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Submitted by PatientsEngage on 22 January 2024
Pictures of Dr. Usha Sriram and Dr. Gita Arjun and the text Diabetes During Pregnancy

भारत में मधुमेह एक बढ़ती हुई चिंता का विषय है, और यह युवाओं में और विशेषकर गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में भी देखा जा रहा है। डॉ. उषा श्रीराम (एंडोक्रिनोलॉजिस्ट, दिवास एनजीओ की संस्थापक) और डॉ. गीता अर्जुन (ओब्गिन, डायरेक्टर, ईवी कल्याणी मेडिकल फाउंडेशन) के साथ वेबिनार चर्चा पर आधारित इस लेख में आपको गर्भावस्था के दौरान होने वाले मधुमेह और इसके प्रबंधन को समझने में मदद मिलेगी।

गर्भकालीन मधुमेह (गेस्टेशनल डाइअबीटीज़) क्या है?

जब किसी भी प्रकार के मधुमेह का सबसे पहले निदान गर्भावस्था के दौरान किया जाता है, तो उसे गर्भकालीन मधुमेह (गेस्टेशनल डाइबीटीज़) कहते हैं। यह दो प्रकार का हो सकता है। एक वह गर्भकालीन मधुमेह जो गर्भावस्था के दौरान हार्मोनल परिवर्तनों के कारण होता है – यह गर्भावस्था के बाद के चरण में पहचाना जा सकता है, आमतौर पर दूसरी तिमाही में। दूसरा गर्भकालीन मधुमेह का प्रकार वह है जब पहली तिमाही में मधुमेह का पता चलने से यह संकेत मिलता है कि महिला को गर्भावस्था से पहले से ही मधुमेह रहा होगा (पर निदान नहीं हुआ था)। गर्भावस्था में देखे गए सभी मधुमेह का इलाज किया जाना चाहिए और इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए।

गर्भकालीन मधुमेह की निदान प्रक्रिया क्या है?

गर्भवती महिलाओं में गर्भकालीन मधुमेह की पहचान करने के लिए कुछ साल पहले तक चयनात्मक जांच को प्राथमिकता दी गई थी, यानी कि, इसके निदान की प्रक्रिया के लिए उन महिलाओं को प्राथमिकता दी जाती थी जिन में कुछ उच्च जोखिम कारक थे। ये थे: अधिक उम्र, मधुमेह के पारिवारिक इतिहास, पिछले गर्भधारण में गर्भपात होना, अधिक वजन और पीसीओएस। पर यह पाया गया कि इस पद्धति को अपनाने से कई केस में मधुमेह का निदान नहीं हो रहा था। भारत, नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान और दक्षिण पूर्व एशिया जैसे देशों में गर्भकालीन मधुमेह का जोखिम अधिक है। इसलिए, अब यह माना जाता है कि सभी गर्भवती महिलाओं में गर्भकालीन मधुमेह की जांच करानी चाहिए। गर्भवती महिला से पहली मुलाकात में ही ग्लूकोज टालरन्स टेस्ट (रक्त शर्करा सहनशीलता परीक्षण) द्वारा मधुमेह की स्क्रीनिंग की जानी चाहिए। विभिन्न राज्यों में गर्भकालीन मधुमेह की उच्च संख्या के कारण (जैसे कि पंजाब में 35%, लखनऊ में 41%) भारत सरकार ने सभी गर्भवती महिलाओं की जांच करने की जरूरत पर जोर दिया है।

क्या महिलाएं गर्भधारण से पूर्व से ही बेहतर प्रेग्नन्सी से संबंधित परामर्श को सक्रिय रूप से ढूंढती हैं?

गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार के लिए गर्भधारण पूर्व सलाह प्राप्त करना महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । लेकिन दुर्भाग्य से, भारत में अधिकांश गर्भधारण अनियोजित हैं। अनियोजित गर्भधारण निम्न और मध्यम आय वाले देशों में अधिक आम है, जो  वैश्विक स्तर पर लगभग 50% है। गर्भावस्था में देखभाल के दौरान एनीमिया, मधुमेह, पोषण संबंधी कमियां, मुकाबला करने की प्रक्रिया, टीकाकरण में देरी, शराब और धूम्रपान जैसे विभिन्न पहलुओं पर विचार करना होता है। डॉक्टरों को गर्भधारण से पहले महिलाओं को यह जानकारी देनी चाहिए कि वे बेहतर प्रेग्नन्सी के लिए क्या कर सकती हैं। उन्हें देखना चाहिए कि महिलाओं का वज़न और बीएमआई आदर्श है, और उन्हें उच्च रक्तचाप या मधुमेह नहीं है। मधुमेह के पारिवारिक इतिहास वाली कुछ महिलाएं गर्भावस्था में देखभाल के दौरान मधुमेह के प्रति सतर्क रहती हैं, और जो महिलाएं मधुमेह के लिए मौखिक गोलियां या इंसुलिन ले रही हैं, वे अकसर गर्भवती होने की योजना बनाने से पहले डॉक्टरों से सलाह लेती हैं। यह सतर्कता आवश्यक है क्योंकि गर्भावस्था के दौरान उच्च शर्करा होना माँ और बच्चे को खतरे में डाल सकती है।

गर्भकालीन मधुमेह वाली महिलाओं के लिए क्या सलाह है?

गर्भावस्था के दौरान मां के बेहतर स्वास्थ्य के लिए प्रसूति विशेषज्ञ और चिकित्सक को मिलकर काम करना चाहिए, क्योंकि मां के वजन, प्री-एक्लेमप्सिया, रक्त शर्करा स्तर, दृष्टि, तरल  पदार्थ, मूत्र में प्रोटीन, बच्चे के विकास आदि पर बारीकी से नजर रखनी होती है। चिकित्सकीय पोषण सलाह एक मधुमेह वाली महिला के लिए उपचार का प्राथमिक रूप है। महिलाओं को संतुलित आहार के लिए खाने में कितना और कौन सा सूक्ष्म और मैक्रोन्यूट्रिएंट शामिल करना चाहिए, इस पर जानकारी दी जाए तो 60 से 70% ऐसे मधुमेह के केस को प्रबंधित किया जा सकता है । प्रत्येक चेकअप में शारीरिक गतिविधि की जरूरत पर जोर देना चाहिए, जिस में 45 मिनट पैदल चलना शामिल है। चिकित्सकीय पोषण (आहार में बदलाव) और शारीरिक गतिविधि, दोनों गर्भावस्था के दौरान मधुमेह के प्रबंधन का महत्वपूर्ण अंग हैं। 

गर्भावस्था के दौरान मधुमेह के इलाज के लिए इंसुलिन के अलावा अन्य विकल्प क्या हैं?

गर्भवती महिलाओं के प्रबंधन के लिए इंसुलिन पहली पसंद है क्योंकि इसका उपयोग गर्भवती महिलाओं के में वर्षों से किया जा रहा है और इसे गर्भावस्था में देना सुरक्षित माना जाता है। पर यदि महिला इंसुलिन नहीं ले सकती या नहीं लेना चाहती, तो मेटफॉर्मिन का उपयोग किया जाता है। इसे यूके नाइस दिशानिर्देश और राष्ट्रीय दिशानिर्देशों जैसी प्रोफेशनल सोसाईटीज़ द्वारा अनुमोदित किया गया है। इसके अतिरिक्त, लिगेराइड जैसी दवाओं का भी उपयोग किया जाता था, लेकिन क्योंकि इन से गर्भवती महिला में हाइपोग्लाइसीमिया (रक्त शर्करा का स्तर गिरना) हो सकता है और शिशुओं को एनआईसीयू में भर्ती करने की आवस्थाकता हो सकती है, इसलिए अब ये दवाएं देना पसंद नहीं करा जाता। भारत में, अस्पतालों में इंसुलिन प्राप्त करना, और इस के द्वारा प्रबंधन कैसे करें, यह अस्पतालों में सिखाना कठिन है। इंसुलिन पेन बहुत महंगे हैं. भारत सरकार के दिशानिर्देश के अनुसार मेटफॉर्मिन देना सुरक्षित है और अगर कोई मां खुद इंसुलिन नहीं ले सकती या इसका खर्च वहन नहीं कर सकती तो मेटफॉर्मिन एक बेहतर विकल्प होगा। 

गर्भकालीन मधुमेह वाली महिलाओं के लिए फॉलो-अप की क्या प्रणाली है?

