Skip to main content
Submitted by PatientsEngage on 6 June 2020

कैंसर रोगी और उनकी देखभाल करने वालों की भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक पीड़ा को कम करने में साइको-ऑन्कोलॉजी ने बहुत मदद की है। इस लेख में टाटा मेमोरियल अस्पताल में साइकोऑन्कोलॉजिस्ट सविता गोस्वामी ने कैंसरग्रस्त बच्चों की देखभाल में इस्तेमाल होने वाली कई तकनीकों के बारे में बात कर रही हैं।

हाल ही के वर्षों में कैंसर संबंधी बाल चिकित्सा में मनोसामाजिक प्रयासों को जोड़ने पर ध्यान दिया जा रहा है।इन प्रयासों में क्या-क्या शामिल है?

पिछले  दो दशकों से कैंसर से पीड़ित बच्चों, उनके परिवार वालों और देखभाल कर्ताओं की स्थिति सुधारने के लिए ऐसे कई प्रयास करे गए हैं जो साक्ष्य आधारित  हैं और जिन के परिणाम अच्छे हैं।बच्चों की कैंसर चिकित्सा में मनोसामाजिक हस्तक्षेप एकगतिविधियों  और रणनीति पर आधारित तकनीक है जो शारीरिक और मानसिक तनाव और व्यवहार, तालमेल और संज्ञानात्मक क्षमता से जुड़ी समस्याओं को संबोधित करने में मदद करता है। यह सामाजिक, पारिवारिक और माहौल से जुड़ी तकलीफों से निपटने में भी मदद करता है। हम साक्ष्यों पर आधारित चिकित्सकीय तरीकों का इस्तेमाल करते हैं जैसे कि कॉगनिटिव बिहेवियर थेरेपी, फेमिली थेरेपी, प्रॉब्लम सॉल्विंगऔर बच्चों और उनके परिवारों के लिए साइको-एजुकेशन। खेल,कला,संगीत, भावनात्मक लेखन और हॉबी (रुचियाँ) जैसी कई गतिविधियां इस तकनीक में शामिल हैं।

कैंसर के उपचार (कीमो, सर्जरी, रेडिएशन) से पैदा होने वाले दुष्प्रभाव के कारण संज्ञानात्मक कठिनाई, बीमारी से जूझनेमें परेशानी और विचलित व्यवहार जैसी दिक्कतें सामने आ सकती हैं। कैंसरग्रस्त बच्चों को मानसिक रूप से स्वस्थ रखने के लिए किस तरह की अन्य प्रक्रियाएं अपनाई जाती हैं?

बच्चों के कैंसर के इलाज में दर्द और मानसिक पीड़ा के कई स्रोत हो सकतेहैं जैसे बीमारियों से जुड़े लक्षणों के कारणपीड़ा होती है और कुछ दर्दनाक अनुभव।एक अन्य पीड़ा का संभव कारण है दर्दनाक और शारीरिक तौर पर उत्पीडित करने वाले इलाज जैसे कि बोन-मैरो से टिशु निकालना, लंबार पंक्चर, आईवी,और कीमोथेरेपी के दुष्प्रभाव जिसमें उल्टी आना, थकान होना,म्यूकोसाइटिस जैसी समस्याएं शामिल हैं। ऐसे समय में बच्चे के दर्द और मानसिक पीड़ा को कम करने मेंसाइको ऑन्कोलॉजिस्ट एक अहम भूमिका निभाते हैं। साक्ष्य आधारित व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक तकनीक और काग्निटिव बिहेवियर तकनीक बच्चों और उनके परिवार वालोंकी तकलीफ कम करते हैं और उन्हें कठिन समय के लिए तैयार करने में मदद करतेहैं। तकलीफ से ध्यान हटाने की तकनीक भी छोटे बच्चों के लिए काफी मददगार रहती है। थोड़े बड़े बच्चों के लिए साइको-एजुकेशन, रिलैक्सेशन,सम्मोहन तकनीक,दृश्यावलोकन और कल्पना आधारित तकनीकें ज्यादा कारगर होती हैं।

क्या मनोवैज्ञानिक का हस्तक्षेप कैंसर से पीड़ित शिशुओं और बच्चों को सुरक्षित और आराम महसूस करवा सकता है?

