Skip to main content
Submitted by PatientsEngage on 16 March 2023
Image of an injured brain and text Traumatic Brain Injury

सड़क यातायात दुर्घटनाओं में वृद्धि के कारण ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी (टी बी आई - अभिघातजन्य मस्तिष्क की चोट ) एक 'साइलेंट एपिडेमिक' (खामोशी से फैल रही महामारी) का रूप धारण कर रही है। भारत में 15 से 20 लाख लोगों को हर साल इस तरह की गंभीर मस्तिष्क की चोट लगती है, और  10  लाख  लोगों की इस से मौत हो जाती है। इस लेख में हम इंडियन हेड इंजरी फाउंडेशन के फिजियोथेरेपिस्ट से ब्रेन इंजरी के बाद आवश्यक “इंटेंस रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम” (गहन पुनर्वास कार्यक्रम) के बारे में बात कर रहे हैं।

ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी के मुख्य कारण क्या हैं?

ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी के मुख्य कारण हैं:

  • आरटीए (रोड ट्राफिक एक्सीडेंट) - सड़क यातायात दुर्घटनाएं /मोटर वाहन दुर्घटनाएं (60%)
  • ऊंचाई से गिरना (20- 25%)
  • आक्रमण और हिंसा (10%)

महिलाओं की तुलना में पुरुष इस से अधिक प्रभावित होते हैं और आम रोगी ऐसी चोट लगने के समय 15 से 24 वर्ष की आयु का होता है।

ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी रुग्णता और मृत्यु के महत्वपूर्ण कारणों में से एक है। क्या यह आंकड़े प्राप्त करना संभव है कि भारत में कितने लोगों को ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी होती है, और इस के कारण कितने लोग मरते हैं?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने "डीएएलवाई" (डिसेबिलिटी अजस्टिड लाइफ इयर्स) नामक एक माप का विकास किया है। इसके द्वारा विकलांगता के कारण खोए सालों का संचय प्राप्त होता है - वे साल जो खराब स्वास्थ्य, बीमारी, विकलांगता, या अकारण/ जल्दी हुई मृत्यु के कारण खो जाते हैं।  ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी के कारण अनुमानित 20,300 डीएएलवाई कुल चोट-संबंधी स्वास्थ्य हानि का 27%,  और सभी कारणों से डीएएलवाई का 2.4% है। ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी के कारण कुल डीएएलवाई में से 71% घातक (जिन से मृत्यु हो जाती है) चोटों के कारण हैं। यह सड़क यातायात दुर्घटना और शराब पीकर वाहमन चलाने के बढ़ने के कारण ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी एक "साइलन्ट एपिडेमिक” (खामोशी से फैल रही महामारी) का रूप धारण कर रही है। भारत में 15 से 20 लाख लोगों को हर साल इस तरह की गंभीर मस्तिष्क की चोट लगती हैऔर इन में से 10 लाख लोगों की इस के कारण मौत हो जाती है।

ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी होने के बाद व्यक्ति को किस-किस तरह की बाधाओं का अनुभव होता है?

ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी के बाद व्यक्तियों को होने वाली सबसे आम बाधाएँ हैं:

  • चिकित्सा का खर्च।
  • चोट के कारण शरीर और मन पर असर।
  • जीवन शैली में परिवर्तन।
  • मुकदमे और कोर्ट-कचहरी के चक्कर।

मस्तिष्क की चोट के केस में पुनर्वास में क्या शामिल है?

इसमें आम तौर पर शामिल होता है:

  • चोट के कारण अस्पताल में एक्यूट चिकित्सा के लिए दाखिल होना।
  • अस्पताल में रहकर की जाने वाली पुनर्वास की प्रक्रिया (इन-पेशेंट रिहैबिलिटेशन)।
  • ऐसी जगह रहना जहां कुशल नर्सिंग / सब-एक्यूट रिहैबिलिटेशन उपलब्ध हो।
  • ऐसी जगह रहना जहां दीर्घकालिक देखभाल हो सके (लॉंग-टर्म केयर फसिलिटी) / टेलीरिहैबिलिटेशन

सिर की चोट से किस तरह की मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं?

सिर की चोट से कुछ संभावित मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक समस्याएं निम्नलिखित हैं: 

  • चिंता/ दुष्चिन्ता।
  • अवसाद (डिप्रेशन)।
  • अधिक थकान।
  • चिड़चिड़ापन और गुस्सा आना।
  • मूड में अत्यधिक परिवर्तन।

संज्ञानात्मक और व्यवहार संबंधी समस्याएं क्या हो सकती हैं? सिर की चोट के केस में न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट की क्या भूमिका होती है?

