेल्फ़, अपना फ्रिज, और यहाँ तक कि मैं क्या पका रही हूँ, यह दिखाऊँगी। मानो मैं सचमुच उनके साथ हूँ। मैं यूके में अपनी दो छोटी पोतियों के साथ रोज चैट करती हूं। लॉकडाउन के दौरान मैंने फेसबुक द्वारा 50 साल से अधिक पुराने स्कूल के साथियों के साथ फिर से संपर्क जोड़ा है। मैं बहुत खुश हूँ कि मेरे मित्रों का दायरा इतना बढ़ गया है। हम में से अधिकांश को किसी न किसी प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं हैं, और ऑनलाइन मिलना एक आसान तरीका है।

हम में से कुछ लोग हर महीने कम से कम एक बार दोपहर के भोजन के लिए मिलने की कोशिश करते हैं। यह हम सब के लिए अच्छे कपड़े पहनने और सजने-सँवारने का मौका होता है।  उस रेस्तराँ में जल्दी-जल्दी लंच निपटाने वाले शायद सोचते होंगे, 'ये सजी धजी बुढ़ियाएं कौन हैं?' लेकिन हम खाने का ऑर्डर करने में कोई जल्दी नहीं करते, बल्कि आराम से मौके का पूरा आनंद लेते हैं। हम वेटरों से उनके परिवारों के बारे में बात करते हैं और रेस्तराँ  के लगभग बंद होने के समय तक वहाँ जमे रहते हैं, और अन्य सभी खाना खाने वालों के बाद ही निकलते हैं!

जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, खुद पर तरस खाना और सोचना कि देखो, दुनिया तो व्यस्त है, हम सिर्फ इसे देख सकते हैं - ऐसी सोच में खो जाना आसान होता है। एक बार मैं अकेले एक रिसॉर्ट में बैठी थी - मेरे परिवार वाले पहले तो समुद्र में लहरों में चलने के लिए गए थे और फिर स्विमिंग पूल में तैर रहे थे, पर समुद्र तक की दूरी मेरे चल पाने के लिए बहुत ज्यादा थी।  एक युवा माँ अपने छोटे बच्चे के साथ मुझसे थोड़ी दूरी पर बैठी थी, उसके पति और छोटी लड़की पूल में थे, और यह युवा मां समय-समय पर हाथ वेव कर रही थी। मैं उसके पास जाकर बैठी और मैंने अपना परिचय दिया। फिर मैं कहा, "अगर मैं पूल के करीब आऊं और वहाँ किसी कुर्सी पर बैठ जाऊं, तो क्या मैं आपके बच्चे की देखभाल कर सकती हूं ताकि आप चाहें तो अपने परिवार के साथ पूल में शामिल हो पाएं? ' वह हैरान हुई। मैं उसके दिमाग में चल रहे विचारों को भांप सकती थी - क्या यह बूढ़ी औरत मेरे बच्चे को लेकर भाग जाएगी? क्या इसका दिमाग ठीक है या नहीं? देखने में तो काफी सभ्य दिखती है!

मैं फिर कहा, "आप मुझे पूल से देख सकेंगी, और आप पूल से मुझे और अपने बच्चे को लगभग छू सकेंगी।" उसने बच्चे को मेरी बाँहों में रख दिया, और मैं आराम से पूल के पास एक डेकचेयर पर बैठ गई। मुझे उस छोटी बच्ची को लाड़-प्यार देना और  गले लगाना बहुत अच्छा लगा, और वह युवा परिवार भी आनंद ले पाया। मैंने रिज़ॉर्ट पर बिताए अपने पूरे समय ऐसा किया और इस तरह इतने प्यारे नए दोस्त बनाए।

  • मुसकुराना और दूसरों के जीवन में दिलचस्पी लेना आजकल भी किसी भी उम्र में अकेलेपन के लिए सबसे अच्छा उपाय है, खासकर जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं।
  • जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, मिलनसार होने के लिए हमारी ओर से हमेशा अधिक समय और मेहनत लगती है। हां, ऐसा तो होगा कि जिन से हमारा प्यार हो वे हमें छोड़ देंगे और हम फिर से अकेले रह जाएंगे - लेकिन नए दोस्त बनाने और अन्य लोगों की बातें करने और उनकी राय सुनने का आनंद हमारे दिमाग को मजबूत रखता है और हमारी विचारधारा खुली रहती है। अन्य लोग भी हमें अधिक दिलचस्प पाते हैं।
  • जिस सामान की आपको अब आवश्यकता नहीं है, उसे दूसरों को दे दें । ऐसा करने से मुझे वास्तव में बहुत स्वतंत्रता मिली है। मैंने अपनी किताबों का संग्रह एक स्थानीय गर्ल्स कॉलेज को दान कर दिया। ज़्यादातर किताबों में मेरा नाम और नंबर लिखा हुआ था और लगभग सभी किताबों में मैंने कई पंक्तियों को रेखांकित किया था या उन पर अपनी टिप्पणी लिखी थी। मुझे बहुत आश्चर्य हुआ जब एक युवा कॉलेज की लड़की ने यह पता लगाने के लिए कॉल किया कि मैंने एक विशेष वाक्य या पैराग्राफ को क्यों रेखांकित किया है और फिर हमारे बीच बड़ी रोचक बातें हुईं!
  • किसी ऐसे व्यक्ति के लिए मौजूद रहें जिसके प्रियजन का निधन हो गया हो। यदि आपने कभी ऐसे दुःख को खुद अनुभव किया है, तो आप जानते हैं कि यह कैसा लगता है - इसलिए बस उन्हें सांत्वना देने और उनकी बात सुनने के लिए उनके साथ मौजूद रहें। उन्हें कोई ऐसा नोट, कविता, या तस्वीर दें जिससे आपको ऐसी स्थिति में सुकून मिला था।
  • यदि आप कर सकते हैं, तो लायंस, डचेस, या रोटरी जैसे क्लब में शामिल हों, जहां की गतिविधियों से आनंद भी मिलता है और समाज सेवा भी हो सकती है। पढ़ने या पेंटिंग के लिए किसी समूह में शामिल हों या कोई ऐसा समूह शुरू करें। शाम को चलने वालों के समूह में शामिल हों जिस से आपका व्यायाम भी हो पाए और आप दूसरों के साथ बातचीत भी कर पाएं। हमारी उम्र में भी चाँद-तारे देखना भी बहुत कितना रमणीय है।

बुजुर्ग और अकेला होना बहुत डरावना हो सकता है। लेकिन यह उम्मीद भी रहती है कि हम इस पड़ाव पर ऐसे काम कर सकते हैं जो हम पहले, कम उम्र में और परिवार की जिम्मेदारियों के कारण नहीं कर पाए थे!

इस स्वतंत्रता का भरपूर आनंद लें!

उषा जेसुदासन ने पहले लिखा है:

I am scared to go down the path of illness

Choosing Joy in the Darkest Hour

7 Tips for Living with Chronic Illness

उषा जेसुदासन एक फ्रीलैन्स लेखिका हैं जो जीवन, मूल्यों और सद्भाव बनाए रखने के बारे में लिखती हैं। उन्होंने कई स्व-सहायता (सेल्फ-हेल्प) और प्रेरणादायक पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें शामिल हैं - आई विल लाई डाउन इन पीस, टू जर्नीस , हीलिंग ऐज़ एम्पावरमेंट: डिस्कवरिंग ग्रेस इन कम्युनिटी।