Skip to main content
Submitted by PatientsEngage on 11 February 2020

कैंसर मौत की सजा नहीं है। ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि जिसे कैंसर है उसकी मौत दूसरों से पहले होगी। नंदिता मुरलीधर, जिन्हें स्तन कैंसर था, बताती हैं कि कैसे उनके हंसमुख और सकारात्मक दृष्टिकोण ने उनकी निराशा को कम किया।

“कैंसर” एक ऐसा शब्द है जो सुनने वाले को सुन्न कर देता है, कंपकंपा देता है। आपको कैंसर संबंधी हर मायूस फिल्म की याद आने लगती है - है… क्योंकि इन में कैंसर को हमेशा ज़िंदगी का एक अंत (या कम से कम अंत की शुरुआत) के रूप में चित्रित किया गया है. उदास संगीत, जबरदस्त बहते आँसू या एक निश्चित अंत से संघर्ष। क्या यह डरावना लगता है? परन्तु ऐसा जरुरी नहीं है और हम इस को बदल सकते हैं।

अगर समय रहते कैंसर का पता लगा लिया जाए और इलाज शुरू हो जाए तो कैंसर का इलाज संभव है। यदि आपको एक बार फ्लू हुआ है तो आपको उसके बाद फ्लू रोगी नहीं कहा जाएगा। मलेरिया, न्युमोनिआ, डेंगू, हैजा… ये सभी बीमारियाँ घातक हो सकती हैं लेकिन ये कैंसर या एड्स की तरह व्यक्ति पर रोगी होने का लेबल नहीं छोड़ जाती हैं। मैं एक बार फिर कहना चाहूंगी - कैंसर का इलाज हो सकता है।

झूठी चेतावनी

दिसंबर 2009 में एक जाँच के दौरान मेरे दाहिने स्तन में एक गांठ का पता चला। इस की निदान की प्रतीक्षा एक डरावना समय था। मुझे इस गांठ का एहसास एक दिन तब हुआ जब मैं बिस्तर पर उल्टा लेटी हुई थी। पहले मुझे लगा कि शायद मैं बिस्तर पर पड़े किसी पेन के ढक्कन पर लेटी हुई हूँ। जब बिस्तर पर कुछ भी नहीं मिला तब मैंने अपने स्तनों का आत्म-परीक्षण किया।

गाँठ क्यों है, इस के निदान के लिए मेरे स्तन का FNAC करवाया गया. FNAC - फाइन नीडल एस्पिरेशन साइटोलॉजी- में एक सूक्ष्म सुई के माध्यम से ट्यूमर का बायोप्सी के लिए एक सैंपल (नमूना) लिया जाता है. बायोप्सी के अलावा स्तन का अल्ट्रासाउंड और मैमोग्राम भी करा गया. दो दिन के लंबे इंतजार के बाद परिणाम आया। मुझे बताया गया कि यह गाँठ एक फैटी (वसायुक्त) सिस्ट है और चिंता की कोई बात नहीं है। मैमोग्राम में कोई भी समस्या नहीं मिली! मुझे बताया गया कि मेरी उम्र (48) और जीवन के पेरिमेनोपॉज़ल चरण में यह आम था और इसे फाइब्रोसिस्टिक स्तन रोग कहा जाता है। मेरी जान में जान आई! मैंने राहत और सुकून की आह भरी।

फाइब्रोसिस्टिक स्तन रोग या स्तन कैंसर?

तीन महीने बाद मैं अपनी माँ को जाँच के लिए अड्यार कैंसर संस्थान, चेन्नई लेकर गई। जनवरी 2009 में उनका कैंसर का निदान दोबारा किया गया था। उनकी बगल में एक मटर के आकार की गांठ थी जिसका हार्मोनल उपचार किया गया था। इस के लिए मार्च 2010 में मैं उन्हें चेन्नई ले गई। इस बीच मैंने अपने बाएं स्तन में एक छोटी गांठ महसूस की थी, लेकिन मैंने खुद को शांत किया। मैंने सोचा, इसका एक नाम था - फाइब्रोसिस्टिक स्तन रोग - इसलिए मुझे बिल्कुल भी चिंता नहीं हुई

मम्मी की जाँच से पता चला कि उनकी गांठ ख़त्म हो चुकी थी लेकिन अधिक सुरक्षा के लिए इलाज जारी रखना था। मम्मी की जाँच करने वाली डॉक्टर हमारी एक पारिवारिक दोस्त भी हैं। उनके सामने मैंने यूहीं अपनी नई गांठ का जिक्र करा। मैंने उन्हें अपने मैमोग्राम, FNAC और फाइब्रोसिस्टिक स्तन रोग के बारे में भी बताया। चूँकि मैं वहीं थी, उन्होंने मेरी भी जाँच करी।

