Skip to main content
Submitted by PatientsEngage on 20 September 2022

डिमेंशिया शब्द तो शायद आपने सुना होगा, पर क्या डिमेंशिया सिर्फ भूलने की बीमारी है या कुछ और? व्यक्ति को डिमेंशिया है, यह कैसे जानें, निदान कैसे प्राप्त करें? क्या इस की कोई दवा है? डिमेंशिया देखभाल के लिए क्या जरूरी है? इस दो-भाग के लेख में  इन सब पहलुओं पर जानकारी और टिप्स साझा कर रही हैं स्वप्ना किशोर, जिन की इस विषय पर विस्तृत वेबसाइट भी हैं

इस पहले भाग के विषय हैं डिमेंशिया के लक्षण, डिमेंशिया और सामान्य उम्र वृद्धि में फर्क, निदान की प्रक्रिया, और इन से संबंधित परिवार वालों के लिए कुछ सुझाव।

(भाग 2 में डिमेंशिया देखभाल पर चर्चा है: यह लिंक देखें)

डिमेंशिया क्या है?

डिमेंशिया एक लक्षणों का समूह (सिंड्रोम) है और ये सब लक्षण मस्तिष्क की क्षमताओं से सम्बंधित हैं। इसे मनोभ्रंश  के नाम से भी जाना जाता है| डिमेंशिया में व्यक्ति की संज्ञानात्मक क्षमता -अर्थात सोच, तर्क और याद संबंधी क्षमता - में गिरावट होती है। यह गिरावट सामान्य बढ़ती उम्र में देखी जाने वाली गिरावट से अधिक होती है।

व्यक्ति में कई तरह के लक्षण हो सकते हैं - जैसे कि  याददाश्त की समस्या, सोचने और समझने की क्षमता में कमी, समय और स्थान का बोध ठीक न रहना, हिसाब करने में दिक्कत, सीखने में  दिक्कत, भाषा और सही निर्णय लेने की क्षमता में कमी, इत्यादि। इन क्षमताओं की कमी के साथ व्यक्ति में अकसर मनोदशा, भावनात्मक नियंत्रण, व्यवहार या प्रेरणा में भी बदलाव नजर आते हैं। इन के कारण व्यक्ति को रोजमर्रा के जरूरी कामों में और निजी स्वच्छता बनाए रखने में दिक्कत होती है।

डिमेंशिया  (Dementia) मस्तिष्क पर असर करने वाले कई प्रकार के रोगों और चोटों के परिणामस्वरूप हो सकता है, जैसे कि अल्जाइमर (Alzheimer) रोग, स्ट्रोक, फ्रोंटो टेम्पोरल डिमेंशिया (Fronto temporal dementia), डिमेंशिया विद लेवी बॉडीज (Lewy Body Dementia), वगैरह। अधिकाँश डिमेंशिया प्रगतिशील प्रकृति के होते हैं और समय के साथ बिगड़ते हैं।

डिमेंशिया और अल्जाइमर में क्या सम्बन्ध है?

डिमेंशिया (मनोभ्रंश) एक लक्षणों का समूह है। ये लक्षण कई रोगों के कारण हो सकते हैं। अल्जाइमर रोग एक मस्तिष्क को प्रभावित करने वाला रोग है जो डिमेंशिया का सबसे आम कारण है, पर अन्य कई रोग भी हैं जिन से डिमेंशिया के लक्षण हो सकते है।

अकसर लेखों और लेक्चर में डिमेंशिया और अल्जाइमर शब्द का इस्तेमाल अदल-बदल कर किया जाता है। डिमेंशिया संस्थाओं के नाम में भी अकसर अल्जाइमर शब्द होता है। इस लिए लोग शायद यह नहीं पहचान पाते हैं कि अल्जाइमर के अलावा कई अन्य रोग भी हैं जिन के कारण डिमेंशिया के लक्षण हो सकते हैं।

डिमेंशिया के आरंभिक लक्षण क्या है?

