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Submitted by PatientsEngage on 8 April 2022
A mother feeding her little child with a spoon

इस लेख में फर्नांडीज हॉस्पिटल्स में कंसल्टेंट नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ तेजो प्रताप ओलेटी शिशु को ठीक से पोषण देने के महत्व पर प्रकाश डालते हैं। वे इस विषय से सम्बंधित मिथकों और भ्रांतियों को संबोधित करते हैं और ऐसे सरल तरीकों पर चर्चा करते हैं जिन से छोटे बच्चों को सही पोषण दिया जा सके।

नवजात शिशु से 3 वर्ष  की उम्र तक के बच्चे के  लिए पोषण क्यों महत्वपूर्ण है?

जीवन के पहले 3 वर्षों के दौरान  मस्तिष्क लगभग अपने वयस्क आकार का 90-95% आकार प्राप्त कर लेता है। पहले 1000 दिन (यानी गर्भधारण से लेकर 2 साल की उम्र तक) बच्चे के जीवन की बहुत महत्वपूर्ण अवधि होती है। इस दौरान  मस्तिष्क का और प्रतिरक्षा और अन्य प्रणालियों का महत्वपूर्ण विकास होता है। यह विकास बेहतर हो पाए, इस के लिए सही पोषण बहुत आवश्यक है।

Read in English: Infant And Toddler Nutrition: What Every Parent Must Know

शिशु की आहार संबंधी आवश्यकताएं क्या हैं?

शिशुओं को लगभग 100 किलो कैलोरी प्रति किलो प्रति दिन की आवश्यकता होती है। बीमारी के दौरान ऊर्जा की आवश्यकता अधिक हो जाती है। इस ऊर्जा का 15-20% अंश प्रोटीन से प्राप्त होना चाहिए। लिपिड या वसा का हिस्सा 30-50% तक हो सकता है। इनके अलावा, अन्य आयु समूहों की तुलना में बच्चे को अधिक मात्रा में कैल्शियम, फॉस्फेट, अन्य ट्रेस तत्वों, विटामिन और आयरन की भी आवश्यकता होती है।

अधिकांश माता-पिता इस बारे में अनिश्चित रहते हैं कि बच्चे को कितना भोजन देना चाहिए, कृपया इस पर कुछ प्रकाश डालें?

6 महीने की उम्र तक  हम शिशु को सिर्फ स्तनपान कराने की सलाह देते हैं, जितना भी बच्चा चाहे, उसे उतना लेने दें। 6 महीने के बाद, हम स्तन के दूध के साथ-साथ अन्य आहार (कॉम्प्लिमेंट्री फीडिंग) शुरू करते हैं।

कॉम्प्लिमेंट्री फीडिंग शुरू में प्रति दिन 1-2 बार कराएं और इसे दिन में 4-5 बार तक बढ़ाएं। दो से तीन बड़े भोजन और साथ में 1-2 छोटे भोजन दिए जा सकते हैं। शुरू  में 200 मिलीलीटर  वाले कप के एक चौथाई हिस्सा या 2-3 टेबल स्पून दें और मात्रा को धीरे-धीरे बढ़ाएं। आम तौर पर, शिशु 10-12 महीने की उम्र तक 3/4 से 1 कप भोजन ले पायेगा। प्यूरी (गाढ़ा गूदा) जैसे गाढ़ेपन के साथ शुरू करें और बाद में दानेदार और मसला (मैश करा हुआ) भोजन दें। एक वर्ष की आयु तक, आमतौर पर शिशु सामान्य घरेलू भोजन ले सकता है। बाद में, आमतौर पर वयस्क जितना लेते हैं, बच्चा उस की आधी मात्रा लेने लगता है।

आमतौर पर, हम ठोस आहार की शुरुआत अनाज और दालों से बने भोजन के साथ-साथ कार्बोहाइड्रेट युक्त सब्जियों (जैसे आलू और शकरकंद आदि) और केला और भाप से पका हुआ सेब जैसे फलों से कर सकते हैं। कैलोरी बढ़ाने के लिए हम ऊपर से थोड़ा घी या तेल डाल सकते हैं। जैसे-जैसे बच्चा हज़म कर पाए, वैसे-वैसे आहार में नई सब्जियां और फल शामिल करते रहें।

सामान्यतः शुरू में दिया गया सीरिअल चावल से बना होता है। घर का बना अनाज और दालों के 2-3:1 के अनुपात वाला मिश्रण शुरू करने के लिए एक अच्छा विकल्प है। अनाज और दालों को इस अनुपात में मिलाकर 1 घंटे के लिए भिगो दें। बाद में इसे भूनकर पाउडर बना कर हवा-बंद (एयर टाइट) डब्बे में भर लें। जब भी आवश्यकता हो, इसे पानी में मिलाकर पकाया जा सकता है।

मां के दूध के बाद शिशु को कौन सा दूध देना चाहिए?

