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Submitted by Anal Shah on 2 July 2022
Recovery from grief and loss of a child

अनल शाह के जवान बेटे को अचानक बुखार हुआ और कुछ ही दिन में उसकी मृत्यु मल्टीऑर्गन फेलियर के कारण हो गयी – इस शोक और अत्यधिक पीड़ा को सहना और उस से उभरना अनल शाह के लिए बहुत ही कठिन रहा है। लेकिन अब, बेटे को खोने के लगभग पांच साल बाद लगता है उन्हें कुछ शान्ति मिल पाई है।

किसी भी माँ-बाप के लिए अपने बच्चे की मृत्यु सबसे अधिक सबसे शोकपूर्ण घटना है!  मैंने अपनी माँ, कुछ कसिन, दादा-दादी, दोस्तों की मृत्यु देखी है, लेकिन मेरा बच्चा – जिसे मैंने 9 महीने तक गर्भ में पाला था – उस बच्चे को खोने के दर्द इन सब के दर्द से कहीं बढ़कर है। पर हालांकि यह शुरुआत में असहनीय लग सकता है, फिर भी मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ, कि समय के साथ इसकी तीव्रता कम होती है, कुछ शांति मिल पाती है।

Read this in English: How I Dealt with the Loss of my Child 

शुरू के दिनों में तो मैं पूरी तरह थकी रहती थी, बस यंत्रवत, ऑटोपायलट पर किसी तरह दिन गुज़ार रही थी

मेरे बेटे की मृत्यु 2017 में हुई थी – वह तब 15 साल का था। उसे खोने के बाद के कुछ महीने मैं बस एक मशीन की तरह, बिना सोचे, मानो ऑटोपायलट पर जी रही थी। मैं एक चलती फिरती लाश थी। मेरा मस्तिष्क सिर्फ जीते रहने के लिए जो आवश्यक था, वही कार्य कर पा रहा था। मेरी पीड़ा न केवल भावनात्मक थी बल्कि मैंने इसे एक गंभीर शारीरिक पीड़ा के रूप में भी महसूस किया। अगर कोई आवश्यक सामान्य कार्य करने को कहता – जैसे कि "चाय पियो" या "खाना खाओ" तो मैं वह काम कर पाती। मुझे याद है कि मेरी सास मेरे सामने खाने की थाली रखतीं और मुझे खाने के लिए कहतीं। मैं बिना सोचे या परखे खा लेती, बिना देखे या समझे कि मैं क्या खा रही हूँ। अगर वे थाली में कुछ अतिरिक्त परोस देतीं और खाने के लिए कहतीं, तो मैं वह भी खा लेती। खा तो लेती पर बिना कुछ अनुभव किए। सच में वह मेरे लिए बहुत ही बुरा समय था।

मेरा मस्तिष्क अत्यधिक पीड़ा में था और उस से निकल पाने के लिए रास्ता ढूंढ रहा था। मैं अपने जीवन की सबसे तर्कहीन घटनाओं में मतलब खोजने की कोशिश कर रही थी! मैं दर्द से छुटकारा पाने की कोशिश कर रही थी - मुझे नींद में कुछ राहत मिलती थी। मुझे बाद में पता चला कि अत्यधिक दुःख के कारण मेरा शरीर एकदम थक गया था और इसलिए मुझे इस तरह के आराम की और लंबे समय तक सोने की जरूरत थी। उन शुरू के महीनों में मेरा दिमाग इस दलदल से निकलने का रास्ता खोज रहा था। शायद ऐसी किसी भी स्थिति में किसी भी स्वस्थ मस्तिष्क की ऐसी ही प्रतिक्रिया होगी।

