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Submitted by PatientsEngage on 19 June 2022

पत्रकार रवि प्रकाश, जो खुद स्टेज 4 फेफड़े के कैंसर सर्वाइवर हैं, अनु भाटिया की लिखी किताब ‘कुछ साल दे दो' पर अपने विचार साझा करते हैं। यह विचार उन्होने twitter पर साझा किये।

#कैंसर पर हिन्दी में लिखी किताब ‘कुछ साल दे दो’ कई बार रुलाती है। यह उस पत्नी की डायरी है, जिसके पति #Cancer के चौथे स्टेज से जूझ रहे थे। घर में 2 बड़ी बेटियाँ व 1 बेटा। अनु भाटिया ने यह सब कैसे मैनेज किया, इसका बयान है यह किताब। शुक्रिया @PatientsEngage, यह किताब सुझाने के लिए।

यह किताब पति-पत्नी, डॉक्टर-मरीज़, माँ-पिता और उसकी संतानों के बीच के संबंधों की दास्तान है। कैसा लगेगा, जब कोई डॉक्टर एक महिला से कहे - आप अपने बच्चों की सोचो। वे (पति) बस चंद घंटों के मेहमान हैं। तब कोई स्त्री इस परिस्थिति का कैसे प्रबंधन करती है, इसकी कहानी है यह किताब। #Cancer

यह किताब इसका भी खुलासा करती है कि नीम-हकीमों के चक्कर में पड़कर #कैंसर का कोई मरीज़ कैसे अपनी ज़िंदगी दाँव पर लगा देता है। साथ ही ज़िंदगी का महत्व भी समझाती है ‘कुछ साल दे दो’। अनु दिल्ली के एक बड़े स्कूल की शिक्षिका हैं और उन्होंने बड़ी ईमानदारी से अपनी कहानी लिखी है। 

Link to the twitter thread

Read the interview with Anu Bhatia here: Had to pull myself after my husband's throat cancer

 

 

 

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