हम 6 महीने की उम्र तक शिशु को सिर्फ स्तनपान कराने की सलाह देते हैं, और उसके बाद स्तन के दूध के साथ  अन्य आहार शुरू करने की सलाह देते हैं। माँ जब तक संभव हो स्तनपान जारी रख सकती है - सलाह यह है कि स्तनपान 2 वर्ष की आयु तक कराया जाए। यदि स्तन के दूध के बजाए अन्य प्रकार का कोई दूध शुरू करना हो तो 1 साल की उम्र पर किसी भी पशु का टोंड या पूर्ण वसा युक्त दूध शुरू किया जा सकता है, लेकिन यह निश्चित रूप से 1 साल की उम्र से पहले न करें। जीवन के पहले 2 वर्षों के दौरान स्किम्ड दूध और कम वसा वाले दूध (1-2%) न दें, क्योंकि इन में अधिक प्रोटीन और इलेक्ट्रोलाइट सामग्री होती है और कैलोरी डेंसिटी (ऊर्जा का घनत्व) कम होता है।

भारत में आम तौर पर देखे जाने वाले शैशवावस्था पोषण से संबंधी मुद्दे क्या हैं?

प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण, कैल्शियम और विटामिन डी की कमी, आयरन की कमी, आयोडीन की कमी और विटामिन ए की कमी भारत में कुछ सामान्य पोषण संबंधी मुद्दे हैं।

खराब पोषण के कारण क्या हैं?

  1. जल्दी दूध छुड़ाना (स्तनपान कराने के बजाए बोतल द्वारा अन्य दूध देना) - यह अकसर अज्ञानता के कारण होता है, और बोतल के दूध की तैयारी में हुई अस्वच्छता/ संदूषण के कारण इस से संक्रमण भी हो सकता है।
  2. स्तन का दूध छुड़ाने पर दिए जाने वाले बोतल के दूध/ खाद्य पदार्थों को पतला करना भी कुपोषण का कारण हो सकता है।
  3. देर से दूध छुड़ाना और स्तन के दूध के साथ अन्य खाद्य पदार्थ न देना।
  4. कम मात्रा में भोजन।
  5. भोजन की गुणवत्ता कम होना।

कुपोषण और अल्पपोषण में क्या अंतर है?

कुपोषण का तात्पर्य है ऊर्जा, प्रोटीन और/या अन्य पोषक तत्वों की कमी, या उनकी अधिकता या असंतुलन।

अल्पपोषण ऐसे भोजन के सेवन का परिणाम है जो ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए लगातार अपर्याप्त रहता है, जिसमें आहार का अवशोषण खराब होता है, या जिसमें शिशु का शरीर भोजन में मौजूद पोषक तत्वों का ठीक से उपयोग नहीं कर पाता। इस से आमतौर से शरीर का वजन कम होता है।

खराब पोषण के गैर-संचारी रोगों पर दीर्घकालिक परिणाम क्या हैं?

अल्पपोषण, और इसके बच्चे की वृद्धि, विकास और परिपक्वता पर कई हानिकारक प्रभाव होते हैं, जिसमें बड़ी उम्र में गैर-संचारी रोग विकसित होने के अधिक जोखिम शामिल है - यह खासकर  हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर के बढ़े जोखिम के रूप में देखा जाता है। इसलिए, गर्भधारण से लेकर 1000 दिन तक (करीब दो साल की उम्र तक) का समय बच्चे के वर्तमान स्वास्थ्य के लिए और बाद में वयस्कता में बीमारी के जोखिम के लिए महत्वपूर्ण हैं।

घर का बना खाना खाने के क्या फायदे हैं?