अपनी नौकरी और घरेलू काम फिर से शुरू करना

पहली बात तो यह है कि मैंने सातवें दिन से ही ऑफिस का काम फिर से शुरू कर दिया। शुरू में कुछ ख़ास काम नहीं किया – बस ऑफिस तक ड्राइव करती, ज्यादा से ज्यादा आधे घंटे कंप्यूटर स्क्रीन को ताकती, और फिर वापस घर आ जाती। लेकिन उन 30 मिनट के लिए आंसुओं को रोकने से मेरे दिमाग को अपने शोक से कुछ आराम मिलता। उतने समय के लिए मैं एक अलग माहौल में होती थी जो मुझे अपने बेटे की याद नहीं दिलाती थी। यह मेरे दिमाग को निरंतर मौजूद दर्द से कुछ अवकाश देता था। मुझे याद है कि मैं 3 महीने में अपने सामान्य ऑफिस  के काम को फिर से शुरू कर पायी। मैंने इसे एक मील का पत्थर के रूप में चिह्नित किया है!

जितना हो सकता था, मैंने सामान्य घरेलू कामों को भी फिर से शुरू करने की कोशिश की, हालांकि मेरा परिवार इन कामों में मदद करने की कोशिश कर रहा था। मैंने अपनी बेटी के लिए टिफिन बनाना शुरू किया। मेरे जुड़वां बच्चे थे – एक बेटा ,एक बेटी। बेटे को खोने के बाद मुझे सिर्फ एक टिफिन का डब्बा बनाना होता था, अपनी बेटी के लिए – जबकि केवल  दो सप्ताह पहले ही मैं दो डब्बे बनाती थी। यह याद बहुत कष्टदायक थी, पर ऐसे घर के काम शुरू करने से मुझे अपने जीवन में कुछ मायना देखने में और अनुशासन लाने में मदद मिली।

बेटी के लिए फिर से सामान्य जीवन जीने की कोशिश

मुझे पूरा यकीन था कि मुझे अपनी बेटी के लिए एक सम्मानजनक और सामान्य जीवन जीना होगा। मेरी बेटी ने अपने जुड़वाँ भाई को खो दिया था, उसे एक मजबूत माँ की ज़रूरत थी, न कि एक ऐसी माँ जो कुछ कर न पाए। इस ख़याल ने मुझे ठीक होने के लिए और अधिक कोशिश करने के लिए प्रेरित किया। जो हुआ था, उसमें मुझे अर्थ खोजना था। मुझे हमेशा से किताबों को पढ़ने का शौक रहा है, और इसी शौक ने मुझे बचाया। मेरे हाथ जो भी आध्यात्मिक किताब लगती, मैं उसे पढ़ती। लगभग हर दूसरे दिन, मैं अमेज़ॅन से किताबें आर्डर करती और मेरा परिवार सोचने लगा, इसे क्या हो गया, यह ठीक है या नहीं! लेकिन इस तरह से पढ़ने की बदौलत ही मैं शोक की गहरी सुरंग से बाहर निकल पायी।

जर्नल में नियमित लेखन

मेरी तीसरी युक्ति थी जर्नलिंग। मैंने अपनी सारी भावनाएं लिखती। हर बार जब मैं अभिभूत होती, मेरे लेखन द्वारा मेरी भावना को एक सुंदर दस्तावेज़ का रूप मिलता। इसने दोहरे उद्देश्य की पूर्ति की। यह लेखन का कार्य न केवल मेरे लिए एक उपचार साबित हुआ, बल्कि बाद में जब मैंने अपनी रचनाओं को फिर से पढ़ा, तो मुझे यह महसूस हुआ कि मैं अपने शोक से उभरने में कितनी कामयाब रही हूँ, और मुझे अपने ठीक होने के प्रयास को बनाए रखने के लिए अधिक प्रेरणा मिली। पिछले 5 साल से मैं रोज अपने बेटे को रोज एक पत्र लिखती हूं। यह मेरी निजी छुपी हुई रस्म है।