आरंभिक लक्षणों में सबसे चर्चित है याददाश्त की समस्या। डिमेंशिया में देखी जाने वाली  याददाश्त की समस्या सामान्य बुढ़ापे की भूलने की समस्याओं से अलग है। डिमेंशिया में समस्या ख़ास तौर पर शॉर्ट टर्म (अल्पकालीन) मेमोरी  में होती है - यानी कि हालिया घटनाएं या हाल में सीखी हुई चीज़ें याद रखने में दिक्कत।

पर डिमेंशिया को सिर्फ “भूलने की बीमारी” समझें तो हम उसके अन्य लक्षणों को नोटिस नहीं करेंगे। डिमेंशिया के कई अन्य आरंभिक लक्षण भी हैं जिनकी झलक अटपटे व्यवहार में नजर आती है। जैसे कि:

  • परिचित रोजमर्रा के कार्यों को करने में दिक्कत होने लगना - जैसे कि चाय बनाते समय उलझन होना
  • भाषा संबंधी समस्याएं होना, जैसे कि बोलते समय सही शब्द न मिलने पर कोई अन्य विकल्प नहीं ढूंढ पाना, या किसी अजीबोगरीब शब्द का इस्तेमाल करना
  • समय और स्थान का सही बोध न होना, परिचित जगहों में खो जाना, या दिन है या रात, यह न जान पाना
  • वस्तुओं को अजीब तरह से इधर-उधर रख देना, जैसे कि फ्रिज में घड़ी
  • अनुचित निर्णय लेना, जैसे कि तपती धूप और लू में मोटा ऊनी कोट पहनना
  • ध्यान लगा पाने में, योजना बनाने में और समस्याएँ हल करने में दिक्कत, हिसाब करने में दिक्कत। सामान्य गतिविधियों में भूल होना, जैसे कि बिजली का बिल न भरना
  • मूड और व्यवहार में बदलाव होना - मूड में बिना कारण तीव्र उतार-चढ़ाव होना, या पहले के मुकाबले लोगों से कम मेलजोल करना
  • दृष्टि सम्बंधित समस्याएँ - छवियाँ पहचानने और समझने में दिक्कत, दूरी और गहराई का अनुमान न लगा पाना, रंग और कंट्रास्ट निर्धारित करने में दिक्कत, पढ़ने में दिक्कत
  • काम और सामाजिक गतिविधियों से पीछे हटना -  घंटों तक टीवी के सामने बिना कुछ किए बैठे रहना, पहले से बहुत अधिक सोना, पुरानी हॉबी में रुची खो देना 

क्या डिमेंशिया में सभी व्यक्तियों में ये सभी लक्षण होते हैं?

नहीं, यह जरूरी नहीं है कि हर व्यक्ति में ये सब लक्षण हों।

लक्षण मस्तिष्क की क्षति के कारण होते हैं। किस व्यक्ति में कौन से लक्षण नज़र आते हैं और ये  कितने गंभीर हैं, यह इस पर निर्भर है कि व्यक्ति के मस्तिष्क में कहाँ और कितनी क्षति है।

जैसे कि अल्जाइमर रोग वाले डिमेंशिया में अकसर शुरू  में याददाश्त की समस्या होती है, पर अन्य डिमेंशिया के प्रकार में आरंभिक लक्षण फर्क हो सकते हैं - जैसे कि व्यवहार संबंधी समस्याएं, बोल-चाल में समस्याएं या भ्रम होना।

अधिकाँश डिमेंशिया में लक्षण शुरू में हलके होते हैं और समय के साथ बढ़ते हैं, और व्यक्ति की अनेक क्षेत्रों में क्षमताएं कम होती जाती हैं। दूसरों पर निर्भरता बढ़ती है। अग्रिम और अंतिम चरणों में व्यक्ति लगभग पूरी तरह निर्भर हो जाते हैं।

कई लोग सोचते हैं कि ये समस्याएं बुढ़ापे में स्वाभाविक हैं। हम यह कैसे पहचानें कि जो लक्षण हम देख रहे हैं वे डिमेंशिया के हैं या बुढ़ापे की सामान्य समस्याएं हैं?

