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Submitted by PatientsEngage on 28 November 2022

फरीदाबाद की 60 वर्षीय अरुणा मिश्रा बहुत कम देख पाती हैं - अब उनकी सिर्फ 8 प्रतिशत परिधीय दृष्टि बची है,  और यह और भी घटती जा रही है। लेकिन इस समस्या के बावजूद वे स्वतंत्र रूप से जीती हैं, अपने सारे काम करती हैं, और यहाँ तक कि जब उनके पति को कोविड हुआ, उन्होंने खाना बनाने का काम भी संभाला। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने इस समस्या से अपने जीवन के उत्साह को कम नहीं होने दिया।

कृपया हमें अपनी स्थिति के बारे में कुछ बताएं

मैं रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा की एडवांस स्टेज में हूं। मेरी अब केवल 8 प्रतिशत दृष्टि बची है। और यह मुख्य रूप से परिधीय है। रोशनी न हो तो मेरी दृष्टि शून्य के बराबर है। जो थोड़ा बहुत नजर आता है वह धुंधला और टूटा-टूटा सा होता है, मानो किसी पुरानी पेंटिंग पर पानी छिड़का गया है जो उसे और भी धुंधला बना रहा है। मैं एक सक्रिय व्यक्ति हूं और लगभग सब कुछ अपने दम पर करने की कोशिश करती हूं, और इसमें अकेले हवाई जहाज से यात्रा करना शामिल है। वास्तव में, मेरे डॉक्टर बहुत हैरान हैं कि मैं इतनी कम दृष्टि से इतना कुछ कर पाती हूं।

आपका निदान कब हुआ था?

डॉक्टर ने जब मेरा डायग्नोस किया, मैं तब 10 साल की थी। मेरी मां को भी यह समस्या थी। स्कूल में मुझे ब्लैकबोर्ड की लिखाई देखने में परेशानी हो रही थी, और यह बढ़ती जा रही थी। लिखाई इतनी अस्पष्ट थी कि मुझे सबसे आगे वाली बेंच पर बैठना पड़ता था। इसलिए मेरे पिताजी  मुझे डॉक्टर के पास ले गए, और डॉक्टर ने बताया कि मुझे यह समस्या मां से विरासत में मिली है।

शुरुआती लक्षण क्या थे?

जैसा कि मैंने पहले उल्लेख किया है, मैं स्कूल में ब्लैकबोर्ड नहीं पढ़ पा रही थी। रात में बिना रोशनी जलाए हुए मैं कुछ नहीं देख पाती थी। जब मैं दूसरों के साथ बाहर जाती, या शाम को अपने घर या मोहल्ले में घूमती, तो मुझे समझ में नहीं आता था कि दूसरे लोग सड़क और गड्ढे या अन्य ऐसी बाधाओं कैसे देख पाते है जो मैं नहीं देख पाती थी। शायद यही मेरे शुरुआती लक्षण थे।

कृपया स्थिति को प्रबंधित करने के अपने अनुभव का वर्णन करें।

मुझे पढ़ाई के लिए अतिरिक्त रोशनी की जरूरत पड़ती थी। मेरी आंखें आसानी से थक जाती थीं। इसलिए कुछ देर पढ़ाई करने के बाद मैं अपनी आंखों को आराम देती थी। मैं हमेशा अपने साथ एक टॉर्च लेकर चलती थी। मैंने पहले बुनाई और कढ़ाई भी की है। मैं तब देख सकती थी। लेकिन जिस दिन मेरी बेटी मेरे गर्भ में आई, मेरी दृष्टि में भारी गिरावट हुई। डॉक्टर ने कहा कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि यह एक अनुवांशिक समस्या है, और गर्भ धारण करने से यह समस्या बढ़ सकती है। लेकिन सौभाग्य से मेरी बेटी इस स्थिति से बच गई है, और मैं इसके लिए बहुत आभारी हूं।

आप कौन सी दवाएं ले रही हैं?

मैंने हमेशा विटामिन ए युक्त प्राकृतिक भोजन किया है। आजकल मेरे पास 3 महीने या उससे भी अधिक समय के लायक विटामिन की गोलियां रहती है - मैं इन्हें कुछ दिन लेती हूँ, फिर डॉक्टर की सलाह के अनुसार इन्हें थोड़ी देर के लिए बंद कर देती हूँ। मैं हर 6 महीने में रूटीन आंखों की जांच के लिए जाती हूं।