  1. विविधता असीमित है; घर पर उपलब्ध किसी भी खाद्य सामग्री से बच्चे के लिए भोजन तैयार किया जा सकता है (बशर्ते वह उसके विकास के चरण के अनुकूल हो)।
  2. वे ताजा और अनप्रोसेस्ड हैं।
  3. इन्हें अलग-अलग विधि से - जैसे कि पीसकर, प्यूरी कर के या छान के-  जैसे चाहें वैसे ही बच्चे के लिए उचित, विविध प्रकार के गाढ़ेपन से बनाया जा सकता है।
  4. सामाजिक रूप से स्वीकार्य और उपलब्ध है।
  5. ऐसे भोजन देने के बाद बच्चे को घर में अन्य लोगों द्वारा लिए जा रहे भोजन देना अधिक आसान रहता है।
  6. अधिक किफायती।

क्या फोर्टिफाइड फूड ताजे खाद्य पदार्थों की तुलना में अधिक पौष्टिक होते हैं?

जो माता-पिता उनका  खर्च उठा सकते हैं वे अकसर पैकेज्ड फूड देने के बारे में सोचते हैं। कुछ फोर्टिफाईड खाद्य पदार्थों में सामान्य प्राकृतिक खाद्य पदार्थों के मुकाबले अधिक पोषक तत्व होते हैं। परन्तु बच्चे को विभिन्न प्रकार के भोजन पर्याप्त मात्रा में देने से हम बिना फोर्टिफाईड फ़ूड दिए बच्चों की पोषण की जरूरतों को पूरा कर सकते हैं। पैकेज्ड फूड जल्दी खराब न हों, इस  के लिए इन में कुछ प्रिजर्वेटिव हो सकते हैं। माता-पिता को खरीदने से पहले प्रोसेस्ड फ़ूड में मौजूद सामग्री की सूची को ध्यान से देखने की जरूरत है। पैकेज्ड फूड्स को यात्रा जैसी सीमित जरूरतमंद स्थितियों में ही इस्तेमाल करना चाहिए, जब ताजा खाना बनाना/ देना संभव नहीं है।

शिशु पोषण और फार्मूला फीडिंग से जुड़े मिथक क्या हैं?

मिथक 1 : फॉर्मूला वाला दूध देने से नवजात शिशुओं का वजन ज्यादा अच्छी तरह बढ़ेगा

उत्तर: स्वस्थ शिशुओं में वजन बढ़ने का पैटर्न समान होता है चाहे शिशु स्तनपान कर रहा हो या फार्मूला फीड। स्तन के दूध की संरचना शिशु की उम्र के अनुसार बदलती रहती है। इससे शिशु के वजन में वृद्धि को स्वस्थ रखने में मदद मिलेगी।

मिथक 2 : फॉर्मूला फीड अधिक फोर्टिफाइड होते हैं, इसमें अधिक मात्रा में विटामिन और अन्य ऐसे तथ्य होते हैं जो मानसिक और शारीरिक विकास के लिए अच्छे होते हैं।

उत्तर: मां के दूध में कई प्राकृतिक तत्व होते हैं जैसे प्रोबायोटिक बैक्टीरिया, प्रतिरक्षा प्रदान करने वाली एंटीबॉडी/ कोशिकाएं और स्टेम सेल। ये प्राकृतिक तत्व बेहतर प्रतिरक्षक क्षमता प्रदान करते हैं और सभी अंगों के विकास में मदद करेंगे। मां के दूध की संरचना इतनी अनूठी है कि यह दूध शिशु की अधिकांश जरूरतों को पूरा करता है। अध्ययनों से भी साबित हुआ है कि स्तनपान करने वाले शिशुओं का आईक्यू ((इंटेलिजेंस कोशेंट, बुद्धिलब्धि_ अधिक होगा और कुपोषण की संभावना कम होगी।

मिथक 3 : फॉर्मूला फीडिंग देना आसान है

उत्तर: गलत। स्तनपान कराना और इसे बनाए रखना आसान है। हाँ, सही तरह से बैठने और लैचिंग के तरीके के लिए माँ और बच्चे का समर्थन करने की आवश्यकता होगी। स्तनपान के लिए किसी अतिरिक्त प्रयास की आवश्यकता नहीं होती है, जबकि बोतल का दूध तैयार करने के लिए कई बातें सीखनी होती हैं, जैसे कि बोतल, निप्पल वगैरह की ठीक सफाई कैसे करें, और पाउडर को ठीक तरह से, सही मात्रा में पानी में कैसे घोलें। बोतल तैयार करने की प्रक्रिया में कोई भी चूक अधिक नुकसान पहुंचाएगी। हमें यह भी याद रखने की आवश्यकता है कि स्तन का दूध प्राकृतिक है और शिशु की आवश्यकता के लिए अनुकूलित है।