गर्भकालीन मधुमेह हो तो अधिक सावधानीपूर्वक निगरानी की जरूरत है, जिसमें गर्भ के 11-14 सप्ताह, 20 सप्ताह और अकसर 24 सप्ताह के आसपास और यदि आवश्यक हो तो 28 सप्ताह में अल्ट्रासाउंड शामिल है। कोशिश रहती है कि गर्भ में शिशु के विकास पर नजर रहे। मां के अनियंत्रित शर्करा और हाइपरइंसुलिनमिया से गर्भ में बच्चे के आकार पर असर हो सकता है और बच्चा मैक्रोसोमिक (अत्यधिक बड़ा) हो सकता है, और इसलिए बच्चे के विकास और माँ के पेट की परिधि पर निगरानी रखी जाती है। यदि माँ इंसुलिन पर है, तो बड़े बच्चों के कारण होने वाली जटिलताओं से बचने के लिए 38 सप्ताह में ही प्रसव की योजना बनाई जा सकती है ताकि प्रसव के समय की कठिनाइयाँ से बचा जा सके। माँ का रक्त शर्करा का स्तर नियंत्रित न हो तो बच्चों में मोटापा, मधुमेह, मेटाबॉलिक सिंड्रोम, निम्न रक्त शर्करा, नवजात पीलिया का खतरा बढ़ जाता है और मृत बच्चे का जन्म (सडन स्टिलबर्थ) भी हो सकता है। इसलिए, गर्भावस्था के दौरान मां के रक्त शर्करा के स्तर और बच्चे के विकास और स्वास्थ्य की अच्छी तरह निगरानी करना जरूरी है।

गर्भकालीन मधुमेह के कारण शिशु के बड़े होने के जोखिम और परिणाम क्या हैं?

बड़े बच्चों के कंधों के आसपास चर्बी जमा होने के कारण ऐसे केस में सामान्य प्रसव की संभावना कम होती है। बच्चे का जनन मार्ग से बाहर आना मुश्किल होता है जिसके परिणामस्वरूप सी-सेक्शन या फॉर्सेप्स डेलीवेरी की जाती है।

क्या गर्भकालीन मधुमेह का प्रकार शिशु को प्रभावित करता है?

गर्भकालीन मधुमेह के दो प्रकार हैं और दोनों में मां के स्वास्थ्य की सावधानीपूर्वक निगरानी की आवश्यकता होती है। यदि मां को पहली तिमाही में मधुमेह का पता चलता है, तो अधिक खतरा होता है क्योंकि हो सकता है उसे गर्भवती होने से पहले से ही टाइप दो मधुमेह था। पर देर से, जैसे कि सातवें महीने में गर्भकालीन मधुमेह का पता चले, तब भी निगरानी रखना बहुत जरूरी है। मृत जन्म, बड़े बच्चे या पॉलीहाइड्रेमनिओस जैसी जटिलताओं से बचने के लिए गर्भकालीन मधुमेह का शीघ्र निदान बहुत जरूरी है।

टाइप 1 मधुमेह या किडनी प्रत्यारोपण के बाद होने वाले गर्भकालीन मधुमेह के केस में प्रबंधन प्रोटोकॉल क्या है?

ऐसे केस में गर्भधारण पूर्व परामर्श आवश्यक है क्योंकि इससे गर्भावस्था बेहतर हो सकती है। दोनों प्रकार की मधुमेह वाली महिलाओं में, यदि उनकी शर्करा नियंत्रण में नहीं है, तो बच्चे में जन्म दोष (बर्थ डिफेक्ट) का जोखिम पहचाना गया है। एक सरल प्रोटोकॉल का पालन करना होगा - उन्हें फोलिक एसिड पर रहना होगा और बिना नागा इंसुलिन लेना होगा। किडनी प्रत्यारोपण वाली महिलाओं की गर्भधारण से पहले रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल और हृदय स्वास्थ्य की निगरानी की जानी चाहिए ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि महिला बच्चे को सुरक्षित रूप से जन्म दे सकती है या नहीं। अंत-अंग संबंधी जटिलताओं पर नज़र रखना और रक्तचाप या कोलेस्ट्रॉल के लिए दवाओं को समायोजित करना भी महत्वपूर्ण है। टाइप 1 मधुमेह वाली महिलाओं में गर्भनाल (अपरा, प्लेसेन्टा ) में रक्त के प्रवाह में कमी के कारण शिशु के छोटे रहने का या विकास-प्रतिबंधित होने का खतरा है। समग्र रूप से - संतुलित आहार, निरंतर निगरानी और इंसुलिन स्वस्थ बच्चे की सफल डेलीवेरी के लिए सहायक होते हैं।