डिमेंशिया में और सामान्य बुढ़ापे में फर्क न जान पाना आम समस्या है, क्योंकि डिमेंशिया के शुरुआती लक्षण सामान्य बुढ़ापे की समस्याओं से मिलते जुलते हैं। अधिकाँश केस में ये लक्षण इतने धीरे धीरे बढ़ते हैं कि उन्हें बुढ़ापे की सामान्य समस्याएं समझ कर अनदेखा कर दिया जाता है। पर डिमेंशिया उम्र बढ़ने का स्वाभाविक अंग नहीं है। डिमेंशिया पर बेहतर जानकारी हो तो लक्षणों के प्रति सतर्क रहना संभव है।

उम्मीद है जागरूकता अभियानों से सामान्य बुढ़ापे और डिमेंशिया में अंतर पर जानकारी अधिक व्याप्त होगी। बहरहाल, यदि व्यक्ति में हुआ बदलाव अटपटा लगे या व्यक्ति को रोजमर्रा के कार्यों में दिक्कत हो रही हो तो डॉक्टर से पूछ लेना बेहतर है।

पर लक्षणों की सूची के आधार पर प्रियजन को डिमेंशिया है, यह शक होने पर भी लोग कई बार डॉक्टर से सलाह लेने में कतराते हैं। उन्हें लगता है कि डिमेंशिया का कोई इलाज नहीं है। वे सोचते हैं कि यह तो डिमेंशिया ही होगा, और इसे हमें ही घर पर संभालना होगा - बेकार में अस्पतालों और डॉक्टर के और टेस्ट के झंझट को क्यों मोल लें।

क्या डॉक्टर से निदान करवाना जरूरी है?

हाँ, डॉक्टर से निदान करवाना आवश्यक है।  लक्षण हों तो कृपया यह न सोच लें कि जाहिर है कि व्यक्ति को डिमेंशिया है, फिर निदान से क्या फायदा! ऐसी सोच से काफी नुकसान हो सकता है, - क्योंकि शायद लक्षण किसी अन्य कारण से हों। यह तो डॉक्टर ही सही जांच और परीक्षण के बाद तय कर पायेंगे कि लक्षणों का क्या कारण है, और क्या इलाज संभव है।

हो सकता है लक्षण किसी  ऐसी मेडिकल कंडीशन की वजह से हैं जिस का इलाज संभव है  - जैसे कि थाइरोइड होरमोन कम होना, विटामिन बी 12 की कमी, डिप्रेशन। बिना निदान के इलाज नहीं हो पाएगा और व्यक्ति और परिवार बेकार में ही तकलीफ सहते रहेंगे।

यदि डिमेंशिया किसी ऐसे रोग के कारण है जिस में दवा से मस्तिष्क की क्षति वापस ठीक नहीं हो सकती (जैसे कि अल्जाइमर रोग)- तब भी उपचार के कुछ विकल्प हैं जिन से कुछ लोगों को लक्षणों से कुछ राहत मिल सकती है। दवा सब के लिए असरदार नहीं होती, पर जिन में असर करती है, उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो पाता है।

निदान का एक फायदा यह भी है कि व्यक्ति और परिवार भविष्य के लिए योजना बना सकते हैं। डिमेंशिया का सिलसिला लम्बा चलता है। इस के प्रबंधन के लिए व्यक्ति और परिवार वाले आपस में बात कर सकते हैं और निर्णय ले सकते हैं। वे ज़रूरी जानकारी और देखभाल के तरीकों की खोज शुरू कर सकते हैं। वे सोच सकते हैं कि देखभाल का काम और खर्च आपस में कैसे बांटेंगे। इस तरह का वार्तालाप और सोच-विचार जितनी जल्दी शुरू हो, उतना अच्छा है, क्योंकि हो सकता है कि कुछ समय बाद व्यक्ति स्वयं सोचने या अपनी बात कह पाने की स्थिति में न हों और समस्याएँ बढ़ने पर ये निर्णय परिवार के लिए और भी कठिन हो सकते हैं।

निदान के लिए कहाँ जाना होगा?

