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Submitted by PatientsEngage on 25 July 2021
A picture of a moon shining over a body of water

महामारी की दूसरी लहर में स्व-सहायता की पुस्तकों की लेखिका उषा जेसुदासन ने पाया कि प्रियजनों को अचानक खो देने पर वे पूरी तरह से सुस्त  पड़ गयीं, पर तब चंद्रमा की चिरस्थाई रौशनी और सुन्दरता ने फिर से उनमें आशा जगाई। इस लेख में वे अपने अनुभव साझा कर रही हैं - इसे पढ़ें और कोविड के विषाद  को हटाएं।

पिछले साल मई जून में महामारी हमारे लिए एक नई परिस्थिति थी। हमें यकायक सख्त लॉकडाउन का अनुपालन करना पड़ा। हम चित्र देख रहे थे जिन में गरीब प्रवासी मजदूर अपना सारा सामान प्लास्टिक की थैलियों या टोकरियों में बाँध, सिर पर लादकर अपने घरों की ओर पैदल लौट रहे थे। हमारे देखभाल करने वालों ने घर आना बंद कर दिया था। हमने जीवन यापन के एक नए तरीके का अनुभव किया। स्कूल बंद थे इसलिए बच्चे घरों में बंद थे। लेकिन हम में उम्मीद बरकरार थी - यह महामारी खत्म हो जाएगी, जीवन फिर से सामान्य हो जाएगा।

Read in English: Moonshine Brings Solace During Covid 

इस साल 2021 की शुरुआत में हमने सामान्य जीवन को कुछ हद तक लौटते देखा। कोविड 19 के खिलाफ नए टीके हमारे लिए उपलब्ध हो गए थे और हमने राहत की सांस ली। मैं करीबी दोस्तों के साथ पॉट लक लंच और डिनर में शामिल हुई। पहली बार बहार निकलने का जश्न मनाने के लिए मैंने एक सुन्दर साड़ी भी पहनी। फिर से साथ हो पाना कितना अच्छा था।

अभिभूत करने वाला शोक

लेकिन फिर, अचानक, वायरस ने दोबारा हमला करा। मैंने करीबी दोस्त, परिजन, पड़ोसी खोए। अपनों के अचानक गुज़र जाने के सदमे ने मुझे कुछ दिनों के लिए पूरी तरह सुन्न कर दिया। जीवन को चलते रहना था, घर में एक छोटी नवासी  थी, परिवार के लिए अब भी खाना बनाना और घर का काम करना था, खरीदारी के लिए सूचियाँ बनानी थीं - लेकिन मेरा दिल अन्दर ही अन्दर व्यथित था। जीवन में पहली बार मैंने पाया कि मैं अपना लेखन भी नहीं कर पा रही थी।

मैं खाना भी नहीं बना पा रही थी। मैं रसोई में खड़े, पैन को देख रही थी, सोच रही थी, मैंने इस में क्या डाला था? शॉवर के नीचे खड़े, कुछ मिनट बाद सोचती, क्या मैंने बालों को शैम्पू किया था? फिर, यह सोचते हुए कि शायद शैम्पू नहीं किया था, मैं फिर से शैम्पू करती। एक दिन मैंने अपनी बेटी से पूछा, 'हमने कल रात क्या खाया था? ‘ - मुझे बिलकुल भी याद नहीं आ रहा था था। मेरी बेटी इस से एकदम घबरा गई।  मुझमें पहले जहां हमेशा कुछ आशा रहती थी, अब वहां सिर्फ स्तब्धता का वास था।

मेरे दोनों बेटे कोविड 19 फ्रंट लाइन पर काम करते हैं - एक बेटा एक बड़े निजी अस्पताल में है और दूसरा एक क्रिश्चियन मिशन अस्पताल में। बड़ा बेटा रोज हर दिन फोन करता था, उसकी आवाज उदासी से बोझिल, थकी हुई होती थी जब वह अपने कई रोगियों की जान जाने के बारे में बताता। उम्मीद की जगह दहशत ने ले ली थी।

सुबह उठते ही, पहले पल से ही मैं भय और बेबसी की भावनाओं से गहरी रहती। मैंने फ़ोन पर मेसेज देखना बंद कर दिया था। कोई एक और मौत के बारे में शायद सुनना पड़े, मुझमें इतनी हिम्मत नहीं बची थी। लेकिन फिर भी, एक मेसेज देखा - और उस से मुझे सबसे जोर का धक्का लगा - यह खबर हमारी सड़क के एक छोर पर कच्चे नारियल बेचने वाले एक युवक की आत्महत्या की थी। उसने अपनी युवा पत्नी इस भयानक बीमारी को खो दी थी। वह उसके बगैर जीवन बिताने की सोच भी नहीं पाया। उस युवा दंपत्ति की छोटी बच्चियों अब अनाथ थीं उन के बारे में सोचते सोच्रते मेरा दिल व्यथित था।