यदि यह कोई फिल्म होती तो उसी वक़्त जब डॉक्टर ने मेरी गाँठ को टटोलना शुरू किया, रोमांचक संगीत बजना शुरू हो चुका होता । उन्होंने मुझसे सवाल पूछने शुरू कर दिए - क्या कुछ तकलीफ है, दर्द है, और भी कई सवाल। फिर जब मैं अपने कपड़े पहनने लगी तो उन्होंने मुझे रोका और एक सर्जन को मेरी जाँच के लिए बुलाया। जाँच के दौरान दोनों एक दूसरे को चिंतित नज़रों से देख रहे थे। मुझे तभी पता चल गया कि कुछ गड़बड़ थी। इसलिए मैंने उनसे कहा कि वे मुझे सरल एवं स्पष्ट भाषा में बताएं कि आखिर मामला क्या है। “नंदिता, यह सही नहीं लग रहा। हमें बायोप्सी करने की जरूरत है।” मैंने सहमति दी और उन्होंने तुरंत FNAC कर के नमूना लिया।

दो दिन बाद बायोप्सी परिणाम मिला: "मलिग्नन्सी का संदेह"। हमने स्पष्ट परिणाम के लिए MRI (एमआरआई) करवाने का फैसला किया। इस से हम और भ्रमित हुए क्योंकि परिणाम था: “रिसोल्विंग ऑब्सेस्स (फोड़ा)” । एक बार फिर बायोप्सी करवाने का निर्णय लिया गया। इस बार डॉक्टर ने कहा, “नंदिता, परिणाम आ गया है। पॉजिटिव है।”

स्तन कैंसर के निदान के बाद मेरे जीने के तरीके में “गियर में परिवर्तन”

निदान मिलने के बॉ बाद, यूं मानिए, समय मानो रुक सा गया था। अनेक तरह के विचार मेरे दिमाग में दौड़े चले आ रहे थे। मेरी बेटी पहली बार गर्भवती थी और गर्भावस्था के सातवें महीने में थी। माँ मेरे साथ ही रह रही थीं क्योंकि उन में डिमेंशिया के लक्षण दिखने लगे थे। पति महू (Mhow )में थे और कुछ महीनों बाद सेवानिवृत्त होने वाले थे। सब कुछ एक साथ हो रहा था। फिर मैंने अपनी बेटी को फोन किया। उसकी प्रतिक्रिया से मेरी चेतना लौट आई और मानो मैं धरती पर वापस आ गई । “अच्छा, तो कैंसर का पता चल गया है। शुक्र है आप चेन्नई में हैं और निदान मिल गया है अगला कदम क्या है?” (उसने कई सालों बाद मुझे बताया कि फोन बंद करने के तुरंत बाद वो बेतहाशा रोने लगी थी।) मुझे अपनी माँ से भी इसी तरह की प्रतिक्रिया मिली। उन्होंने कहा, तुम सही जगह पर हो, डॉक्टर काफी अच्छे हैं, प्रारंभिक चरण है… इत्यादि। सब ठीक-ठाक है। इन्हीं सब प्रतिक्रियाओं ने आने वाले दिनों में हिम्मत और सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखने में मेरी मदद करी। उस दिन के बाद से यूं समझिये मैंने अपना गियर बदला और तब से मैं एक बार में एक ही दिन को जीने लगी। मेरे भाई विदेश में रहते हैं - मैंने उन्हें अपनी हालत के बारे में बताया। बड़े भैय्या भारत आये और फिर भाइयों ने मिल कर मम्मी को वापस अफ्रीका ले जाने का इंतज़ाम करा ।)

लम्पेक्टॉमी या मास्टेक्टॉमी?