जिन बच्चों की उम्र 7 साल से कम होती है उनमें भावनात्मक और व्यवहारात्मक समस्याओं का खतरा ज्यादा रहता है। बच्चों का नखरे दिखाना,आक्रामक होना, ठीक से दवा ना खाना और इलाज न होने देना, कहनाना मानना,खाना न खाना -- ये ऐसे व्यवहार हैं जोमाता-पिता के धैर्य की परीक्षा लेते हैं।यह समस्या माता-पिता  की भावनात्मक पीड़ा का कारण बन सकती है। माता-पिता बच्चों की तकलीफ के लिए खुद को दोषी मानते हैं। ऐसे में माता-पिता की काउंसेलिंग करके उनको सहारादेना बहुत जरूरी है। मुझे याद है कि मेरे पास एक बार ढाई साल का बच्चा आया था जिसे पेल्विकट्यूमर था। वह दर्द की वजह से फिजियोथैरेपी नहीं करवा पा रहा था। जब वह बच्चा हमारे पास आया तो पहले हम उससे और उसके माता-पिता के साथ तालमेल बनाने लगे और फिर हमने माता-पिता को बच्चे के लिए ऐसे म्यूजिकल जूते लाने का सुझाव दिया जिससे संगीत की आवाजें निकलती हों। दिलचस्प बात यह है कि म्यूजिकल जूते पहनकर बच्चा खड़ा होने के लिए, चलने के लिए और फिजियोथेरेपी करवाने के लिए तैयार हो गया। मनोवैज्ञानिकों को आसान, उपयोगी और रचनात्मक तरीके सुझाने पड़ते हैं।

शिशुओं की तुलना में क्या कैंसरग्रस्त किशोरों को काउंसेल करना अधिक मुश्किल होता है क्योंकि वह पहले से ही संज्ञानात्मक,शारीरिक और सामाजिक बदलावों की समस्या से जूझ रहे होते हैं?

बड़े बच्चे ज़्यादातर भावुक प्रतिक्रियाएं दिखाते हैं। मूड बदलना, उदास हो जाना, गुस्सा आना, कम ध्यान देना, एकाग्रताकी क्षमता कम होना, याद रखने में दिक्कतें जैसी समस्याएं सामने आती हैं। वे अपनी खुद की छवि, खुद की पहचान और यौन पहचान के बारे में परेशान रहते हैं। वे अपनी उम्र के बच्चों की प्रतिक्रियाओं को लेकर परेशान रहते हैं। कैंसर से जीतने और कैंसर सर्वाइवर होने के बावजूद उन्हेंसमाज में, शिक्षा के क्षेत्र में, रोजगार, रिश्तों और शादी के संदर्भ  में भेदभाव और बहिष्कार का सामना करना पड़ता है। इस सब से उनकी अपने बारे में राय पर और आर्थिक स्थिति पर असर पड़ता  है और ये सभी उनके जीवन को पेचीदा बना देते हैं।

  1. इस उम्र के बच्चों के लिए मनोसामाजिक हस्तक्षेप बहुत जरूरी है। कॉगनिटिव बिहेवियरथेरेपी से उन्हें स्थिति के अनुसार उचित व्यवहारिक और सोचने-समझने का रवैया अपनाने में मदद मिलती है और वे अपनी समस्याओं और चिंताओंसे जूझ पाते हैं
  2. सामूहिक गतिविधियों से उनका अकेलापन दूर होता है। वे नए दोस्त भी बना पाते हैं और अपने परिवार वालों के साथ और समाज के साथ भी जुड़े रहते हैं।इसलिए उन्हें समूह के अन्य सदस्यों के साथ और समाज के लोगों के साथ जोड़ना अच्छा रहता है।कला, लेखन और अन्य मनोरंजक गतिविधियों से युवाओं और किशोरों को काफी मदद मिलती है इसलिए उन्हें समूह में ऐसी गतिविधियों में भाग लेने केलिए प्रोत्साहित करते रहना चाहिए।
  3. उन्हें सक्षम बनाने के लिए, उनकी हिम्मत बढ़ाने के लिए और उन्हें सुदृढ़ बनाने के लिए जरूरत के अनुरूप चुनी गयी मनोसामाजिक प्रयासों की बहुत जरूरत है। मनोवैज्ञानिक उन्हें उनकी सीमा और क्षमता को खोजने में मदद करते हैं।

