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Submitted by PatientsEngage on 14 October 2024
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डॉ मैरी अब्राहम  दर्द और प्रशामक (उपशामक / पेलिएटिव केयर )देखभाल चिकित्सक (पेन एण्ड पेलिएटिव केयर फिज़िशन), और डॉ वंदना वी प्रकाश, नैदानिक मनोवैज्ञानिक (क्लीनिकल साइकालजिस्ट) इस लेख में बताती हैं कि कैंसर के दर्द का इलाज किया जा सकता है और कैंसर के रोगी की जीवन की गुणवत्ता को उपयुक्त दवाओं द्वारा बढ़ाया जा सकता है। वे इस से संबंधित अनेक प्रश्नों के उत्तर साझा करती हैं।

कैंसर के दर्द पर अधिक ध्यान दिए जाने के बावजूद,  यह दर्द अभी भी कैंसर रोगियों और उत्तरजीवियों (सर्वाइवर) के लिए एक प्रमुख मुद्दा है। ऐसा क्यों है?

इस के कई कारण हैं।

सबसे पहले, लोगों में यह गलत धारणा और भय व्याप्त है कि यदि किसी को कैंसर है, तो वह हमेशा दर्द से पीड़ित रहेगा, विशेष रूप से बीमारी के अंतिम चरण में। अधिकांश लोग यह नहीं जानते कि दर्द निवारण के लिए इलाज प्राप्त करना एक मौलिक मानव अधिकार है और यह स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं का दायित्व है कि रोगियों को दर्द से मुक्ति दिलाएं। लोग इस तथ्य से भी अवगत नहीं हैं कि कैंसर का दर्द कितना भी गंभीर क्यों न हो, राहत संभव है। इसलिए, कई बार कैंसर के रोगी अत्यंत पीड़ा सहते रहते हैं और वे और उनके परिवार वाले दर्द निवारण के लिए मदद नहीं मांगते।

इसके अलावा, यह जागरूकता फैलाना जरूरी है कि कैंसर का दर्द केवल शारीरिक दर्द तक सीमित नहीं है। यूके में प्रशामक देखभाल (पेलिएटिव केयर) की संस्थापक, डेम सिसली सॉन्डर्स ने जोर देकर कहा था / है कि शारीरिक दर्द के अलावा, कैंसर के रोगियों को मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और यहां तक कि आध्यात्मिक दर्द भी होता है। इस अवधारणा को “टोटल पेन” के नाम से जाना जाता है और इस अवधारणा के अंतर्गत किए दर्द के प्रबंधन को टोटल पेन मैनेजमेंट (समग्र  दर्द का/ दर्द का सभी पहलुओं से प्रबंधन) कहा जाता है। यहां तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन भी कैंसर के दर्द के प्रबंधन की इस समग्रतात्मक दृष्‍टिकोण का समर्थन करता है।

कैंसर के दर्द पर अभी भी पर्याप्त ध्यान नहीं दिए जाने का एक और कारण भी है - प्रशामक देखभाल और इस देखभाल में शामिल विशेषज्ञों के बारे में जानकारी की कमी। बहुत कम लोग जानते हैं कि विशेष रूप से प्रशिक्षित प्रशामक देखभाल विशेषज्ञ अस्पतालों, निजी प्रैक्टिस, नर्सिंग होम, हाफ-वे होम और इस दृष्टिकोण के प्रति समर्पित संगठनों में उपलब्ध हैं, और वे न केवल शारीरिक दर्द बल्कि अन्य उन सभी संबंधित लक्षणों का इलाज करते हैं जो कैंसर वाले लोग बार-बार अनुभव करते हैं। ऐसे विशेषज्ञ और संगठन अस्पताल में और घर पर प्रशामक देखभाल प्रदान करते हैं। घर पर प्रशामक देखभाल सेवा के अंतर्गत प्रशामक देखभाल टीम रोगियों के घरों में जाती है और दर्द और अन्य परेशान करने वाले लक्षणों से राहत के लिए आवश्यक सभी दवाएं प्रदान करती है। इसलिए, हर देश के हर नागरिक (विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले नागरिक) तक प्रशामक देखभाल के बारे में जानकारी फैलाने की सख्त आवश्यकता है।

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क्या सभी कैंसर के दर्द को नियंत्रित किया जा सकता है?