30 अप्रैल 2010। ऑपरेशन अच्छी तरह से हो गया। मैंने एक शर्त रखी थी कि अगर ऑपरेशन के दौरान गांठ सौम्य (बेनाइन) पाई जाए तो केवल गांठ हटाई जाए (जिसे लम्पेक्टॉमी कहा जाता है)। यदि स्थिति अधिक गंभीर हो तो डॉक्टर खुद निर्णय लेकर मास्टेक्टॉमी (पूरे स्तन को हटा देना) कर सकते हैं।

ऑपरेशन के दौरान ट्यूमर को जाँच के लिए पैथोलॉजी प्रयोगशाला में भेजने की प्रक्रिया को 'फ्रोजन सेक्शन' कहा जाता है। संदेहास्पद गांठ को प्रयोगशाला में भेजते हैं जहाँ माइक्रोस्कोप की मदद से उसकी जाँच की जाती है और ओटी (ऑपरेशन थिएटर) में डॉक्टर को परिणाम बता दिया जाता है। इस के आधार पर डॉक्टर ने मेरी मास्टेक्टॉमी करी। बाद में डॉक्टर ने मुझे बताया कि उन्होंने सभी लिम्फ नोड्स को भी हटा दिया था क्योंकि वे सूजे हुए लग रहे थे। आगे का उपचार निकाले गए हिस्सों की बायोप्सी के परिणाम पर निर्भित था।

बारह दिन तक मैं अस्पताल में भर्ती रही। दर्द सिर्फ तभी महसूस होता जब फिजियोथेरेपिस्ट मेरी मांसपेशियों को लचीला और गतिविधियों को बनाए रखने के लिए मुझे व्यायाम कराती थीं- उनकी कोशिश यह थी कि मैं फिर से शरीर के सब अंगों को चला पाऊँ (भगवान उन्हें आशीर्वाद दें। उस समय की तकलीफ ने आगे चल कर काफी फायदे दिए। मुझे लिम्फेडेमा नहीं हुआ)। मैं अपना समय डायरी लिख कर और गणित की पहेलियाँ सुलझा कर बिताने लगी। डॉक्टर ने मुझे बताया कि उन्होंने आगे का इलाज तय किया है और मुझे 6 बार कीमोथेरेपी करानी होगी। अच्छी खबर यह थी कि नोड्स साफ थे इसलिए रेडिएशन (विकिरण) की जरुरत नहीं थी। मुझे कई महीनों तक इस खबर के निष्कर्ष का एहसास नहीं हुआ था।

Listen to Nandita share her views in the video below

और फिर कीमो की शुरुआत हुई

12 मई को मेरा पहला कीमो हुआ। कई तरह की दवाइयों के मिश्रण से भरे 3-4 बड़े सिरिंज को मेरी नसों में उतारा गया। इसके बाद 30 मिनट का आईवी ड्रिप चलाया गया। हालाँकि मुझे 6 से 8 घंटे तक निगरानी में रख कर घर भेजा गया था, सारी प्रतिक्रियाएँ घर पहुँचते ही शुरू हो गईं। उल्टियां रुक ही नहीं रही थी। छठी बार उलटी होने पर हमने डॉक्टर से बात की और डॉक्टर ने मुझे तुरंत अस्पताल में भर्ती होने के लिए कहा। तीन दिन के बाद मैं घर आई। खून के स्तर पर नज़र रखने के लिए नियमित रक्त परीक्षण करने की जरूरत थी।

6 कीमो के साइकिल के बाद कीमो की प्रतिक्रिया क्या होगी, मुझे पता चल गया था - पहले तीन दिन तक जी मिचलाना, फिर तीन दिन तक अत्यधिक थकावट और साथ ही मुंह और पूरी आहार नली में दर्द । रक्त का स्तर एक सप्ताह में गिर जाता और फिर धीरे-धीरे वापस ऊपर चढ़ कर बीसवें दिन तक सामान्य हो जाता था। इक्कीसवें दिन अगला इंजेक्शन लगता।

यदि ब्लड काउंट (रक्त कोशिकाओं की गणना) 3000 से नीचे गिर जाता (सामान्य: 4000-6000 है) तो आहार में प्रतिबंध लगा दिया जाता और प्रतिरक्षा के कम होने के कारण अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होती थी -- ताकि कोई इन्फेक्शन न हो (जैसे कच्चा खाना या बाहर का खाना निषेध था)। 100 डिग्री से अधिक बुखार होने पर अस्पताल या डॉक्टर को खबर देनी होती थी। सौभाग्य से मेरी भूख प्रभावित नहीं हुई थी।

तो ऐसे शुरू हुआ कीमो और उसके प्रभाव से होने वाले तबीयत का ऊपर-नीचे का सिलसिला। 6 कीमो साइकिल का अर्थ था 21 दिनों के अंतराल में इंजेक्शन के 6 सत्र। हर सत्र के बाद लगभग वही प्रभाव नज़र आते। दूसरे साइकिल के बाद मेरे सारे बाल झड़ गए (यह जानकार कि बाल वापस आ जायेंगे मुझे काफी राहत मिली … और सच में. आखिरी साइकिल के एक महीने बाद बाल वापस आने लगे)। कीमो के कुछ दुष्प्रभाव आज भी महसूस होते हैं जैसे हल्का दर्द … लेकिन मैं जिन्दा हूँ, स्वस्थ हूँ , खुश हूँ। इससे ज्यादा मैं और क्या चाह सकती हूँ?

