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Submitted by PatientsEngage on 21 September 2022

डिमेंशिया देखभाल के लिए क्या जरूरी है? इस दो-भाग के लेख में डिमेंशिया के कई पहलुओं पर जानकारी और टिप्स साझा कर रही हैं स्वप्ना किशोर| लेख के इस दूसरे भाग में चर्चा है डिमेंशिया के निदान के बाद देखभाल के पहलुओं पर। स्वप्ना किशोर की अंग्रेजी और हिंदी में इस विषय पर विस्तृत वेबसाइट भी हैं|  

(इस लेख के पहले भाग में चर्चा के विषय हैं डिमेंशिया के लक्षण, डिमेंशिया और सामान्य उम्र वृद्धि में फर्क, और निदान की प्रक्रिया: लिंक देखें)

डिमेंशिया ठीक करने की कोई दवा नहीं है, और दवा से उपलब्ध राहत सीमित है। ऐसे में डिमेंशिया के प्रबंधन के लिए परिवार क्या कर सकता है?

डिमेंशिया (इसे मनोभ्रंश  के नाम से भी जाना जाता है) में देखभाल की अहम भूमिका है। व्यक्ति और परिवार की खुशहाली के लिए देखभाल को स्थिति के अनुरूप ढालना आवश्यक है।

डिमेंशिया वाले व्यक्ति की देखभाल सामान्य बुज़ुर्ग की देखभाल से अलग है। मस्तिष्क में क्षति के कारण व्यक्ति को हर समय स्थिति समझने में और काम करने में दिक्कत रहती है। उनकी देखभाल के लिए वे तरीके शायद ठीक न हों जो लोग स्वाभाविक तौर पर सामान्य बुजुर्गों के लिए इस्तेमाल करते हैं।

परिवार वालों को समझना होगा कि डिमेंशिया (मनोभ्रंश ) के कारण व्यक्ति को किस तरह की दिक्कतें हो रही हैं और समय के साथ यह कैसे बढ़ सकती हैं। इस जानकारी से उचित देखभाल के तरीके ढूँढने और अपनाने में और बेहतर योजना बनाने में मदद मिलेगी। परिवार वाले घर में बदलाव करके व्यक्ति के दैनिक जीवन को आसान कर सकते हैं। वे व्यक्ति से बात करने के और उनकी मदद करने के तरीके बदल सकते हैं।  व्यक्ति के बदले व्यवहार या बढ़ती निर्भरता के लिए क्या करें, यह भी सोच सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, परिवार वाले व्यक्ति के भटकने और खोने का खतरा पहचान सकते हैं और इस समस्या से बचने के लिए कदम ले सकते हैं।

देखभाल के प्रति किस तरह का दृष्टिकोण सकारात्मक और व्यावहारिक हो सकता है?

कुछ परिवार वाले यह नहीं पहचान पाते, या यह नहीं स्वीकार कर पाते कि देखभाल में चुनौतियाँ होंगी और स्थिति बिगड़ती जाएगी, इसलिए आगे के बारे में सोचते ही नहीं और जब दिक्कतें बढ़ती हैं तो पाते हैं कि वे उनके लिए तैयार नहीं हैं।

डिमेंशिया में आगे की अवस्थाओं में क्या-क्या हो सकता है, इस के बारे में पढ़ा या सुना हो, या व्यक्ति में बदलावों से दिक्कत हो रही हो तो ऐसे में परिवारों को देखभाल का काम डरावना लग सकता है। क्या करें, क्या नहीं, यह समझ पाना बहुत कठिन होता है। कुछ परिवार सालों तक परेशान रहते है और बिलकुल थक जाते हैं। पर अन्य परिवार देखभाल के ऐसे तरीके खोज पाते हैं जो उनके लिए ठीक रहते है। उन्हें भी तकलीफें होती हैं पर मोटे तौर पर वे स्थिति से एडजस्ट कर पाते हैं।

परिवार वाले परेशान देखभाल कर्ता से अपेक्षाकृत शांत देखभाल कर्ता में कैसे बदल सकते हैं?