किशोरों और युवाओं में कैंसर पीड़ितों  की संख्या बढ़ती जा रही है। टाटा मेमोरियल अस्पताल में जितने भी पंजीकृत कैंसर रोगी हैंवे थेरेपी पूरा करने के बादके क्लिनिक (एसीटी) में अपनी वार्षिक जाँच के लिए अवश्य आते हैं। चिकित्सकीय एवं शारीरिक जांच के साथ-साथ उनका साइको-सोशलऔर न्यूरो-कॉग्निटिव मूल्यांकन भी किया जाता है। कैंसर से पीड़ित बच्चों का एक सपोर्ट ग्रुप भी है जो सक्रिय रूप से बच्चों के सशक्तिकरण के लिए काम कर रहा है।

पैलिएटिव केयर के दौरान बीमारी से जुड़े डिप्रेशन को समझने का सबसे बेहतर तरीका क्या है?

बच्चों के लिए डिप्रेशन समझने और मापने के लिए बहुत से ऐसे टूल्स हैं जिन्हें उपयोग में लाया जा सकता है, जैसे सेंटर फॉर एपिडेमियोलॉजिकल स्टडीज डिप्रेशन स्केल (सीईएस– डीसी),चाइल्ड डिप्रशेन इन्वेंट्री (सीडीआई), चाइल्ड डिप्रशेन स्केल (सीडीएस), बर्लेसन्स डिप्रेशन सेल्फ रेटिंग स्केल फॉर चिल्ड्रन -मगरयेसभी पश्चिमी देशों से आए हैं। हम जिस तरह बच्चों की देखभाल व परवरिश करते हैं वे पश्चिमी समाज से काफी अलग माहौल से आते हैं। वे अलग भाषाएं बोलते हैं, उनके अलग-अलग तरह के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिवेश हैं। अनेक पहलुओं में ये बच्चे एक दूसरे से भी भिन्न हैं। ऐसी स्थिति में बच्चों की समस्याओं और मानसिक पीड़ा की जांच और पहचान कर उम्र के आधार पर उनकी मनोसामाजिक स्थिति और परिस्थितियों पर विचार करना मददगार होगा।

घर में मौजूद तनाव के कारकों से जूझने में आप रोगियों की मदद कैसे करते हैं? घर पर रहकर स्वास्थ्य में सुधार में मदद करने के उद्देश्य से आप उन्हें क्या सलाह देते हैं?

जब बच्चे घर जाते हैं तो उन्हें अपने हमउम्र साथियों, परिवार के सदस्यों और समाज का सामना करना पड़ता है जहां उन्हें उनकी बीमारी, उसके इलाज, और उनके बदले शारीरिक रूप  को लेकर कई सवाल पूछे जाते हैं। हम बच्चों को इस बात के लिए तैयार कर सकते हैं कि वे ऐसी स्थितियों से कैसे निपटें, ताकि वे बीमारी या शारीरिक बदलावों के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब दे सकें। बदलाव को धीरे-धीरे स्वीकार करने योग्य बनाने के लिए मनोशिक्षा भी जरूरी है। उन्हें आश्वस्त किया जाता है कि यदि वे कुछ कार्य नहीं भी कर पाते हैं या किसी परिस्थिति का सामना नहीं कर पाते हैं तो यह कोई बड़ी बात नहीं है। बच्चों और माता-पिता को तनाव मुक्त रहने और सार्थक गतिविधियों में लगे रहने की सलाह देना भी बहुत ही जरूरी है। दवाइयों को जारी रखने के लिए उन्हें प्रेरित करना,नियमित रूप सेडॉक्टर से जाँच करवाते रहना, खान पान का ध्यान रखना और व्यायाम की विधि का पालन करने के बारे में उन्हें बार-बार समझाया जाता है।योजनाबद्ध तरीके से एक दिनचर्या बनाने सेबच्चों को घर के वातावरण में ढलने और सामान्य जिंदगी में लौटने में मदद मिलती है।

कैंसर ग्रस्त बच्चे की देखभाल करने का माता-पिता और भाई-बहनों पर भी कई तरह से असर होता है। उनकी पीड़ा और कठिनाई को आसान बनानेके लिए उन्हें क्या सलाह दी जाती है?

