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Submitted by PatientsEngage on 5 March 2024
A young woman in white top sitting sideways framed with a purple border with the lupus butterfly symbol and the the text Living with Lupus and patientsengage logo

26 वर्षीय श्रेया शुक्ला, कानपुर (उत्तर प्रदेश) में अपनी खुद की डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी चलाती हैं। उन्हें जुवेनाइल लुपस (बचपन में होने वाला लुपस) है। इस लेख में वे साझा करती हैं कि कम उम्र में लुपस होने का उनका अनुभव साझा क्या था – इस में उनके विलंबित और गलत निदान से लेकर अपनी स्थिति का प्रबंधन और स्वतंत्रता प्राप्त करने की यात्रा और अनेक जटिलताओं का वर्णन शामिल है।

लक्षण और निदान

नवंबर 2008 में, जब मैं 12 साल की थी, मुझे शरीर में दर्द, जोड़ों में दर्द और हल्का बुखार हुआ, और जब मैंने अपने डॉक्टर से सलाह ली, तो सबसे पहले मेरा चिकनगुनिया का इलाज किया गया। इससे पहले 2007 में, मेरी लिम्फ नोड में सूजन और संक्रमण हो गया था और मुझे एक निजी अस्पताल में लिम्फ नोड हटाने की सर्जरी करानी पड़ी थी। 9 महीने तक मेरा टीबी का इलाज भी किया गया था क्योंकि परीक्षण में मुझ हल्का पाज़िटिव रिजल्ट मिला था।

फिर 2009 में मुझे कुछ लक्षण दिखाई देने लगे।  मुझे तेज बुखार हुआ जिसमें मेरा शरीर गरम भी नहीं महसूस हो रहा था, और धीरे-धीरे जैसे-जैसे दिन और महीने बीतते गए, इन लक्षणों के साथ पूरे शरीर में दर्द और फोटो संवेदनशीलता और जोड़ों में गंभीर दर्द होने लगा।  मैं खड़ी भी नहीं हो पाती थी, मेरी उंगलियों का आकार भी विकृत होने लगा। मेरे वजन में भारी कमी के साथ लिम्फ नोड्स में भी सूजन आ गई थी। 2010 में मेरा 9 महीनों के लिए फिर से टीबी का इलाज किया गया क्योंकि मेरे डॉक्टर ने सोचा कि मैंने पहले ठीक से दवाएँ नहीं लीं थीं, इसलिए मेरी बीमारी फिर से सक्रिय हो गई थी। इसके बाद लक्षण वास्तव में बिगड़ गए और मुझे दिन में एक बार के बजाय दो बार बुखार आने लगा। 2009-2012 के बीच मैंने हर तरह की उपचार प्रणाली आजमायी - लेकिन होम्योपैथी से मुझे फायदा नहीं पहुंचा और आयुर्वेद में बहुत धोखेबाजी और घोटाले थे– जैसे कि एलोपथी वाली दर्द निवारक दवाओं को आयुर्वेदिक दवा के साथ मिलाकर जादुई इलाज पेश करने का दावा करना। 

बाद में 2010 में मेरे एक डॉक्टर ने मुझे एसजीपीजीआई लखनऊ रेफर करा। मैं एसजीपीजीआई (संजय गांधी) अस्पताल गई और वहाँ एक मैंने हेमेटोलॉजिस्ट से परामर्श किया। मेरे लक्षणों को देखने पर उन्होंने सोचा कि यह लिंफोमा है। टेस्ट में लिंफोमा का कोई भी संकेत नहीं मिला, फिर भी उन्होंने कई बायोप्सी और अस्थि मज्जा बायोप्सी करीं। इस के बाद मैं दिल्ली में कैंसर सेंटर भी गई और वहां जांच के बाद उन्होंने कहाँ कि मुझे लिम्फोमा नहीं है।

2012 में, अपने पिता के एक मित्र के सुझाव पर, मैंने केजीएमसी में एक रुमेटोलॉजिस्ट से कन्सल्ट किया  और एक महीने तक भर्ती रहने और कई परीक्षणों के बाद आखिरकार दिसंबर 2012 में एसएलई का पता चला। एंटीन्यूक्लियर एंटीबॉडीज (एएनए), एलिसा जैसे सभी परीक्षण किए गए। आखिरकार मुझे लुपस के निदान और उपचार के लिए ऐसा सही डॉक्टर मिले जिन्होंने मुझसे निदान के लिए सभी प्रासंगिक प्रश्न पूछे और मेरे केस का विस्तृत इतिहास लिया।