कुछ सामान्य संज्ञानात्मक समस्याएं हैं:

  • चेतना/सतर्कता का बदला हुआ स्तर।
  • याददाश्त में समस्या।
  • समय, स्थान और व्यक्ति के पहचान आदि के बोध (अभिविन्यास, ओरीएन्टेशन) में परिवर्तन।
  • ध्यान लगा पाने में कमी।
  • अंतर्दृष्टि और आत्म-सुरक्षा के प्रति जागरूकता में कमी।
  • समस्या को सुलझा पाने में दिक्कत
  • बिना कारण एक ही बात बार-बार दोहराना।
  • कार्य करने और निर्णय लेने की क्षमता (कार्यकारी प्रकार्य, एक्सेक्यूटिव फ़ंक्शन) में  कमी।

कुछ सामान्य व्यवहार संबंधी समस्याएं हैं:

  • प्रबल प्रतिक्रिया को रोकने या अनुचित/ अवांछित व्यवहार को दबाने में असमर्थता (विसंदमन, जैसे कि अस्वीकार्य सामाजिक व्यवहार करना)
  • आवेग में (बिना सोचे समझे) कुछ करना।
  • शारीरिक और मौखिक आक्रामकता।
  • उदासीनता।
  • लोगों और कार्यों के बारे में न सोचना, उनके प्रति उदासीन रहना।
  • अनुचित यौन संबंधी व्यवहार।
  • चिड़चिड़ापन।
  • सिर्फ अपने बारे सोचना (आत्मकेंद्रित होने की स्थिति)।

सिर की चोट के मामलों में न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट की भूमिका:

सिर की चोट के मामलों में न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे (जैसा उपयुक्त हो) व्यक्ति के आधारभूत संज्ञानात्मक कार्यप्रणाली को निर्धारित करने के लिए अकसर न्यूरोसाइकोलॉजिकल परीक्षण करेंगे। यदि मस्तिष्क की चोट वाले व्यक्ति में गंभीर व्यवहार संबंधी विकार हों, तो न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट उनके लिए व्यवहार प्रबंधन कार्यक्रम विकसित करने में टीम लीडर की भूमिका निभाते हैं।

मस्तिष्क की चोट के बाद व्यक्ति के फिर से स्वतंत्र जीवन जी पाने की संभावना क्या है?

यह संभावना कई कारकों पर निर्भर हैं, जैसे कि व्यक्ति की आयु, शारीरिक स्थिति, चोट लगने के बाद अस्पताल ले जाने से पहले किस तरह की देखभाल की गई थी, मस्तिष्क में लगी चोट कितनी गंभीर है और चोट किस स्थान पर लगी है, इस प्रकार की स्थिति के लिए अस्पताल की रणनीतियाँ, और पुनर्वास सेवाओं की उपलब्धता । शोध के अनुसार, व्यक्ति कितना ठीक हो पाएगा यह इस बात पर सीधा निर्भर है कि अस्पताल में भर्ती होने पर सिर की चोटें कितनी गंभीर हैं।

गहन पुनर्वास कार्यक्रम (इन्टेन्स रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम) की आवश्यकता कब होती है? ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी वाले व्यक्ति को पुनर्वास की प्रक्रियाएं कब तक जारी रखने की जरूरत है?

ऐसे रोगी जो न्यूनतम सचेत अवस्था में हैं या कोमा में हैं, वे चिकित्सकीय रूप से स्थिर होने के बाद नर्सिंग होम या अन्य दीर्घकालिक देखभाल सुविधा में लंबे समय तक कायम रखने वाला उपचार प्राप्त कर सकते हैं। जिन रोगियों में कोमा से उभरते समय गंभीर संज्ञानात्मक, व्यवहारिक और शारीरिक अक्षमता होती है उनका पुनर्वास अकसर एक अक्यूट या सब-अक्यूट पुनर्वास सुविधा में जारी रखा जाता है। जैसे-जैसे रोगी ठीक होने लगते हैं, उन्हें उनकी जरूरतों के आधार पर अन्य कम्यूनिटी (समुदाय) में उपलब्ध सुविधा में रखा जा सकता है।  मध्यम स्तर के ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी वाले लोगों के लिए शुरू में ही गहन पुनर्वास प्रबंधन हो तो यह उनके मस्तिष्क की कार्यक्षमता (न्यूरोलॉजिकल फ़ंक्शन) और दैनिक जीवन की गतिविधियों के लिए अधिक फायदेमंद हो सकता है।

ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी में तीव्र अवस्था में ठीक होने के तीन चरण हैं: कोमा, वेजिटेटिव स्टेज, मिनीमली कॉनशियस स्टेज (न्यूनतम सचेत अवस्था)। ठीक होने में 6 महीने से लेकर कई वर्षों तक न्यूरो-रिहैबिलिटेशन की जरूरत हो सकती है। लगभग 64% ऐसे रोगी 12 महीनों में संज्ञानात्मक रूप से काफी अच्छी तरह ठीक हो पाते हैं।

रोगियों के लिए इलाज से बेहतर परिणाम कैसे मिल सकते हैं?