कैंसर का दर्द कितना भी गंभीर क्यों न हो, इसे नियंत्रित किया जा सकता है। 1986 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने डब्ल्यूएचओ एनाल्जेसिक लैडर नामक कैंसर के दर्द के इलाज के लिए एक सीढ़ी पर आधारित चरण-बद्ध दृष्टिकोण तैयार किया था। इसका उपयोग व्यापक रूप से कैंसर के दर्द के इलाज के लिए विश्व के सभी प्रशामक देखभाल विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है। इस का उपयोग करने का मुख्य लाभ यह है कि दर्द को दूर करने के लिए दवाएं मौखिक रूप से दी जाती हैं और घर पर देखभाल करने वाले द्वारा आसानी से प्रशासित की जा सकती हैं। 

दवाएं दर्द की गंभीरता के अनुसार दी जाती हैं, और हल्के दर्द के लिए शुरुआत में पेरासिटामोल या गैर-स्टेरायडल एंटी-इन्फ्लैमटोरी दवाएं दी जाती हैं। यदि इस चरण 1 एनाल्जेसिक (दर्द निवारक) से दर्द से राहत नहीं मिल रही हो तो ट्रामाडोल जैसे कमजोर ओपिओइड को चरण 2 दवा के रूप में जोड़ा जा सकता है। पर अगर दर्द बहुत  अधिक है और चरण 2 एनाल्जेसिक से भी सुधार नहीं हो रहा है, तो मॉर्फिन जैसे ओपिओइड दिए जाते हैं। इस चरण-बद्ध दृष्टिकोण से 71-76% कैंसर के दर्द का इलाज किया जा सकता है। प्रत्येक चरण में, एनाल्जेसिक के साथ-साथ सहायक दवाओं को जोड़ा जा सकता है। इनमें विशिष्ट प्रकार के दर्द के इलाज के लिए दवाएं, मांसपेशियों को आराम देने वाली (मसल रिलेक्सेन्ट) दवाएं, ऐंठन-रोधी (एंटी-स्पैज़्मॉडिक) दवाएं, सेडेटिव , स्टेरॉयड, हड्डियों के दर्द का इलाज करने वाली दवाएं और यहां तक कि अवसादरोधी (एंटी-डिप्रेसन्ट) दवाएं भी शामिल हैं।

2000 में, डब्ल्यूएचओ की सीढ़ी को संशोधित कर ऐसे रोगियों के लिए चौथा चरण जोड़ा गया था जिन्हें ओपिओइड जैसी चरण 3 दवाओं से भी फायदा नहीं मिल रहा था - ये 10-15% केस हैं। इस चौथे चरण में कैंसर के दर्द का कारण दूर नहीं किया जा सकता और दर्द से राहत के लिए विभिन्न नर्व (तंत्रिका) ब्लॉक, अंतःस्राव ड्रग इन्फ्यूजन, एपिड्यूरल ब्लॉक और स्पाइनल कॉर्ड का स्टिमुलेशन (उत्तेजना) शामिल है।

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इस प्रकार, कैंसर के दर्द के इलाज के लिए बहुत सारे विकल्प हैं और सभी रोगियों को आश्वस्त किया जाना चाहिए कि दर्द, चाहे कितना भी गंभीर हो, नियंत्रित किया जा सकता है और उन्हें अनावश्यक रूप से पीड़ा के साथ जीते रहने की आवश्यकता नहीं है।

दर्द के विभिन्न प्रकार क्या हैं?

दर्द को विभिन्न तरीकों से वर्गीकृत किया जा सकता है। दर्द की अवधि के आधार पर यह अक्यूट (तीव्र) या क्रानिक (चिरकालिक, पुराना) हो सकता है। अक्यूट दर्द आमतौर पर 3 महीने से कम समय में ठीक हो जाता है पर यदि दर्द 3 से 6 महीने से अधिक समय तक बना रहता है तो उसे क्रानिक कहा जाता है।

दर्द को वर्गीकृत करने के अन्य तरीके इस प्रकार हैं -

  1. नोसिसेप्टिव दर्द
  2. न्यूरोपैथिक दर्द।

नोसिसेप्टिव दर्द ऊतक (टिशू) में क्षति या सूजन के कारण हुए दर्द को कहते हैं - जैसे कि सॉफ्ट टिशू  (मांसपेशियों, वसा, रेशेदार ऊतक, रक्त वाहिकाओं, या शरीर के अन्य सहायक ऊतक), हड्डी या किसी अंग में चोट लगना (कट जाना, हड्डी टूटना, आंतरिक सूजन) या कैंसर।
न्यूरोपैथिक दर्द तंत्रिका क्षति के कारण होता है।

