
ए. अल्फोंस प्रभु रॉय, 60, को कम उम्र में ही दो क्रानिक ऑटोइम्यून बीमारियों, ल्यूपस और सजोग्रेन सिंड्रोम का निदान मिला, और उन्हें कई जटिल लक्षण हैं। इनमें सबसे चुनौतीपूर्ण हैं मुंह सूखा रहना और ब्रेन फॉग। वे इस लेख में अपने अनुभव साझा करते हैं और बताते हैं कि दोनों बीमारियों के प्रबंधन में बहुत सावधानी की जरूरत है वरना इन का काम और घर पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
आप कई वर्षों तक एक सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनी के महाप्रबंधक रहे हैं। कृपया हमें बताएं कि आप कहाँ रहते हैं और आपका वर्तमान जीवन कैसा है?
2022 में अपनी सेवानिवृत्ति के बाद, मैंने निर्णय लिया कि मैं अपने परिवार के साथ एक साल बिताने के बाद खुद को व्यस्त रखने के लिए एक छोटा व्यवसाय चलाऊँगा। मैं चेन्नई में रहता हूं और पौधों की देखभाल और घर के काम करने के लिए समय बिताना पसंद करता हूं, और इस से मैं फिट भी रहता हूँ। आजकल, मैं दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने कि लिए बहुत ट्रैवल भी करता हूँ।
कृपया हमें अपने स्वास्थ्य और दोनों ऑटोइम्यून विकारों के निदान के बारे में कुछ बताएं।
यह सब 1995 में शुरू हुआ, जब मैं 32 साल का था। मुझे लगातार बुखार रहने लगा था, और यह अकारण लग रहा था। करीब 30 दिन बुखार रहने के बाद बदन दर्द और जोड़ों में दर्द भी शुरू हो गया। मुझे एक अस्पताल में भर्ती कराया गया और चिकित्सक ने एचआईवी सहित सभी बीमारियों के लिए मेरा परीक्षण करने के बाद पहचान की कि मुझे शायद एसएलई (सिस्टेमिक लूपस एरिथेमेटोसस) है। मुझे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई और सख्ती से सलाह दी गई कि मैं स्टेरॉयड सहित निर्धारित दवाएं लेना बंद न करूँ।
मुझे 1998 में फिर से बुखार हो गया जब मैं वेल्लोर में तैनात था और यह एपिसोड भी पहले वाले जैसा ही था। इसलिए मैं सीएमसी गया, जहां डॉ ए एम चेरियन ने तय किया कि मेरा निदान एसएलई है और मुझे 3 चीजों की सलाह दी गई:
- कभी भी एक दिन के लिए भी अपनी दवा लेना न भूलें।
- हर 3 महीने के अंतराल पर (या सलाह के अनुसार) सीएमसी में सलाह के लिए आना होगा।
- अपने शरीर के संकेत और लक्षणों के प्रति सतर्क रहना होगा और डॉक्टर को इन के बारे में बताना होगा।
उन्होंने स्थिति की गंभीरता को प्रबल करने के लिए यह भी बताया कि यदि उपचार योजना का ठीक से पालन किया जाए तो एसएलई वाले लोग 10 वर्ष से अधिक जीवित रह सकते हैं। उनकी बात से पैदा डर मुझे उनके 3 सुझावों का पूरी तरह पालन करते रहने के लिए काफी था।
लुपस का रोगी आमतौर पर बीमार होने और ठीक होने के चक्र से बार-बार गुजरता है, और कुछ चक्र में कारण नजर आता है और कुछ में लगता है कि कोई स्पष्ट कारण नहीं था। मुझे उस के बाद 3 और एपिसोड हुए जिन में लंबे समय तक बुखार रहा। मैं इन से अपने शरीर की प्रतिक्रियाओं को अधिक ध्यान से देखना सीखा, ताकि मैं इन फ्लेर-अप से बच सकूं और अपने जीवन को बेहतर बना सकूं।
मेरी अजीबोगरीब समस्याओं में से एक थी असामान्य भूख लगना - यह एक महीने चली, और फिर बिना किसी स्पष्ट कारण के शांत हो गई। लुपस के कुछ अन्य कुछ प्रतिकूल और बुरे प्रभाव हुए जिन से मेरे काम में चुनौतियाँ हुईं - वे थे - लार ग्रंथि में पथरी, अवसाद जैसी भावनाएं जिन के कारण मैं मनोचिकित्सक के पास गया, गंभीर थकान, ब्रेन फॉग ।
गत दो वर्षों से इन में से मुझे थकान, ब्रेन फॉग और उंगलियों के अकड़ना के सिवाय ऊपर दी गई कोई समस्या नहीं हुई है। मैं अब स्टेरॉयड नहीं ले रहा हूं और इसके बजाय ऑटोइम्यून स्थितियों और ऑस्टियोपोरोसिस के लिए दवाएं ले रहा हूं।
लुपस का निदान मिलन मुश्किल हो सकता है क्योंकि इसके संकेत और लक्षण अकसर अन्य बीमारियों से मिलते-जुलते हैं। क्या आप शुरुआत में अपने लक्षणों को लेकर कन्फ्यूज़ हुए थे?