इस विषय पर कई परिवारों ने मुझे बताया है कि देखभाल के प्रति उनका नजरिया तब बदलने लगा जब उन्हें भावनात्मक रूप से एहसास हुआ कि व्यक्ति को हर समय किस तरह की और कितनी दिक्कत हो रही है।

परिवारों ने यह साझा  किया है कि शुरू में उन्होंने अकसर डिमेंशिया पर लेख पढ़े थे और टिप्स सुने थे लेकिन वह जानकारी उनके दिमाग में ज्यादा टिक नहीं पाई थी। उन्हें लगता था कि इस सब का उनकी स्थिति में कोई फायदा नहीं है। पर डिमेंशिया को भावनात्मक रूप से समझने के बाद उन्हें वही टिप्स उचित लगने लगीं और बेहतर याद भी रहने लगीं। बेहतर देखभाल के तरीके अपनाना आसान होने लगा। जैसे कि यदि पहले प्रियजन बार-बार कुछ पूछते थे तो देखभाल कर्ता को चिढ़चिढ़ाहट होती थी और वे पलट कर गुस्सा करते। पर भावनात्मक रूप से डिमेंशिया स्वीकारने के बाद सब्र और सहानुभूति का भाव अधिक स्वाभाविक होने लगा।

देखभाल के प्रति नजरिए में यह मोड़ (टर्निंग पॉइंट) अलग अलग लोगों के लिए अलग अलग समय पर आ सकता है। जैसे कि, मान लीजिए कोई अन्य डिमेंशिया देखभाल करने वाला कोई विशिष्ट घटना (या घटनाओं) का वर्णन कर रहा है और सुनने वाले को अचानक लगे कि अरे, यह तो मेरे पापा के साथ भी होता है! मैं तो सोच रही थी कि पापा जिद्दी हैं, या आलस कर रहे हैं या जान-बूझ कर परेशान कर रहे हैं, पर शायद मैं गलत थी! शायद पापा कोशिश कर रहे है पर उन्हें वाकई बहुत दिक्कत हो रही है, वे कितना परेशान हो रहे होंगे!

भावनात्मक तौर से जब परिवार वाले यह समझने लगते हैं कि मस्तिष्क में हुई क्षति का व्यक्ति पर कितना असर हो रहा है, तो यह समझ देखभाल कर पाने के लिए एक ठोस भावनात्मक बुनियाद बन जाती है। देखभाल की स्थिति से उत्पन्न प्रतिरोध भावना काम होने लगती है, और परिवार वालों को देखभाल के लिए सक्रिय रूप से रचनात्मक तरीके ढूँढने में आसानी होने लगते हैं। वे उपलब्ध सलाह से भी उपयुक्त टिप्स छांट पाते हैं।

हर परिवार में स्थिति फर्क होती है इसलिए देखभाल में क्या बेहतर रहेगा, यह भी फर्क होता है। बाहर वालों के मुकाबले परिवार वाले अपनी स्थिति के लिए उपयुक्त तरीके बेहतर ढूंढ सकते हैं क्योंकि वे व्यक्ति के अतीत और पसंद-नापसंद को जानते हैं और यह भी जानते हैं कि उनके  घर और परिस्थिति में क्या संभव है और क्या नहीं। यदि परिवारों को डिमेंशिया और देखभाल पर जानकारी और सुझाव उपलब्ध हों तो वे देख पाएंगे कि उनकी स्थिति में क्या संभव और कारगर हो सकता है, और वे देखभाल बेहतर संभाल पाएंगे ।

देखभाल के लिए क्या कुछ खास तरीके सीखने होंगे?

हाँ, डिमेंशिया की देखभाल सामान्य बुजुर्गों की देखभाल से कुछ अलग है, इसलिए कुछ तरीके सीख लेने चाहियें।

आपको डिमेंशिया के बारे में समझना होगा, और जानना होगा कि किस तरह की चुनौतियाँ हो सकती हैं - वर्तमान में, और भविष्य में - ताकि आप मोटे तौर पर तैयार हो पाएं और योजना बना पाएं। व्यक्ति को कम दिक्कतें हों, उस के लिए घर में कुछ बदलाव से मदद मिल सकती है। व्यक्ति से बातचीत करने और उनकी मदद करने के तरीकों को भी डिमेंशिया से उत्पन्न दिक्कतों की वास्तविकता के अनुरूप बदलना होगा। इन सब के लिए सुझाव उपलब्ध हैं। बदले और विचलित व्यवहार के कारण समझने और उन से जूझने के लिए भी तरीके उपलब्ध हैं। डिमेंशिया के बावजूद, व्यक्ति की जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए भी कुछ कदम लिए जा सकते हैं, और इन  से घर में सभी की खुशहाली बढ़ सकती है। डिमेंशिया के बिगड़ने पर व्यक्ति की बढ़ती निर्भरता को कैसे संभालें, यह भी सोचना होगा।