न्यूरोपैथिक दर्द के कुछ उदाहरण हैं डायबिटिक न्यूरोपैथी, कीमोथेरेपी के कारण हुई न्यूरोपैथी, चेहरे के दर्द के रूप में प्रकट होने वाला ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया और शिंगल्स (दाद, हर्पीज ज़ोस्टर) के बाद होने वाला हर्पेटिक न्यूरोपैथी। न्यूरोपैथी एचआईवी और शराब  के व्यसन/ अधिक सेवन  के कारण भी हो सकती है।

एक अन्य दर्द संलक्षण है क्रॉनिक रीजनल पेन सिंड्रोम, जिसमें आमतौर पर हाथ या पैर प्रभावित होते हैं। यह फ्रैक्चर, मोच, अंग स्थिरीकरण (यानि कि हाथ या पैर को हिलने से रोकने के लिए उसे पट्टी वगैरह से प्रतिबंधित करना), नसों पर चोट या कभी-कभी हाथ या पैर की उंगली में साधारण से कटने के बाद भी हो सकता है। प्रभावित हाथ या पैर में अकसर जलन होती है और यह जलन सामान्य स्पर्श से भी हो सकती है (ऐसा स्पर्श जिस से दर्द नहीं होना चाहिए)। प्रभावित अंग में सुन्नता, झुनझुनी, सूजन और कभी-कभी रंग फीका पड़ना/ बदलना देखा जा सकता हैं।

कैंसर से प्रभावित शरीर के भाग में कैंसर दर्द एक अन्य आम प्रकार का दर्द है और कैंसर के रोगियों की तकलीफों के मुख्य कारणों में से एक है। कैंसर के लगभग 30 से 50 प्रतिशत रोगियों को दर्द होता है और बीमारी के अंतिम चरण में लगभग 75 से 90 प्रतिशत बहुत गंभीर दर्द की शिकायत करते हैं।

कैंसर के रोगियों के साथ-साथ उत्तरजीवियों को भी कैंसर के उपचार के परिणामस्वरूप दर्द हो सकता है। यदि यह दर्द कीमोथेरेपी के दौरान या बाद में होता है, तो इसे कीमोथेरेपी इंड्यूस्ड परिधीय न्यूरोपैथी (सीआईपीएन) कहा जाता है। यह कीमोथेरेपी दवा से हुए नसों में क्षति का परिणाम है। इस दर्द को इसके स्वभाव से ही पहचाना जा सकता है। यह आमतौर पर एक जलन किस्म का दर्द है, जिसमें सुन्नता और झुनझुनी महसूस होते हैं और यह बिना किसी दर्द पैदा करने वाली उत्तेजना के भी हो सकता है। यह आमतौर पर हाथों और पैरों में होता है। स्पर्श, ठंडी हवा या हल्का दबाव भी इस दर्द को भड़का सकता है। कीमोथेरेपी समाप्त होने के बाद भी यह दर्द महीनों तक रह सकता है और रोगी के लिए अत्यंत कष्टदायक हो सकता है।

केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (मस्तिष्क या स्पाइनल कॉर्ड) में क्षति के कारण होने वाले दर्द संलक्षण  को सेंट्रल पेन  कहा जाता है। यह स्ट्रोक, मल्टीपल स्केलेरोसिस, सिर की चोट, स्पाइनल कॉर्ड की चोट, एपिलेप्सी (अपस्मार) और पार्किंसंस रोग के कारण हो सकता है। यह दर्द रोगी को काफी अक्षम कर सकता है और शुरुआती चोट (जिस से यह शुरू हुआ) के बाद महीनों या वर्षों तक चल सकता है।

अंत में है साइकोजेनिक पेन, जहां दर्द का कोई शारीरिक कारण नहीं मिलता है, और इसका कारण मनोवैज्ञानिक समझा जाता है। यूं कहिए, यह शारीरिक दर्द भावनात्मक कारणों से होता है पर दर्द वास्तविक है, काल्पनिक नहीं। यह दर्द कितना है और कैसे बढ़ता है, यह व्यक्ति के विचार, दृष्टिकोण, और भावनाओं से प्रभावित होता है ।

अवसाद और चिंता दर्द से कैसे संबंधित हैं?