स्कूल के दिनों में मुझे लार ग्रंथियों में सूजन हो जाती थी जिसे हम मम्प्स (कण्ठमाला) समझ लेते थे और जागरुकता की कमी के कारण हर बार ठीक से जांच किए बगैर उसका इलाज कर देते थे। बाद में मुझे बिस्कुट जैसा सूखा खाना खाने में परेशानी होने लगी पर मैंने कभी इसे समस्या नहीं समझा। मेरी भूख कम होने लगी क्योंकि मैं मुंह के सूखेपन के कारण ठीक से खा नहीं पा रहा था, पर यह क्यों था, मैं यह कभी समझ नहीं पाया। मुझे जोड़ों में बहुत अधिक दर्द भी था जिसके लिए मैंने होम्योपैथिक उपचार लिया और कुछ लक्षण थे जैसे उंगलियां ठंडी महसूस होना और हड्डी में दर्द महसूस होना। मैं अकसर मूत्र पथ के संक्रमण (यूटीआई) और चकत्ते से पीड़ित होता था, जिस का कारण मैंने पानी के सेवन की कमी माना - मैंने सोच कि मेरा सूखा मुंह भी इसी पानी की कमी के कारण है।
1995 में जब तक मुझे बुखार नहीं हुआ, तब तक मुझे पता नहीं था कि मैं सूखे खाद्य पदार्थ क्यों नहीं खा पाता था और क्यों मैं हमेशा ठोस भोजन के बजाय तरल पदार्थ को प्राथमिकता देता था। 1995 में जब मैं 32 साल का था, जैसा कि पहले बताया गया है, मुझे 30 दिनों तक बुखार रहा और मैंगलोर के एक जीपी डॉक्टर ने बताया कि मुझे शायद एसएलई है और अस्पताल से मेरी डिस्चार्ज स्लिप में यह लिखा और उसके साथ एक प्रश्न चिह्न लगाया। मेरा बुखार रोज़ दोपहर 3 बजे से 11 बजे के बीच रहता और बाद में मेरा बुखार बहुत अधिक बढ़ता और पूरे शरीर में बहुत तीव्र दर्द होता।
मैं एक तरह से भाग्यशाली था कि मुझे मैंगलोर में चिकित्सक द्वारा जल्दी निदान मिला और बाद में इसकी सीएमसी द्वारा पुष्टि हो गई। सीएमसी से मिली सलाह मेरे लिए महत्वपूर्ण मोड़ बन गई क्योंकि मुझे दवा के संदर्भ में और अपनी जीवन शैली को कैसे बदलना चाहिए, इस पर, सही सलाह मिली ।
लुपस की कुछ संभावित जटिलताओं और उनके इलाज के बारे में बताएं।
लुपस की जटिलता यह है कि इसमें कोई एक ही लक्षण है, ऐसा नहीं है। यह ब्रेन फॉग, अत्याधिक थकान, असामान्य भूख की भावना जैसे लक्षण पैदा करता है जिसका कोई सामान्य समाधान नहीं है और न ही इन लक्षणों के प्रकट हने पर निर्णायक निदान मिलता है।
इसका नरम ऊतकों पर प्रभाव पड़ना भी एक बड़ी चुनौती है और इसलिए शुरुआती दिनों में ही सीएमसी के डॉक्टरों ने मुझे सलाह दी कि अगर मुझे कोई लक्षण हों, जैसे कि चकत्ते, जोड़ों में दर्द, बुखार आदि, तो मैं उन्हें रिपोर्ट करें। यह बीमारी गुर्दे, मस्तिष्क, हृदय, फेफड़े, रक्त वाहिकाओं और त्वचा तक को प्रभावित करती है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि जब मैं काम में व्यस्त हूँ तब भी तनाव ज्यादा बढ़ने न दूँ। मेहनत करना ठीक है, अधिक जोर लगाना और तनाव महसूस करना ठीक नहीं है।
मेरे लिए तनाव का पहला संकेत हैं निम्न श्रेणी का बुखार जो कई दिनों तक कम नहीं होता है। यदि ऐसा होता है, तो मेरी सूजन को कम करने के लिए डॉक्टर द्वारा मेरी दवाएं समायोजित की जाती हैं और मैं सामान्य हो जाता हूं।
राहत काफी हद तक जीवन शैली में बदलाव पर निर्भर करती है, और व्यक्ति स्वयं के प्रति सतर्क रह कर कारणों की पहचान करता है, थकान की शुरुआत होने वाली है, यह पहचान पाता है, आदि। ये जटिलताएँ घर में, काम पर और सामाजिक मेलजोल में जीवन को कठिन बना देती हैं।
लुपस वाले अन्य लोगों को आप क्या सलाह देना चाहेंगे?