सही इलाज शुरू होने के बाद से मेरी हालात काफी बेहतर हैं। मुझे अब बस हल्के से लेकर गंभीर सिरदर्द और मामूली जोड़ों का दर्द, थकान और जोड़ों में मौसमी सूजन होती है। हाँ, सर्दियों में मुझे टांगों और कंधों में थोड़ा दर्द महसूस होता है। मौसम के बदलने से मेरे शरीर को कोई झटका न पहुंचे, इस के लिए मैं उचित कदम लेती हूँ। 

शुरू में मेरे लीवर और प्लीहा (स्प्लीन) में सूजन थी और इसका इलाज किया गया, लेकिन शुक्र है कि लुपस ने मेरे किसी भी अन्य अंग को प्रभावित नहीं किया है।

इलाज

एसएलई के निदान के बाद, शुरुआती 3 महीनों में उन्होंने मुझे स्टेरॉयड दिए - मेथोट्रेक्सेट 20 मिलीग्राम से शुरू करा गया जिसे बाद में समय के साथ कम कर दिया गया। 4 महीने के बाद, स्टेरॉयड दवा बंद कर दी गई और अन्य दवाएं शुरू की गईं - हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन - एचसीक्यूएस (प्रतिदिन), मेथोट्रेक्सेट (सप्ताह में कुछ दिन), विटामिन सप्लीमेंट बी9 - फोलिक एसिड (सप्ताह में कुछ दिन), थायरोक्सिन, कैल्शियम, नेप्रोक्सन (नियमित दर्द निवारक) और आयरन सप्लीमेंट, मल्टीविटामिन। वर्तमान में 4-5 दवाएं ले रहा हूं - एचसीक्यूएस (सप्ताह में 5 दिन), मेथोट्रेक्सेट (सप्ताह में एक बार), विटामिन पूरक बी9 - फोलिक एसिड (सप्ताह में दो बार), थायरोक्सिन, कैल्शियम, आयरन, जैसा कि बताया गया है। इन कई सालों में मुझे दर्द सहने का अभ्यास हो गया था, इसलिए मैं अपने शारीरिक स्वास्थ्य पर काम करती हूँ और अब मुझे दर्दनिवारक दवाओं की जरूरत नहीं पड़ती, कई साल हो गए हैं। मुझे केवल सर्दियों में कभी-कभी दर्दनिवारक दवाएं लेनी पड़ती हैं।

दवा के दुष्प्रभाव के परिणामस्वरूप मेरे त्वचा और चेहरे का रंग खराब हो गया है । शुरुआत में 2 साल तक ज्यादा दुष्प्रभाव नहीं हुए, लेकिन अब मुझे सिरदर्द, गर्मियों में त्वचा का गर्म होना और खुजली, अत्यधिक फोटो-संवेदनशीलता, और कभी-कभी जोड़ों में दर्द होता है। हालाँकि डॉक्टर ने कहा है कि मुझे ब्रेन फ़ॉग नहीं है, मैं बहुत सी चीज़ें याद नहीं रख पाती हूँ, और इसलिए मुझे नोट रखने पड़ते हैं। मुझे ऐसा लगता है कि मेरे व्यस्त दिनचर्या में कभी-कभी कुछ बार ब्रेन फ़ॉग की समस्या होती है और यह बात मुझे कभी-कभी परेशान करती है, पर मैं इस में सुधार के लिए मेडिटेशन (ध्यान) द्वारा काम कर रही हूँ और मुझे इस से मदद मिल रही है। मैं इस के लिए किसी अन्य प्रकार का उपचार या दवा नहीं लेती हूँ।

सामाजिक और चिकित्सकीय सहायता

जब मेरा निदान हुआ था, तो मेरे आस-पास के लोग तो मेरी स्थिति समझ पाए, लेकिन अन्य लोगों (जिनमें मेरे शिक्षक शामिल थे) सोचते थे कि मैं ठीक दिख रही हूं और अपनी हालत के बारे में झूठ बोल रही हूँ और कक्षा में आलसी रहती हूं। लेकिन बाद में जब मेरे माता-पिता ने उन्हें समझाया और मैंने भी अधिक साझा किया तो वे समझने लगे। मैं अपनी स्थिति के बारे में उन्हें ठीक से बता नहीं पाई। 

मुझे अपने दोस्तों से बहुत समर्थन मिला है। वे मुझे प्रोत्साहित करें और कोशिश करते हैं कि मैं अपनी बीमारी के बारे में न सोचती रहूं। मेरे डॉक्टर हमेशा मुझे अच्छी सलाह देते हैं और प्रेरित करते हैं कि मैं यह न सोचूं कि मुझ में कोई ऐब है। 