अस्पताल के बाद अच्छी देखभाल के प्रावधान से अधिक सुधार हो सकता है। न्यूरोरिहैबिलिटेशन ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी के लिए एक व्यापक और दीर्घकालिक चिकित्सा है, पर उपचार की प्रक्रिया का अनुपालन कभी-कभी कई कारकों से मुश्किल होता है, जैसे कि रिहैबिलिटेशन केंद्र की दूरी और परिवार और देखभाल करने वालों की उपलब्धता, और ठीक से अनुपालन न कर पाने की वजह से रोगी के ठीक होने पर नकारात्मक प्रभाव होता है।

इसलिए यदि रोगी क्लिनिक न आ सकें तो वे टेली-रिहैबिलिटेशन के माध्यम से उपचार जारी रख सकते हैं ताकि सुधार हो पाए। टेली-रिहैबिलिटेशन आई एच आई एफ द्वारा उपलब्ध है।

टीबीआई में पुनर्वास के लिए कम्प्यूटरीकृत उपचार क्या है?

पुनर्वास के लिए अब कई तरह के उपकरण और टेक्नॉलजी उपलब्ध हैं, जैसे कि गतिशीलता संबंधी प्रशिक्षण, चाल संबंधी प्रशिक्षण, संतुलन और समन्वय प्रशिक्षण, वगैरह, और ये सब ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी के रोगी के लिए अत्यधिक उपयोगी हैं। इंडियन हेड इंजरी फाउंडेशन में हम विशेष उपकरणों के इस्तेमाल से कई प्रशिक्षण प्रदान करते हैं, जैसे:

पाब्लो मोटर ट्रैनिंग, जिसमें सेंसर और यूजर इंटरफेस (गेम मोड) का उपयोग होता है।

सेंसोमूव: इसमें कंप्युटर सॉफ्टवेयर युक्त बैलेंस बोर्ड है, और यूजर इंटरफेस है जिसमें गेम में कई लेवल की चुनौतियाँ हैं जिन से रोगी का मूल्यांकन और प्रशिक्षण करा जाता है।

मोटोमेड (कार्यात्मक विद्युत उत्तेजक के साथ): इसमें रोगी की मांसपेशियों की टोन के आधार पर रोगी को सीधे और उलटे साइकिल चलानी होती है। एक विजुअल डिस्प्ले पर रोगियों का प्रयास, द्विपक्षीय समरूपता, कैलोरी/ऊर्जा की खपत, मांसपेशियों की टोन/स्थिरता के स्तर की जानकारी प्रदर्शित होती है ताकि बायोफीडबैक उपलब्ध हो।

ट्रेडमिल सहित पार्शियल बॉडी वेट सपोर्ट सिस्टम

  • मिरर थेरेपी
  • बायो फीडबैक थेरेपी
  • काग्निटिव थेरेपी

ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी से जुड़ी स्वास्थ्य जटिलताएँ क्या हैं? क्या इस के कुछ परिणाम बाद में, कुछ विलंब के बाद भी नजर आ सकते हैं?

ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी से जुड़ी स्वास्थ्य जटिलताएँ निम्नलिखित हैं:

  • त्वचा का खराब होना, डीक्यूबिटस अल्सर और बेड सोर (शैय्या व्रण)
  • संक्रमण
  • न्यूमोनिया
  • अस्थि घनत्व में कमी
  • पेशी का शोष (ऐट्रफी)
  • सहनशक्ति (धीरज, एंडयोरन्स) कम होना
  • गहरी शिरा घनास्त्रता (डीप वेन थ्रोमबोसिस )
  • हेटरोट्रोपिक ऑसिफिकेशन और
  • सॉफ्ट टिशू कॉनट्रॅकचर ((मांसपेशियों, वसा, रेशेदार ऊतक, रक्त वाहिकाओं, या शरीर के अन्य सहायक ऊतक में अवकुंचन)