जब माता-पिताको बच्चे के कैंसर के बारे में पता चलता है तो वे अत्यधिक तनाव में आ जाते हैं। अनिश्चितता और बच्चे के सेहत की चिंता उन्हें भावनात्मक रूप से कमजोर, अवसादग्रस्त और उत्कंठित बना देती है। इसलिए जरूरी है कि ऐसे माता-पिताको सहारा दिया जाए, उनकी चिंताओं के बारे में बात करीजाए,उनके दृष्टिकोण को समझा जाए,और उनकी ताकतऔर इस परिस्थिति का सामना करने की क्षमता को लेकर उनके साथ चर्चा करीजाए। सहायक मनोचिकित्सा उस परिवार को अपनी रोजमर्रा कीजिंदगीको नियमितता से चलाने में और एक दूसरे के साथ बातचीतकरने में काफी मदद कर सकती है। बच्चे का सफलतापूर्वक इलाजपूरा करना और उसके जीवन की गुणवत्ता पूरी तरह से उसके माता-पितासे मिल रहीदेखभाल पर निर्भर करती है। इसलिए माता-पिता के तनाव और उनकी चिंताओंको सही ढंग से संबोधित करना जरूरी है। मनोवैज्ञानिक माता-पिता के तनाव को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। भाई-बहनों को भी बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। उनके जीवन में भी उथलपुथल बनी रहती है इसीलिए उन्हें भी बराबर प्यार और देखभाल की जरूरत होती है। हम माता-पिता को यह समझाते हैं और सलाह देते हैं कि उन्हें अपने अन्य बच्चों पर भी उतना ही ध्यान देना चाहिए जितना अपने कैंसर पीड़ित बच्चे पर दे रहे हैं। कैंसर सर्वाइवर्स को भी यह समझाया जाता है कि वे भी अपने उन भाई-बहनोंका ख़याल रखें जो कैंसर से पीड़ित नहीं हैं।

टाटा मेमोरियल अस्पताल में पिछले कुछ सालों में ऐसे रोगियों की संख्या में बहुत कमी आई है जो अपना इलाज नहीं करवाना चाहते या अपना इलाज बीच में ही छोड़ देते हैं। इसका कारण क्या है?

टाटा मेमोरियल अस्पताल में उपचार बीच में ही छोड़ देने वालोंकी दर कम होने के कई सारे कारण हो सकते हैं। आजकल कैंसर रोगी और उनके परिवार वालों को पूरा साथ और समर्थन ज्यादा मिल रहा है जैसे प्रशासनिक नीतियां बदलना,कार्यप्रणाली बदलना, चिकित्सा के लिए माता-पिता को आर्थिक मदद उपलब्ध करवाना,और अन्य संसाधन उपलब्ध होना,जैसे कि पौष्टिक भोजन, रहने की जगह, मेडिकल किटआदि। इसके अलावा कैंसर पीड़ित रोगी के परिवार वालोंऔर देखभाल करने वालों को मनोवैज्ञानिक सहायता भी दीजाती है। निदान और चिकित्सा प्रणाली तय करने के समय माता-पिता का समर्थन करना भी बहुत जरूरी है। उसी दौरान सपोर्ट ग्रुप के माध्यम से जानकारी पाने में उनकी मदद करने से और भावनात्मक रूप से और हर तरह से माता-पिता का साथ देते रहने सेभी बहुत अच्छाप्रभाव पड़ा है। रोगियों में भी आत्मविश्वास जागता है और उन्हें लगता है कि स्थिति नियंत्रण में हैं।इन्हीं कारणों से यह बदलाव आया है और उपचार परित्याग का दर कम हुआ है।

मृत्यु और शोक की स्थिति को लेकर परिवार की चिंताओं को किस तरह संभाला जाता है?

बीमारी का लगातार बढ़ना और बच्चे की मौत हो जाना उसके परिवार वालों के लिए बहुत ही दुखदायी और कठिन परिस्थिति होती है। यह परिवार के लिए बहुत शोकऔर तनाव की स्थिति होती है। अगर माता पिता और बच्चे की देखभाल कर रहे व्यक्ति को बच्चे की मौत से पहले ही इस बुरे समय के लिए तैयार किया जाए तो यह शोक के असर को कम करने में मददगार होता है। जब हम शोककी बात करते हैं तो यह केवल रोग का पता लगने और बच्चे की मृत्यु पर ही नहीं होता बल्कि उपचार के दौरान क्षमता घटने और अंगों केनिष्क्रिय होने से भी होता है, मसलन किसी कारण किसी अंग को काटने या निकालने की कारवाई। इस परिस्थिति में माता-पिता को पूरी जानकारी देना, उनके डर को समझना और उसका हल निकालना बहुत जरूरी है। इस परिस्थिति में लक्षणों की पहचान भी जरूरी है क्योंकि भावनात्मक स्तर पर अत्यधिक आघात या उथलपुथल की स्थिति में साइको-फार्मेको-थेरेपी से व्यक्ति को स्थिर या स्वाभाविक स्थिति में वापस लायाजाता है।

हाल के वर्षों में साइको-ऑन्कोलॉजी से जुड़ी क्या कोई ख़ास बातें सामने आई हैं?