शुरू में मुझे अपनी स्थिति के बारे में बहुत कौतूहल था और मैंने अपने डॉक्टर से बहुत सारे प्रश्न पूछे, और अब, 4-5 वर्षों से उनसे मिलते रहने के बाद, मुझे लगता है कि वे मेरे प्रश्नों का बेहतर और संतोषजनक तरह से उत्तर देते हैं।

लुपस और अपनी स्थिति के बारे में अधिक जानकारी के लिए, मुझे सोशल मीडिया का सहारा लेना पड़ा और यूट्यूब / क्योरा और इंस्टाग्राम पर खोजना पड़ा। समान स्थिति वाले अन्य लोगों से जुड़ने के लिए मैंने एक इंस्टाग्राम पेज @Lupushuman बनाया, ताकि मैं उनसे बातें कर सकूं और उनकी स्थिति को समझ सकूं और अनुभव साझा कर सकूं क्योंकि मैं लुपस के बारे में और अधिक जानना चाहती थी। 

और फिर मैं इंस्टाग्राम के माध्यम से शांभवी से जुड़ी, जिन्होंने मुझे लुपस ट्रस्ट इंडिया के संस्थापक से मिलवाया और मुझे ग्रुप में शामिल किया। मैं उनसे पिछले 1.5 वर्षों से जुड़ी हुई हूँ। लुपस ट्रस्ट इंडिया से जुड़े लोगों के साथ संबंध बनाए रखना अच्छा लगता है, क्योंकि वे एक बहुत ही खुशमिजाज समुदाय हैं और जागरूकता पैदा करने पर केंद्रित हैं।

भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव

4 वर्षों (2009-2012) तक मुझे लगा मैं मानो किसी प्रयोगशाला में मात्र एक लैब रैट थी, एक चूहा जिस पर अनेक प्रयोग किए जा रहे थे। मुझ पर इतने सारे टेस्ट किए गए, मैं इतने अस्पतालों में आती-जाती रही, मुझे टीबी के लिए और अन्य भी इतनी दवाएं दी गईं – पर इस पूरे दौरान मेरी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ।

मुझे लगता है कि मुझे किसी प्रकार की स्मृति हानि है और मुझे कभी-कभी ब्रेन फॉग होता है। इस के कारण मुझे कुछ स्थितियों में प्रतिक्रिया देने में कुछ घबराहट होती है। इसका मेरे व्यवसाय पर भी कभी-कभी प्रभाव पड़ता है – मैं कभी-कभी निराश और हतोत्साहित महसूस करती हूँ और मैं इस स्थिति को स्वीकार करती हूं।

मैं इस बात को हमेशा ध्यान में रखती हूँ कि जो कुछ हुआ वह कभी भी मेरे नियंत्रण में नहीं था। अपनी इच्छा शक्ति को मजबूत रखते हुए मेरी कोशिश रहती है कि स्थिति से जूझने के लिए कदम लेती रहूँ – व्यायाम, ध्यान, करीबी लोगों से बात करना। इन सब चीजों से कुछ मदद मिलती है, पर ये हमेशा काफी नहीं रहतीं। 

मैंने कुछ मेडिटेशन पर क्लास ली हैं, और अपने शरीर को संतुलन में रखने के लिए शांभवी महामुद्रा क्रिया की है। कभी-कभी जब मेरा शरीर ऊर्जावान महसूस नहीं कर रहा होता है, तो मैं इन्हें नहीं कर पाती। जब मुझे अत्यधिक थकान और सिरदर्द हों, तो ये छूट जाती हैं। 

क्या मैं "मेरे साथ ही ऐसा क्यों?" सोच-सोच कर परेशान रहती हूँ? नहीं! मैं वास्तव में यह सोचकर निराश नहीं होती कि मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ। बल्कि मैं खुद को भाग्यशाली मानती हूं क्योंकि अब मैं लंबे समय तक बैठ सकती हूं, और मैं निदान और काम से पहले जिन दिक्कतों का सामना कर रही थी, मैं उस से उबर पाई हूं, मैं अपने लायक कमा पाती हूं और अपने जीवन का प्रबंधन कर सकती हूं।

जूझने के लिए मैं कला का सहारा लेता हूं - डिजिटल आर्ट और दीवारों पर पेंटिंग। मुझे  पेंटिंग में बहुत रुचि है और मैं बहुत सारे डीआइवाई करती हूं।

नकारात्मक सोच वालों से प्रभावित न होना:

मैं बचपन से ही बीमार रही हूँ। मेरे पिता ने मुझे बताया कि जब मैं लगभग 8 महीने की थी तो मुझे बहुत ही तेज बुखार हुआ और मैं बेहोश हो गई थी। डॉक्टर ने कहा कि यह दवाइयों के ओवरडोज़ के कारण हुआ था। बचपन से ही मुझे यह समस्या रही है कि मुझे उपयुक्त से कहीं अधिक मात्रा में दवा दी गई है।

मेरा परिवार हमेशा मेरी बहुत चिंता करता था, और बचपन से बड़े होने तक मैं अपने रहन-सहन पर सलाह सुनती आ रही हूँ - मुझे क्या नहीं करना चाहिए, क्या नहीं खाना चाहिए, बाहर नहीं जाना चाहिए, किन बातों से बचना चाहिए। 2010 के आसपास जब मैं समस्याओं का सामना कर रही थी तो मेरे अंकल ने मुझे पढ़ाई से 2-3 साल की छुट्टी लेने की सलाह भी दी थी, लेकिन चूंकि मैं मजबूत और दृढ़ थी, इसलिए मैंने ऐसा नहीं किया। मुझे कई बार खून चढ़ाने और इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन मैंने फिर भी कड़ी मेहनत की और परीक्षा पास की – इसमें मेरी इच्छा शक्ति ने मेरी मदद की!

मेरे कुछ दोस्त मेरी स्थिति समझते थे और उन्होंने मेरी पढ़ाई में मदद की है। मुझे लगता है कि युवा तो ऐसी बातें समझते हैं लेकिन जो बड़े लोग मुझे नहीं जानते थे, उनके मन में बहुत सारे सवाल रहते थे - मैं बाहर का खाना क्यों नहीं खाती, रोज इतनी सारी दवाएं क्यों लेती हूं - और वे मुझे उदाहरण देते रहते कि कैसे ऑटोइम्यून स्थितियों को दवाओं के बिना ठीक किया जा सकता है। मुझसे यहां तक कहा गया कि ये सब मेरे दिमाग की कल्पना है और मैं ही अपने शरीर को कमजोर बना रही हूं.

रिश्तेदार मेरी शादी को लेकर चिंतित थे और उन्होंने मेरे माता-पिता से कहा कि वे मुझे किसी को अपनी स्थिति के बारे में बताने से माना कर दें। लेकिन मैं इस बात के लिए प्रतिबद्ध हूं कि मैं जिससे भी शादी करूंगी, उस से खुल कर अपने बारे में पहले से बताऊँगी। मुझे अपने माता-पिता को बहुत विनम्रता से समझाना पड़ा कि यदि मेरी शादी किसी ऐसे व्यक्ति से हो जो मेरी स्थिति के साथ तालमेल नहीं बिठा पाएगा, तो इसमें बहुत जोखिम हैं। मैंने उन्हें यह भी समझाया कि अपना काम करने और स्वतंत्र रहने पर ध्यान केंद्रित करने से मैं संतुष्ट हूँ।

आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने का मेरा मार्ग

जब मैं छोटी थी, मैं कलाकार और फैशन डिजाइनर बनना चाहती थी। मुझे निफ्ट की प्रवेश परीक्षा के लिए चुना गया था, लेकिन चूंकि मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं था, इसलिए मुझे वह योजना छोड़नी पड़ी। लेकिन फिर मैंने यह ध्यान में रखते हुए अपने जीवन की योजना बनाई कि मुझे कुछ स्वास्थ्य समस्याएं हैं - क्योंकि मैं यह सुनिश्चित करना चाहती थी कि मुझे बुढ़ापे में कोई परेशानी न हो। 2013 में स्टेरॉयड सेवन के बाद 4 महीने में ठीक होने के बाद भी, मुझे लंबे समय तक बैठे रहने में, दर्द की और बुखार की समस्या बनी रही। मैंने तय किया कि मैं तीन साल में अपने शरीर को प्रशिक्षित करूंगी और खुद को स्वस्थ रखूंगी ताकि एक संस्थान में कोर्स में दाखिला ले सकूँ। परिवार वालों को चिंता थी कि अगर मैंने किसी कोर्स में दाखिला लिया और यात्रा की तो मैं फिर से बीमार पड़ जाऊँगी । इसलिए मैंने अपना इरादा बदल लिया और अपने ही शहर में एमबीए पाठ्यक्रम (2018) चुना और पढ़ाई के विभिन्न क्षेत्रों को देखने लगी ताकि मैं सोच सकूँ कि मैं किस क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करूँ। मुझे डिजिटल मार्केटिंग के बारे में पता चला और मैंने इस पर आगे बढ़ने की सोची, और यह मेरे लिए सही रहा है। बाद में मुझे नौकरी मिल गई और मैंने अपनी जैसी सोच वाले कुछ लोगों के साथ कुछ अलग हट कर करने की कोशिश की। हमने साथ मिलकर वहाँ नौकरी छोड़ दी और 2.5 साल पहले अपनी खुद की एजेंसी शुरू की। वर्तमान में मैं अपनी खुद की एजेंसी चला रही हूं जो डिजिटल मार्केटिंग और अन्य बहुत सी सेवाएं प्रदान करती है।