- अपने शरीर के प्रति सतर्क रहें। फ्लेर-अप बार-बार होने से रोकें, क्योंकि ये इनका शरीर और आपके सामाजिक जीवन पर बुरा असर होता है। इस बात का ध्यान रखें कि जो चीजें आपके शरीर पर जोर डालती हैं, आप उनसे बचें, जैसे कि धूप में निकलना, निर्जलीकरण, तनावपूर्ण विचार, काम विश्राम लेना, आदि।
- सकारात्मक रहें, खुश रहें, मेलजोल बढ़ाएं और अपने दोस्तों को अपनी बीमारी के बारे में aआसान तरह से बताएं ताकि वे आपको तनाव दूर करने में मदद करें और आपका खयाल रखें।
- आजीवन एक ही डॉक्टर के पास जाएं। हर समस्या के लिए रुमेटोलॉजिस्ट के पास जाएँ, और उन की सलाह के अनुसार जैसे जरूरत हो विभिन्न चिकित्सकों और विशेषज्ञों से सलाह करें।.
उपचार के लिए सही निर्णय लेने के लिए बिना बढ़ा-चढ़ा के और बिना नजरंदाज करें समस्याओं को आत्म-अवलोकन से समझना होगा और डॉक्टर से उन के बारे में बात करनी होगी।
शोग्रेन्स में क्या कठिनाइयाँ होती हैं, जैसे कि निदान और उपचार के संबंध में?
लुपस और शोग्रेन्स के कई लक्षण एक से हैं। मेरी समझ में इन में सरल अंतर यह है कि लुपस सॉफ्ट टिशू * (संपादक का नोट: मांसपेशियों, वसा, रेशेदार ऊतक, रक्त वाहिकाओं, या शरीर के अन्य सहायक ऊतक),पर असर करता है और शोग्रेन्स का असर ग्रंथियों पर होता है। दोनों ही ऑटो-इम्यून प्रणाली की समस्याएं है और दोनों का इलाज स्टेरॉयड, एनएसएआईडी (गैर-स्टेरायडल विरोधी भड़काऊ दवाएं) और अब डीएमएआरडी (रोग-संशोधित एंटीरहायमैटिक दवाओं) से किया जाता है।
मेरे लुपस के निदान के कुछ साल बाद, डॉक्टर ये दहना चाहते थे कि क्या मुझे शोग्रेन्स भी है, क्योंकि मैंने तीव्र शुष्क मुँह की शिकायत भी की थी। इसलिए मुझे आंसू परीक्षण के लिए भेजा गया (सूखी आंखों के लिए, हालांकि मुझे यह शिकायत नहीं थी) और लिप बायोप्सी के लिए। मुझे बताया गया था कि लार और आंसू बनाने वाली ग्रंथियों की सूजन की सीमा को लिप बायोप्सी के जरिए पहचाना जा सकता है। पता चला कि मेरी ग्रंथि में सूजन है और मेरी आंखों से पर्याप्त आंसू भी नहीं निकल रहे थे। इसके लक्षण मुझे परेशान करते, उससे पहले ही सीएमसी में बीमारी की पहचान हो पाई। फिर मुझे आँखों में ड्रॉप्स डालने की सलाह दी गई जिससे मुझे अपनी आंखों को बचाने में मदद मिली।
मुंह सूखना मेरी सबसे बड़ी चुनौती रही है क्योंकि यह मेरे खाना ले पाने को बहुत प्रभावित करता है और रात में भी परेशान करता है क्योंकि मैं जब उठता हूं तो जीभ मुंह की तले से चिपकी होती है।
दो क्रानिक बीमारियों के होने की सबसे बड़ी चुनौतियाँ क्या हैं?
