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Submitted by PatientsEngage on 5 May 2023
स्ट्रोक रीहैब (पुनर्वास): मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा आंतरिक है

सोनल गोरेगांवकर को माउंट एवरेस्ट के बेस कैंप तक चढ़ने के वक्त एक स्ट्रोक हुआ जिससे उनकी बोलने की क्षमता चली गई। इस स्थिति को ग्लोबल एफेशिया (व्यापक वाचाघात) कहा जाता है। इस लेख में उनके सामान्य जीवन को फिर से शुरू करने और काम पर वापस लौटने के लिए आवश्यक उनके धैर्य और दृढ़ संकल्प की कहानी है, और उनके साथ किए गए एक वीडियो साक्षात्कार पर आधारित है।

मैं सोनल गोरेगांवकर हूं। मुझे सब लोग बहुत प्यार करते हैं । । मेरा परिवार और दोस्तों के अनुसार मैं एक सहानुभूति रखने वाली, दूसरों का खयाल करने वाली व्यक्ति हूँ जो महत्वाकांक्षी भी है। स्ट्रोक के बाद फिर से ठीक होने में मेरी रिकवरी के प्रमुख स्तंभ थे मेरा अपने ऊपर विश्वास, मेरे बौद्ध अभ्यास पर मेरा विश्वास, मेरी घनिष्ठ मित्र मंडली और मेरा परिवार।

Listen to Sonal speak: My recovery from Global Aphasia after Stroke

स्ट्रोक होने से एकदम पहले की परिस्थितियाँ

मैं एवरेस्ट बेस कैंप पहुँचने के लिए चढ़ रही थी, यह मेरा लक्ष्य था। इस चढ़ाई के लिए मैंने खुद को प्रशिक्षित किया था। मैंने भारत में ट्रेकिंग की थी। मैं इस चढ़ाई के लिए पूरी तरह तैयार थी। अपने ट्रेक के आखिरी चरण में, मैं अपनी पीठ के बल गिर गई। मैं भयानक दर्द में थी। मैं उठ नहीं पा रही थी। रात में होटल में एक  महिला ने मेरी पीठ पर मरहम लगाया। वहाँ मौजूद अपने एक दोस्त से भी मैंने बात की। मैंने कहा कि मैं कुछ नहीं कर सकूँगी। मैं उसी समय अस्पताल जाना चाहती थी। वह स्थान समुद्र तल से 4000 फीट ऊपर था। कोई फोन कनेक्शन उपलब्ध नहीं थे। किसी तरह से मेरा दोस्त ने सैटेलाइट फोन पर हेलीकॉप्टर के लिए कॉल करा। सुबह हेलीकॉप्टर आया। मुझे अस्पताल पहुंचने में 22 घंटे लगे। तब तक मेरे मस्तिष्क में क्षति हो चुकी थी। और  मैं कोमा में थी।

दिल के मुद्दों/ लक्षणों का इतिहास

मैं पूरी तरह फिट थी। हृदय की समस्याओं का कोई भी इतिहास या लक्षण नहीं था। मैं नियमित वर्कआउट करती थी, रोज जिम जाती थी, स्वस्थ खाना खाती थी, मैंने कभी भी शराब का सेवन नहीं किया न ही कभी सिगरेट पी थी। शायद यह स्ट्रोक ऊंचाई पर होने और काम और घर के तनाव के मेल के कारण हुआ था।

अस्पताल का अनुभव

करीब 6 से 7 दिन तक मैं बेहोश रही। मैं काठमांडू में 3 दिनों के लिए थी, फिर  मुझे उड़ान से मुंबई ले जाया गया। बंबई में मैं हिंदुजा अस्पताल में करीब 10 दिनों तक रही। स्ट्रोक के बाद मैं लगभग 7 दिनों तक बेहोश रही, और जब होश आया तो मैं चल नहीं पा रही थी। मेरा दाहिना हिस्सा प्रभावित हुआ था। मैंने अस्पताल में फिजियोथेरेपी और स्पीच थेरेपी शुरू की, और मैं 15 दिन बाद घर आई। मेरा शरीर लकवाग्रस्त था और  बोलना बुरी तरह से प्रभावित हुआ था। ये मेरे मुख्य मुद्दे थे।

