
क्या आप जानते हैं कि कबूतर को दाना डालने जैसी सामान्य गतिविधि से कभी-कभी फेफड़ों की बीमारियां हो सकती हैं? वरिष्ठ पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ। प्रह्लाद प्रभुदेसाई कबूतरों के कारण होने वाले स्वास्थ्य खतरों पर हमारे सवालों का जवाब देते हैं।
क्या आप चूहों को खाना देने के लिए पार्क जाने की कल्पना कर सकते हैं? नहीं! लेकिन हम अकसर लोगों को कबूतरों को दाना डालते हुए देखते हैं। वैज्ञानिक शोध से प्रमाण मिला है कि कबूतर हमारे स्वास्थ्य के लिए उतने ही खतरनाक हो सकते हैं जितने कि चूहे जैसे जानवर । मनुष्यों द्वारा डाले गए दाने की वजह से कबूतरों को भोजन आसानी से उपलब्ध होता है और इस वजह से, पूरे भारत में महानगरीय शहरों में कबूतरों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, इस हद तक कि कबूतर इमारतों में कई जगह (जैसे कि छज्जों, छतों, खिड़कियों की जालियों और इमारतों के बीच की जगहों में) रहने लगे हैं और कबूतर-खाने (कबूतर घर) भी शहर में कई जगह नजर आते हैं।
Read in English: Can pigeons cause lung diseases?
कबूतर सहित सभी पक्षी 50 से अधिक ऐसी बीमारियों के वाहक होते हैं जो मनुष्यों को हो सकती हैं, और इन में कई बीमारियाँ घातक भी हैं। कबूतर में मौजूद विभिन्न रोगों के माइक्रोब मनुष्यों तक अनेक तरह से पहुँच सकते हैं - सीधा संपर्क से, दूषित पानी या खाद्य पदार्थों से, सांस से, या उनकी बीट से। इनमें से अधिकांश बीमारियां आसानी से हवा के माध्यम से फैलती हैं। कबूतर वहां एकत्रित होते हैं जहां वे जानते हैं कि उन्हें दाना-पानी मिलेगा। ज्यादा खाना मिलने से उस क्षेत्र में उनकी बीट भी ज्यादा गिरती है।
डॉ। प्रह्लाद प्रभुदेसाई, कबूतरों से संपर्क मनुष्यों के लिए हानिकारक क्यों हैं? क्या हमें कबूतरों को दाना डालना चाहिए?
कबूतरों को दाना डालना मनुष्यों के लिए हानिकारक होता है क्योंकि कबूतर की बीट में बहुत प्रभावशाली एलर्जी पैदा करने वाला तत्व (ऐलर्जन) होते हैं। कबूतर फंगस (एस्परगिलोसिस) जैसे संक्रमणों के वाहक भी होते हैं जिस से लोगों में बीमारी पैदा हो सकती है, खासतौर से ऐसे लोगों में जो पहले से मधुमेह से ग्रस्त हैं या जो इम्युनो-कॉम्प्रोमाइज़्ड स्थिति में हैं और जिनका इम्यून सिस्टम हाइपर्सेंसिव है (प्रतिरक्षण सिस्टम अतिसम्वेदनशील है)।
कबूतर की बीट का श्वसन प्रणाली पर क्या असर होता है?
कबूतर की बीट अत्यधिक अम्लीय (एसिडिक) होती हैं और यह आसानी से वायुमंडल में फैलती है जिससे ब्रोंकाइटिस हो सकता है और दमा के रोगियों में अस्थमा का दौरा पड़ सकता है।
कबूतरों के कारण फेफड़े के कौन-कौन से रोग क्या होते हैं?
कबूतरों के कारण फेफड़ों की विभिन्न बीमारियाँ होती हैं। कुछ सबसे आम फेफड़ों की बीमारियों में शामिल हैं - ब्रोन्कियल अस्थमा, क्रोनिक ब्रोंकाइटिस, अतिसंवेदनशीलता न्यूमोनिटिस (हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस, एचपी), और जैसे फंगल संक्रमण जैसे कि हिस्टोप्लास्मोसिस, एस्परगिलोसिस और क्रिप्टोकॉकोसिस। कबूतरों के कारण एक अन्य बीमारी जो फैलती है वह है एक फ्लू जैसी बीमारी जिसे सिटिटकोसिस कहा जाता है - यह एक सिस्टमिक बीमारी है जिससे एटिपिकल निमोनिया हो सकता है। कबूतर की बीट में साल्मोनेला जैसे इन्फेक्शन के जीवाणु भी हो सकते हैं।
बर्ड फैन्सीयर रोग क्या है?
यह एक प्रकार का हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस है, जो पक्षियों के ऐलर्जैन के कारण होने वाली एक व्यापक एलर्जी बीमारी है। इस बीमारी का ट्रिगर सूखे हुए पक्षियों के बीट के कानों में मौजूद या उनके पंख पर मौजूद एवियन प्रोटीन से संपर्क हो सकता है।
भारत में कबूतरों के संपर्क में आने के कारण सबसे आम बीमारी कौन सी है?
यह पूरी तरह से ज्ञात नहीं है, लेकिन यह संभवतः हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस (एचपी) है। आंकड़ों के अनुसार और हमारे नैदानिक अनुभव में भी एचपी भारत में आईएलडी (इन्टरस्टिशियल लंग डिज़ीज़) का सबसे सामान्य रूप है।
किसी भी फेफड़ों की बीमारी की शुरुआत पहचानने के लिए हमें कौन से लक्षणों के प्रति सतर्क रहना चाहिए?
खांसी, सांस लेने में दिक्कत, घरघराहट और चरचराने की आवाज़ जो ठीक न हो रही हों और लंबे समय तक चल रही हों। यदि आपको इन लक्षणों में से कोई भी है, तो ऐतिहात के तौर पर अपने डॉक्टर द्वारा जांच करवाएं।
फेफड़ों के रोग कितने घातक हैं? क्या उन्हें ठीक किया जा सकता है?
हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस यदि लम्बे अरसे से है (क्रोनिक) तो बहुत घातक होता है - इस स्थिति में जीवित रहने की संभावना कम करता है, और रोगी काफी अस्वस्थता महसूस करते है। प्रारंभिक अवस्था में यदि हम पूरी तरह से बीमारी के कारक ट्रिगर हटा पायें तो यह बीमारी दूर की जा सकती है वरना यह बीमारी क्रोनिक और प्रगतिशील हो जाती है।
पक्षियों के कारण होने वाले फेफड़ों के रोगों के जोखिम को हम किन तरीकों से रोक सकते हैं?
लोगों को यह जानकारी देनी चाहिए कि आवासीय क्षेत्रों में कबूतरों को दाना डालने के जोखिम क्या हैं और कबूतरों से क्यों दूर रहना चाहिए, खासकर उन लोगों को जिन्हें पहले से ही फेफड़ों के रोग हैं। कबूतर को दाना डालना वर्जित होना चाहिए!
डॉ। प्रह्लाद प्रभु देसाई (एमडी, डीएनबी, एफसीसीपी) 28 वर्षों से मुंबई में एक प्रसिद्ध पल्मोनोलॉजिस्ट और लेक्चरर के रूप में काम कर रहे हैं। वह 20 साल से लीलावती अस्पताल में कार्यरत हैं। उनकी विशेषज्ञता के क्षेत्रों में शामिल हैं - सभी डिफ्यूज और ऑब्सट्रक्टिव लंग डिजीज, धूम्रपान बंद करना और दवा-प्रतिरोधी तपेदिक।