देखभाल  का एक जरूरी अंश है एक नियमित दिनचर्या अपनाना, ताकि दिन जाने-पहचाने ढाँचे में बीते और व्यक्ति को स्थिरता मिले और तनाव कम हो। दिनचर्या में आवश्यक दैनिक कार्यों के अतिरिक्त कुछ नई और रुचिकर चीज़ें, और व्यक्ति की क्षमता के अनुसार शारीरिक और मानसिक गतिविधियां जरूर जोड़ें, ताकि व्यक्ति सक्रिय रह पाएं, उन्हें आनंद मिले, और जीवन संतोषजनक और सार्थक लगे।

जब आप डिमेंशिया से उत्पन्न दिक्कतों को तर्क और भावनात्मक रूप से समझने लगेंगे तो योजना बनाना और उचित तरीकों को अपनाना आसान होने लगता है। 

जब प्रियजन परेशान, गुस्सा या हताश हों, उस समय देखभाल कर्ता खुद को कैसे याद दिलाएं कि क्या तरीका उचित है?

एक बड़ी चुनौती यह है कि परिवार वाले सालों से प्रियजन के चेहरे के हर भाव को जानते हैं और उनके खराब मूड के हलके से अंदेशे को तुरंत पहचान लेते हैं। प्रियजन के चेहरे पर गुस्से की हल्की झलक पर वे आदत से मजबूर या तो वापस लड़ने लगते हैं या चोट महसूस करते है और सिकुड़ जाते हैं।

जब व्यक्ति डिमेंशिया से उत्पन्न चुनौतियों की वजह से गुस्सा या हताश हो तो उनके हावभाव के सामने पुरानी आदत के बजाए सब्र और सहानुभूति का भाव बनाए रखना मुश्किल है। व्यक्ति की दिक्कतों की वास्तविकता को भावनात्मक स्तर पर पहचानना इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। पर ऐन मौके पर खुद को यह याद दिला पाना फिर भी मुश्किल रहता है।

अपने स्वभाव के अनुकूल हर देखभाल कर्ता को कोई ऐसा तरीका ढूंढना होगा जिस से ऐसे मौकों पर उन्हें याद रहे कि व्यक्ति का व्यवहार का कारण डिमेंशिया है, ताकि वे उचित और असरदार तरीके का इस्तेमाल करें।

एक टिप: किसी ऐसे चित्र के बारे में सोचें जो एक झलक में ही डिमेंशिया की सच्चाई दर्शाती हो। प्रियजन में चिढ़चिढ़ाहट या मायूसी की कोई संभावना हो तो इस चित्र को तुरंत अपने ज़हन में लायें। (साइड बार में ऐसा एक चित्र देखें जिस में सामान्य मस्तिष्क के और डिमेंशिया वाले मस्तिष्क की तुलना है)। चित्र याद आते ही यह भी याद आएगा कि प्रियजन के मस्तिष्क में सचमुच क्षति हुई है जिस के कारण उन्हें तकलीफ हो रही है। इस रिमाइंडर से व्यक्ति को समझने में और उनके प्रति सहानुभूति महसूस करने में आसानी होगी। ऐसे चित्र दूसरों को डिमेंशिया समझाने के लिए भी उपयोगी हैं।

 

Alzheimers brain

 

डिमेंशिया समय के साथ बिगड़ता है। इस का देखभाल पर क्या असर होता है?

अधिकाँश डिमेंशिया में मस्तिष्क में क्षति बढ़ती रहती है, जिस से व्यक्ति की क्षमताएं घटती रहती हैं, लक्षण बिगड़ते रहते हैं और दूसरों पर निर्भरता भी बढ़ती जाती है।

देखभाल के लिए आज जो तरीका काम कर रहा है, वह शायद कल काम न करे। परिवार वालों को बदलती और बिगड़ती स्थिति के लिए क्या ठीक रहेगा, यह पता चलाना होगा। उन्हें फिर कुछ सीखना होगा, बदलना होगा, और आजमाना होगा। फिर से गलतियां होंगी।  उन्हें फिर नया तालमेल बिठाना होगा।

देखभाल का पूरा सिलसिला जानकारी प्राप्त करने का और उचित रचनात्मक बदलाव करते रहने का लम्बा सफ़र है।

देखभाल करने वाले थकान और तनाव के लिए क्या करें?