पुनर्वास और पुनर्प्राप्ति का अनुभव

करीब 10 दिनों तक अस्पताल में रहने और शुरुआती उपचार के बाद मैं बिना किसी सहारे के अपने आप चलने लगी। लेकिन मेरे बोलने की क्षमता पर असर हुआ था। डॉक्टरों ने बताया कि मेरे मस्तिष्क में भाषा संबंधी हिस्से का कुछ अंश अब काम नहीं कर रहा था। इसलिए मैं बोल नहीं पा रही थी । मेरे पास कुछ भी बताने के लिए कोई शब्द नहीं थे। मैं मानो एक बच्चे की तरह थी। मेरी हालत को ग्लोबल एफेशिया (व्यापक वाचाघात) कहा जाता था। मैं पढ़ने, लिखने और वर्तनी में असमर्थ थी। मैं किसी से बात नहीं कर पा रही थी। मेरे अंदर भावनाएं थीं, लेकिन मैं उन्हें व्यक्त नहीं कर पा रही थी। यह मेरे लिए बहुत कठिन समय था। मैं वर्णन नहीं कर सकती, लेकिन यह मेरे लिए बहुत कठिन था। किसी भी इंसान के लिए बोल पाना बहुत जरूरी होता है। संचार के किसी भी माध्यम के बिना कोई भी जीवित नहीं रह सकता है। मेरे अंदर भावनाएं थीं लेकिन मैं उन्हें व्यक्त नहीं कर पा रही थी।

मैंने अपने वाचाघात पर कैसे काम किया

यह वास्तव में बहुत मेहनत का काम था। सौभाग्य से मैं बम्बई में रहती थी जहाँ चिकित्सा सुविधाएँ अच्छी हैं। मैं एक अच्छे अस्पताल में गई जहाँ स्पीच थेरेपिस्ट बहुत अच्छे थे। मेरे पहले थेरेपिस्ट ने मुझसे कहा कि मैं फिर से बोल सकूँगी लेकिन इसमें समय लगेगा। इसने मुझ में कुछ भरोसा बहाल करा। मैं फिर से आशान्वित हुई। उन्होंने मुझे बताया कि मेरे मस्तिष्क का भाषा संबंधी हिस्सा मर चुका था। लेकिन इस के कारण हो रही भाषा संबंधी समस्याओं को मैं अन्य अंगों के उपयोग से संभाल सकती हूँ। तो मैंने सोचना शुरू करा - अन्य अंगों का मतलब हो सकता है मस्तिष्क के अन्य तंत्रिकाओं के बीच के कनेक्शन, जिन से मस्तिष्क भाषा से जुड़ा है। ऐसा करने से मैं कम से कम अपनी बात समझा पाऊँगी। इसलिए मैं इसमें पूरी दृढ़ता से जुट गई।

थेरेपिस्ट के साथ मेरी पहली मुलाकात का फोकस था तस्वीरों को देखना, उन्हें पहचानना और उनके नाम बोलना। वही मेरा पहला पाठ था। अभ्यास करते-करते आखिरकार मैंने अक्षर A,B,C,D को पढ़ पाई। फिर धीरे-धीरे मैं वाक्य बनाने में सक्षम हुई। मैंने छोटे शब्दों से शुरुआत की, फिर बड़े शब्दों की ओर बढ़ी, और फिर वाक्यों का निर्माण करने लगी। और आगे चल कर मैंने पैराग्राफ बनाना शुरू किया। यह थी मेरे बोल पाने की क्षमता सुधारने की यात्रा। यह मेरे लिए अत्यंत कष्टदायक थी, मानो मैं नरक में हूँ। लेकिन मैंने ऐसी हर चीज आजमाई जो मुझे लगता था कि शायद मेरे लिए काम करे। मेरे थेरेपिस्ट ने मुझे हर घंटे कुछ न कुछ जोर से पढ़ने के लिए कहा, और मैंने यह भी करा - ताकि मेरे मस्तिष्क में भाषा और अन्य स्ट्रोक से प्रभावित क्षमताओं के लिए जरूरी कनेक्शन बनेगा। मैं खुद पहेलियां भी बनाती। ताश भी खेलती। गणित के सवाल हल करती। लक्ष्य था कि मेरा दिमाग सक्रिय हो। यों कहिए, मैंने अपनी भाषा संबंधी समस्याओं में सुधार के लिए बहुत कुछ किया।