कीमोथेरेपी से मैं कैसे उभरी?

किसी ने मुझसे पूछा था कि यह जानते हुए कि इंजेक्शन लेने के बाद क्या हालत होती है, आपने दूसरा और तीसरा इंजेक्शन कैसे लिया? इसके दुष्प्रभावों का सामना कैसे किया जाए?

मैं आपको कुछ नुस्खे बता सकती हूँ जो मैं सकारात्मक रहने के लिए इस्तेमाल करती हूँ।

  1. सकारात्मकता पर ध्यान दें। जो गलत हो रहा है उसे न देखकर जो सही हो रहा है उसपर ध्यान केन्द्रित करें। ये बुरी चीज़ें (कीमो के दुष्प्रभाव) अच्छे इलाज के कारण हो रही हैं, इसलिए इन्हें अपने हक़ में समझें। प्रत्येक स्थिति के दो पक्ष होते हैं। उज्जवल पक्ष पर ध्यान दें।
  2. मैं कीमो के साइकिल गिना करती थी। कुल मिलाकर 6। एक गया, 5 बाकि हैं, 2 गए, 4 बाकि हैं… (लक्ष्य छोटे हों तो हासिल करना आसान होता है)
  3. अस्पताल जाते समय एक बार मैंने कुष्ठ रोग से ग्रसित एक जोड़े को देखा जिनके हाथ और पाँव की उंगलियाँ नहीं थीं - वे धूप में खड़े होकर भीख मांग रहे थे। क्या गाड़ी में बैठकर अस्पताल जाते हुए मुझे कोई शिकायत करनी चाहिए थी? मेरे पास भगवान को धन्यवाद देने के लिए बहुत कुछ था।
  4. अपने हर एक आशीर्वाद को गिनें। हाथ, पैर, हाथ की उँगलियां, पैर की उँगलियां और अगर आप इसे पढ़ रहे हैं तो आँखें, शिक्षा। हम शिकायत नहीं कर सकते हैं।
  5. बहुत आगे तक की सोचकर चीजों को जटिल न बनाएं। हर नए दिन को जिएं। एक बार में एक कदम उठायें, और एक बार में एक दिन पर ध्यान दें।
  6. बीमार होने के कारण खुद को दोषी महसूस न करें। यह एक चरण है। बीत जाएगा।
  7. हाँ, एक दिन आप भी दूसरों के लिए ताकत का स्रोत बनेंगें।
  8. दूसरों की मदद करना सबसे अच्छी दवा है। मेरी एक पसंदीदा कहावत है। जब आप किसी को मुसीबत के गड्ढे से निकालते हैं तो आप उस गड्ढे में अपनी तकलीफों को दफना सकते हैं।
  9. अपने आप की तुलना उस व्यक्ति से न करें जो आपसे ज्यादा स्वस्थ है। जब आप मायूस हों तो उन सैकड़ों लोगों के बारे में सोचें जो आपसे कम भाग्यशाली हैं और आप के पास जो है, उसकी लालसा करते । मेरा मतलब है कि आप ही की तरह कई लोग पीड़ित हैं लेकिन बिना किसी संसाधन के। खुशियाँ आभारी और संतुष्ट होने से आती हैं। एक और पसंदीदा कहावत है: "मैं अपने जूतों के बारे में तब तक शिकायत करता रहा जब तक कि मैं एक ऐसे व्यक्ति से नहीं मिला था जिसके पैर ही नहीं थे।"
  10. बालों का झड़ना, गंजा होना? चिंता न करें। बाल कीमो बंद होने के बाद फिर से आ जाते हैं। बुरा वक्त गुज़र जाएगा।

जीवन की कोई गारंटी नहीं है। ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि जिसे कैंसर है उसकी मौत दूसरों से पहले होगी। हम जीवन के साथ कैसा व्यवहार करते हैं उस ही से हमारा जीवन बनता है। हंसमुख रहें, सकारात्मक रहें, हर अच्छी चीज़ की सराहना करें और अतीत को पीछे छोड़ कर वर्तमान में जिएं। ज़िन्दगी गुलज़ार है।

Condition