अपनी कुछ चुनौतियों के बारे में बताएं।

मुझे काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। मैं जम्मू से हूं। लेकिन मुझे अपने दोस्तों और परिवार को छोड़कर दिल्ली आना पड़ा क्योंकि 1996 में, जब मेरी बेटी 5 साल की थी, वह एक गंभीर दुर्घटना का शिकार हो गयी और उसे नियमित फिजियोथेरेपी सत्र की जरूरत थी। जम्मू में इसके लिए पर्याप्त सुविधाएं नहीं थीं। इसलिए हमें बेहतर इलाज के लिए दिल्ली आना पड़ा। दिल्ली का जीवन जम्मू वाले मेरे आरामदायक जीवन से बहुत अलग था, क्योंकि जम्मू में मैं एक बहुत बड़े मकान में रहती थी जहां बहुत सारे नौकर थे। मेरी सीमित दृष्टि के कारण दिल्ली जैसे बड़े शहर में रहना मेरे लिए बहुत बड़ी चुनौती थी। यह नई जगह थी, एक बड़ा शहर जिसकी मुझे आदत नहीं थी, और लोग भी कुछ ज्यादा ही चालाक थे। मेरे पति दिन भर ऑफिस में होते थे। मुझे अपनी बेटी को रोज फिजियोथेरेपी के लिए ले जाना पड़ता था। वह स्कूल से वापस आती, खाना खाती, फिर हम ऑटो लेते और फिजियोथेरेपी के लिए जाते। मेरी दृष्टि हानि के कारण मेरे लिए सब कुछ कठिन था। हमने फिर शहर के बीच के इलाके में रहना शुरू किया और यह अधिक सुविधाजनक था। दिल्ली अधिक महंगी जगह भी थी, इसलिए पैसों की तंगी भी ज्यादा थी।

आप किस तरह के विशेषज्ञों से सलाह लेती हैं और कितनी बार?

मैं ऐसे नेत्र विशेषज्ञों से परामर्श लेती हूं जिनकी विशेषता का क्षेत्र रेटिना (दृष्टिपटल) है।

आप आत्मनिर्भर हैं, और आप ज्यादातर बिना मदद के अपने काम करती हैं। आप यह सब कैसे करती हैं? इस तरह की चुनौतियों का सामना करने वाले अन्य लोगों के लिए आपकी क्या सलाह है?

मेरे पति, बेटी और दामाद सभी अपने-अपने तरीके से मेरी मदद करते हैं। मेरे आसपास के लोग भी मेरी बहुत मदद करते हैं। मैं कोई शिकवा-शिकायत नहीं करती। मैं सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने में असमर्थ हूं, इसलिए मुझे शहर में आने जाने के लिए टैक्सी लेनी पड़ती है। लेकिन मैं हमेशा ध्यान रखती हूं कि मैं कैब ड्राइवरों के साथ अच्छा व्यवहार करूं, और अगर मैं अपने लिए खाना ले जा रही हूं, तो मैं ड्राइवरों के लिए भी कुछ खाना ले जाती हूं। बदले में, वे मुझे सुरक्षित रूप से इधर-उधर ले जाते हैं और वापस छोड़ते समय मेरा सामान मेरे अपार्टमेंट तक लाते हैं। सब के साथ अच्छी तरह से पेश आना मेरे लिए काफी मददगार साबित हुआ है।

सौभाग्य से मुझे हमेशा अच्छे दोस्त मिले हैं। जब मेरी बेटी बड़ी हुई तो वह भी मेरी बहुत मदद करने लगी। इसी तरह की स्थिति वाले अन्य लोगों को मेरी सलाह है कि अपनी आंतरिक शक्ति का विकास करें। आपके पास जो कुछ है उसके लिए भगवान का शुक्रिया अदा करें और अपने दुर्भाग्य के लिए दूसरों को दोष न दें। कोशिश करें और एक सहज और प्रसन्नचित्त इंसान बनें। यह स्वभाव दूसरों को आपकी ओर आकर्षित करेगा। खुश रहें। विनम्र बनें। मुझे अपनी चुनौतियों  के कारण अकसर दूसरों से मदद लेनी पड़ती है। मुझे अकसर सड़क पर पुलिसवाले से मदद माँगनी पड़ती है, या कैब ड्राइवर से चीज़ों को संभालने में मदद लेनी होती है, यहाँ तक कि पड़ोसियों से भी कुछ काम के लिए मदद माँगनी होती पड़ती है।

क्योंकि मैं उनसे विनम्रता से बात करती हूं, सभी लोग तत्परता से मेरी मदद करते हैं। मेरे व्यवहार के कारण, मेरे पुराने छात्र अभी भी मुझे फोन करते हैं, जिस से मैं बहुत खुश और धन्य महसूस करती है। 1982 में बीएड की परीक्षा पूरी करने के कुछ ही देर बाद मैंने जम्मू में पढ़ाना शुरू करा था और शादी के बाद भी मैंने पढ़ाने का काम जारी रखा था। गर्भ धारण करने के बाद मैंने पढ़ाना छोड़ दिया था। मुझे जीवन में बहुत सी समस्याओं से जूझना पड़ा है, लेकिन इन सब ने मुझे अधिक मजबूत बनाया है।

आपको मधुमेह भी है। आप इसे कैसे संभालती हैं?