किडनी प्रत्यारोपण के बाद गर्भकालीन मधुमेह वाली महिलाओं के लिए प्रबंधन प्रोटोकॉल। 

किडनी प्रत्यारोपण वाली महिला में गर्भकालीन मधुमेह हो तो निरंतर निगरानी महत्वपूर्ण है क्योंकि जोखिम को कम करने के लिए इम्यूनोसप्रेसेन्ट का प्रबंधन और दवा की खुराक को समायोजित करना आवश्यक है। अंत-अंग (एंड-ऑर्गन) जटिलताओं वाली टाइप 1 मधुमेह महिलाओं के लिए, सरोगेसी या गोद लेना एक सुरक्षित विकल्प है क्योंकि गर्भावस्था उनकी स्थिति को खराब कर सकती है। 

प्रसव के प्रकार पर मधुमेह का क्या प्रभाव पड़ता है?

गर्भकालीन मधुमेह वाली अधिकांश महिलाओं की सामान्य डिलीवरी हो सकती है। गर्भकालीन मधुमेह होने का मतलब यह नहीं कि सी-सेक्शन की जरूरत होगी। पर ऐसी महिलाओं का 40 सप्ताह (सामान्य पूर्ण अवधि) तक प्रसव हो जाना चाहिए, और खुद न हो तो सी-सेक्शन द्वारा करा जाना चाहिए। सी-सेक्शन अन्य कारणों से भी किया जा सकता है जैसे ब्रीच, प्लेसेंटा प्रीविया या बच्चा मां के सामान्य डेलीवेरी के लिए बहुत बड़ा है। 

प्रसव के बाद गर्भकालीन मधुमेह अपने आप ठीक हो जाएगा – यह सच है या मिथक?

यह एक मिथक है. अधिकांश महिलाएं प्रसव के बाद अपने सामान्य ग्लूकोज स्तर पर लौट आती हैं, लेकिन 20% -25% में असामान्य ग्लूकोज स्तर देखा जाता है। भविष्य में स्वास्थ्य समस्याओं से बचने के लिए उनको स्वस्थ वजन और कमर का माप बनाए रखने के लिए आहार में बदलाव और शारीरिक व्यायाम जरूरी है। भारत में बेसलाइन मधुमेह दर अधिक है (यहाँ मधुमेह ज्यादा होता है) । इसलिए, नियमित रूप से रक्त शर्करा की निगरानी की आवश्यकता होती है, चाहे आपका मधुमेह ठीक हो गया हो या नहीं।

पहली प्रेग्नन्सी में वजन बढ़ा तो क्या, मैं फिर से गर्भवती होना चाहती हूँ और दूसरी गर्भावस्था के बाद पूरी तरह से अपना वजन कम कर सकती हूँ: यह ग़लतफ़हमी है या सच्चाई?

यह एक ग़लतफ़हमी है और यह स्वस्थ दृष्टिकोण नहीं है। दो प्रेग्नन्सी के बीच वजन अधिक रहना मां और बच्चे के लिए हानिकारक होता है। ऑब्सगिन के मार्गदर्शन में दो प्रेग्नन्सी के बीच के समय में भी संतुलित आहार और वजन प्रबंधन करना अगली गर्भावस्था की जटिलताओं से बचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

गर्भकालीन मधुमेह वाली महिलाओं को कौन-कौन सी दीर्घकालिक स्थितियाँ होने की संभावना रहती है?

गर्भकालीन मधुमेह से संबंधित कई जोखिम हैं - जैसे हृदय रोग, स्ट्रोक, फ्रैक्चर, कैंसर, अवसाद और अन्य मधुमेह संबंधी जटिलताएँ। अध्ययनों से पता चला है कि मधुमेह वाले लोगों में हृदय रोग और कैंसर का खतरा अधिक होता है। इसलिए एक स्वस्थ प्रेग्नन्सी के लिए, गर्भावस्था से पहले से ही मधुमेह से बचने की कोशिश करनी चाहिए, प्रेग्नन्सी में निगरानी रखनी चाहिए, और प्रसव के बाद भी ठीक देखभाल करनी चाहिए