रोज सैर करना

एक दोस्त के जोर देने पर मैंने रोज टहलना शुरू करा। हमें एक ऐसे स्थान की जरूरत थी जहाँ हम अपने किसी परिचित से मिले बिना टहल सकें और ऐसे स्थान पर पहुँचने के लिए मैं और मेरे पति लगभग 30-45 मिनट ड्राइव करते थे। मैं उन दिनों किसी का सामना नहीं कर पाती थी और किसी से आँख नहीं मिला सकती थी। आस-पास के अधिकांश पार्कों में परिचित लोग मिल जाते थे जिससे मैं विचलित हो जाती थी। उन दिनों के बारे में सोचती हूं तो मैं अब भी सिहर उठती हूं। मैं घबराहट के मारे एकदम चकनाचूर हो गयी थी। व्यायाम ने मुझे अपने विचारों को संसाधित करने में मदद की और मेरे सोच-समझ पाने की क्षमता पर छाए धुंधलेपन को दूर करने में भी मदद की। जब बारिश का मौसम आया और मैं चलने नहीं जा पाती थी, तो मुझ बेचैनी और एंग्जायटी होती!

“एक्ट ऑफ़ काइंडनेस” (नेकी के काम)

मैं मेरा बेटा 27 तारीख को गुजरा था और ने हर महीने 27 तारीख को एक “एक्ट ऑफ़ काइंडनेस” करना शुरू कर दिया। इस से हर महीने की 27वीं तारीख को सहना संभव करा। दूसरों के लिए ऐसे कुछ नेकी के कार्य कर पाने ने मुझे अपार शांति दी। हर महीने 27 तारीख को मैं अपने बेटे का सम्मान करने और उसे याद करने के लिए कुछ न कुछ करती हूं। मुझे यकीन है कि वह ऊपर मुसकुरा रहा है!

मैं अब ठीक हूँ

बेटे के निधन को अब लगभग 5 साल होने को हैं। मैं अब शांत महसूस कर रही हूं, और मैं स्थिति स्वीकार को कर रही हूं । इसका मतलब यह नहीं है कि मुझे उसकी याद नहीं आती - मैं उसे हर सांस के साथ याद करती हूं। यह याद कभी-कभी स्वतः आ जाती है – लेकिन इससे मुझे पहले जितनी पीड़ा नहीं होती। जो हुआ उसे मैंने स्वीकार कर लिया है और मैं मानती  हूं कि यह उसकी और मेरी आत्मा का कार्मिक ऋण था, चाहे आप इसे किसी भी नाम से पुकारें। मैं उस सभी के लिए आभारी हूं जो मेरे पास था और जो अब भी है।

ठीक होने का काम जान बूझकर करना होता है, रोज करना होता है, आपको अपने मस्तिष्क में मौजूद पैटर्न को नई परिस्थिति, नई  सच्चाई के अनुरूप एक नई तरह से फिर से बनाना होता है। मानो मस्तिष्क के कंप्यूटर पर वायरस ने हमला किया है और आपको सिस्टम को फॉर्मेट करना होगा। इस तरह की रीवायरिंग एक कठिन काम है और नया सॉफ्टवेयर सीखना कठिन है। लेकिन अगर हम चाहें, तो हम निश्चित रूप से नई प्रणाली सीख सकते हैं और मेरा विश्वास कीजिये, हमारा मस्तिष्क का सिस्टम ऐसे अपग्रेड के प्रयास के योग्य है!

हर व्यक्ति अपने हिसाब से शोक से जूझता है। एक कदम आगे चलना, फिर दो कदम पीछे फिसल जाना (कभी 3 कदम फिसलना, कभी नहीं फिसलना)। धीरे-धीरे आप एक मिलीमीटर आगे बढ़ते हैं और यही छोटे-छोटे कदम मिल कर बड़ा फासला बन जाते हैं, आप के जाने बिना ये मिलीमीटर जुड़-जुड़ कर एक किलोमीटर बन जाते हैं। पीछे मुड़कर देखेंगे तो आपको अपनी यात्रा पर आश्चर्य होगा।

आशा है कि मेरा बीटा, जहां भी है, मेरी इस यात्रा और मेरे प्रयत्न से खुश होगा!!

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