बेहतर है कि डिमेंशिया का निदान उचित विशेषज्ञ से करवाएं। डिमेंशिया में अनुभव  वाले न्यूरोलॉजिस्ट (neurologist), मनोचिकित्सक (साइकेट्रिस्ट, psychiatrist), या जेरियाट्रीशियन (ज़रा-चिकित्सा के विशेषज्ञ, geriatrician)  से मिलें। इससे पहले आप अपने फैमिली डॉक्टर से भी मिल सकते हैं।

आजकल टेलीमेडिसिन उपलब्ध है और सलाह पहले के मुकाबले आसानी से उपलब्ध है।

डॉक्टर से मिलने के लिए क्या डाटा एकत्रित करें?

व्यक्ति का मेडिकल डाटा एकत्रित करें: इसमें शामिल है पूरी मेडिकल हिस्ट्री - व्यक्ति को कौन कौन सी बीमारियाँ हैं (या थीं) , क्या कोई सर्जरी हुई है, क्या वे कभी अस्पताल में भर्ती हुए थे, उनके पुराने और नए टेस्ट रिजल्ट क्या हैं, और वे कौन सी दवा और सप्लीमेंट ले रहे हैं। ऐसी सभी पुरानी और वर्तमान बातें नोट करें जिन से व्यक्ति के स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है - जैसे कि धूम्रपान और मद्यपान की आदतें।

लक्षण संबंधी सामग्री एकत्रित करें - नोट करें कि व्यक्ति के क्या लक्षण हैं, उनके उदाहरण नोट करें, और यह भी कि उनकी वजह से व्यक्ति को किस तरह की तकलीफें होती हैं। व्यवहार में बदलाव भी नोट करें। लक्षणों के “टाइमलाइन” पर ख़ास ध्यान दें - यानी कि ये कब से हैं और समय के साथ कैसे बदले हैं।

अलग रहने वाले वयस्क बच्चे शायद माँ-बाप के दैनिक जीवन और समस्याओं के बारे में विस्तार से नहीं जानते हों। ऐसे में उन्हें माँ-बाप को डॉक्टर के पास ले जाने से पहले किसी ऐसे व्यक्ति से जानकारी लेनी होगी जो माँ-बाप से अधिक संपर्क में रहते हैं, या फिर पिता से मां की समस्या के बारे में/ मां से पिता की समस्या के बारे में बात करनी होगी। 

अगर प्रियजन को लगता है कि उनको कोई समस्या नहीं है, तो परिवार वाले डॉक्टर से सलाह कैसे लें?

यह कई बार होता है कि व्यक्ति डॉक्टर से मिलने के लिए सहमत न हों या जब परिवार और व्यक्ति डॉक्टर से बात कर रहे हों तो व्यक्ति का दृष्टिकोण परिवार वालों से बिलकुल अलग हो। व्यक्ति की समस्याओं का वर्णन उनके सामने करने से व्यक्ति दुखी हो सकते हैं, हीन महसूस कर सकते हैं या गुस्सा हो सकते हैं। डॉक्टर का क्लिनिक बहस का मैदान बन सकता है।

इस स्थिति से बचने के लिए आप डॉक्टर से अलग से मिल कर अपना दृष्टिकोण समझा सकते हैं। आप अपने हिसाब से लक्षणों और उनके प्रभाव और बदले व्यवहार के बारे में बता सकते हैं।

पर व्यक्ति को भी डॉक्टर से मिलना होगा क्योंकि डॉक्टर व्यक्ति से बात करेंगे और उनकी क्षमताओं का स्वतंत्र  आकलन करेंगे। सही निदान के लिए यह जरूरी है कि डॉक्टर आपके हस्तक्षेप के बिना व्यक्ति से बात कर पायें।

सबसे बात करने के बाद और उचित टेस्ट वगैरह के बाद ही डॉक्टर निदान और उपचार तय करेंगे।

निदान मिलने के बाद परिवार को क्या करना चाहिए?