इस कठिन यात्रा में होने वाली मेरी भावनात्मक चुनौतियां

सच कहूं तो 3 महीने बाद ही मुझे समझ आया कि वास्तव में मेरे साथ क्या हुआ था। तब तक किसी ने मुझे ठीक से बताया नहीं था। मैं ठीक से समझ नहीं पाई थी कि मेरे साथ क्या हुआ था। मानो मैं किसी और ही दुनिया में थी। मैं सोचती थी कि मैं काम पर लौट पाऊँगी। मुझे लगा कि यह सिर्फ मेरे जीवन का एक चरण है। मैं सामान्य घर के काम कर रही थी, पहले की तरह। बस सिर्फ बोलने संबंधी समस्याएं थी। मुझे लगा कि यह सिर्फ कुछ दिन की बात थी। 3 महीने के बाद, डॉक्टर से तीसरी या चौथी मुलाकात पर, डॉक्टर ने मुझे स्थिति और मुद्दे समझाए। मैं जानना चाहती थी कि मैं कब तक ठीक होऊँगी। डॉक्टर ने कहा कि बातचीत संबंधी सुधार में समय लगेगा। आप लगातार अभ्यास करती रहें। सुधार होगा, क्षमता लौटेगी, पर इस में कितना समय लगेगा, यह नहीं कहा जा सकता। उनकी बात से मैं स्तंभित रह गई, समझ नहीं पाई कि यह सब क्या हो रहा है। डॉक्टर क्या बोल रही हैं, इस सब का मतलब क्या है! बाद में, रीहब  (पुनर्वसन) केंद्र में, मैं रोने लगी - स्ट्रोक के बाद यह पहली बार था कि मैं रोई थी। मैं एक सप्ताह तक रोती रही। ऐसा लगा कि मेरी पूरी दुनिया बदल गई है।

मैं एक बड़ी कंपनी में रिक्रूटर के रूप में काम कर रही थी, जहाँ मैं भारत और विदेश से हाइरिंग (नियुक्ति) के कार्य को संभाल रही थी। अब अचानक मैं बोल नहीं पा रही थी। मेरा सारा काम मेरे बोल पाने पर आधारित था। मुझे लगा सब नष्ट हो गया है। यूं कहिए, मेरी पूरी पहचान बदल गई थी। इसने मेरे पूरे परिवार पर भी भारी असर डाला। मेरे बेटे पर भी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि मां को क्या हो गया है। वह तब 11 वर्ष का था,  किशोरावस्था की दहलीज पर था। वह कुछ समझ नहीं पा रहा था। मैं अवसाद (डिप्रेशन) के लिए दवा ले रही थी। बाद में मुझे लगा कि मुझे इसकी लत लग सकती है। मैंने अपने आप से कहा कि अगर मैं अपना जीवन फिर से पाना चाहती हूँ, अगर मैं फिर से काम करना चाहती हूं, तो मैं इस तरह की दवा नहीं ले सकती। मुझे अपनी इच्छा शक्ति से, दृढ़ संकल्प से, इस से उबरना होगा। मैंने दवाई नहीं ली ।

परिवार की भूमिका

मेरे परिवार में मेरी मां, सास, मेरी भाभी   हैं। उन्होंने मेरी देखभाल की। वे मेरे रक्षक स्वर्गदूत थीं। मेरे पिता ने भी सहारा दिया। मेरे दोस्त हमेशा मेरे साथ थे। अब भी हैं। 4 साल हो गए हैं, लेकिन उन्होंने मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ा। वे मेरी रीढ़ की हड्डी हैं। मेरी कंपनी ने भी मेरा बहुत ख्याल रखा। मेरे स्ट्रोक के तुरंत बाद  उन्होंने मुझे बॉम्बे लाने के लिए उड़ान और सब कार्यों के लिए प्रबंध करा, सब कुछ अपने हाथों में ले लिया। मेरे माता-पिता समझ नहीं पा रहे थे कि मेरे साथ क्या हुआ है। मेरे दोस्त और सहकर्मी मेरे साथ थे। मैंने स्ट्रोक होने से पहले अपना के पारस्परिक समर्थक दायरा बनाया था, मेरे सब के साथ अच्छे संबंध थे। यह मेरे लिए आशीर्वाद सिद्ध हुआ।

