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Submitted by PatientsEngage on 18 March 2021
Dr. Rekha Ramachandran on the right with her daughter Babli with down syndrome on the left

डॉ। सुरेखा रामचंद्रन डाउन सिंड्रोम वाली एक युवती की माँ हैं और वे डाउन सिंड्रोम फेडरेशन ऑफ इंडिया की अध्यक्षा हैं। इस लेख में वे  डाउन सिंड्रोम के बारे में प्रचलित कुछ  गलत धारणाओं पर प्रकाश डालती हैं और वास्तविकता क्या है, यह बताती हैं। वे विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस के अवसर पर सभी माता-पिता के लिए एक संदेश भी देती हैं।

वर्ष 1984 में 6 बच्चों के साथ स्थापित, डीएसएफ़आई आज न केवल भारत के बल्कि मिडिल ईस्ट के भी असंख्य बच्चों को सेवाएं प्रदान करता है। डीएसएफआई उन लोगों के लिए समर्थन और प्रोत्साहन का एक निरंतर स्रोत रहा है जिन्हें  डाउन सिंड्रोम को स्वीकारने में दिक्कत हो रही है। डाउन सिंड्रोम वालों के माता-पिता अकसर कुछ गलत धारणाओं को लेकर परेशान रहते हैं, और डॉ। सुरेखा रामचंद्रन उन गलतफहमियों को दूर करने में बहुत दृढ़ संकल्प हैं।
पेशेंट्सएंगेज (PatientsEngage) का डाउन सिंड्रोम सिंड्रोम फेडरेशन ऑफ इंडिया की संस्थापिका  डॉ। सुरेखा रामचंद्रन के साथ इंटरव्यू पेश है।

1.   डाउन सिंड्रोम वाले व्यक्ति हमेशा खुश और स्नेहशील होते हैं

यह सच नहीं है : डाउन सिंड्रोम वाले व्यक्ति दूसरों की तरह ही इंसान हैं और उनके मूड और उनकी भावनाएं भी सब की तरह होती हैं। वे गुस्सा महसूस कर सकते हैं, वे दुखी हो सकते हैं, और वे खुशी भी महसूस कर सकते हैं। वे दर्द महसूस करते हैं, वे क्रोध और हताशा महसूस करते हैं और जब उनकी जरूरतों को अनदेखा किया जाता है तो कभी-कभी वे आक्रामक भी हो सकते हैं । वे शायद दूसरों से अलग होने लगें और अपनी भावनात्मक चोट को अपने अन्दर छुपा सकते हैं और डिप्रेस हो सकते हैं।

मेरी बेटी तब गुस्सा हो जाती थी जब वह अपनी बात बहुत कोशिश करने के बावजूद ठीक से समझा नहीं पाती थी। जब उसे लगता था कि हम उसे नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे हैं तो वह गुस्सा करती थी और हमारा विरोध करती थी।

इसलिए, उनकी बात सुनना और समझा सीखें। धैर्य रखें और उनकी भावनाओं को समझने की कोशिश करें।

2.   डाउन सिंड्रोम वाले लोग मासूम और निष्कपट होते हैं

यह सच नहीं है : वे स्थिति को समझने में होशियार हैं और जो चाहते हैं उसे पाने के लिए, वे अन्य बच्चों की तरह, चालाकी और हेर फेर भी कर सकते हैं। वे आसपास हो रही  बातों को बहुत ध्यान से देखते हैं और स्थिति के अनुसार अपना काम करवाने के लिए तरीके निकाल सकते हैं और लोगों से कैसे बात करें, यह तय कर सकते हैं।

उदाहरण के तौर पर, जैसे कि सब बच्चों में देखा जाता है, वे यह जान पाते हैं कि माँ अधिक कठोर हैं या पिता। या किस टीचर से मदद माँगना अधिक आसान होगा । वे जानते हैं कि किसी अभिभावक से कब और  किस चीज की मांग करें।

3.   डाउन सिंड्रोम वाले लोग स्वतंत्र रूप से नहीं रह सकते हैं

यह सच नहीं है : डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे स्कूलों में पढ़ते हैं। कम उम्र से ही कारगर कदम/ हस्तक्षेप से, और “राईट टू एजुकेशन” (आरटीई, सब को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार) के तहत, माता-पिता यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उनके बच्चे स्कूल जाएं, उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज जाएं और फिर अपनी जीविका कमा पायें। हमारे आस-पास, सामान्य जीवन बिताने वाले डाउन सिंड्रोम वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है और ये लोग “रोल मॉडल” के रूप में मौजूद है।