सबसे पहले तो डॉक्टर से निदान और दवा के बारे में और अन्य जो भी प्रश्न हों, सब जरूर पूछ लें।

निदान एक चुनौतीपूर्ण यात्रा का पहला कदम है। निदान मिलने के बाद शुरू होता है डिमेंशिया को समझने का और उसके उपचार और देखभाल का सिलसिला। इसके लिए परिवार को जानकारी चाहिए। उन्हें योजना बनानी होगी, और बहुत सारे बदलाव करने होंगे। उन्हें उचित सेवाओं और समर्थन की जरूरत होगी।

जानकारी और सहायता की ख़ोज आसान नहीं है। इसलिए डॉक्टर से जरूर पूछें, शायद कुछ सिरा मिले।

आदर्श तो यह होगा कि उन्हें डॉक्टर से सभी जानकारी मिले और ऐसे संसाधनों और संस्थाओं के बारे में भी पता चले जो इस सफ़र के हर पड़ाव पर स्थिति के हिसाब से परिवार को सहायता दे पायें। वास्तविकता में ऐसा कम ही होता है।

यह लेख गुजराती में भी उपलब्ध है : यह लिंक देखें

डिमेंशिया के लक्षणों और निदान पर हिन्दी में अधिक जानकारी कहाँ मिल सकती है?

यदि आप डॉक्टर, अन्य स्वास्थ्य कर्मचारियों या स्वयंसेवकों से मिल रहे हैं, तो उनसे अनुरोध करें कि यदि संभव हो तो वे आपसे हिंदी में बात करें। शायद उनके पास कुछ हिन्दी पत्रिकाएं भी हों।

वैसे मैंने हिन्दी में एक साठ से अधिक पेज का साइट बनाया है, dementiahindi.com, जिस में आपको डिमेंशिया और देखभाल पर विस्तृत जानकारी मिल सकती है। इन्टरनेट पर हिन्दी में जानकारी और सहायक सेवाओं को खोजने पर अधिक चर्चा अगले भाग में भी है।

(भाग 2 में डिमेंशिया देखभाल पर चर्चा है: यह लिंक देखें)

स्वप्ना किशोर डिमेंशिया के क्षेत्र में कई वर्षों से काम कर रही हैं। उन्होंने भारत में डिमेंशिया से जूझ रहे परिवारों के लिए कई ऑनलाइन संसाधन बनाए हैं। इनमें शामिल हैं उनका विस्तृत अंग्रेज़ी साईट, dementiacarenotes.in और उसका हिंदी संस्करण, dementiahindi.com