स्ट्रोक के बाद काम पर वापस लौटने की तैयारी

मैं 2019 तक अपनी कंपनी में काम कर रही थी, पर अब, स्ट्रोक के कारण मैं पहले जैसे काम नहीं कर सकती थी। मुझे लगा कि ऐसे में काम पर लौटना ठीक नहीं था क्योंकि मैं वास्तव में योगदान नहीं दे सकती थी। मैंने अपने बॉस से कहा कि मुझे यह स्थिति देखते हुए नौकरी छोड़ देनी चाहिए। जब मैं बोलने के लिए खुद को प्रशिक्षित कर लूँगी, ठीक से बात कर पाऊँगी, तब मैं फिर से नौकरी कर सकूँगी। मेरे बॉस ने कहा कि मुझे नहीं जाना चाहिए। मैं उलझन में थी कि क्या उचित होगा, और मैंने छोड़ने का फैसला किया क्योंकि मुझे लगा कि यही सही होगा। मैंने दो साल तक अपनी बोलने की क्षमता पर काम करा, मैं जोर से पढ़ती, अन्य लोगों से बातचीत करने लगी। मेरे लिए यह खास मायने रखता था कि मुझे अलग-अलग तरह के लोगों से बोलने की जरूरत थी। स्ट्रोक के बाद शुरू में मैं केवल अपने दोस्तों, और परिवार के सदस्यों से बात करती थी। लेकिन मुझे दूसरे लोगों से बात करने की जरूरत थी ताकि मैं समझ सकूं कि मेरी क्षमताओं में कहाँ-कहाँ कमी है और मैं अपने को और सुधार कर सकूं। इसलिए कुछ भी काम हो, मैं लोगों को कॉल करती। मैं स्पष्ट रूप से प्रगति कर पा रही थी।

स्ट्रोक के कारण जीवन के प्रमुख निर्णय पर असर

मैंने अपनी सोच बदल दी है। पहले मैं इस बात को लेकर चिंतित रहती थी कि दूसरे लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे। आजकल मैं ऐसा नहीं सोचती। अब मैं खुद से प्यार करती हूं। मुझे लगता है कि अगर मैं खुद से प्यार न करूं, तो मैं दूसरों को भी प्यार नहीं दे सकूँगी। इसलिए मैंने खुद से प्यार करना शुरू कर दिया ताकि मैं दूसरों को प्यार दे सकूं, और इसमें मैं अपने में प्रगति होते हुए देख रही हूं।

स्ट्रोक के उत्पन्न अन्य संज्ञानात्मक जटिलताओं

मैं संबंध बनाने में सक्षम थी, लेकिन मेरा मस्तिष्क पहले की तुलना में धीमी गति से काम कर रहा था। आजकल इस में सुधार है। लेकिन 4 साल पहले मैं ठीक से सोचने और बात करने में असमर्थ थी। एक तरह से कह सकते हैं मैं एक पुतले के समान थी। आखिरकार मेरी क्षमताऐं लौटीं, लेकिन इसमें समय लगा। मुझे नए सिरे से फिर से पढ़ना और लिखना सीखना पड़ा। जैसे कि, मान लीजिए एक मोतियों की माला बनानी है, तो बीच के लिए बड़ा मोती डालना होगा और फिर दोनों तरफ बाकी छोटे मोती पिरोने होंगे। इसी तरह वाक्य बनाते समय उपयुक्त शब्दों को एक खास ढंग से जोड़ने की जरूरत होती है।

स्ट्रोक-रेडी अस्पताल (स्ट्रोक के सही उपचार की क्षमता वाला अस्पताल) में पहुंचने के विलंब पर खेद

शुरू में मुझे बुरा लगा कि सही अस्पताल पहुँचने में इतना विलंब हुआ। लेकिन बाद में लगा कि यह तो नियति थी। जो हुआ उसे मैं बदल नहीं सकती। लेकिन मैं अपना भविष्य को बदल सकती हूं, मैं अपना कर्म बदल सकती हूं। आज मैं कर्म में विश्वास करती हूं। मुझे कर्म के प्रभाव का एहसास हुआ। अब शब्द, कर्म और विचार मेरे लिए मायने रखते हैं। मैं अब अपना भविष्य बदल सकती हूं।

स्ट्रोक के बारे में जागरूकता फैलाने की प्रेरणा

मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा मेरे अंतरमन से आती है। मेरा विश्वास है कि यदि आप अपने संघर्ष या परिस्थितियों को बदलना चाहते हैं, तो आप यह कर सकते हैं। आवश्यकता है आंतरिक इच्छा शक्ति की। मुझे पता है कि यह कठिन है। मैं यह अच्छी तरह से जानती हूं, मैं इस रास्ते पर चल चुकी हूँ। लेकिन अगर आप अपनी परिस्थितियों को बदलना चाहते हैं, तो आप उन्हें बदल सकते हैं। स्ट्रोक के उत्तरजीवों (सर्वाइवर्स) के लिए यही मेरा संदेश है।

सोनल गोरेगांवकर से हमें जोड़ने के लिए हम स्ट्रोक सपोर्ट इंडिया को भी धन्यवाद देना चाहते हैं।

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