मिथक 4 : कम से कम रात में कुछ फार्मूला फीडिंग दी जानी चाहिए और माँ को आराम देना चाहिए

तथ्य: प्रोलैक्टिन एक हार्मोन है जो मुख्य रूप से रात में बनता है। शिशु के स्तन चूसने से अधिक प्रोलैक्टिन के उत्पादन होने में मदद मिलेगी। सफल स्तनपान के बाद मां और बच्चा दोनों को संतोष और शान्ति मिलती है। शिशु के विकास और अच्छे स्तन दूध उत्पादन को बनाए रखने के लिए रात में स्तनपान कराना बहुत महत्वपूर्ण है।

मिथक 5 : शिशु ठोस भोजन को पचा नहीं पाते हैं। इसलिए कॉम्प्लिमेंट्री फीड द्रव्य रूप (लिक्विड फॉर्म) में होनी चाहिए।

उत्तर: 6 महीने की उम्र के बाद, शिशुओं में अर्ध-ठोस (सेमी-सॉलिड) खाद्य पदार्थ लेने की क्षमता होती है। बच्चे  की गर्दन की मांसपेशियां और जठरांत्र प्रणाली ठोस पदार्थों को निगलने और पचाने के लिए पर्याप्त रूप में परिपक्व होगी। चरणबद्ध रूप से खाने में अधिक घनत्व वाले ठोस आहार शामिल करने से बच्चे के चबाने और निगलने के कौशल की परिपक्वता में भी मदद मिलेगी। तरल आहार (दाल का पानी / जूस आदि) में कम कैलोरी होती हैं और शिशु को जल्दी तृप्ति मिल जाती है इसलिए सिर्फ ऐसे तरल पदार्थ देने से शिशु पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं करेगा और उसे जरूरी ऊर्जा नहीं मिल पायेगी।

मिथक 6 : गर्मी के महीनों में हमें शिशुओं को अधिक पानी देना चाहिए

उत्तर: पहले 6 महीनों तक, केवल स्तनपान करने वाले शिशुओं के लिए स्तन का दूध पर्याप्त होता है। अतिरिक्त पानी देने की आवश्यकता नहीं है। शिशु की मांग के अनुसार मां के स्तन के दूध का उत्पादन बढ़ेगा।

प्रत्येक पूरक ठोस-आहार वाले फ़ीड के बाद, हम आमतौर पर पानी के कुछ घूंट देने की सलाह देते हैं। सिर्फ स्तन का दूध ले रहा हो तो शिशु को पानी की जरूरत नहीं होती क्योंकि स्तन के दूध में पानी की मात्रा पर्याप्त होती है। पर ध्यान रहे, अधिक तरल पदार्थ देने से बच्चे की भूख कम होगी और जल्दी तृप्ति होगी और शिशु भोजन पूरा नहीं लेगा। हाँ, यदि शिशु बीमार है तो हमें अधिक तरल आहार देने की जरूरत है।

मिथक 7 : अगर बच्चे को पर्याप्त मात्रा में दूध नहीं मिल रहा है तो उसे जबरदस्ती दूध पिलाना चाहिए

उत्तर: बच्चे को उसकी जरूरत के हिसाब से खाना दें। मात्रा के बारे में माता-पिता को फैसला नहीं करना चाहिए। बच्चे को आनंद से खाने देना चाहिए अन्यथा उसे खाने संबंधी विकार (ईटिंग डिसऑर्डर) हो सकते हैं (जैसे कि खाने के नखरे, अधिक खाना, बहुत कम खाना इत्यादि)। उसे विभिन्न स्वाद और घनत्व वाले विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ देने का प्रयास करें। जब परिवार खाना खा रहा हो तो बच्चे को अपने साथ बिठाएं।

मिथक 8 : शिशु मांसाहारी भोजन नहीं पचा सकता

उत्तर: हम 9 महीने की उम्र से ही शिशु के लिए मांसाहारी आहार शुरू कर सकते हैं। इसे अच्छी तरह से पकाकर और मसल (मैश) कर देना बेहतर होगा।

Dr Tejo Pratap Oleti

Dr. Tejo Pratap Oleti