Changed
15/Jan/2023
Condition

Stories

  • Will I become like my mother?
    Vimal Balachander talks about the difficult days of caring for her mother-in-law during the latter’s steady decline with Alzheimer’s Disease. ‘Will I become like my mother?’ my mother-in-law asked me five years ago, in a shaking voice, ‘I don’t want that, I know what that is, sitting in a corner quietly’. This was in 2012. My mother-in-law, then 74, hither-to-independent business woman, had recently moved into our apartment, just fifty feet away from her beautiful seaside house. Savithri…
  • Importance of Emotional Memory and Associations in Dementia
    Neha Sinha, a clinical psychologist by profession talks about how emotional connect is very important for people with dementia. Even if they have loss of actual memory, they remain receptive to emotions as well as to the body language of people around them. Each individual is unique and so are his or her experiences, memories and feelings. There is a general apathy towards dementia especially when it comes to remembering the person they are, the rich history they hold. People with dementia…
  • Late-stage Dementia Home Care: Challenges and Practical Suggestions for Families
    Swapna Kishore sheds light on the rarely talked about challenges of home care for late stage dementia, especially due to low and infrequent communication and multiple medical problems.  She brings together her interviews with Dr. Soumya Hegde, a Bangalore-based Consultant Geriatric Psychiatrist who provides practical solutions. Most discussions around dementia are about memory problems, confusion, wandering, withdrawal, aggression, etc. We rarely talk about later stages, when the loved one…
  • How to Prevent Caregiver Burnout in Dementia Care
    Neha Sinha, a clinical psychologist by training shares her views on caregiving in Dementia, the effects of longtime caregiving on a person, how to keep his balance in tact and also avoid an early burnout.  ‘Caregiving often calls us to lean into love we didn’t know possible’ ~ Tia Walker Caregiving in Dementia Caring for people with dementia is in many ways more challenging than looking after somebody with a physical condition. This is because when you look after someone with dementia…
  • Handling Agitation in Dementia
    Neha Sinha, a clinical psychologist by training and dementia specialist, is the co-founder and CEO of Epoch Eldercare.  She shares her knowledge on agitiation in Dementia, the triggers of agitation and how best to handle it. What is Dementia in everyday life? Visualise a situation where you suddenly open your eyes and can’t make any sense of where you are or what you are doing there? Your surroundings seem unfamiliar to you...and there is a person in your room, giving you all sorts of…
  • Try Group Drumming for a Healthy Lifestyle
    The Rhythm Wellness initiative of Global ArtsCare in Singapore conducts group drumming session for the elderly to reduce loneliness, increase energy levels and morale and provide recreational and wellness activities. Tell us about Global ArtsCare and the work it does? At GlobalArtsCare we aim to transform lives-in-care through creative arts engagement. Our activities aim to make creative arts engagement accessible to as many people in care facilities. In the process, residents, care-givers, and…
  • How can Dementia Friends help?
    The Dementia Friends Program of SCARF (Schizophrenia Research Foundation) is a unique initiative aimed to create dementia friendly community in Chennai. Hear from the young volunteers themselves how it not only helps engage persons with dementia but also makes the youth aware and empathetic. Around 4.5 million people in India are suffering from dementia and the figure is likely to double by 2030, according to health experts. Despite the large numbers, only 1 out of 10 people with dementia in…
  • Life Flows on Through all the Tumult
    Vishaal Nityanand, a young filmmaker, ploughed his own money and full commitment to make Life Flows On, a movie on people with dementia and their caregivers, in order to raise awareness and understanding about the condition that he feels is callously neglected and overlooked in India. Read his interview. You have written and directed the film ‘Life Flows On’ that is dedicated to people with dementia and caregivers. Could you tell us a little about it? Life Flows On deals with three dementia…
  • Safety Measures For People With Dementia
    The best way to help a person with dementia is to ensure that they maintain control over as many areas of their life as possible and encourage them to maximise their remaining abilities, recommends Amrita Patil–Pimpale, a dementia care consultant. During my recent home visit to Mr. Dsouza (name changed) who is living with Dementia, I noticed a bottle of floor cleaner kept on his dining table. Usually this isn’t matter of concern. However in Mr. Dsouza’s case, he is in mid-stage of dementia, has…
  • The Hardest Part is Putting in Your Best Effort Without Expecting Improvement
    Shibani Ganguly, 50 is the sole caregiver for her mother, who has Alzheimer’s as a condition. She shares her experiences of a caregiver and how she has learnt the ropes on the job. When was he/she diagnosed and what were the early symptoms? In the year 2008 when she was 70. The early symptoms were forgetfulness, repetitive talking and temper tantrums. Is there a history of Alzheimer’s in the family? No, at least it has not been diagnosed. What is the present condition? She is rapidly losing her…