यह जरूरी है कि देखभाल कर्ता अपने प्रति स्नेह और सहानुभूति का भाव रखें। देखभाल में हुई गलतियों पर न तो वे व्यक्ति से हताश हों, और न ही खुद को कोसें। देखभाल के लिए जरूरी बदलाव करना आसान नहीं हैं। आदर्श देखभाल कर्ता बनने की कोशिश न करें। एक समय पर एक दिन जियें। जितना कर सकें, करें, बाकी जाने दें। इस बात को स्वीकार करें कि न तो आप सब कुछ जान सकते हैं, न ही सब काम कर सकते हैं।

आजकल स्व-देखभाल (सेल्फ-केयर) की आवश्यकता को अधिक पहचाना जा रहा है। देखभाल करने वालों को स्व-देखभाल की कोशिश जरूर करनी चाहिए, पर नहीं कर पायें तो उलटा उसे भी तनाव का स्रोत न बना दें। अपने लिए बड़े कदम लेना मुश्किल हो तो छोटे छोटे कदम लें। दिन में कुछ पल भी राहत मिल पाए तो कुछ न करने से तो बेहतर ही होगा।

अकसर देखभाल की जिम्मेदारी के कारण सब दिन कार्यों की एक लम्बी सूची (एक लम्बी टू-डू लिस्ट) लगने लगते हैं। लगता है काम कभी ख़त्म नहीं होगा। उस ख़याल से थकान और भी बढ़ती है। इस स्थिति में स्वाभाविक है कि लोग डिमेंशिया से ग्रस्त प्रियजन के साथ सहज और आनंद वाले कुछ पल बिताना भूल जाएँ। पर यदि परिवार वाले और प्रियजन कुछ समय साथ  में, बिना भाग-दौड़ के, बिना तनाव के बिता पायें तो वे आपस में कुछ सहजता महसूस कर पायेंगे। घर के माहौल में तनाव कम हो सकता है। जैसे कि साथ बैठ कर पसंदीदा गाने  सुनना या छज्जे से खेलते बच्चों को देखना या साथ-साथ मटर छीलना। डिमेंशिया देखभाल में आनंद ऐसे ही पलों में खोजना होता है। इन से यह लंबा सफ़र तय करने की हिम्मत बनी रहती है।

एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू है सहायता खोजना। कुछ संसाधन उपलब्ध हैं। कुछ डिमेंशिया सेवाएं, सहायक के लिए एजेंसी, सपोर्ट ग्रुप्स, काउंसलिंग और ट्रेनिंग उपलब्ध हैं। उन्हें खोजें और जैसे उचित हो, बिना हिचक या अपराध बोध के उनका इस्तेमाल करें।

आस-पास के लोग अकसर डिमेंशिया शब्द जानते हैं पर इस की वास्तविकता नहीं समझते। उन से सहायता कैसे प्राप्त करें और उनकी निंदा से कैसे बचें?

परिवार के मित्र, सह-कर्मचारी, रिश्तेदार, पड़ोसी वगैरह सहायता का एक स्रोत हो सकते हैं पर इसके लिए उन्हें व्यक्ति और परिवार की स्थिति की समझ होनी चाहिए ताकि वे सकारात्मक मदद करें, नकारात्मक आलोचना नहीं। कुछ लोग आपकी नीयत पर भी शक कर सकते हैं, और डिमेंशिया वाले प्रियजन को आपके विरुद्ध उकसा सकते हैं।

अकसर आलोचना सुनने पर डिमेंशिया वाले परिवार के सदस्य अन्य लोगों से सम्बन्ध कम करने लगते हैं और अकेले  पड़ जाते हैं। पर इस लम्बे सफ़र में आज नहीं तो कल, मदद की जरूरत तो पड़ेगी! लोगों से खुद को काट लेंगे तो मदद कैसे मिलेगी? 