मैं सलामत हूँ तो अपनी जीवनसाथी की बदौलत - वह मेरी स्थिति समझती है और मेरा समर्थन करती । और सीएमसी और भगवान के कारण भी। अस्पताल में कई बार जाना और अस्पताल में लगभग सभी विभागों में अपने-आप को दिखाना निश्चित रूप से परिवार के किसी भी सदस्य को थकाता है। हर दिन व्यक्ति को मुंह सूखना, आंखें सूखना, जोड़ों में दर्द, बुखार आदि जैसी कठिनाइयां आती हैं, और परिवार भी बहुत चिंतित और परेशान रहता है।
मेरे लिए, लुपस के कारण जीवन को अक्षम करने वाली दो बड़ी प्रभावशाली घटनाएं हुई हैं।
- उंगली, कलाई और कोहनी में जोड़ों का दर्द सबसे चुनौतीपूर्ण होता है। ऐसे में मैं उंगलियों का उपयोग करके डोसा / चपाती का एक टुकड़ा भी नहीं उठा पाता हूँ, यह इतना दर्दनाक होता है। जब यह एपिसोड होता है, तो मुझे बहुत हताशा होती है । भगवान का शुक्र है, अब मैं इन सबसे मुक्त हूं, और मेरे जोड़ अब ठीक हैं।
- ब्रेन फॉग* एक और चुनौती है। (* संपादक का नोट: सोचने में, ध्यान केंद्रित करने में, विचार व्यक्त करने में कठिनाई, मानो मस्तिष्क कुछ शिथिल हो गया है, उस पर कोहरा सा छा गया है।) इस के कारण लोगों के साथ बातचीत करना मुश्किल हो जाता है और चूंकि मैं सामान्य दिखता हूं, इसलिए दूसरों को लगता है कि यह उदासीन व्यवहार है। जब मैं ब्रेन फॉग या थकान से पीड़ित होता हूं, तो एक छोटा सा निर्देश (जैसे कि दरवाजा खोलना) भी एक बहुत बड़ा काम लगता है। एक बार यह ब्रेन फॉग इतना अधिक हो गया था कि मुझे गंभीर चिंता विकार हो गया, जिसके लिए मुझे अस्पताल में भर्ती कराया गया और मेरा इलाज किया गया लेकिन सौभाग्य से, मैं जल्द ही ठीक हो गया।
लुपस और शोग्रेन्स के लक्षणों को प्रबंधित करने में मदद के लिए क्या आपने जीवनशैली में कोई बदलाव किया है?
हाँ। मैंने जीवनशैली में कुछ बुनियादी बदलाव करने की कोशिश की, वे हैं:
- मैं धूप में नहीं जाता क्योंकि इससे शरीर में पानी की कमी हो जाती है, त्वचा पर चकत्ते पड़ जाते हैं और सूजन बढ़ जाती है।
- मैं कोशिश करता हूं कि अपनी काबिलीयत के हिसाब से सर्वश्रेष्ठ काम करूँ, पर खुद को तनाव में न डालूँ।
- मैं एक दिन के लिए भी अपनी दवा लेना नहीं भूलता।
- मैं अपने मन को शांत करके क्रोध और चिंता से दूर रहने की कोशिश करता हूँ। ये दो भावनाएँ मेरे ब्रेन फॉग और थकान को बढ़ाती हैं। प्रार्थना भी ध्यान का एक रूप है जिसका अभ्यास आसानी से किया जा सकता है।
- मैं अगर अस्वस्थ हूँ तो लोगों/ सहयोगियों को बताया देता हूँ ताकि वे समझ पाएं कि मेरा काम और मेरी प्रतिक्रियाएं धीरी क्यों हैं।
- मैंने अपनी चल रही बीमारी और चुनौतियों के कारण काम पर कभी कोई बहाना नहीं बनाया। बेशक, अगर मैं गंभीर रूप से बीमार हूँ, तो मैं काम पर नहीं जा सकता। सामान्य हूँ, या बस हल्की सी तकलीफ हो तो ऐसे दिनों पर बीमारी को कम काम करने का बहाना नहीं बनाता। इस से यह सुनिश्चित रहता है कि मेरे सीनियर मुझे एक बीमार आदमी के रूप में नहीं देखते।
इस अदृश्य बीमारी को सावधानी से संभालना चाहिए अन्यथा यह काम और घर को प्रभावित करेगी।
क्या आप चेन्नई में लुपस और शोग्रेन्स के लिए किसी सपोर्ट ग्रुप (सहायता समूह) को पहचान पाए हैं?
शुरुआती दिनों में मैं किसी अन्य मरीज के बारे में नहीं जानता था। लेकिन सीएमसी के डॉक्टर रोगी-सहायता में उत्कृष्ट थे और उन्होंने मुझे इन रोगों के बारे में, इन के कारण जीवन के जोखिम के बारे में और अंग विफलता से बचने के तरीके के बारे में स्पष्ट रूप से समझाया।
चेन्नई में लुपस या शोग्रेन्स के लिए चेन्नई में कोई सहायता समूह नहीं है। मैं सुश्री कीर्तिदा ओझा द्वारा संचालित शोग्रेन्स इंडिया का सदस्य हूं। वे रोगी समूह को डॉक्टरों के साथ जोड़ती हैं और व्हाट्सप्प समूह में समय पर बातचीत के माध्यम से महान सेवा कर रही हैं। अपने काम द्वारा वे विभिन्न रोगियों से संबंधित दिन-प्रतिदिन के मुद्दों पर सामान्य भावनात्मक और सूचनात्मक समर्थन सुनिश्चित करती हैं।