
कुछ साल पहले संगीता ने अपने बेटे के बचपन के अस्थमा से जुड़ा अपना अनुभव साझा किया था| उनका बेटा अब लगभग 12 साल का है और उसमें अस्थ्मा के बहुत कम या कोई लक्षण नहीं हैं। संगीता हमें बताती है कि उन्होंने इसे कैसे प्रबंधित किया, और इस दौरान एक छोटे खिलाड़ी को भी बड़ा किया, और वह अभी भी सतर्क क्यों रहती है |
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आपका बेटा अब कैसा है? क्या उसमें अस्थमा के कोई लक्षण हैं?
वह बिल्कुल ठीक हैं| जैसा कि उनके पल्मोनोलॉजिस्ट ( फेफड़ों के विशेषज्ञ) ने पूर्वानुमान लगाया था, वह इस बिमारी से आगे निकल चुका हैं। बेशक, जब वह इस समस्या का निरनतर सामना कर रहा था, उस दौरान हम नियमित रूप से निर्धारित दवाएं ले रहे थे।
उनके पल्मोनोलॉजिस्ट ने कई बच्चों में यह देखा था, और उन्हें पूरा यकीन था कि उम्र और उचित दवा के साथ सिद्धार्थ इस समस्या से बाहर आ जाएगा |
Read in English: My Son Has Outgrown Childhood Asthma
क्या मौसम में बदलाव से उसके अस्थमा या एलर्जी पर कोई असर पड़ता है?
हाँ, असर पड़ता है | उदाहरण के लिए, वसंत ऋतु के दौरान परागकण (पोलन) उसके अस्थमा/एलर्जी को सक्रिय (ट्रिगर) करते हैं |
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आपकी राय में जीवनशैली में किस बदलाव से वास्तव में उसके अस्थमा के प्रबन्धन में मदद मिली? क्या आपने इस दौरान नई चीज़ें आज़माईं जैसे कि आहार, घरेलू उपचार आदि?
जितना हो सके, हमने कृत्रिम (आर्टिफिशियल ) रंग वाले भोजन और जंक फूड से परहेज किया, और उसे स्वस्थ, घर का बना भोजन दिया, या अच्छी स्वच्छता और गुणवत्ता युक्त रेस्तरां में खाना खिलाया।
इस बिमारी से निपटने में व्यायाम और खेल का भी बहुत योगदान था। सिद्धार्थ खेलों का शौकीन है और शारीरिक रूप से बहुत सक्रिय हैं और यह निश्चित रूप से मददगार रहा है।
एक अच्छे पल्मोनोलॉजिस्ट से परामर्श और निर्धारित दवा का नियमित सेवन करना बहुत महत्वपूर्ण है |
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कीचड़/गंदगी में खेलने से अक्सर बच्चों में एलर्जी हो जाती है। आपने इसे कैसे प्रबंधित किया है?
जब तक वह 2 साल का था, हम उसे तब तक ही संभाल सके| उसके बाद यह मुश्किल था लेकिन हमने जितना संभव हो सके इससे बचने की कोशिश की।
हम केवल यह सुनिश्चित कर सकते थे कि, उसे दिन में दो बार नहलाया जाए, और जब वह मिट्टी में खेल रहा था तो हम सावधान रहते थे कि वह अपनी नाक को न छुए और उसके चेहरे पर कीचड़/गंदगी न लगे।
आपने हाल ही में एक पप्पी/पिल्ला गोद लिया है? क्या इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बनाने में मदद मिली है?
माना जाता है कि पप्पी/पिल्ले अस्थमा के रोगियों के लिए अच्छे नहीं होते हैं, और जाहिर तौर पर इस स्थिति को ट्रिगर करते हैं। मुझे यही बताया गया था |
हालाँकि जब हमने पप्पी/पिल्ला गोद लिया, और जैसा कि मैंने बताया, सिद्धार्थ पहले ही अपनी अस्थ्मा की बीमारी से ठीक हो चुका था, और पप्पी/पिल्ले का फर उसके लिए कोई ट्रिगर नहीं था।
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बचपन के अस्थमा पर काबू पाने के बारे में अन्य माताओं को आपकी क्या सलाह है?
- किसी अच्छे पल्मोनोलॉजिस्ट (फेफड़े के विशेषज्ञ) से सलाह लें |
- निर्धारित समय अनुसार नियमित दवा लें |
- सभी ट्रिगर्स से (जो ऐलर्जी को सक्रिय करते हे ) अवगत रहें |
- सभी ट्रिगर्स से बचें |
- विशेषज्ञ से सभी प्रश्न पूछें, और सभी संदेह दूर करें |
- आप केवल गूगल पर जो पढ़ते हैं उस पर निर्भर न रहें |
- सभी सावधानियां बरतें और सतर्क रहें |
- आपातकालीन (इमरजेंसी )दवाएं हमेशा अपने पास कार में, घर पर, या अपने पर्स में रखें - |
- आपकी अनुपस्थिति में आवश्यक/आपातकालीन स्थिति में दवाएँ देने के लिए घर पर लोगों को प्रशिक्षित करें और मदद करें|
- अपने बेटे की बीमारी के बारे में स्कूल/शिक्षकों को बताएं और हमेशा बच्चे के साथ आपातकालीन दवाएँ भेजें या स्कूल में जमा करें|
- आपका बच्चा शारीरिक रूप से सक्रिय रहे वह सुनिश्चित करें - जैसे कि खेल खेलने में सक्रिय हो | लेकिन फिर यह व्यक्तिगत स्थिति दर स्थिति पर निर्भर करता है। इसलिए डॉक्टर से सलाह जरूर लें |
मैं बेशक स्वीकार करना चाहती हूँ, और करूंगी कि, मैंने उपरोक्त सभी बाबतो का सचेत रूप से अनुसरण किया क्योकी मैं मेरे बेटे की अस्थमा की बीमारी से भयभीत थी। कुछ अन्य माताएँ जिनके बच्चोंको भी अस्थमा की बीमारी थी, वे इतनी भयभीत नहीं थीं। लेकिन मैंने जो किया उसमें मैं कोई बदलाव नहीं करूंगी क्योंकि इससे बच्चों को बहुत असुविधा होती है।
कुछ बच्चों को अस्थमा के लगभग घातक हमलों का सामना करना पड़ा है और वैसी स्थिति में दवा लेने और सतर्क रहने से इलाज में मदद मिलती है।