दर्द का एक स्वाभाविक परिणाम है कष्ट - शारीरिक और मानसिक दोनों तरह का। शारीरिक कष्ट दिखाई देता है और व्यक्ति को परिवार, रिश्तेदारों, दोस्तों और यहां तक कि डॉक्टरों से भी सहानुभूति आसानी से मिल पाती है। परंतु शारीरिक दर्द के साथ होने वाली मानसिक पीड़ा को अकेले या कुछ चुने हुए लोगों के साथ ही सहन करना पड़ता है। मानसिक परेशानी पहले तब नजर आती है जब रोगी के मूड में बदलाव होता है जैसे चिड़चिड़े होना, अचानक गुस्सा आना, पहले से अधिक रोना, छोटी-छोटी घटनाओं पर आहत महसूस करना, ध्यान केंद्रित करने में असमर्थता, काम करने में असमर्थता, लगातार नकारात्मक और उदास सोच के चक्रव्यूह में फंस जाना, आदि। ये अवसाद (डिप्रेशन) के शुरुआती लक्षण हैं।

अक्सर जब हम किसी अक्यूट  या क्रानिक दर्द वाले रोगी से बात करते हैं तो देखते हैं कि व्यक्ति कई तरह के भय के बोझ से दबा हुआ है। ये भय मृत्यु, अशक्तता , विकलांगता, विरूपता, सीमित जीवन और पीड़ा से संबंधित हो सकते हैं। चिंता को मानसिक पीड़ा भी कहा जाता है। यह शारीरिक दर्द जितना, या कभी-कभी उस भी से भी अधिक क्षीण कर सकता है। मन और शरीर अलग-अलग चीजें नहीं हैं बल्कि एक ही सिक्के के दो तरफ जैसे हैं। जब किसी एक में परेशानी होती है, तो दूसरे में भी होती है - जैसे शारीरिक दर्द हो तो इस से मनोवैज्ञानिक दर्द भी होगा, और अगर मनोवैज्ञानिक दर्द है तो इस से शारीरिक दर्द भी होगा। दर्द के समग्रतात्मक दृष्‍टिकोण से उपचार के लिए दर्द से संबंधित सभी आशंकाओं और चिंताओं को दूर करने की आवश्यकता है।

कैंसर के दर्द के आकलन और प्रबंधन की सबसे बड़ी चुनौतियाँ क्या हैं?

कैंसर के दर्द का आकलन और प्रबंधन एक चुनौती हो सकता है।

दर्द बहुत गंभीर हो सकता है, खासकर बीमारी के अंतिम चरण में। गंभीर दर्द पेरासिटामोल या एंटी-इन्फ्लैमटोरी दवाओं जैसे साधारण एनाल्जेसिक से शायद न सुधारे और मॉर्फिन को शुरू करने की आवश्यकता हो सकती है। चूंकि मॉर्फिन एक नार्काटिक (मादक) दवा है और रोगी को उसकी लत पड़ सकती है, इसको शुरू करने से पहले यह आकलन करने की आवश्यकता होती है कि क्या व्यक्ति को उनके स्वभाव के कारण लत पड़ने की संभावना ज्यादा है ताकि इसका प्रशासन ऐसे करें कि इसका दुरुपयोग न हो। मॉर्फिन के प्रशासन को रोगी और देखभाल करने वालों को स्पष्ट रूप से समझाया जाना चाहिए और किसी भी दुष्प्रभाव को रोकने के लिए इसकी करीब से निगरानी करने की भी आवश्यकता है।

कैंसर के दर्द का प्रकार नोसिसेप्टिव (कैंसर के कारण हुई ऊतक क्षति से) या न्यूरोपैथिक (कैंसर के कारण हुई तंत्रिका क्षति से) या दोनों हो सकते हैं। दोनों प्रकार के दर्द के बीच अंतर करने के लिए उचित मूल्यांकन करने की आवश्यकता है क्योंकि इन दोनों का प्रबंधन अलग-अलग होता है। डब्ल्यूएचओ एनाल्जेसिक लैडर दवाओं का उपयोग करके नोसिसेप्टिव दर्द का इलाज किया जा सकता है और यदि इसके अलावा न्यूरोपैथिक दर्द भी है तो न्यूरोपैथिक दवाओं को सहायक दवा के रूप में जोड़ने की आवश्यकता होगी। प्रोस्टेट, स्तन या फेफड़ों के कैंसर से हड्डियों में मेटास्टेसिस के परिणामस्वरूप कैंसर के रोगियों में हड्डी का दर्द भी हो सकता है और कैंसर से प्रेरित हड्डी के दर्द के इलाज के लिए विशिष्ट दवाएं और तकनीकें उपलब्ध हैं।