नटराजन और उनके साथियों ने एक विस्तृत अध्ययन करा है जिस में 18 महीने की अवधि के लिए समय के विभिन्न अंतरालों पर 261 लोगों पर मस्तिष्क की चोटों के बाद के परिणामों का आकलन किया गया। इस अध्ययन में पाया गया कि ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी के प्रमुख परिणाम थे - पोस्ट-ट्रॉमैटिक एपिलेप्सी (मिर्गी, अपस्मार)  (11.3%), हेमिपेरेसिस (15%), वाचाघात (अफ़ैसिया) (5.75%), श्रवण हानि (3.1%), दृष्टि में हानि (3.5%) और तंत्रिका (न्युरल) क्षति (6.2%)। मस्तिष्क की चोट के बाद लगभग 60% रोगी काम पर वापस नहीं लौट सके। अधिकांश व्यक्तियों को सामाजिक, व्यक्तिगत, पारिवारिक और संज्ञानात्मक पहलुओं में अजस्ट करने में समस्याएँ थीं।

क्या ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी व्यक्तित्व को प्रभावित कर सकता है या व्यक्तित्व विकार पैदा कर सकता है?

हां, हर ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी के रोगी में कोई न कोई व्यवहार या व्यक्तित्व संबंधी समस्याएं उभरती है। हमारा व्यक्तित्व हमारे व्यक्तिगत विचारों, भावनाओं, व्यवहारों और पिछले अनुभवों का एक अनूठा संयोजन है। हम कौन है, यह इस पर निर्भर है। अफसोस, ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी में मस्तिष्क के भागों में क्षति होती है, और हो सकता है यह नुकसान आवेग नियंत्रण, संज्ञानात्मक क्षमता, भाषा समझने संबंधी, बात करने संबंधी, और स्मृति के लिए जिम्मेदार मस्तिष्क के हिस्सों में हो। इसलिए इस तरह की चोट से महत्वपूर्ण व्यक्तित्व परिवर्तन उत्पन्न हो सकते हैं।

ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी के बाद व्यवहार परिवर्तन के उदाहरणों में शामिल हैं:

  • मूड में बिना स्पष्ट कारण उतार-चढ़ाव
  • आक्रामक व्यवहार
  • बच्चों जैसा व्यवहार
  • बार-बार दोहराते हुए जुनूनी विचार या आदतें
  • अहंकारी या आत्मकेंद्रित व्यवहार
  • आत्म-नियंत्रण में कठिनाइयाँ
  • जोखिम वाले व्यवहार करना
  • मौखिक या शारीरिक विस्फोट
  • सामाजिक चुनौतियाँ
  • अनुचित यौन व्यवहार

अध्ययनों के अनुसार ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी का मनोदशा, व्यक्तित्व और चिंता विकारों के विकास के साथ संबंध है। एक अध्ययन से पता चला है कि ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी वाले लोगों में बाइपोलर डिसॉर्डर (द्विध्रुवी विकार) होने की संभावना 28 गुना अधिक है। बाइपोलर डिसऑर्डर एक ऐसी मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति है जिस की विशेषता है अत्यधिक मूड के उतार-चढ़ाव - मैनिक हाई (जुनूनी व्यवहार) और डिप्रेसिव लो (अवसाद) के बीच। बाइपोलर के कई प्रकार हैं, जिनमें निम्न शामिल हैं:

  • बाइपोलर I विकार
  • बाइपोलर II विकार
  • साइक्लोथिमिक विकार

ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी परिवार को कैसे प्रभावित करता है?

ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी और कई अन्य न्यूरोसाइकिएट्रिक विकारों में अचानक और विविध प्रकार के हानिकारक परिणाम होते हैं और लगभग हमेशा ही इस से परिवार के सदस्यों और रोगी की देखभाल करने वालों को भारी तनाव होता है। जब ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी के कारण व्यक्तित्व विकार होता है तो रोगी के साथ पारिवारिक और देखभाल करने वालों के संबंध अत्यधिक जटिल होते हैं। इसके अलावा उपचार, पुनर्वास और दीर्घकालिक देखभाल के वित्तीय बोझ से परिवार पर तनाव पड़ सकता है।

(इंडियन हेड इंजरी फाउंडेशन से फिजियोथेरेपिस्ट विवेक कुमार सिन्हा और फिजियोथेरेपिस्ट शगुफ्ता नायर द्वारा दिए गए जवाब।)

संदर्भ:
 
1. आंकड़े सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (एमओआरटीएच) की वेबसाइट से लिए गए हैं।