जीडीएम (गर्भकालीन मधुमेह मेलिटस) के लिए रक्त शर्करा के निश्चित मानदंड।

विभिन्न दिशानिर्देशों में यह अलग-अलग है। डब्ल्यूएचओ और अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन आईएडीपीएफ दिशानिर्देश का उपयोग करते हैं, जहां 92 के फ़ास्टिंग स्तर के साथ 75 ग्राम ग्लूकोज टालरन्स टेस्ट किया जाता है। एक घंटे के बाद 180 तक का स्तर और दो घंटे के बाद 153 तक का स्तर सामान्य माना जाता है। असामान्य स्तर हो तो वह गर्भकालीन मधुमेह के निदान के लिए पर्याप्त है। पर डीआईपीएसह्वाइ और द इंडियन नेशनल गाइडलाइन्स के अनुसार, दो घंटे में 140 से अधिक रक्त शर्करा स्तर को गर्भकालीन मधुमेह के निदान के लिए मापदंड माना जाता है। कौन सा मापदंड इस्तेमाल किया जाएगा, यह इस पर निर्भर है कौन सी सुविधा का इस्तेमाल किया है। 

जिस महिला को गर्भावस्था के दौरान मधुमेह हो, उसे परामर्श कैसे दिया जाए?

सकारात्मक रहना, माँ और परिवार की चिंता को दूर करना और उन्हें स्थिति की गंभीरता के बारे में जागरूक करना बहुत आवश्यक है। माँ और बच्चे के बेहतर स्वास्थ्य के लिए, आहार में बदलाव के लिए परिवार के सदस्यों या देखभाल करने वालों या माँ के लिए खाना बनाने वालों को आहार संबंधी परामर्श देना आवश्यक है। उन्हें गर्भावस्था के दौरान उचित आहार के महत्व और रक्त शर्करा के स्तर को बनाए रखने के बारे में बताना चाहिए। काउन्सेलिंग को गर्भकालीन मधुमेह संबंधी सांस्कृतिक मानदंडों और कलंक को नजर में रखना चाहिए और परिवार के सदस्यों द्वारा बेहतर स्वीकृति के लिए इसे स्थानीय भाषा में सरल बनाया जाना चाहिए। इसमें गर्भावस्था के दौरान माँ और बच्चे को होने वाले विभिन्न जोखिमों को शामिल करना चाहिए। नियमित काउन्सेलिंग से उन्हें जानकारी को समझने और संसाधित करने में मदद मिल सकती है। एक सहज और सुरक्षित वातावरण बनाकर और जागरूकता फैलाकर हम गर्भकालीन मधुमेह वाली महिला को स्वस्थ जीवन के पथ पर ले जा सकते हैं।

डॉ. गीता अर्जुन का संदेश

महिलाओं के लिए सबसे जरूरी बात यह है कि वे बहुत अच्छी तरह से सूचित रहें, बहुत सकारात्मक रहें और अपनी गर्भावस्था के प्रबंधन में सक्रिय रहें। गर्भावस्था में मधुमेह होना एक चेतावनी है! यह कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे नजरअंदाज किया जाए, इसका उचित प्रबंधन करना होगा। प्रसव के बाद भी हर छह महीने या हर साल लगातार जांच जरूरी है। यह डॉक्टर और मरीज के बीच एक संयुक्त साझेदारी है। 

डॉ. उषा श्रीराम का संदेश

सभी महिलाओं को यह समझना चाहिए कि प्रजनन वर्षों के दौरान स्वास्थ्य के प्रति सावधान रहना चाहिए, खासकर गर्भधारण के छह महीने पहले से, ताकि प्रेग्नन्सी माँ और बच्चे के लिए बेहतर रहे। उन्हें इस ज्ञान को अन्य महिलाओं, उनकी बेटियों और बहुओं के साथ साझा करना चाहिए और सब को स्वस्थ रहने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। परिवार की प्राथमिक देखभालकर्ता होने के नाते महिलाएं इस दौरान अपने स्वास्थ्य और पोषण में सुधार कर सकती हैं और गर्भावस्था को एक सकारात्मक अनुभव में बदल सकती हैं।

निष्कर्ष:

गर्भकालीन मधुमेह के बारे में सूचित रहें और यह हो तो इसे सक्रिय रूप से प्रबंधित करें। एक महिला के रूप में यह न सिर्फ आपके भविष्य के स्वास्थ्य के लिए, बल्कि साथ-साथ आपके बच्चों और पोते-पोतियों के लिए भी सुधार के लिए एक अवसर है। गर्भकालीन मधुमेह को हल्के में न लें बल्कि इसे ठीक से प्रबंधित करें।

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