साइको-ऑन्कोलॉजी में हम पहले भी लक्षणों के आकलन के आधार पर हस्तक्षेप निर्धारित करते थे और मनो वैज्ञानिक परेशानियों को समझने और कम करने के लिए योजना बनाई जाती थी। पिछले दो दशकों में साइको ऑन्कोलॉजी में नए तरीके विकसित किए गये हैं। अब हम बच्चों का इलाज उनके परिवार और अन्य प्रणालियों के  सन्दर्भ में करते हैं। विकासात्मक दृष्टिकोण का अधिक उपयोग किया जाता है और बाल रोगियों और उनके परिवारों की देखभाल करते समय उनकी क्षमताओं और कमजोरी की पहचान की जाती है।अब मनोवैज्ञानिक ज्ञान को इलाज, निर्णय प्रक्रिया और चिकित्सकीय देखभाल के साथ जोड़ने पर अधिक ध्यान दिया जाता है। इसलिए कैंसर की देखभाल अब और भी व्यापक  हो गई है।अन्य  क्षेत्र जिनमें पीड़ा निवारण और शोक की स्थिति से उबारने को लेकर भी अधिक रिसर्च की गई हैसाथ ही साक्ष्य आधारित और संरचित योजना बनाने पर ध्यान दिया जा रहा है ताकि कैंसरग्रस्त बच्चों और उनकी देखभाल करने वाले परिवार को बेहतर स्तर पर मदद मिल सके। 