एक आदर्शवादी और कड़ी मेहनत करने वाली होने के नाते, मैं खुद को थका देती हूं और यह मेरे शरीर की सहनशक्ति से बाहर हो जाता है। जिन लोगों के साथ मैं काम करती हूं वे यह बात समझते हैं और मुझे आराम करने के लिए कहते हैं। लेकिन मुझे लगता है कि मुझे और काम करना चाहिए। 

मैं अभी 26 साल की हूं और मुझे लगता है कि मुझे घूमना चाहिए, यात्रा करनी चाहिए, प्रकृति और वन्य जीवन से भरपूर स्थानों को देखना चाहिए और जीवन का आनंद लेना चाहिए!

लेकिन मुझे यह भी एहसास है कि यही उम्र है जब मुझे आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने पर केंद्रित रहना होगा और कमाई करनी होगी ताकि मैं अपने व्यक्तिगत और मेडिकल खर्चों को वहन करने के लिए तैयार रहूँ।

शायद मुझे आगे बढ़ाने में मदद के लिए काउन्सेलिंग लेनी चाहिए थी,  लेकिन वर्तमान में सब कुछ ठीक चल रहा है। 

आर्थिक स्थिति - वर्तमान में मेरे पिता मेरी सभी दवाओं का खर्च उठाया रहे हैं, उन्होंने इसके लिए आवश्यक बीमा ले रखी है। लेकिन मुझे भविष्य के लिए तैयारी करने की ज़रूरत है।

मैं क्या कहना चाहती हूँ:

लुपस वाले बच्चों के माता-पिता के लिए

मेरे पृष्ठों के माध्यम से कुछ लुपस वाले लोग मुझसे जुड़े हैं और उन से मुझे पता चलता रहता है कि उन्हें कितनी तकलीफों का सामना करना पड़ता है। कृपया समझें कि आपका बच्चा कठिन समय से गुज़र रहा है और आप उसे समझ पाएंगे तो उसे मदद मिलेगी। बच्चों से यह न कहें कि वे बोझ हैं, या कि वे इसलिए कष्ट उठा रहे हैं क्योंकि वे पर्याप्त प्रार्थना नहीं करते।

लुपस ट्रस्ट से जुड़ें। वे बहुत अच्छे लोग हैं और ऐसी स्थितियाँ समझते हैं, और आपको लगेगा कि आप ऐसी जगह हैं जहां आपको स्वीकार करा जाता है। 

लुपस वालों के लिए

भले ही आपके शरीर को कुछ अजीब लक्षण हों, दर्द हो, निराशा महसूस हो, लेकिन कृपया दुखी न हों। दूसरों से मदद लें और इसे जीवन का एक अंश मानें। 

जो हो चुका है वह तो अब अतीत में है और आप उसे बदल नहीं सकते हैं। लेकिन आप अपने भविष्य को बेहतर करने के लिए, अपने भविष्य को तकलीफों से बचाने के लिए वर्तमान में उपयुक्त काम कर सकते हैं! अपना जीवन वैसे जीयें जैसे आप चाहते हैं!

मेरा सबसे बुरा अनुभव: ऐसे कई वर्ष थे जब डॉक्टरों ने मेरी स्थिति को गंभीरता से नहीं लिया। 5-6 साल तक वे मेरी स्थिति को समझ नहीं पाए और सही निदान नहीं कर पाए

सर्वोत्तम अनुभव: मेरे वे डॉक्टर जिन्होंने मेरी स्थिति का निदान किया, वे मुझे बहुत अच्छी तरह समझते हैं – वे मेरी स्थिति को नजरअंदाज नहीं करते, और मेरी बात सुनते हैं। 

यह लुपस ट्रस्ट इंडिया के सहयोग से जुवेनाइल लुपस पर एक श्रृंखला का हिस्सा है

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