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यह आकलन करना भी जरूरी है कि क्या दर्द कैंसर के उपचार (जैसे कि कीमोथेरेपी या रेडियोथेरेपी) के कारण है। कीमोथेरेपी के बाद का दर्द कैंसर के उपचार के कारण हुए परिधीय नसों में नुकसान के कारण होता है और यह एक न्यूरोपैथिक प्रकार का दर्द है जो आमतौर पर हाथों और पैरों में देखा जाता है। इस प्रकार के दर्द में जलन और  छूने पर दर्द होता है और यह सुन्नता या झुनझुनी से जुड़ा हो सकता है। सिर और गर्दन के कैंसर के लिए कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी दोनों दर्दनाक मुंह के छाले पैदा कर सकते हैं, जो बेहद परेशान करने वाले होते हैं।

कैंसर के रोगियों में शारीरिक दर्द अकसर उस से जुड़े मनोवैज्ञानिक कष्ट (जैसे अवसाद, चिंता और मरने का डर) से बढ़ जाता है। इसका भी आकलन और इलाज करने की जरूरत है। कई अंतिम चरण कैंसर और मरणासन्न रोगियों में मृत्यु से संबंधित गंभीर चिंता होती है और उन्हें घबराहट के दौरे (पैनिक अटैक), बेचैनी और यहां तक कि नींद की कमी जैसी जैविक समस्याएं भी हो सकती हैं। कई बार उनकी चिंताएँ परिवार, वित्तीय समस्याओं और सामाजिक दायित्वों से संबंधित हो सकती हैं। कई बार वे डिप्रेशन का भी शिकार हो जाते हैं। इन मनोवैज्ञानिक और सामाजिक मुद्दों का आकलन करने और उन्हें सुलझाने में मदद करने से रोगी को मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कष्ट को कम करने में काफी मदद मिलेगी। यह टोटल पेन मैनेजमेंट (पीड़ा का समग्रतात्मक दृष्टिकोण से प्रबंधन) है।

इसलिए, दर्द की गंभीरता, दर्द के प्रकार और दर्द के कारण का त्रुटिहीन  आकलन किया जाना चाहिए ताकि उसके अनुसार प्रबंधन शुरू किया जा सके। यह रोगी के दर्द और तकलीफ से राहत देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

कैंसर दर्द प्रबंधन से संबंधित आम मिथक और गलतफहमियाँ क्या हैं?

  1. कैंसर के दर्द के बारे में आम तौर पर प्रचलित एक मिथक यह है कि यह तो होना ही है और इसे और इस के कारण हो रहे कष्ट सहने ही पड़ेंगे यह सच नहीं है। कैंसर के दर्द का उपचार किया जा सकता है और कैंसर रोगी के जीवन  की गुणवत्ता को उपयुक्त दवाओं द्वारा बढ़ाया जा सकता है। प्रशामक देखभाल चिकित्सकों को कैंसर से संबंधित दर्द और परेशान करने वाले लक्षणों के लिए राहत प्रदान करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।
  2. एक और मिथक है कैंसर के दर्द का आध्यात्मिक पहलू। लोगों की यह धारणा है कि दर्द और पीड़ा एक प्रकार का कर्म  का फल या भगवान की दी हुई सजा है। यह एक प्रकार की आध्यात्मिक पीड़ा है। प्रशामक देखभाल की टीम (इस में एक सामाजिक कार्यकर्ता भी शामिल होता है) को दर्द के आध्यात्मिक पहलुओं को भी संबोधित करना चाहिए, ताकि दर्द के सभी आयामों का उपचार किया जा सके।
  3. एक बहुत आम गलत धारणा है कि कैंसर के दर्द के लिए मॉर्फिन जैसी ओपिओइड दवाओं से बचना चाहिए क्योंकि ये दवाएं लत का कारण बन सकती हैं। यह सच नहीं है। प्रशिक्षित प्रशामक देखभाल विशेषज्ञ रोगी के उचित मूल्यांकन के बाद ही ऐसी दवाओं को प्रशासित करते हैं और ऐसे में ये व्यसन का कारण नहीं बनेंगी। व्यसन आनुवंशिक, मनोसामाजिक और पर्यावरणीय कारकों से प्रभावित होता है और अगर रोगी सचमुच पीड़ा में है तो उसमें दवा लेने से लत नहीं पड़ेगी।

(डॉ मैरी अब्राहम और डॉ वंदना वी प्रकाश हाल ही में प्रकाशित पुस्तक "कॉन्क्वेरिंग पेन - हाउ टू प्रिवेंट इट, ट्रीट इट, एंड लीड ए बेटर लाइफ" की लेखिकाएं हैं। पुस्तक हार्पर कॉलिन्स द्वारा प्रकाशित की गई है। )

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14/Oct/2024
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