कुछ मेहनत करनी होगी। कुछ ऐसे करीबी लोग चुनें जिन पर आपको भरोसा है और जिन्हें आप हितैषी समझते हैं, चाहे वे अभी डिमेंशिया के बारे में नहीं समझते हों। इन गिने चुने लोगों के छोटे से दायरे को अपनी स्थिति समझाने की कोशिश करें। आधिकारिक स्रोतों से सामग्री दिखाएँ, डॉक्टर का परचा दिखाएं, मस्तिष्क में हुए बदलाव के चित्र दिखाएँ, अपने अनुभव सुनाये, उदाहरण दें।

शुरू में मुश्किल होगा। उनके प्रश्न और कमेंट्स चुभ सकते हैं। उनकी बातें में अविश्वास का आभास हो सकता है। शायद निंदा सुननी पड़े। पर कोशिश करते रहें। इसे एक इन्वेस्टमेंट समझ कर लगे रहें। याद रखें - यही लोग आपकी स्थिति को समझने के बाद आपके सबसे अच्छे सपोर्ट बनेंगे, और दूसरों को भी आपकी स्थिति समझाएंगे। कुछ मेहनत और सब्र से आप अपना एक छोटा निजी सपोर्ट सर्किल बना सकते हैं।

वर्तमान में समाज में डिमेंशिया पर जानकारी और जागरूकता कम होने के कारण परिवार वालों को आस-पास से सहायता पाने के लिए इस तरह के व्यवहारिक हल ढूँढने होंगे।

हिंदी में डिमेंशिया और देखभाल पर जानकारी और सहायता ढूँढने के लिए कुछ सुझाव?

जानकारी और सहायता का एक स्रोत है उचित विशेषज्ञों, स्वास्थ्य कर्मचारियों और स्वयं सेवकों से बात करना। अगर आप अनुरोध करेंगे कि वे आपसे हिंदी में बात करें, तो संभव है कि कई लोग या तो हिंदी में बात कर पायेंगे, या आपको किसी अन्य ऐसे व्यक्ति से जोड़ सकेंगे जो हिंदी जानते हैं।

सपोर्ट ग्रुप्स में भी लोगों से हिंदी में बात करने का अनुरोध करें तो शायद कुछ लोग आपसे हिंदी में बात कर पायेंगे।

पर हिन्दी में डिमेंशिया और सम्बन्धित देखभाल पर लिखित जानकारी या ऑनलाइन जानकारी मिलना काफी मुश्किल है। अधिकाँश प्रकाशित सामग्री अंग्रेज़ी में है। कुछ अल्जाइमर संस्थाओं ने हिंदी में ऑनलाइन पत्रिकाएँ प्रकाशित की हैं, जो उपयोगी हैं। पर इनमें से कई अन्य देशों से हैं और देखभाल और सहायता के विषय में उनकी सामग्री उन देशों के वातावरण और वहां उपलब्ध सेवाओं के हिसाब से हैं।

इन्टरनेट पर खोज के लिए डिमेंशिया, अल्जाइमर, मनोभ्रंश जैसे शब्दों का इस्तेमाल करें। साथ में “हिन्दी” शब्द जरूर जोड़ें। विश्वसनीय स्रोत ढूंढें, जैसे कि इस क्षेत्र में कार्यरत एनजीओ या प्रतिष्ठित संस्थाएं। अकसर लेख परिचय के लेवल पर होते हैं और इनमें देखभाल की स्थिति और चुनौतियों पर गहराईं में चर्चा या अनुभव कम मिलते हैं।

इस  साइट, पेशेनट्सएन्गैज, पर भी हिन्दी में डिमेंशिया और देखभाल पर कुछ लेख हैं।

करीब दस साल पहले हिंदी में डिमेंशिया देखभाल सामग्री की कमी देख कर मैंने हिंदी में सामग्री बनानी शुरू की थी। मेरा एक हिंदी साईट है dementiahindi.com जिसमें डिमेंशिया और देखभाल पर साठ से अधिक विस्तृत पेज हैं, सभी भारत में रहने वाले परिवारों के लिए उपयुक्त। देखभाल के अनेक पहलुओं पर कई पृष्ठ हैं, जिनमें पूरे सफर के योजना बनाने से लेकर आवश्यक देखभाल के तरीकों पर भी चर्चा है। साईट पर इन्टरनेट पर उपलब्ध अन्य हिंदी संसाधन के लिंक  भी हैं, जैसे कि चुने हुए हिंदी वीडिओ, अन्य संस्थाओं से उपलब्ध हिंदी पत्रिकाएँ, वगैरह। मेरे कुछ हिंदी वीडिओ और डॉक्यूमेंट यूट्यूब  और स्लाइडशेयर पर भी हैं। हिंदी में ऑनलाइन जानकारी खोज रहे हों तो शायद आपको इन से मदद मिले।