Changed
06/Jun/2020
Community

Stories

  • Kidney Cancer FAQ Basics
    Frequently Asked Questions on Kidney Cancer
    Kidney cancer is not a well known cancer. People hardly talk about it. According to GLOBOCAN 2022, yearly incidence of kidney cancer in India is 17,480 with 5 year prevalence of 1.4% per 1 lac population. Number of deaths are 9897. This indicates that patients come in late and if they came early, they would have better chance of survival. Let us go through some frequently asked questions about kidney cancer in this article. What is kidney cancer? Kidney cancer is any cancer that affects the…
  • Bladder Cancer FAQ Basics
    Bladder Cancer: Frequently Asked Questions
    Bladder cancer is the 10th common cancer worldwide. In India it is often diagnosed late due to limited awareness of bladder cancer and its symptoms. Let us understand the symptoms of bladder cancer, the diagnostic tests, the treatment options and some commonly asked questions about bladder cancer treatment, prognosis and effect on quality of life.   What is bladder cancer? Urinary bladder is a muscular organ situated in the pelvic cavity. Its primary function is to store urine produced by…
  • Young man with facial hair in black and white and text overlay on blue strip - My Rare Cancer Journey
    More Obstinate Than Spindle Cell Sarcoma
    31-year-old Shourabh Vittalmurthy was diagnosed with fibromatosis in 2016, and subsequently spindle cell sarcoma in 2022 and 2023. He shares his journey as a cancer survivor to show how adopting a positive mindset and staying resilient has been his guiding light through each challenging chapter. When was the cancer first diagnosed? The first occurrence of cancer was in 2016. I was pursuing my Masters in Manipal, India. A lump the size of a football, started growing out of my scapular region. I…
  • A woman in a red dress coughing and text overlay Understanding A Cough
    Know What Your Cough Could Mean
    We have all had a cough in our life. While it is our body's natural reflex and a routine occurrence, a cough may signify more than a bodily function. It may be a powerful signal, an expression of our respiratory system trying to communicate with us. Whether the cough is fleeting, annoying, or persistent, it is a call for attention to the intricacies of our health. Through this article, we will decode everything about coughing and the significance it holds in the broader context of our health.…
  • Neema in a pink shirt, white pants and a scarf in an open area walking with support of a cane
    मुझे अपने बेटे के लिए अपनी हड्डियों के कैंसर से लड़ना था
    नीमा 26 वर्ष की थीं जब उनको ऑस्टियोसारकोमा (हड्डी का कैंसर) का निदान मिला और उनका जीवन हमेशा के लिए बदल गया। इस लेख में वे अपनी उस चुनौतीपूर्ण यात्रा के बारे में बात करती हैं जिसमें कई सर्जरी, टांग का कटना, और अनेक अन्य मुश्किलों का सामना करना पड़ा, और यह भी साझा करती हैं कि कैंसर से लड़ने की हिम्मत और प्रेरणा उन्हें किस से मिली। कृपया हमें अपनी स्थिति के बारे में कुछ बताएं 1998 के नवंबर की बात है जब मैं सिर्फ 26 साल की थी और मुझे अपने घुटने के ओस्टियोसारकोमा (हड्डी का कैंसर) का निदान मिला। आपके…
  • A pic of a plane midflight and overlay of the text Travel tips for Cancer patients
    कैंसर सर्वाइवर के लिए यात्रा से संबंधित नुस्खे
    कैंसर रोगी और उत्तरजीवी (सर्वाईवर) यात्रा कर सकते हैं, पर उन्हें कुछ ख़ास बातों का ख़याल रखना चाहिए। इस लेख में इस के लिए डॉ. शीतल पटेल से कुछ सुझाव हैं और उर्वी सबनीस, नंदिता मुरलीधर और मोना चौधरी (सभी कैंसर उत्तरजीवी / सर्वाईवर) का बहुमूल्य योगदान भी शामिल है। कैंसर रोगी को किसी भी यात्रा को शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर की सहमति ज़रूर प्राप्त कर लेनी चाहिए। यात्रा का कार्यक्रम ऐसा बनाएं ताकि आप यात्रा के कारण अपने किसी भी टेस्ट या फॉलो-उप अपॉइंटमेंट से न चूकें। यात्रा करने के लिए ध्यान रहे कि…
  • Image of a woman experiencing hot flashes and using a hand fan. Text overlay on blue strip - Menopause And Cancer
    Tips To Manage Menopause During Cancer Treatment
    Developing menopause while going through cancer is a double whammy for all women. The sudden jolt of menopause caused by cancer treatment is not only physically but mentally straining as well.  Can physiotherapy help alleviate these distressing menopausal effects and improve quality of life for women with cancer? Ajeeta Kulkarni, a senior physiotherapist at Tata Memorial hospital in Mumbai, tells us how. What are the causes of menopause in cancer patients? Menopause is the decline in the…
  • A partially visible person in white top and pants holding the urge to urinate with text on blue strip How to manage incontinence
    Managing Bowel and Bladder Incontinence in Cancer Patients
    Bowel (fecal) and bladder (urinary) incontinence is a relatively common side-effect that can occur during cancer treatment. Due to the stigma and under-recognition attached to this condition, quality of life suffers significantly in persons with cancer. Learn more about managing this condition with Prachi P. Narkhede, a MPT Cardiovascular & Respiratory Physiotherapist at Tata Memorial Hospital. What is incontinence? It is loss of control of bladder and bowel causing accidental leakage of…
  • An woman holding her foot in pain and text overlay on blue strip :Tips and Exercises for Neuropathy
    Managing Neuropathy In Cancer treatment
    One of the many unpleasant aspects of treatment for cancer patients is the adverse effect of having nerve related pain, tingling, altered sensations, etc. This is termed as neuropathy and occurs when the nerves fibers in the body get damaged, inflamed or destroyed during the cancer treatment process. Neuropathy can be managed with the help of physiotherapy and some lifestyle changes. Manali Kamat, a Physiotherapist from Tata Memorial Hospital, Mumbai provides detailed insight into this…
  • A woman holding the bridge of her nose and text overlay on a blue band Managing Cancer Related Fatigue
    Managing Cancer Related Fatigue
    Fatigue, often confused with mere weakness, is now recognized as one of the most common symptoms of cancer itself as well as a side-effect of the treatment that a patient goes through. Often underdiagnosed or misdiagnosed, it leads to a distress and affects daily living of the cancer patient. So how does one recognize it and what do we do about it. Sarika Mahajan, senior Physiotherapist with Tata Memorial Hospital helps us unpack this unvalued symptom for both patients and their care providers…