नया मोड़

हमेशा की तरह, मैं गर्मियों की शाम की ठंडक में अपनी दहलीज पर बैठी चिड़ियों की चहक और हवा की सरसराहट सुन रही थी। मन अभी भी भारी ही था। बेटे का मेसेज आया, 'अम्मा, जाएये, चाँद को देखिये। मैं स्तब्ध रह गयी। एक डॉक्टर, इतनी त्रासदी के बीच, अपने चारों तरफ दिन भर दुःख और मौत से घिरे होने पर, लंबे समय तक दम घोटने वाले पीपीई में काम करने पर भी, अभी भी वह चाँद को निहारने के लिए समय निकाल पा रहा था। अगर उसने जीवन में आशा नहीं खोई थी, तो मैं कैसे खो सकती थी? यह मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। मेरी बेटी मुझे एक लम्बी ड्राइव पर ले गई और वहाँ, हमारे सामने, पहाड़ों की गहरी छाया के ऊपर एक विशाल गुलाबी चाँद उदय हो रहा था। उस पहली नजर में मेरी सांस मानो रुक गयी। मैं रोने वालों में से नहीं हूं, लेकिन मेरी अश्रुधारा बहने लगी और मैंने गहरी सांसें लीं। यह सिर्फ चन्द्रमा के सौन्दर्य का असर नहीं था - बल्कि धीरे धीर से बढ़ते इस अहसास का कि इस चाँद ने अनगिनत महामारियाँ देखी हैं। इतने युद्ध, इतने प्रियजन के खोने के शोक में डूबे लोग, सब यही पूछते हुए - ऐसा क्यों? इतनी सारी मानवीय आपदाओं का हमेशा मूक साक्षी रहा है। और फिर भी, यहाँ यह मेरी अंधकार-भरी दुनिया को अपनी चांदनी और सुन्दरता से भर रहा था। कवि वॉल्ट व्हिटमैन की एक पंक्ति ज़हन में उठी: "सिर्फ  तुम्हीं पर ही नहीं गिर रहे हैं ये अंधकार के धब्बे, अँधेरे ने अपने साये मुझ पर भी डाले थे।"

मैंने महामारी को अपने दिमाग पर हावी होने दिया था, इसलिए मैं घबराहट और भय में असहाय महसूस कर रही थी। उस खूबसूरत चाँद ने मुझे एहसास दिलाया कि घबराहट को हटा कर कृतज्ञता को रास्ता देना चाहिए। मेरे बेटे जीवित थे और इस ख़तरनाक दुनिया में काम कर रहे थे  - वे उन लोगों की देखभाल कर रहे थे और उन के प्रति करुणा से भरे थे जो इस बीमारी के कारण अधिक जोखिम में थे। मेरे बेटे ऐसे हैं, क्या मुझे इस बात के लिए आभारी नहीं होना चाहिए? मैं उन अनेक कारणों की गणना करने लगी जिन के कारण मैं धन्य थी। और मैंने चंद्रमा को धन्यवाद दिया कि उस की वजह से मैं पुनः आशा और कृतज्ञता का एहसास कर पाने के स्थान पर लौट सकी। घर लौटने पर मैंने अमरीकी धर्मशास्त्री रेनहोल्ड नीबुहर द्वारा रची गयी वह प्रार्थना पढ़ी जो अकसर मुझ में आशा की भावना जगाती है।

हे ईश्वर! मुझे स्थिरता दीजिये
उन चीज़ों को शान्ति से स्वीकार करने की
जो बदली न जा सकती हैं,
हिम्मत दीजिये उन चीज़ें को बदलने की
जो बदली जा सकती हैं
और सद्बुद्धि दीजिये उन दोनों के बीच अंतर जानने की

एक-एक करके हर दिन जी पाऊँ,
हर पल का आनंद ले पाऊँ, 
मुश्किलों को शांति प्राप्त करने के मार्ग के रूप में स्वीकार कर पाऊं

ऐसा बहुत कुछ था जिसे मैं बदल नहीं सकती थी। बहुत कुछ था जिसे स्वीकार करना ही था। और ऐसा भी बहुत कुछ था जो मैं बदल सकती थी। मैंने अपने दोस्तों से अधिक बात करना और मिलना शुरू करा, परिवार की तस्वीरें साझा कीं, उनके साथ व्यंजनों की विधियाँ और चुटकुलों की अदला-बदली की। हां, मैं जानती हूँ कि यह हम सभी के लिए एक क्रूर, निष्ठुर समय है, लेकिन मेरा यह हमेशा विश्वास रहा है कि जीने की कला यही है कि हम बाहर की दुनिया को देख पायें, अन्दर ही अन्दर खुद पर तरस न खाते रहें। जब मैं अपने आस-पड़ोस में अव्यवस्था या उथल-पुथल को देखती हूँ, तो मैं आशा आशा की तस्वीर देखना चुनती हूँ जिन से मन शांत रहे - - पड़ोस में रहने वाले वो टीचर, जो मेरे तरह सेवानिवृत्त हैं, पर उन छात्रों को अतिरिक्त सहायता दे रहे हैं जिनके स्कूल बंद होने के दौरान उन्हें मदद की जरूरत है; वह कचरा उठाने वाला आदमी जिसने दूध और जरूरी सामान लाने की मेरी मदद की पर जब मैं इस के लिए पैसे देना चाहती हूँ तो लेने से इनकार कर देता है: अखबार डालने वाला जो अब दस्ताने पहने रहता है - और इस तरह, इन बातों के देखते हुए मैं नकारात्मकता से अभिभूत नहीं होती हूँ।

उषा जेसुदासन एक फ्रीलान्स लेखक हैं जो जीवन, मूल्यों और सद्भाव के बारे में लिखती हैं। उन्होंने कई स्व-सहायता और प्रेरणादायक पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें शामिल हैं - आई विल लाई डाउन इन पीस, टू जर्नीज़, हीलिंग ऐज़ एम्पावरमेंट: डिस्कवरिंग ग्रेस इन कम्युनिटी।