हर परिवार का डिमेंशिया का सफ़र अलग होता है परन्तु जानकारी और अनुभव बांटने से इस में कुछ आसानी होती है। हिम्मत न हारें, आप अकले नहीं हैं।

(इस लेख के पहले भाग में चर्चा के विषय हैं डिमेंशिया के लक्षण, डिमेंशिया और सामान्य उम्र वृद्धि में फर्क, और निदान की प्रक्रिया: लिंक देखें)

स्वप्ना किशोर डिमेंशिया के क्षेत्र में कई वर्षों से काम कर रही हैं। उन्होंने भारत में डिमेंशिया से जूझ रहे परिवारों के लिए कई ऑनलाइन संसाधन बनाए हैं। इनमें शामिल हैं उनका विस्तृत अंग्रेज़ी साईट, dementiacarenotes.in और उसका हिंदी संस्करण, dementiahindi.com

Condition

Stories

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     "The experience of caring for someone with Alzheimer's can be incredibly isolating, at a time when you need support the most. We are grateful that this process has helped us come together as a family and as a community to celebrate that most precious gift of all : our memories"   http://www.nytimes.com/2014/08/26/opinion/a-marriage-to-remember.html?emc=edit_th_20140826&nl=todaysheadlines&nlid=53809129&_r=0    
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    Taking the drugs known as benzodiazepines, which include diazepam and lorazepam, for three months or more was linked with a greater chance of being diagnosed with Alzheimer's disease five years later. http://www.telegraph.co.uk/health/healthnews/11083674/Sleeping-pills-ta… For our community's tips on sleeping please check out http://www.patientsengage.com/?q=discussions/are-you-sleeping-well-what-works-you  
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    In a population-based study of its kind, a team of researchers has found a link between vitamin D consumption and the risk of developing dementia. Older people who do not get enough vitamin D could double their risk of developing the condition. http://www.medicalnewstoday.com/articles/280704.php
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    Utermohlen's self-portraits provide a stark look at the devastating effects of Alzheimer's. As the artist struggled to keep in touch with the world around him, his works became flatter, more abstract, with a new loss of details and spatial sense. By 2000, Utermohlen's memory and technical skills had deteriorated to the point where his heartbreaking portrayal of himself was simply a scribbled skull and the barest shadows of facial features. http://www.mymodernmet.com/profiles/blogs/william-…
  • Caring for someone with Dementia
     Family members, friends, and colleagues want to support persons with dementia, but are unsure how to proceed. Swapna Kishore, who was a dementia caregiver for well over a decade, offers guidance and insights.  http://swapnawrites.wordpress.com/2014/04/29/caring-for-someone-with-dementia/
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    "I feel angry at times that we did not receive good guidance from the doctors whom we first approached and sometimes I redirect the anger at myself for not doing enough of reading up when so much of information is available on the Internet."    A daughter talks about her mother's dementia and the challenges they faced due to lack of awareness to Swapna Kishore, who was herself a dementia caregiver for more than a decade.    http://dementiacarenotes.in/mala-interview
  • New techniques to help identify Dementia earlier
    The most common form of dementia is Alzheimer's, accounting for about two thirds of cases, but it's currently impossible to detect what form of dementia someone has while they're alive. While we are not anywhere near a cure, the ability to deal it earlier would still be useful.  http://www.theguardian.com/science/head-quarters/2014/jul/21/detecting-dementia-dignity-alzheimers
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    Dementia
    is a broad term for a range of conditions that involve loss of mental ability and so cause problems with memory, language, behaviour and emotions. Dementia is most common in the elderly. Around five percent of people over the age of 65 are affected to some extent.  According to Alzheimer’s Disease International, in 2013, there were 44.4 million people with dementia. But with increasing life expectancy, this is expected to surge to 75.6 million in 2030. Some of the…
  • Stock pic of a daughter with her mother and the text what I learnt caring for my mother
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