एक साल पहले यह पाया गया कि मेरी शर्करा का स्तर अधिक है, और इस से मेरी स्थिति में अधिक जटिलताएं पैदा हुई हैं। डाइबीटीज़ (मधुमेह) ने  मेरी दृष्टि को बहुत अधिक खराब कर दिया है। मैंने अपनी आंखों की रोशनी का धीरे-धीरे बिगड़ना स्वीकार कर लिया था, और इसके साथ जीना सीख लिया था। पिछले साल मुझे कैटरैक्ट (सफेद मोतियाबिंद) भी हो गया था और मैंने इस के लिए ऑपरेशन भी करवाया था। डाइबीटीज़ के कारण दृष्टि में गिरावट बहुत शईगर और अधिक हुई है। डाइबीटीज़ के लिए मैं सुबह नाश्ते से पहले ग्लाइकोमेट जीपी 1 और रात के खाने से पहले एमरिल 1 मिलीग्राम टैबलेट लेती हूँ। और मैं व्यायाम के लिए घर के अंदर चलती हूं। मैं हाथों और पैरों के भी कुछ व्यायाम करने की कोशिश करती हूं।

क्या भावनात्मक रूप से आपके लिए इस स्थिति का सामना करना कठिन रहा है?

यह थोड़ा कठिन तो रहा है, लेकिन यह आसपास के लोगों पर भी निर्भर करता है। मैं यात्रा करती थी, पढ़ाती थी, लगभग सब कुछ करती थी। मेरे ससुराल वालों ने हमेशा मेरा समर्थन करा है। उन्होंने मुझे पूरी तरह से स्वीकारा है। उन्होंने मेरे लिए घर में हर जगह अतिरिक्त बल्ब लगाए हैं, जो मेरे लिए बहुत बड़ी मदद हैं। मेरे पति भी बहुत मददगार हैं। जब हमारी शादी की बातचीत चल रही थी, तब मैंने और मेरे परिवार वालों ने मेरी चुनौतियों के बारे में बहुत स्पष्ट तरह से बात की थी, और ससुराल वालों ने मुझे मेरी चुनौतियों के साथ स्वीकार किया।

अगर किसी पिता की ऐसी बेटी है जिसको समस्याएं हैं, तो बेटी के साथ खड़े रहना और उसे आत्मनिर्भर बनाना बहुत जरूरी है। मेरे पिता बहुत सपोर्टिव थे। इस तरह के वातावरण और समर्थन के कारण मुझे एक आत्म-विश्वास से भरपूर्ण व्यक्ति बनने में मदद मिली। खुद से प्यार करना भी जरूरी है।

मुझे इतना आत्म-विश्वास है कि मैं बैंगलोर में अपनी बेटी से मिलने के लिए अकेले यात्रा करती हूं। हवाई अड्डे के कर्मचारी सामान आदि में मेरी मदद करते हैं, और मैं अपनी बेटी के पास जाने के लिए अकेले उड़ान से जा पाती हूं। वर्षों से मेरे आसपास के लोगों के प्यार और समर्थन के बिना यह संभव नहीं होता। हमें लोगों से दया की जरूरत नहीं है। हमें बस उनके समर्थन की जरूरत है।

जब आपके पति को कोविड हुआ था तो आपने उनकी देखभाल कैसे की?

वह एक कठिन दौर था। सौभाग्य से, उनका निदान जल्दी हुआ था और उन्होंने तुरंत स्व-क्वॉरन्टीन शुरू कर दिया था। मेरे पास कोई नौकरानी नहीं थी, और मेरी मदद के लिए कोई नहीं था। इसलिए मैं चिंतित थी। लेकिन मैंने खुद स्थिति संभाल पाने की ठानी। मैंने खाना बनाना शुरू किया। दाल चावल जैसी साधारण चीजें। और मैं खुद घर की सफाई भी करने लगी।

मेरे आस-पास के लोग और दुकानदार मेरे लिए सामान लाते। मेरी बेटी ने भी मुझे ऑनलाइन शॉपिंग के जरिए किराने का सामान आदि भेजा। 3 सप्ताह तक मैंने सब कुछ अपने दम पर किया, अपनी खराब दृष्टि के बावजूद। इस दौरान मेरा सबसे बड़ा डर यह था कि कहीं मुझे भी कोविड न हो जाए। ऐसा होता तो मेरे लिए प्रबंधन करना बहुत मुश्किल होता। पर मैं आमतौर पर किसी भी चीज से विचलित नहीं होती हूँ। चूँकि मुझे पता है कि मुझे दृष्टि संबंधी चुनौतियाँ हैं, इसलिए मैं एक समय में एक ही काम संभालती हूँ, ताकि दुर्घटनाओं से बची रहूँ।

क्या आपने कभी किसी काउन्सलर से सलाह ली है? क्या आपके डॉक्टर ने आपको काउन्सेलिंग दी है?

लोग मुझसे सलाह लेते हैं। मुझे काउन्सेलिंग की आवश्यकता नहीं है।