He works in a 5 Star Hotel

She runs a Cafe  (change link to Hindi version once that is up)

Owner of An Art and Pottery Studio

A Master's Degree in Sanskrit

A Teacher's Assistant in Delhi

4.   वे केवल नरम खाद्य पदार्थ खा सकते हैं

कुछ सच, कुछ गलत। अक्सर माता-पिता डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों को सिर्फ  नरम भोजन और  मसले हुए खाद्य पदार्थ खिलाते हैं, जिन्हें उन्हें बस निगलना होता है। इसलिए वे कभी चबाना नहीं सीखते। यह सच है कि डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों में शिशुकाल में जीईआरडी / एसिड रिफ्लक्स होता है और उनमें उल्टी की समस्या नज़र आती है और वे कुछ खाद्य पदार्थ खाने से इनकार करते हैं (फ़ूड रेफ़्युसल)। लेकिन उनके भोजन में ठोस खाद्य पदार्थों को धीरे-धीरे और थोड़ा-थोड़ा कर के शामिल करा जाना चाहिए ताकि वे चबाना  सीखें और विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ लेने में सक्षम बन पाएं ।

5.   वे शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं हैं। वे साइकिल नहीं चला सकते हैं और बाहर नहीं खेल सकते हैं

बिलकुल गलत। वे बाहर खेल सकते हैं और उन्हें खेलना भी चाहिए। यह न केवल उनके स्वास्थ्य के लिए बल्कि उन में सामाजिक कौशल के विकसित होने के लिए और समुदाय में भागीदारी के लिए भी महत्वपूर्ण है। साइकिल चलाना, तैराकी, नृत्य सभी अच्छी गतिविधियाँ हैं।

उन्हें दोस्त बनाने के लिए प्रोत्साहित करें। शायद कुछ दूसरे बच्चे उन्हें खेल में शामिल न करें  और उन्हें बुरा लगे, पर ऐसे अनुभव से वे इस प्रकार के व्यवहार से निपटना सीखेंगे  और मौजूदा सामाजिक संरचनाओं से कैसे जूझें, यह सीखेंगे। उन्हें दोस्तों के साथ घूमने दें, खरीदारी करने दें, अपनी पसंद व्यक्त करने दें और अपने निर्णय लेने दें।

उनका गैजेट और स्क्रीन समय सीमित करना भी जरूरी है ताकि उनमें लोगों के साथ मिलने जुलने और बातचीत करने के सामाजिक कौशल विकसित हो पायें।

 

अंत में इस अवसर पर माता-पिता के लिए डॉ। सुरेखा रामचंद्रन का एक संदेश:

आपके बच्चे को आपकी सहानुभूति की जरूरत नहीं है। वे अपने अधिकारों के हकदार हैं।

आपके बच्चे को वे सभी अवसर मिलने चाहिए जो अन्य बच्चों को उपलब्ध हैं।

अपने बच्चे को सार्वजनिक स्थानों पर लाएँ। पार्क में जाएँ, समुद्र तट (बीच) पर जाएँ, थिएटर जाएँ।

उन्हें स्कूलों में दाखिल कराएं, और अगर कोई समस्या है, तो उस के निपटने के लिए आरपीडब्ल्यूडी एक्ट और डाउन सिंड्रोम अधिवक्ताओं के समुदाय का लाभ उठाएं।

उन्हें सामान्य जीवन के लिए आवश्यक जीवन कौशल सिखाएं ताकि वे स्वतंत्र रूप से रह सकें

उन्हें बाहर जाने, काम करने और अपनी जीविका कमाने के लिए प्रोत्साहित करें

लोगों को घूरने दें। वे सुंदर लोगों को घूरते हैं।

अपने बच्चे को आत्मगर्व महसूस करने के लिए प्रोत्साहित करें।

अपने बच्चे में आपका विश्वास होगा तो बच्चे का विश्वास बढ़ेगा/ बच्चे के लिए अच्छा होगा

Dr. Surekha Ramachandran is the Chairperson of the Down Syndrome Federation of India. She has been instrumental in helping many parents become more confident about the future of their child with Down syndrome by counselling and guiding them. She has started many Parent Support Groups across the country to achieve the goal of an inclusive society. Today if there are many self-advocates in the country, it is thanks to her tireless efforts.

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